संकल्प का प्रभाव 🔸🔸🔹🔸🔸 न जाने क्यों, वह भगवान के नाममात्र से ही भड़क उठता था। यहाँ तक कि किसी आस्तिक से बात करना भी वह गुनाह समझता था। एक बार उसके गाँव में एक बड़ महात्मा प्रवचन देने के लिये आए। पूरा गाँव उनका प्रवचन सुनने के लिए उमड़ पड़ा। कई दिनों तक महात्मा जी का प्रवचन चलता रहा। मगर उसने उधर जाना तक उचित न समझा। एक दिन वह संध्या के समय अपने खेत से लौट रहा था, सभी प्रवचन दे रहे महात्मा जी का स्वर उसके कानों से टकराया, “ अगर तुम जीवन में सफल होना चाहते हो तो मन में कुछ न कुछ दृढ़ संकल्प कर लो और पूर्ण निष्ठा से उसे पूरा करने में लगे रहो। एक न एक दिन तुम्हें उसका सुफल जरूर मिलेगा। न चाहते हुए भी आखिर यह बात उसके कानों टकरा ही गयी। उसने इस बात को भूल जाना चाहा, लेकिन जब रात में सोया तो रह- रहकर महात्मा जी के कहे शब्द उसके दिमाग में गूँजने लगे। लाख कोशिश करके भी वह उनसे अपना पीछा नहीं छुड़ा पाया। आखिर थक-हारकर उसने इस कथन की सत्यता को परखने का निश्चय किया। लेकिन वह क्या दृढ़ संकल्प करें? उसने ऐसी बात सोचनी चाही जिससे कभी भी कोई प्रतिफल न मिलने वाला हो। उसका मंतव्य सिर्फ इतना था कि किसी भी तरह महात्मा जी का कथन असत्य सिद्ध हो जाए। काफी सोच विचार में उलझे रहने के बाद उसका ध्यान अपने घर के सामने रहे वाले कुम्हार पर गया। उसने संकल्प किया वह प्रतिदिन कुम्हार का मुँह देखे बिना भोजन नहीं करेगा। अपनी इस सोच पर वह मन ही मन खूब हँसा, क्योंकि वह जानता था कि इसका किसी तरह कोई भी सुफल नहीं मिल सकता है। अगले ही दिन से उसने अपने संकल्प पर अमल करना शुरू कर दिया। अब वह अंधेर में ही उठकर अपने घर के बाहर चबूतरे पर बैठ जाता जब कुम्हार उठकर बाहर आता जाता तो वह उसका मुँह देख लेता, फिर अपने काम में लग जाता। कभी-कभी ऐसे भी अवसर आते, जब कुम्हार बाहर चला जाता तो उसके एक दो दिन तक उपवास करना पड़ता। लेकिन न तो वह इससे विचलित हुआ और नहीं उसने अपने संकल्प की भनक कुम्हार अथवा अपने किसी परिवार जन को लगने दी। धीरे धीरे छह महीने बीत गए। किंतु उसे कुछ भी लाभ न हुआ। फिर भी अपने संकल्प पर अटल एवं अडिग रहा। उस पर तो नास्तिकता का भूत सवार था। कुछ भी करके वह महात्मा जी की बात झूठी साबित करना चाहता था। एक दिन उसकी नींद देर से खुली। तब तक कुम्हार मिट्टी लेने के लिए गाँव के बाहर खदान में चला गया था। जब उसे इसका पता चला तो वह भी घूमते-घूमते उधर जा निकला ताकि कुम्हार का मुँह देख ले। उसने थोड़ी खड़े होकर कुम्हार को देखा। वह मिट्टी खोदने में तल्लीन था। अतः वह चुपचाप वापस चल पड़ा उधर मिट्टी खोदते-खोदते कुम्हार के सामने सोने की चार ईंटें निकल आयीं। उसने गरदन उठाकर चारों तरफ देखा कि कोई उसे देख तो नहीं रहा है। तभी उसकी नजर कुछ दूर तेज कदमों से जाते उस पर पड़ी। उसने अपनी घबराहट पर नियंत्रण किया और उसे पुकारा अरे भाई शिवराम किधर से आ रहे हो और कहाँ जा रहे हो? और कहा जा रहे हो? वह किधर से आया था, पूछकर कुम्हार तसल्ली कर लेना चाहता था। उसने रुककर जवाब दिया, “ बस इधर ही आया था। जो देखना था सो देख लिया। अब वापस घर जा रहा हूँ।” उसके कहने का तो मतलब था कि उसने कुम्हार का मुँह देख लिया था। लेकिन कुम्हार घबरा गया। उसे पक्का विश्वास था कि उसने सोना देख लिया है। कहीं उसने रियासत के राजा से शिकायत कर दी तो हाथ आयी लक्ष्मी निकल जायेगा। उसने तुरंत कुछ निर्णय किया और उससे बोला “अरे भाई शिवराम देख लिया है तो तुम भी आधा ले जाओ। लेकिन राजा से शिकायत न करना” उसने सोचा कि कुम्हार मजाक कर रहा है। वह मना करते हुए चल पड़ा। अब तो कुम्हार एकदम घबरा गया। उसने दौड़कर उसे पकड़ लिया और हाथ जोड़ते हुए बोला, भाई तुम्हें आधा ले जाने में क्या हर्ज है?” अब तो वह थोड़ा चकराया। कुम्हार उसे अपने साथ खदान में ले गया। वहाँ सोने की ईंटें पड़ी देखकर वह सारा माजरा समझ गया उसने चुपचाप चार में दो ईंटें उठा ली। ईंटें उठाते समय महात्मा जी के वाक्य की महिमा समझ में आ रही थी। वहां से लौट कर उसने वह सारा सोना गाँव वालों के हित में लगा दिया। इसी के साथ उसने शेष जीवन कठोर तप एवं भगवद्भक्ति में लगान का निश्चय किया। संकल्प के इसी प्रभाव के कारण अब उसे लो नास्तिक नहीं परम आस्तिक, महान तपस्वी महात्मा शिवराम के नाम से जनने लगे थे ।❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️
@@Satsangganga1 आपको नमन करता हूं ,आपने सिंह साहब की आवाज और उनके ज्ञान को ,आज कि नई पीढ़ी तक फैलाया ,हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम हमारे बच्चों को भी इस अमर आवाज और ज्ञान से अवगत कराएं ,मेरा बच्चा आई आई टी ,में है ,मैंने उसको समझाया ,सुनाया बाद में उसने अपने कॉलेज के पूरे कैम्पस में सबको बताया की ,सुनकर देखो । आश्चर्य है कि जिन्होंने भी सुना ,अब अक्सर आईआईटी के कैम्पस में भी सिंह साहब को सुना जाता है ।।
