प्रतिभा संवर्धन का मूल्य भी चुकाया जाए . (KD-3)पु0-युग की मांग प्रतिभा परिष्कार(भाग-1) -श्रीरामशर्मा

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  • Опубликовано: 24 ноя 2024
  • ‘‘बेटे ! क्रान्तिधर्मी साहित्य मेरे अब तक के सभी साहित्य का मक्खन है। मेरे अब तक का साहित्य पढ़ पाओ या न पढ़ पाओ, इसे जरूर पढ़ना। इन्हें समझे बिना मिशन को न तो तुम समझ सकते हो, न ही किसी को समझा सकते हो।’’.....
    ‘‘बेटे ! ये इस युग की युगगीता है। एक बार पढ़ने से न समझ आये तो सौ बार पढ़ना। जैसे अर्जुन का मोह गीता से भंग हुआ था, वैसे ही तुम्हारा मोह इस युगगीता से भंग होगा।
    ‘‘हमारे विचार बड़े पैने हैं, तीखे हैं। हमारी सारी शक्ति हमारे विचारों में समाहित है। दुनिया को हम पलट देने का जो दावा करते हैं, वह सिद्धियों से नहीं, अपने सशक्त विचारों से करते हैं। आप इन विचारों को फैलाने में हमारी सहायता कीजिए। हमको आगे बढ़ने दीजिए, सम्पर्क बनाने दीजिए।’’.....
    मेरे जीवन भर का साहित्य शरीर के वजन से ज्यादा भारी है। यदि इसे तराजू के एक पलड़े पर रखें और क्रान्तिधर्मी साहित्य को (युग साहित्य को) एक पलड़े पर, तो इनका वजन ज्यादा होगा।
    ‘‘आवश्यकता और समय के अनुरूप गायत्री महाविज्ञान मैंने लिखा था। अब इसे अल्मारी में बन्द करके रख दो। अब केवल इन्हीं (क्रान्तिधर्मी साहित्य को-युग साहित्य को) किताबों को पढ़ना। समय आने पर उसे भी पढ़ना। महाकाल ने स्वयं मेरी उँगलियाँ पकड़कर ये साहित्य लिखवाया है।’’.....
    ‘‘ये उत्तराधिकारियों के लिए वसीयत है। जीवन को-चिन्तन को बदलने के सूत्र हैं इसमें। गुरु पूर्णिमा से अब तक पीड़ा लिखी है, पढ़ो।’’ .....
    ‘‘हमारे विचार, क्रान्ति के बीज हैं, जो जरा भी दुनिया में फैल गए, तो अगले दिनों धमाका करेंगे। तुम हमारा काम करो, हम तुम्हारा काम करेंगे।’’.....
    ‘‘१९८८-९० तक लिखी पुस्तकें जीवन का सार हैं-सारे जीवन का लेखा-जोखा हैं १९४० से अब तक के साहित्य का सार हैं।’’.....
    ‘‘जैैसे श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को सभी तीर्थों की यात्रा कराई, वैसे ही आप भी हमें (विचार रूप में --क्रान्तिधर्मी साहित्य के रूप में) संसार भर के तीर्थ प्रत्येक गाँव, प्रत्येक घर में ले चलें।’’.....
    ‘‘बेटे, गायत्री महाविज्ञान एक तरफ रख दो, प्रज्ञापुराण एक तरफ रख दो। केवल इन किताबों को पढ़ना-पढ़ाना व गीता की तरह नित्य पाठ करना।’’.....
    ‘‘ये गायत्री महाविज्ञान के बेटे-बेटियाँ हैं, ये (इशारा कर के) प्रज्ञापुराण के बेटे-बेटियाँ हैं। बेटे, (पुरानों से) तुम सभी इस साहित्य को बार-बार पढ़ना। सौ बार पढ़ना और सौ लोगों को पढ़वाना। दुनिया की सभी समस्याओं का समाधान इस साहित्य में है।’’.....
    ‘‘हमारे विचार क्रान्ति के बीज हैं। इन्हें लागत मूल्य पर छपवाकर प्रचारित प्रसारित करने की सभी को छूट है। कोई कापीराइट नहीं है।’’.....
    ‘‘अब तक लिखे सभी साहित्य को तराजू के एक पलड़े पर रखें और इन पुस्तकों को दूसरी पर, तो इनका वजन ज्यादा भारी पड़ेगा।’’.....
