नर हो न निराश करो मन को | nar ho na nirash karo man ko | मैथिली शरण गुप्त | कविता सन्देश
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- Опубликовано: 1 янв 2024
- नर हो न निराश करो मन को | nar ho na nirash karo man ko | मैथिली शरण गुप्त | कविता सन्देश
महान कवि रामधारी सिंह दिनकर एक ऐसे कवि जिनकी कविताएं हमारे जीवन को श्रेष्ठ दिशा प्रदान करती यदि हम उनकी कविताओं को सुनते, समझते एवम् अनुभव करते हुए स्वयं में सम्पूर्ण मानवता के प्रति एक न्याय संगत दृष्टिकोण का विकास कर सकें; तो यह हमारी एक श्रेष्ठ उपलब्धि होगी।
मैथिलीशरण गुप्त जी ने अपने साठ वर्षीय काव्य साधना, कला में लगभग सत्तर कृतियों की रचना करके न केवल हिन्दी साहित्य की अपितु सम्पूर्ण भारतीय समाज की अमूल्य सेवा की है। उन्होंने अपने काव्य में एक ओर भारतीय राष्ट्रवाद, संस्कृति, समाज तथा राजनीति के विषय में नये प्रतिमानों को प्रतिष्ठित किया, वहीं दूसरी ओर व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र के अंत:सम्बंधों के आधार पर इन्हें नवीन अर्थ भी प्रदान किया है।
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मैथिली शरण गुप्त की कविता
Sri maithilisharan Gupt sir sat sat naman
हृदय स्पर्शी 😊
Best kavita till date👏👍🏻
बहुत सुंदर🙏🙏
अत्यंत सुंदर कविता
अत्यंत सुंदर प्रस्तुति
Vnice thanks
❤
Bachpan me parah AJ tak Kam a RHA h
Very nice
Kbc me puchha gya hai iske bare me
Phle motivation class me hi Kavita SE le Lete the 😔