हर एक माता-पिता का यही कर्तव्य होता है जो आपनी आने वाली पीढ़ी को सत मार्ग का रास्ता दिखलाएं। आपने भी वही उचित कार्य किया है आपको मैं कोटि-कोटि प्रणाम करता हूं नमन करता हूं आपके माता-पिता को जो आपमें ऐसे संस्कार विद्यमान किए 🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏
मन तो करता है कि बार बार सुनते ही जाऊ नाथू सिंह जी शेखावत की मीठी और सुरीली आवाज को, सन 1990 में मेरा जन्म हो गया था लेकिन मैं नाथू सिंह जी शेखावत को कभी प्रत्यक्ष रूप से नहीं सुन पाया । आज 26 सितंबर 2024 फिर से सुन रहा हूं 🙏🙏🙏
🔥बहुत सुन्दर और ज्ञान वर्धक प्रसंग...🔥 पहली बात: हनुमान जी जब संजीवनी बूटी का पर्वत लेकर लौटते है तो भगवान से कहते हैं :- "प्रभु आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था..बल्क़ि मेरा भ्रम दूर करने के लिए भेजा था..औऱ आज मेरा ये भ्रम टूट गया कि मैं ही आपका राम नाम का जप करने वाला सबसे बड़ा भक्त हूँ''। भगवान बोले:- वो कैसे ...? हनुमान जी बोले :- "वास्तव में मुझसे भी बड़े भक्त तो भरत जी हैं.. मैं जब संजीवनी लेकर लौट रहा था तब मुझे भरत जी ने बाण मारा और मैं गिरा तो भरत जी ने न तो संजीवनी मंगाई, न वैध बुलाया। कितना भरोसा है उन्हें आपके नाम पर.. उन्होंने कहा कि यदि मन, वचन और शरीर से श्री राम जी के चरण कमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो, यदि रघुनाथ जी मुझ पर प्रसन्न हों तो यह वानर थकावट और पीड़ा से रहित होकर स्वस्थ हो जाए। उनके इतना कहते ही मैं उठ बैठा। सच कितना भरोसा है भरत जी को आपके नाम पर। 🔥शिक्षा :- 🔥 हम भगवान का नाम तो लेते हैं पर भरोसा नहीं करते..भरोसा करते भी हैं तो अपने पुत्रों एवं धन पर.. कि बुढ़ापे में बेटा ही सेवा करेगा, धन ही साथ देगा। उस समय हम भूल जाते हैं कि जिस भगवान का नाम हम जप रहे हैं वे हैं.. पर हम भरोसा नहीं करते। बेटा सेवा करे न करे पर भरोसा हम उसी पर करते हैं। 🔥दूसरी बात प्रभु...! 🔥 बाण लगते ही मैं गिरा.. पर्वत नहीं गिरा..क्योंकि पर्वत तो आप उठाये हुए थे और मैं अभिमान कर रहा था कि मैं उठाये हुए हूँ। मेरा दूसरा अभिमान भी टूट गया। 🔥शिक्षा :- 🔥 हमारी भी यही सोच है कि..अपनी गृहस्थी के बोझ को हम ही उठाये हुए हैं। जबकि सत्य यह है कि हमारे नहीं रहने पर भी हमारा परिवार चलता ही है। जीवन के प्रति जिस व्यक्ति कि कम से कम शिकायतें हैं.. वही इस जगत में अधिक से अधिक सुखी है।🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉
हम अपनी महत्वाकांक्षाओं से इतने बंध गए कि इस स्वार्थ में हमारी संवेदना भी खो गई है। आज स्वयं को सुरक्षित रखने के सिवा किसी का कोई चरित्र नहीं है। ऐसी स्थिति में सेवा और सहयोग के आयाम कैसे विकसित हो? इसलिए जरूरी है दिशा बदलने की परार्थ और परमार्थ चेतना जगाने की। दोनों हाथ एक साथ उठेंगे तो एकता, संगठन, सहयोग, समन्वय और सौहार्द की स्वीकृति होगी कदम से कदम मिलाकर चलेंगे तो क्रांतिकारी का कारवां बनेगा। यही शक्ति है समाज में व्याप्त असंतुलन एवं अभाव को समाप्त करने की सेवाजनित लाभ कभी कहीं नहीं जाता। एक कहावत है- 'करें सेवा मिलें मेवा निशीथ भाष्यकार लिखते हैं-समाज के सदस्यों की सेवा करने वाला धर्म-वृक्ष की सुरक्षा करता है। सबकी प्रियता प्राप्त करता है और महान निर्जरा, चित्त शुद्धि का भागी बनता है। मेरी दृष्टि में यही सच्ची धार्मिकता है। समाज में उजालों की जरूरत आज ज्यादा महसूस की जा रही है, क्योंकि वास्तविक उजाला जीवन को खूबसूरती प्रदान करता है। वस्तुओं को आकार देता है, शिल्प देता है, रौनक एवं रंगत प्रदान करता है। उजाला इंसान के भीतर ज्ञान का संचार करता है और अंधकार को खत्म कर जीवन को सही मार्ग दिखाता है। नकारात्मक दृष्टिकोण दूर कर सकारात्मक दृष्टि और सोच प्रदान करता है। खुली आंखों से सही-सही देख न पाएं तो समझना चाहिए कि वह अंधेरा बाहर नहीं, हमारे भीतर ही कहीं घुसपैठ किए बैठा है जबकि जीवन में उजालों की कमी नहीं है। महावीर का त्याग, राम का राजवैभव छोड़ वनवासी बनना और गांधी का अहिंसक जीवन उजालों के प्रतीक है जो भटकाव से बचाते रहे है। आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने कहा है प्राचीनकाल में स्वार्थ कम तथा स्नेह व सौहार्द ज्यादा था। आज उसमें कमी आई है। इसका एक कारण है धन के प्रति आकर्षण और नकारात्मक चिंतन। जहाँ सकारात्मक चिंतन का विकास होता है वहां संबंधों में सौहार्द बढ़ता है। इसके लिए जरूरी है व्यक्ति अपने भीतर झांके अंतर्दृष्टि को जागृत कर नया प्रकाश प्राप्त करें सेवा की विभिन्न प्रवृत्तियों के साथ जुड़कर उसी नए प्रकाश को प्राप्त कर सकते है, वह ईश्वरतत्व का बीज है, स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार का मार्ग है।
नाथूसिंह जी के भजन बहुत ही आकर्षक,विश्वसनीय एवं वर्तमान की आवश्यकता न्यायसंगत है। साक्षात् उनके मुख से सरस्वती के उद्गार स्त्रावित होते थे। लेकिन आज वे महा मानव हमारे बीच नहीं रहे। दुनियां उन्हें श्रद्धा से याद करती है। मैं निशब्द हूं की आज ऐसे महान संगीतकार हमारे बीच नहीं हैं।।।।।
