Kumaril Bhatt ,The Great Vedic Pandit

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  • Опубликовано: 6 окт 2024
  • ये कहानी उस समय की है जब भारत में अधिकतर लोग वेद त्याग कर बौध या जैन हो गये थे , बोहुत थोरे से प्रकांड पंडित ही थे जो वेद धर्म को नही छोरे थे नही तो , आये दिन वेद निंदा सुनने को मिलती थी कुमारिल भट्ट वैदिक कर्मकांड के प्रकांड विद्वान थे कुमारिल भट्ठ ने जो आधार तैयार किया उसी पर आदि शंकराचार्य विशाल भवन उठाया।इन्होने बौद्धों के प्रमुख नगरों जैसे पाटलिपुत्र ,सारनाथ आदि में जाकर उनके प्रमुख विद्वानों को शास्त्रार्थ में हरा दिया ,इनके सामने बौध चुप हो गये ,परन्तु अभी कुमारिल ने बौद्धों ने वेदों पर जो दोष आरोपण किये थे उनका उत्तर ही दिया था , वे बौध ग्रन्थ भी स्वयं पढना चाहते थे ताकि वे स्वयं भी उन पर प्रश्न कर सकें ,इसके लिए वे नाम बदलकर 'धर्म पाल ' नाम के बौध भिक्षु के पास बौध बन कर रहने लगे , फिर एक बार धर्म पाल ने बौध मत की व्याख्या करते हुय्ये वेदों की निंदा की ,इसे सुनकर कुमारिल की आँखों से अनसु आ गये , उनको रोता देख धर्मपाल समझ गया की कुमारिल वास्तव में वैदिक हैं ,कुमारिल ने कहा , ''हाँ यह सही है की मैं वैदिक हूँ ,परन्तु आपने जो कुछ भी वेदों के विरोध में कहा है , उनको समझे बिना कहा है ''उसे बोहुत गुस्सा आया तथा धर्मपाल ने अपने शिष्यों को कहा ,इससे ऊँचाई से नीचे गिरा दो ,नीचे गिरते समय कुमारिल ने कहा ,''यदि वेद सत्य हैं ,तो मुझे कुछ नहीं होगा ''....कुमारिल जिंदा बच गये ,परन्तु उनकी एक आंख फूट गयी ,उनका मानना था की क्यूंकि उन्होंने 'यदि' शब्द उसे किया था इसलिए उनकी आंख फूटी नही तो ये भी नही होता ,अब कुमारिल ने धर्मपाल को शास्त्रार्थ के लिए ललकारा ,जिसमे उन्होंने धर्मपाल को हरा दिया ,जब आदि शंकराचार्य , कुमारिल के पास अपने भाष्य दिखने के लिए आये तब कुमारिल अपनी देह त्याग कर रहे थे , उनका मानना था भले धर्मपाल ने उनकी जान लेने की कोशिश की थी , तथा वे तो इसे ही बौध ग्रन्थ पढने आये थे उससे , वास्तव में वे वैदिक थे , परन्तु गुरु ,गुरु होता है , तथा गुरु के साथ शास्त्रार्थ करने के प्रायश्चित में कुमारिल ने कुशग्नि में अपने प्राण दे दिए , इसे वैदिक प्रकांड विद्वान को कोटि कोटि प्रणाम जिन्होंने वेदों की सत्यता के लिए अपना पूरा जीवन बलिदान कर दिया

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