जीवन रूपी सुनहरे अवसर का सदुपयोग कैसे करें?
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- Опубликовано: 29 дек 2024
- जीवन रूपी सुनहरे अवसर का सदुपयोग कैसे करें? Jeevan rupi sunhare avsar ka sadupyog kaise kare? @SPJIN @RAJANSWAMI
वक्ता-दीप्ति जी
श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ 18वां वार्षिकोत्सव
"सकल साथ, राखे कोई वचन विसारो जी" - इस चर्चा के माध्यम से धाम धनी सभी साथियों को परमधाम में लिए गए वचनों की याद दिला रहे हैं कि चाहे माया कितने भी छल करे, हम आपको कभी नहीं भूलेंगे। मिहिरराज जी के धाम से उतरी प्रकाश की वाणी हमें ऐसी माया से निकालने आई है जिसने हमारे प्रियतम को भुला दिया है। हम भूल गए कि हम ब्रज रास में कैसे प्रेम निभाते थे। हर पल पिया की मनमोहक छवि चित्त में आनंद देती थी। इस जागनी ब्रह्मांड में ब्रह्मज्ञान का मिलना एकमात्र अंतिम सुनहरा अवसर है अपने पिया को रिझाने का - "अवसर आज तमारो जी।" जो सुध हमें परमधाम में भी नहीं थी, वह केवल शरीर को सेवा में लगाकर, जीव को ज्ञान देकर और आत्मा को ध्यान से ही प्राप्त हो सकती है। सकल साथ मिलकर पच्चीस पक्षों में सुरति केंद्रित करें और पांचों इंद्रियों को वाणी मंथन में लगाकर अक्षरतित से मीठी-मीठी बात करें।
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श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ के मुख्य उद्देश्य -
ज्ञान, शिक्षा, उच्च आदर्श, पावन चरित्र व भारतीय संस्कृति का समाज में प्रचार करना तथा वैज्ञानिक सिद्धांतो पर आधारित आध्यात्मिक मूल्य द्वारा मानव को महामानव बनाना और श्री प्राणनाथ जी की ब्रम्हवाणी के द्वारा समाज में फ़ैल रही अंध-परम्पराओं को समाप्त करके सबको एक अक्षरातीत की पहचान कराना।
अति महत्वपूर्ण नोट :-
यह पंचभौतिक शरीर हमेशा रहने वाला नहीं है।
प्रियतम परब्रह्म को पाने के लिये यह सुनहरा अवसर है।
अतः बिना समय गवाएं उस अक्षरातीत पाने के लिये प्रयास करना चाहिये।
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1. परिकरमा + सागर + सिनगार + खिलवत टीका
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आत्मिक दृष्टि से परमधाम, युगल स्वरुप तथा अपनी परआत्म को देखना ही चितवनि (ध्यान) है। चितवनि के बिना आत्म जागृति संभव नहीं है। संसार की अब तक की प्रचलित सभी ध्यान पद्धतियाँ निराकार-बेहद से आगे नहीं जाती हैं। तारतम ज्ञान के प्रकाश में मात्र निजानन्द योग ही परमधाम ले जा सकता है।
प्रियतम अक्षरातीत की चितवनि में इतना आनन्द है कि उसके सामने संसार के सभी सुख मिलकर भी कहीं नहीं ठहरते। यही कारण है कि ध्यान का आनन्द पाने के लिये ही राजकुमार सिद्धार्थ, महावीर, भर्तृहरि आदि ने अपने राज-पाट को छोड़ दिया और वनों में ध्यानमग्न रहे।
बेहद मण्डल - इस प्राकृतिक जगत् से परे वह बेहद मण्डल है, जिसे योगमाया का ब्रह्माण्ड कहते हैं। चारों वेदों में इसे चतुष्पाद विभूति के रूप में वर्णित किया गया है। इस मण्डल में अक्षर ब्रह्म के चारों अन्तःकरण (मन, चित, बुद्धि तथा अहंकार) की लीला होती है, जिन्हें क्रमशः अव्याकृत, सबलिक, केवल और सत्स्वरूप कहते हैं।
परमधाम - बेहद मण्डल से परे वह स्वलीला अद्वैत परमधाम है, जिसके कण-कण में सच्चिदानन्द परब्रह्म की लीला होती है। यह अनादि है, अनन्त है और सच्चिदानन्दमय है। जिस प्रकार सागर अपनी लहरों से तथा चन्द्रमा अपनी किरणों लीला करता है, उसी प्रकार अक्षरातीत भी अपनी अभिन्न स्वरूपा अंगरूपा आत्माओं के साथ अद्वैत लीला करते हैं, जो अनादि है और इसमें कभी अलगाव नहीं होता है।
वेदों ने इसी परमधाम के सम्बन्ध में “त्रिपादुर्ध्व उदैत्पुरुष” अर्थात् परब्रह्म योगमाया से परे है, कहकर मौन धारण कर लिया। मुण्डकोपनिषद् ने भी 'दिव्य ब्रह्मपुर' शब्द का प्रयोग तो किया, किन्तु उसे बेहद मण्डल (केवल ब्रह्म) में मान लिया। कुरआन में मेयराज के वर्णन के द्वारा संकेत किये जाने पर भी मुस्लिम जगत अभी इसकी वास्तविकता से बहुत दूर है।
श्री प्राणनाथजी की अलौकिक तारतम वाणी में इस परमधाम की शोभा, लीला एवं आनन्द का विशद रूप में वर्णन किया गया है, जिसका सुख किसी सौभाग्यशाली को ही प्राप्त होता है।
❤ pernam ji sunder sath ji ki charnao me koti koti pranam ji Swami ji ❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
Very beautiful charcha,prem pranamji🙏
प्रेम प्रणाम जी दीदी आप के श्री चरणों में जी🌹🌹
Raj shyama ji ke charno me koti koti parem parnam ji
🙏🙏🙏Prem Pranamji 🙏🙏🙏
Prem pranam ji
❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
Sprem pranamji
❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
Prem pranamji 🙏🏻🙏🏻🌸🌺🌺🌸
Prnam ji 🙏🙏
❤ પ્રણામજી❤
પ્રેમ પ્રણામ જી
Koti koti Prem pranam Sundar sath ji
Aap key charnome koti koti prem pranam ji sundrsathaji bahut meethi charcha ❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️
Prem 🌹🙏 pranam ji
Prem parnaam ji
श्री श्रीजी साहेब जी महेरबान 🌹🙏🏻 प्रेम प्रणाम जी ❤
Prem pranamji🙏🙏
प्रेम प्रणाम जी🙏 🌹🙏
🙏🏻🙇👣♥️
प्रेम प्रणाम जी।❤❤❤❤❤❤❤
बहुत सरल भाव से चौपाई का वर्णन प्रणाम जी
Pranamji
Prem pranam ji 💕🙏🏻
Prnam ji ❤️❤️
🙏♥️🌺🙇🌺♥️🙏
प्रेम प्रणाम जी
प्रणाम गुरुजी।
❤❤❤❤
Pranamji 🌷 🙏 🌷 🙏 🌷
Panamji
Pranam ji 🙏❤️🙏❤️🙏
Pranamji
Prem pranam ji
Prem pranam ji