सभी आध्यात्मिक पथ उच्च चेतना और भगवान के साथ एकता की ओर ले जाते हैं और कई रास्तों में से एक सबसे बड़ा है कर्म का मार्ग: यह भक्ति के मार्ग या ज्ञान के मार्ग जितना ही महान है। श्री अरविंद
नाथु सिंह जी ने सभी भजन व ख्ताओं को पूरा सास्त्र युक्त गाये हैं और आप ने पूर्ण रूप से समर्पित भाव में स्थित हो कर आत्म विभौर हो कर कथाओ को जीवित रूप दिया है,में आप को नमन करते हुए हार्दिक साधुवाद देता हूं
आप से अनुरोध है ,सिंह साहब द्वारा गाई, गई कथा " राजा भ्रथरी भी अवस्या सुनें,उसको गाते हुए ,जैसे जैसे कथा आगे बढ़ती है आवाज बहुत ही सुरीली हो जाती है ,अगर एकांत में सुनेंगे तो इतना खो जायेंगे की ,ऐसा लगेगा जैसे मेडिटेशन में चले गए हों ।
मधुर वाणी मे ज्ञानरूपी भजन की प्रस्तुति सुनने से मनुष्य प्राणी को ज्ञान की प्राप्ति ही नहीं समाज को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। गायक कलाकर महोदय जी को धन्यवाद
बहुत ही अच्छी कर्म निष्ठा की शिक्षा प्रदान करनेवाली कथा है हमारी भगवान से यही दुआ है सिंह साहेब महापुरुष गायक की अमर्त वाणी सदा सदा के लिए अमर रहे🌷🌷🌹🌹🙏🙏
नाथू सिंह जी गायक महान, मां भगवती की कृपा पात्र। ऐसी सुनहरी आवाज के, वो गायक थे एकमात्र।। स्वर्गीय सुर सम्राट नाथू सिंह जी का एक फैन राजेंद्र यादव भानीपुरा
धन्य हो श्री मूलचंद जी स्वामी जो आज गजबन के इस जमाने में भजनों का प्रचार प्रसार करने में लगे हो। यकीनन उस दिव्यात्मा सिंह जी आशीष आपके साथ है । एक सतसंगति प्रेमी राजेन्द्र यादव, भानीपुरा
समय समय का फेर है समय समय की बात किसी समय में दिन बड़ा तो किसी समय में रात अपने समय के बहुत ही अच्छे गायकार थे मैं उनके भजनों का बचपन से प्रेमी हूं आज के बॉलीवुड वाले सब उनके सामने फेल हैं उनको शत-शत नमन
Verry good singar thakur sahab..nathu shing ji sekawat Rajasthan me kabhi bhi koi unki barabari nahi kar sakta bagwan unki atma ko shanti pardan kare .... .om shanti om
बहुत बढ़िया कथा गाया है नाथूसिह शेखावत साहब आपकी मधूर आवाज सुनते ही पुरा दिन की थकान दूर हो जाती है आपका कोई भी भजन व कथा सुनने पर आप जैसा कलाकार नहीं पहले हुआ था और ना अब आगे होगा
((( प्रेम व भक्ति का मार्ग )))) 👌बहुत सुंदर भक्ति कथा👌 चांगदेव नाम के एक हठयोगी थे इन्होंने योग सिद्धि से अनेको सिद्धियाँ प्राप्त कर रखी थी तथा मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कर ली थी उनकी उम्र 1400 वर्ष हो गई थी। . चांगदेव को यश-प्रतिष्ठा का बहुत मोह था। वह अपने आप को सबसे महान मानते थे। . इन्होंने जब संत ज्ञानेश्वर की प्रशंसा सुनी तो उनका मन संत ज्ञानेश्वर के प्रति ईर्ष्या से भर उठा... . उन्होंने सोचा की 16 वर्ष की उम्र में संत ज्ञानेश्वर क्या मेरे से बड़े सिद्ध हो सकते है ऐसा उनकों मानने में न आया... . क्योंकि इन्होंने 1400 वर्ष साधना करके मृत्यु को जीता था तथा प्रत्येक जीव जंतु उनके वश में थे तथा एक सोलह साल का व्यक्ति उनसें सिद्धि में बड़ा हो सकता है यह बात उनके गले न उतरी... . परन्तु जब बार-बार संत ज्ञानेश्वर की प्रशंसा सुनी तो उन्होंने मन में सोचा की संत ज्ञानेश्वर से मिला जाए इसलिए उन्होने संत ज्ञानेश्वर को पत्र लिखने का सोचा। . जब वह पत्र लिखने बैठे तो सोच में पड़ गए कि संत ज्ञानेश्वर को क्या संबोधन करू। . पुज्य ,आदरणीय आदि से संबोधन भी नहीं कर सकते थे क्योंकि वह तो 1400 वर्ष के थे तथा संत ज्ञानेश्वर सोलह वर्ष के तो चिरंजीव भी नहीं लिख सकते थे.. . क्योंकि ज्ञानी पुरूष जिसकी प्रसिद्धि चारो ओर फैली हो उसके लिए यह लिखने पर वह अपना अपमान न समझ बैठे तथा उन्होंने अंत में कोरा कागज ही भेज दिया। . चांगदेव का कोरा कागज देखकर मुक्ताबाई ने जवाब दिया ति तुम 1400 वर्ष के हो गये तथा कोरे के कोरे रह गये। . ऐसा जवाब सुनकर चांगदेव का अहंकार कम हो गया तथा उनके मन में संत ज्ञानेश्वर से मिलने की इच्छा बलवती होने लगी... . इन्हें अपनी सिद्धियों पर बहुत अभिमान था इसलिए संत ज्ञानेश्वर के सामने अपनी सिद्धियों के प्रदर्शन के लिए शेर की सवारी करके तथा हाथ में सर्प की लगाम लेकर संत ज्ञानेश्वर से मिलने चल पड़े। . रास्तें में जो भी लोग उनको देखते उनकी सिद्धियों की प्रशंसा करते उनकी जय-जयकार करते यह देखकर उनका मन अहंकार से भर उठा। . जब संत ज्ञानेश्वर ने सुना की चांगदेव उनसे मिलने आ रहे है तो उन्होंने सोचा की मेहमान का स्वागत करने के लिए जाना चाहिये। . वह प्रातःकाल उठकर पत्थर से बनी चार दिवारी पर बैठकर दातुन कर रहे थे। . उन्होंने संकल्प किया तथा जैसे ही आज्ञा दी पत्थर का चबुतरा सरकने लगा तथा चांगदेव की ओर बढ़ने लगा .. . चांगदेव ने जैसे ही संत ज्ञानेश्वर को पत्थर के चबुतरे की सवारी करते हुए अपनी ओर आते देखा तो उनका अहंकार चुर-चुर हो गया। . उन्होंने सोचा की में तो प्रत्येक