    ‘‘शान्तिकुञ्ज अब क्रान्तिकुञ्ज हो गया है। यहाँ सब कुछ उल्टा-पुल्टा है। सातों षियों का अन्नकूट है।’’.....
    ‘‘बेटे, ये २० किताबें सौ बार पढ़ना और कम से कम १०० लोगों को पढ़ाना और वो भी सौ लोगों को पढ़ाएँ। हम लिखें तो असर न हो, ऐसा न होगा।’’.....
    ‘‘आज तक हमने सूप पिलाया, अब क्रान्तिधर्मी के रूप में भोजन करो।’’.....
    ‘‘प्रत्येक कार्यकर्ता को नियमित रूप से इसे पढ़ना और जीवन में उतारना युग-निर्माण के लिए जरूरी है। तभी अगले चरण में वे प्रवेश कर सकेंगे। ’’.....
    वसन्त पंचमी १९९० को वं. माताजी से --‘‘मेरा ज्ञान शरीर ही जिन्दा रहेगा। ज्ञान शरीर का प्रकाश जन-जन के बीच में पहुँचना ही चाहिए और आप सबसे कहियेगा --सब बच्चों से कहियेगा कि मेरे ज्ञान शरीर को-मेरे क्रान्तिधर्मी साहित्य के रूप में जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास करें।’’...
    श्रीराम शर्मा आचार्य💐
    क्रान्तिधर्मी साहित्य की पुस्तकें -
    1-इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग १, 2. इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग २, 3. युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग १ ,4. युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग २, 5. सतयुग की वापसी 6. परिवर्तन के महान क्षण 7. जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र 8. महाकाल का प्रतिभाओं को आमन्त्रण 9. प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया 10. नवसृजन के निमित्त महाकाल की तैयारी 11. समस्याएँ आज की समाधान कल के 12. मन: स्थिति बदले तो परिस्थिति बदले 13. स्रष्टा का परम प्रसाद-प्रखर प्रज्ञा 14. आद्य शक्ति गायत्री की समर्थ साधना 15. शिक्षा ही नहीं विद्या भी 16. संजीवनी विद्या का विस्तार 17. भाव सम्वेदनाओं की गंगोत्री 18. महिला जागृति अभियान 19. जीवन देवता की साधना-आराधना 20. समयदान ही युग धर्म 21. नवयुग का मत्स्यावतार 22. इक्कीसवीं सदी का गंगावतरण ।
    इसके अतिरिक्त पुस्तकें -
    23 .महाकाल और उसकी युगप्रत्यावर्तन प्रक्रिया 24. युग परिवर्तन की पृष्ठभूमि रूपरेखा 25. युग की पुकार अनसुनी ना करें 26. युग निर्माण का सत सूत्री कार्यक्रम 27. ध्वंस एवं सृजन की संभावना 28. क्रांति की रूपरेखा 29. 21वी सदी के लिए हमें क्या करना होगा ? 30. प्रज्ञा अवतार का स्वरूप एवं क्रियाकलाप 31. व्यक्तित्व संपन्न ही नवनिर्माण करेंगे 32. महाकाल का स्वरूप और उनकी भावी रीति- नीति 33. समग्र क्रांति हेतु युवाओं की तैयारी 35. युग परिवर्तन क्यों और कैसे ? 37. कैसा होगा आने वाला प्रज्ञायुग? 38. मनुष्य की दुर्बुद्धि और भावी विनाश 39. युग निर्माण क्या संभव है ?40. युवा क्रांति पथ 42. वातावरण के परिवर्तन का आध्यात्मिक प्रयोग 43. स्वाध्याय मंडलों की स्थापना कल्पवृक्ष का आरोपण 44. महाकाल की चेतावनी...
    !!स्वाध्याय में कभी प्रमाद न करें!!
    विचारक्रांति अभियान !!
    गायत्री ज्ञान मंदिर ,3798,पटेलनगर ,उरई mb no-9971917595

Комментарии • 1

  • @VinodKumarShukla-q7y
    @VinodKumarShukla-q7y 7 дней назад

    जय श्रीराम सीताराम राम राम