जीव जंतु पर अपना वश रखता हूं परन्तु संत ज्ञानेश्वर तो निर्जीव वस्तु को भी वश में कर सकते है ये निश्चित ही मुझसे महान है । . ऐसा सोचते ही चांगदेव का अहंकार दुर हट गया उनकीं आँखो में आसु बहने लगे मन करूणा से भर उठा। . उन्होंने सांप की लगाम को फेंक दिया तथा शेर की सवारी को छोड़कर संत ज्ञानेश्वर के पैर पकड़ लिए। . संत ज्ञानेश्वर ने जैसे ही देखा चांगदेव उनके चरण पकड़कर विलाप कर रहे है उन्होंने उसे गले से लगा लिया। . जो सिद्धियाँ चांगदेव ने 1400 वर्षो की योग साधना से प्राप्त कि थी उनसे अधिक सिद्धियों को संत ज्ञानेश्वर ने 16 वर्ष की उम्र में प्रेम व भक्ति के मार्ग पर चलकर प्राप्त किया था। ~~~~~~~~~~~~~~~~~ ((((((( जय जय श्री राधे ))))))) ~~~~~~~~~~~~~~~~~*
संकल्प का प्रभाव
🔸🔸🔹🔸🔸
न जाने क्यों, वह भगवान के नाममात्र से ही भड़क उठता था। यहाँ तक कि किसी आस्तिक से बात करना भी वह गुनाह समझता था। एक बार उसके गाँव में एक बड़ महात्मा प्रवचन देने के लिये आए। पूरा गाँव उनका प्रवचन सुनने के लिए उमड़ पड़ा। कई दिनों तक महात्मा जी का प्रवचन चलता रहा। मगर उसने उधर जाना तक उचित न समझा।
एक दिन वह संध्या के समय अपने खेत से लौट रहा था, सभी प्रवचन दे रहे महात्मा जी का स्वर उसके कानों से टकराया, “ अगर तुम जीवन में सफल होना चाहते हो तो मन में कुछ न कुछ दृढ़ संकल्प कर लो और पूर्ण निष्ठा से उसे पूरा करने में लगे रहो। एक न एक दिन तुम्हें उसका सुफल जरूर मिलेगा।
न चाहते हुए भी आखिर यह बात उसके कानों टकरा ही गयी। उसने इस बात को भूल जाना चाहा, लेकिन जब रात में सोया तो रह- रहकर महात्मा जी के कहे शब्द उसके दिमाग में गूँजने लगे। लाख कोशिश करके भी वह उनसे अपना पीछा नहीं छुड़ा पाया। आखिर थक-हारकर उसने इस कथन की सत्यता को परखने का निश्चय किया। लेकिन वह क्या दृढ़ संकल्प करें? उसने ऐसी बात सोचनी चाही जिससे कभी भी कोई प्रतिफल न मिलने वाला हो। उसका मंतव्य सिर्फ इतना था कि किसी भी तरह महात्मा जी का कथन असत्य सिद्ध हो जाए।
काफी सोच विचार में उलझे रहने के बाद उसका ध्यान अपने घर के सामने रहे वाले कुम्हार पर गया। उसने संकल्प किया वह प्रतिदिन कुम्हार का मुँह देखे बिना भोजन नहीं करेगा। अपनी इस सोच पर वह मन ही मन खूब हँसा, क्योंकि वह जानता था कि इसका किसी तरह कोई भी सुफल नहीं मिल सकता है। अगले ही दिन से उसने अपने संकल्प पर अमल करना शुरू कर दिया। अब वह अंधेर में ही उठकर अपने घर के बाहर चबूतरे पर बैठ जाता जब कुम्हार उठकर बाहर आता जाता तो वह उसका मुँह देख लेता, फिर अपने काम में लग जाता। कभी-कभी ऐसे भी अवसर आते, जब कुम्हार बाहर चला जाता तो उसके एक दो दिन तक उपवास करना पड़ता। लेकिन न तो वह इससे विचलित हुआ और नहीं उसने अपने संकल्प की भनक कुम्हार अथवा अपने किसी परिवार जन को लगने दी।
धीरे धीरे छह महीने बीत गए। किंतु उसे कुछ भी लाभ न हुआ। फिर भी अपने संकल्प पर अटल एवं अडिग रहा। उस पर तो नास्तिकता का भूत सवार था। कुछ भी करके वह महात्मा जी की बात झूठी साबित करना चाहता था। एक दिन उसकी नींद देर से खुली। तब तक कुम्हार मिट्टी लेने के लिए गाँव के बाहर खदान में चला गया था। जब उसे इसका पता चला तो वह भी घूमते-घूमते उधर जा निकला ताकि कुम्हार का मुँह देख ले।
उसने थोड़ी खड़े होकर कुम्हार को देखा। वह मिट्टी खोदने में तल्लीन था। अतः वह चुपचाप वापस चल पड़ा उधर मिट्टी खोदते-खोदते कुम्हार के सामने सोने की चार ईंटें निकल आयीं। उसने गरदन उठाकर चारों तरफ देखा कि कोई उसे देख तो नहीं रहा है। तभी उसकी नजर कुछ दूर तेज कदमों से जाते उस पर पड़ी। उसने अपनी घबराहट पर नियंत्रण किया और उसे पुकारा अरे भाई शिवराम किधर से आ रहे हो और कहाँ जा रहे हो? और कहा जा रहे हो? वह किधर से आया था, पूछकर कुम्हार तसल्ली कर लेना चाहता था।
उसने रुककर जवाब दिया, “ बस इधर ही आया था। जो देखना था सो देख लिया। अब वापस घर जा रहा हूँ।” उसके कहने का तो मतलब था कि उसने कुम्हार का मुँह देख लिया था। लेकिन कुम्हार घबरा गया। उसे पक्का विश्वास था कि उसने सोना देख लिया है। कहीं उसने रियासत के राजा से शिकायत कर दी तो हाथ आयी लक्ष्मी निकल जायेगा। उसने तुरंत कुछ निर्णय किया और उससे बोला “अरे भाई शिवराम देख लिया है तो तुम भी आधा ले जाओ। लेकिन राजा से शिकायत न करना”
उसने सोचा कि कुम्हार मजाक कर रहा है। वह मना करते हुए चल पड़ा। अब तो कुम्हार एकदम घबरा गया। उसने दौड़कर उसे पकड़ लिया और हाथ जोड़ते हुए बोला, भाई तुम्हें आधा ले जाने में क्या हर्ज है?” अब तो वह थोड़ा चकराया। कुम्हार उसे अपने साथ खदान में ले गया। वहाँ सोने की ईंटें पड़ी देखकर वह सारा माजरा समझ गया उसने चुपचाप चार में दो ईंटें उठा ली। ईंटें उठाते समय महात्मा जी के वाक्य की महिमा समझ में आ रही थी। वहां से लौट कर उसने वह सारा सोना गाँव वालों के हित में लगा दिया। इसी के साथ उसने शेष जीवन कठोर तप एवं भगवद्भक्ति में लगान का निश्चय किया। संकल्प के इसी प्रभाव के कारण अब उसे लो नास्तिक नहीं परम आस्तिक, महान तपस्वी महात्मा शिवराम के नाम से जनने लगे थे ।❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️
बहुत ही ज्ञानवर्धक लेखनी रोचकता से भरपूर
बहुत बहुत आभार जी 🚩🚩🚩🚩🚩🙏🙏🙏
Pp00
बहुत अच्छी कहानी है , प्रेरणादायक
,
जंय
आज भी महान आदमी को दिल से याद करते है इनका भजन का स्वर आत्मा को शांत कर देता है बहुत अच्छा लगता है जय हो
Thanks for your feedback sir Ji 🙏🙏
@@Satsangganga1 आपको नमन करता हूं ,आपने सिंह साहब की आवाज और उनके ज्ञान को ,आज कि नई पीढ़ी तक फैलाया ,हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम हमारे बच्चों को भी इस अमर आवाज और ज्ञान से अवगत कराएं ,मेरा बच्चा आई आई टी ,में है ,मैंने उसको समझाया ,सुनाया बाद में उसने अपने कॉलेज के पूरे कैम्पस में सबको बताया की ,सुनकर देखो । आश्चर्य है कि जिन्होंने भी सुना ,अब अक्सर आईआईटी के कैम्पस में भी सिंह साहब को सुना जाता है ।।
हर एक माता-पिता का यही कर्तव्य होता है जो आपनी आने वाली पीढ़ी को सत मार्ग का रास्ता दिखलाएं।
आपने भी वही उचित कार्य किया है आपको मैं कोटि-कोटि प्रणाम करता हूं नमन करता हूं आपके माता-पिता को जो आपमें ऐसे संस्कार विद्यमान किए
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मन तो करता है कि बार बार सुनते ही जाऊ नाथू सिंह जी शेखावत की मीठी और सुरीली आवाज को, सन 1990 में मेरा जन्म हो गया था लेकिन मैं नाथू सिंह जी शेखावत को कभी प्रत्यक्ष रूप से नहीं सुन पाया । आज 26 सितंबर 2024 फिर से सुन रहा हूं 🙏🙏🙏
Thanks for your feedback ji 🙏🙏🙏
में इस कथा से अति प्रसन्न हूं इस कथा में मुझे पूरी तरह से सच्चाई नजर आईं रामकिशोर बंशीवाल ग्राम हापास पापडदा दौसा नाथूसिंह जी को सत सत नमन करता हूं
Thanks for your feedback sir Ji 🙏
स्व श्री नाथू सिंह धार्मिक कथाओं को गा कर अमर हो गए। जिनको सुनकर आमजन का कल्याण हो रहा।
Ji Sir
Nice
l
स्वर्गीय श्री नाथू सिंह जी शेखावत जैसे गायक कलाकार आज इस दुनिया में कहां है ना ही होंगे वह तो वही थे
Ji ha
Thanks ji
@@BaBaRiKirpa cv ggf
Nice
नाथु सिंह जी को सत् सत् नमन
🔥बहुत सुन्दर और ज्ञान वर्धक प्रसंग...🔥
पहली बात: हनुमान जी जब संजीवनी बूटी का पर्वत लेकर लौटते है तो भगवान से कहते हैं :-
"प्रभु आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था..बल्क़ि मेरा भ्रम दूर करने के लिए भेजा था..औऱ आज मेरा ये भ्रम टूट गया कि मैं ही आपका राम नाम का जप करने वाला सबसे बड़ा भक्त हूँ''।
भगवान बोले:- वो कैसे ...?
हनुमान जी बोले :- "वास्तव में मुझसे भी बड़े भक्त तो भरत जी हैं.. मैं जब संजीवनी लेकर लौट रहा था तब मुझे भरत जी ने बाण मारा और मैं गिरा तो भरत जी ने न तो संजीवनी मंगाई, न वैध बुलाया।
कितना भरोसा है उन्हें आपके नाम पर.. उन्होंने कहा कि यदि मन, वचन और शरीर से श्री राम जी के चरण कमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो, यदि रघुनाथ जी मुझ पर प्रसन्न हों तो यह वानर थकावट और पीड़ा से रहित होकर स्वस्थ हो जाए।
उनके इतना कहते ही मैं उठ बैठा।
सच कितना भरोसा है भरत जी को आपके नाम पर।
🔥शिक्षा :- 🔥
हम भगवान का नाम तो लेते हैं पर भरोसा नहीं करते..भरोसा करते भी हैं तो अपने पुत्रों एवं धन पर.. कि बुढ़ापे में बेटा ही सेवा करेगा, धन ही साथ देगा।
उस समय हम भूल जाते हैं कि जिस भगवान का नाम हम जप रहे हैं वे हैं.. पर हम भरोसा नहीं करते।
बेटा सेवा करे न करे पर भरोसा हम उसी पर करते हैं।
🔥दूसरी बात प्रभु...! 🔥
बाण लगते ही मैं गिरा.. पर्वत नहीं गिरा..क्योंकि पर्वत तो आप उठाये हुए थे और मैं अभिमान कर रहा था कि मैं उठाये हुए हूँ।
मेरा दूसरा अभिमान भी टूट गया।
🔥शिक्षा :- 🔥
हमारी भी यही सोच है कि..अपनी गृहस्थी के बोझ को हम ही उठाये हुए हैं। जबकि सत्य यह है कि हमारे नहीं रहने पर भी हमारा परिवार चलता ही है।
जीवन के प्रति जिस व्यक्ति कि कम से कम शिकायतें हैं.. वही इस जगत में अधिक से अधिक सुखी है।🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉
जय श्री राम 🚩🚩🚩🙏🙏🙏
नाथू सिंह जी शेखावत बाड़ीजोड को सत सत नमन
Nathu Singh JI jesa koi nhi ga skta bahut achha gaya h mere fevrit h
पार्थिव विकास का महत्व गुप्त रूप से निवास करने वाली आत्मा की इस धीमी और प्रगतिशील मुक्ति में निहित है।
श्री ओरोबिन्दो
जय श्री राम जी 🚩🚩🙏🙏
आप महान है। आप अपने भजनों में अमर है। संगीत जगत सदा आपका ऋणी रहेगा।
Thanks for your feedback sir Ji 🙏🙏
Ha g ❤️👍
Me abhi 24 sal ka hu par me Shri nathusingh ji ke bhajan bachpan se sun rha hu bhout hi acche bhajan gate the ❤❤❤
बहुत ही प्यारी राग में गाया सत्यवान सावित्री का भजन ऐसी आवाज सुन के तो तबीयत ही खुश हो जाती है
बहुत ही बढ़िया भजन। सिंह जी द्वारा गाई गयी बेस्ट कथा।।।
👍
Wah !! Guru, maan gaye. Yaha tak pahuch gaye.
☺️☺️
मै बचपन से ही नाथू सिंह जी के भजन पसन्द करता हूँ ।बहुत ही सुंदर और सटीक प्रस्तुति है ।सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं । सादर नमन
Thanks for your feedback sir Ji 🙏🙏
मै बचपन से ही ना थू सिंह जी के बजन पसन्द करता हु सुनकर प्रसन्न होते ह
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हम अपनी महत्वाकांक्षाओं से इतने बंध गए कि इस स्वार्थ में हमारी संवेदना भी खो गई है। आज स्वयं को सुरक्षित रखने के सिवा किसी का कोई चरित्र नहीं है। ऐसी स्थिति में सेवा और सहयोग के आयाम कैसे विकसित हो? इसलिए जरूरी है दिशा बदलने की परार्थ और परमार्थ चेतना जगाने की। दोनों हाथ एक साथ उठेंगे तो एकता, संगठन, सहयोग, समन्वय और सौहार्द की स्वीकृति होगी कदम से कदम मिलाकर चलेंगे तो क्रांतिकारी का कारवां बनेगा। यही शक्ति है समाज में व्याप्त असंतुलन एवं अभाव को समाप्त करने की सेवाजनित लाभ कभी कहीं नहीं जाता। एक कहावत है- 'करें सेवा मिलें मेवा निशीथ भाष्यकार लिखते हैं-समाज के सदस्यों की सेवा करने वाला धर्म-वृक्ष की सुरक्षा करता है। सबकी प्रियता प्राप्त करता है और महान निर्जरा, चित्त शुद्धि का भागी बनता है। मेरी दृष्टि में यही सच्ची धार्मिकता है।
समाज में उजालों की जरूरत आज ज्यादा महसूस की जा रही है, क्योंकि वास्तविक उजाला जीवन को खूबसूरती प्रदान करता है। वस्तुओं को आकार देता है, शिल्प देता है, रौनक एवं रंगत प्रदान करता है। उजाला इंसान के भीतर ज्ञान का संचार करता है और अंधकार को खत्म कर जीवन को सही मार्ग दिखाता है। नकारात्मक दृष्टिकोण दूर कर सकारात्मक दृष्टि और सोच प्रदान करता है।
खुली आंखों से सही-सही देख न पाएं तो समझना चाहिए कि वह अंधेरा बाहर नहीं, हमारे भीतर ही कहीं घुसपैठ किए बैठा है जबकि जीवन में उजालों की कमी नहीं है। महावीर का त्याग, राम का राजवैभव छोड़ वनवासी बनना और गांधी का अहिंसक जीवन उजालों के प्रतीक है जो भटकाव से बचाते रहे है। आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने कहा है प्राचीनकाल में स्वार्थ कम तथा स्नेह व सौहार्द ज्यादा था। आज उसमें कमी आई है। इसका एक कारण है धन के प्रति आकर्षण और नकारात्मक चिंतन। जहाँ सकारात्मक चिंतन का विकास होता है वहां संबंधों में सौहार्द बढ़ता है। इसके लिए जरूरी है व्यक्ति अपने भीतर झांके अंतर्दृष्टि को जागृत कर नया प्रकाश प्राप्त करें सेवा की विभिन्न प्रवृत्तियों के साथ जुड़कर उसी नए प्रकाश को प्राप्त कर सकते है, वह ईश्वरतत्व का बीज है, स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार का मार्ग है।
🙏🙏🙏🙏
बहुत ही शानदार प्रस्तुति 👍👍
नाथू सिंह जी और राजकुमार स्वामी जी का हर भजन सुना है मैने ऐसे महान गायक कलाकार अब नहीं है
😔😔😔🙏🙏
बहुत ही ज्ञान वर्धक कथा सुनाई नाथूसिंह जी ने मै उनका तह दिल से आभार व्यक्त करता हूं।
❗❗बहुत ही प्यारा भजन है। नाथू सिंह शेखावत को बहुत बहुत बधाई।।। मै लोकेश गुर्जर् । खेतड़ी तेशील
जिला झुंझनू गाँव माधोगढ़ की
तरफ से बधाई हो।। ❗
नाथू सिंह जी के भजन हम बचपन से सुनते आ रहे हैं
इनके भजन सुनते ही मन में तृप्त हो जाता है
भजन गायक तो आज भी बहुत हैं लेकिन जो मजा नाथू सिंह जी के गाए भजन में है वो कहीं नहीं है
शेखावाटी के महान कलाकारों में से एक चमकता सितारा थे श्री नाथूसिंह जी। मेरे शहर चिङावा के पास ही इनका गाँव है ।
नाथूसिंह जी के भजन बहुत ही आकर्षक,विश्वसनीय एवं वर्तमान की आवश्यकता न्यायसंगत है।
साक्षात् उनके मुख से सरस्वती के उद्गार स्त्रावित होते थे।
लेकिन आज वे महा मानव हमारे बीच नहीं रहे।
दुनियां उन्हें श्रद्धा से याद करती है।
मैं निशब्द हूं की आज ऐसे महान संगीतकार हमारे बीच नहीं हैं।।।।।
Thank for your feedback sir Ji 🙏🙏
बचपन की खूबसूरत यादें नाथू सिंह जी की दिलकश आवाज़ ने पूरा चित्रण को सजीव कर दिया है । वाकई में शानदान
Thanks for your feedback sir Ji 🙏
ttt
@@Satsangganga1 pjmk please p o
L il jol l ink on pp imp Bobbi pjj Jol look mo MLM hi p nook book po n
मुझे जिंदगी भर इस बात का अफसोस रहेगा कि मैं कभी नाथू सिंह को लाइव नहीं सुन सका
नाथू सिंह को मेरे दिल मेरी आत्मा से बहुत बहुत श्रंधाजली
😭😭🚩🚩🙏🙏
M inke bhajan bar bar sunta rahta hu. Inko sat sat naman
सभी आध्यात्मिक पथ उच्च चेतना और भगवान के साथ एकता की ओर ले जाते हैं और कई रास्तों में से एक सबसे बड़ा है कर्म का मार्ग: यह भक्ति के मार्ग या ज्ञान के मार्ग जितना ही महान है।
श्री अरविंद
Sweetest Voice & music 🎶
Great Songs !!!!
Bahut hi sunder bhajan hai nathu shingh j ka bhagvan unki aatma ko shanti de babu lal kumawat
Mahan gayak apko bar bar naman🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
ऐसे महान कवि को बार-बार प्रणाम
नाथू सिंह जी शेखावत एक बहुत ही सुन्दर गायक हुए जिसकी प्रशंसा करते है उतनी ही कमी है।
वाह सा भजन सुनकर धन्य हो गय
Thanks Ji 🙏
Mera sara priwar kavi bhagwan sahay ka or nathu singh ka fan h...
नाथु सिंह जी ने सभी भजन व ख्ताओं को पूरा सास्त्र युक्त गाये हैं और आप ने पूर्ण रूप से समर्पित भाव में स्थित हो कर आत्म विभौर हो कर कथाओ को जीवित रूप दिया है,में आप को नमन करते हुए हार्दिक साधुवाद देता हूं
आप से अनुरोध है ,सिंह साहब द्वारा गाई, गई कथा " राजा भ्रथरी भी अवस्या सुनें,उसको गाते हुए ,जैसे जैसे कथा आगे बढ़ती है आवाज बहुत ही सुरीली हो जाती है ,अगर एकांत में सुनेंगे तो इतना खो जायेंगे की ,ऐसा लगेगा जैसे मेडिटेशन में चले गए हों ।
मधुर वाणी मे ज्ञानरूपी भजन की प्रस्तुति सुनने से मनुष्य प्राणी को ज्ञान की प्राप्ति ही नहीं समाज को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। गायक कलाकर महोदय जी को धन्यवाद
नाथू सिंह जी की जय हो
स्वर्गीय श्री नाथू सिंह जी शेखावत को कोटि कोटि नमन
Thanks Ji 🙏
नमस्ते जी जयगणेशा जयगणेशा जयगणेशा जयगणेशा जयगणेशा जयगणेशा जयश्रीहनुमान विजय भवो भारत ।भजन।गायक।को।हादिकशुभकामनाए देतेहै जी ।राधे श्याम ।सिहाग।चूरू
Bahut hi achha lagta h jab nathu ji ki jubha se ye bajan sunte h 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Thanks Ji 🙏
यह कथा सुनकर परम आननंद का अनुभव हुआ
Nathu Singh Jaise kalakar is duniya mein dobara nahin hoga
Nathu singh shekhawat ji ke bhajan
Bahut hi achchhe lagte h mujhe
बहुत ही अच्छी कर्म निष्ठा की शिक्षा प्रदान करनेवाली कथा है हमारी भगवान से यही दुआ है सिंह साहेब महापुरुष गायक की अमर्त वाणी सदा सदा के लिए अमर रहे🌷🌷🌹🌹🙏🙏
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
👏👏👏
अति मधुर एवं सुरीली आवाज में कथा का भक्तों के लिए विमोचन किया है, उनको कोटि कोटि नमन |
Good
नंतर
Very beautiful and super hit katha by Late Sh Nathusingh Ji sekhawat
Thanks for your feedback sir Ji
Nathusingh ji ko sadar naman hamari samaj ko dharm se jodne ke liye amar rahe
Nice bhajan
अमर गायक सिंह जी की अमर कथा जय हो 👌👌👌👍👍👍💯💯💯🌹🌹🌹
Jai Ho
Very nice bhajan mera favrat h ye 23 years phle suna tha maine dosto
Wellcome Ji 🙏 🙏
श्री नाथू सिंह जी हमेशा अमर रहेंगे मैं महावीर पारीक सूरतगढ़ से
नाथू सिंह जी गायक महान, मां भगवती की कृपा पात्र।
ऐसी सुनहरी आवाज के, वो गायक थे एकमात्र।।
स्वर्गीय सुर सम्राट नाथू सिंह जी
का एक फैन
राजेंद्र यादव भानीपुरा
Thanks for your feedback sir Ji
@@Satsangganga1 ok thanks
सही
धन्य हो श्री मूलचंद जी स्वामी
जो आज गजबन के इस जमाने में
भजनों का प्रचार प्रसार करने में लगे हो।
यकीनन उस दिव्यात्मा सिंह जी आशीष
आपके साथ है ।
एक सतसंगति प्रेमी
राजेन्द्र यादव, भानीपुरा
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
@@Satsangganga1 ओ
नाथू सिंह जी की शब्दों में व्याख्या नहीं कर सकता । प्रणाम
Right
Nice 🐷🐷🐷🐷
मैंने यह कथा मेरे बचपन में सुना था आज 30 वर्ष बाद सुनकर बचपन याद आ गया धन्यवाद नाथूसिंह जी 🙏🙏
Thanks for your feedback Ji 🙏🙏
Bas mere mann ki baat keh di aapne
Shi me mere sath bhi ye hi hua
Bhagwaan assa veer dobara peda kre Shekhawtti me
Aapko koti koti naman 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
बहुत बहुत सुंदर किस्सा धन्यवाद नाथु सिंह जी❣️
Bhachpan me hamke yahi suna h or aaj bhi sunte h hamare mhaporuso ko naman 🙏🙏
Savrgiye shree nathu sing shekhawat ji ki shandar aavaj ko sat sat naman aasa karta hu ki inke jaisa Gayak kalakar hame jaldi hi mil jaye Jai hind
और श्री
मेरे बेसट कथा गायक कलाकार नाथु सीगजी
बहुत ही सुन्दर ढंग से सुनाई है कथा है भाई
आज तीस साल बाद त्रिस्पृशा मंजुला द्वादशी ओर मोहिनी एकादशी को श्री हरि की कृपा से पुनः आदरणीय पुरुष की आवाज सुनने को मिली ! आपको सादर धन्यवाद
हार्दिक अभिनंदन जी।
नाथू सिंह follower क्लब में आपका स्वागत है।🙏🙏🌹🌹🙏🙏
समय समय का फेर है समय समय की बात किसी समय में दिन बड़ा तो किसी समय में रात अपने समय के बहुत ही अच्छे गायकार थे मैं उनके भजनों का बचपन से प्रेमी हूं आज के बॉलीवुड वाले सब उनके सामने फेल हैं उनको शत-शत नमन
Thanks for your feedback sir Ji 🙏🙏🙏🙏 you are correct
Bhut hi sandar 🙏🏼
महान् आत्मा को लांखो प्रणाम ते दील से,, 👋👌☝️🙏🌺🍓🍎
बहुत बहुत आभार जी 🙏🙏🙏
Unki awaaz bahut pyari hai unki awaaz se bhajn sunane me aandh aajata h
बहुत बहुत साधुवाद
घणा घणा धन्यवाद जी
Thanks ji
Sat sat naman kavi nathu singh ji ko
Very nice bhajan😊😊👍👍👍👍👍👍👌👌👌🙏🙏👏👏i like it
Bhahut sundar bhajan gaya nathushig jine inki aavaj hmesa ki amar rhti
बहुत ही बढ़िया गाया जी आपने । आप के सभी भजन सुनते ह आनंद आ जाता ह ।
Thanks for your feedback sir Ji 🙏 🙏
Shiv ka vivah
Swargiy Shree Naathu Singh Ji KiJay
Wah shekhawat saab
Verry good singar thakur sahab..nathu shing ji sekawat Rajasthan me kabhi bhi koi unki barabari nahi kar sakta bagwan unki atma ko shanti pardan kare .... .om shanti om
Meenagit
Bhut sunder
“मनुष्य की सर्वोच्च अभीप्सा हमेशा ईश्वर, पूर्णता, स्वतंत्रता, एक परम सत्य और आनंद एवं अमरता की खोज ही रही है । ”
- श्री अरविंद
Very nice song by Nathu Singh ji Shekhawat
जय हो जय हो जय हो नाथू सिंह जी की 🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹
🙏🙏🙏🙏🙏
बहुत ही सुंदर कथा सुनाई नाथू सिंह जी ने उनको मैं तह दिल से याद करता हूं जब भी यह कथा सुनता हूं तो सादर नमन
Thanks for your feedback sir Ji 🙏🙏
में बचपन से नाथू जी के भजन सूनता आ रहा हूँ
Very nice 👍👌
“चैत्य हमेशा विश्वास, आनंद और आत्मविश्वास के साथ ईश्वर की ओर उन्मुख रहता है उसकी जो भी - अभीप्सा होती है वह विश्वास और आशा से भरी होती है। श्री अरविंद
बहुत अच्छा भजन
Bhut aache shingar the shiree maan nuthu shing ji shekhawat
Thanks for your feedback sir Ji 🙏🙏
Bahot badeeya bhajan
Thanks Ji 🙏🙏
Very nice Katha
जय श्री सती सावित्री माता की 🎤🎤🎧🎧🎹🎹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🏻🙏👌👌👌👌👌🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
Thanks your feedback sir Ji 🙏 🙏
Jay Shree Nath ji
Miss u sir aapko aap jaisa gayak na koi hua hai na hoga
ये तो मन को समझाने वाला बात हुई है
मैं आपके भाव अच्छी तरह से समझ सकता हूं जी 🙏🙏🙏🙏🙏
नाथू सिंह शेखावत जी को सत सत नमन🙏🙏🌷🌹🌷🌷🌹🌹
Superb
Bahoot Badhiya Bhajan nathu singh sekhawat
बहुत बहुत आभार सर जी 🙏🙏
Very nice katha
Best bhajan
Ram ram
बहुत बढ़िया कथा गाया है नाथूसिह शेखावत साहब आपकी मधूर आवाज सुनते ही पुरा दिन की थकान दूर हो जाती है आपका कोई भी भजन व कथा सुनने पर आप जैसा कलाकार नहीं पहले हुआ था और ना अब आगे होगा
Very very very very good Nathu Singh Ji
Jay Mata ho Savitri ki Jay ho 🇮🇳🌹❤jay ho satyvan ki Jay Ho 🎉🇮🇳🌹❤
Kya hi bhajan hai maja aa gya
Thank Ji 🙏
👍👍👍👍👍
Shri Nathu ram ji aapko koti koti naman
Ram ram
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Very nice singer
Very nice 👏👏 Jai Ho
Nathu Singh jese nato huye na hoge. Lakho me ek the. 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
((( प्रेम व भक्ति का मार्ग ))))
👌बहुत सुंदर भक्ति कथा👌
चांगदेव नाम के एक हठयोगी थे इन्होंने योग सिद्धि से अनेको सिद्धियाँ प्राप्त कर रखी थी तथा मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कर ली थी उनकी उम्र 1400 वर्ष हो गई थी।
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चांगदेव को यश-प्रतिष्ठा का बहुत मोह था। वह अपने आप को सबसे महान मानते थे।
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इन्होंने जब संत ज्ञानेश्वर की प्रशंसा सुनी तो उनका मन संत ज्ञानेश्वर के प्रति ईर्ष्या से भर उठा...
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उन्होंने सोचा की 16 वर्ष की उम्र में संत ज्ञानेश्वर क्या मेरे से बड़े सिद्ध हो सकते है ऐसा उनकों मानने में न आया...
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क्योंकि इन्होंने 1400 वर्ष साधना करके मृत्यु को जीता था तथा प्रत्येक जीव जंतु उनके वश में थे तथा एक सोलह साल का व्यक्ति उनसें सिद्धि में बड़ा हो सकता है यह बात उनके गले न उतरी...
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परन्तु जब बार-बार संत ज्ञानेश्वर की प्रशंसा सुनी तो उन्होंने मन में सोचा की संत ज्ञानेश्वर से मिला जाए इसलिए उन्होने संत ज्ञानेश्वर को पत्र लिखने का सोचा।
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जब वह पत्र लिखने बैठे तो सोच में पड़ गए कि संत ज्ञानेश्वर को क्या संबोधन करू।
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पुज्य ,आदरणीय आदि से संबोधन भी नहीं कर सकते थे क्योंकि वह तो 1400 वर्ष के थे तथा संत ज्ञानेश्वर सोलह वर्ष के तो चिरंजीव भी नहीं लिख सकते थे..
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क्योंकि ज्ञानी पुरूष जिसकी प्रसिद्धि चारो ओर फैली हो उसके लिए यह लिखने पर वह अपना अपमान न समझ बैठे तथा उन्होंने अंत में कोरा कागज ही भेज दिया।
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चांगदेव का कोरा कागज देखकर मुक्ताबाई ने जवाब दिया ति तुम 1400 वर्ष के हो गये तथा कोरे के कोरे रह गये।
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ऐसा जवाब सुनकर चांगदेव का अहंकार कम हो गया तथा उनके मन में संत ज्ञानेश्वर से मिलने की इच्छा बलवती होने लगी...
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इन्हें अपनी सिद्धियों पर बहुत अभिमान था इसलिए संत ज्ञानेश्वर के सामने अपनी सिद्धियों के प्रदर्शन के लिए शेर की सवारी करके तथा हाथ में सर्प की लगाम लेकर संत ज्ञानेश्वर से मिलने चल पड़े।
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रास्तें में जो भी लोग उनको देखते उनकी सिद्धियों की प्रशंसा करते उनकी जय-जयकार करते यह देखकर उनका मन अहंकार से भर उठा।
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जब संत ज्ञानेश्वर ने सुना की चांगदेव उनसे मिलने आ रहे है तो उन्होंने सोचा की मेहमान का स्वागत करने के लिए जाना चाहिये।
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वह प्रातःकाल उठकर पत्थर से बनी चार दिवारी पर बैठकर दातुन कर रहे थे।
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उन्होंने संकल्प किया तथा जैसे ही आज्ञा दी पत्थर का चबुतरा सरकने लगा तथा चांगदेव की ओर बढ़ने लगा ..
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चांगदेव ने जैसे ही संत ज्ञानेश्वर को पत्थर के चबुतरे की सवारी करते हुए अपनी ओर आते देखा तो उनका अहंकार चुर-चुर हो गया।
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उन्होंने सोचा की में तो प्रत्येक जीव जंतु पर अपना वश रखता हूं परन्तु संत ज्ञानेश्वर तो निर्जीव वस्तु को भी वश में कर सकते है ये निश्चित ही मुझसे महान है ।
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ऐसा सोचते ही चांगदेव का अहंकार दुर हट गया उनकीं आँखो में आसु बहने लगे मन करूणा से भर उठा।
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उन्होंने सांप की लगाम को फेंक दिया तथा शेर की सवारी को छोड़कर संत ज्ञानेश्वर के पैर पकड़ लिए।
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संत ज्ञानेश्वर ने जैसे ही देखा चांगदेव उनके चरण पकड़कर विलाप कर रहे है उन्होंने उसे गले से लगा लिया।
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जो सिद्धियाँ चांगदेव ने 1400 वर्षो की योग साधना से प्राप्त कि थी उनसे अधिक सिद्धियों को संत ज्ञानेश्वर ने 16 वर्ष की उम्र में प्रेम व भक्ति के मार्ग पर चलकर प्राप्त किया था।
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((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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