समुद्र मन्थन और देवासुर संग्राम की पूरी कहानी। वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड। आचार्य अंकित प्रभाकर
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- Опубликовано: 6 июн 2024
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हार्दिक धन्यवाद शुभकामनाएं आयुष्मान भव ओ३म् 🙏🏼🚩 कृण्वनतो विश्वमार्यम 🚩 चरैवेति चरैवेति... । जय आर्य जय आर्यव्रत भरतखण्ड 🚩
नमस्ते आचार्यजी।जब प्रक्षेपित कथा को आप भी पढ़ाते है तो अन्य बामपंथी भी इसी प्रक्षेपित कथा को ही मूल मानकर उल्टा पुल्टा बोलते हैं,और रामायण और राम आदि को काल्पनिक बोलते हैं।अतः मुझे लगता है, जैसा स्वामी जगदीश्वरानंद ने भाष्य से मिलावट को तो हटाया ही हैं; साथ ही साथ उसकी टिप्पणी भी उन्होंने की है।मूल रामायण को ही मानना-जानना उचित रहेगा।
Naman acharya ji
ओम् , सादर प्रणाम आचार्य जी।
आचार्य जी सादर नमस्कार
Om namaste Aacharya ji
Pranam acharya ji 🙏
Aacharya ji Bhagwat geeta pe lessons shuru karein 🙏🙏
Acharya ji namaste
🙏🙏
I'm from Kathmandu, Nepal.
I have to go to Kathmandu please guide me
🙏🏻🙏🏻
🙏🏻🕉🙏🏻
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नमस्ते जी, आपके सहयोग के लिये आपका बहुत बहुत आभारी हूँ। सहयोग भेजकर यदि आप व्हाट्सैप सूचित कर दें तो मुझे धन्यवाद करने का अवसर मिलेगा। 🙏
Bas khani achhi hai
आचार्य जी सादर नमस्ते
आचार्य जी 🙏🙏🚩🕉️🌞🙏🙏
Jhariya namaste bhaiya aapki Jo video hai iske bich mein awaaz Chali gai hai aur yah awaaz kaise Kati hai yah nahin pata hai to purn baat mein nahin Sun pa rahi hun please ek bar video ko ek bar fir se check kijiega ismein Jo awaaz hai vah cutting ki gai matlab band ho gai hai a nahin Rahi aap boliye lipsing sunai de rahi hai lekin awaaz sunai nahin de rahi hai to please ek bar check kijiye
ध्यनि कुछ समय के लिए बंद हो गई थी परंतु अभी आ रही है
🕉️आचार्य जी 🙏 💐
सादर प्रणाम आचार्य जी
Nadte.aceyaji
देवा सुर संग्राम नाग की रस्सी बनाना पर्वत को मथनी बनाना इसका आशय क्या है
आचार्य जी आपकी कहानी के अनुसार तो असुर ज्यादा अच्छे थे। सुरा भी नहीं ली। मार काट तो दोनों ने की फिर हम देवों को अच्छा क्यों कहते है?
अप अर्थात जल और जल के रस से वे अप्सराएँ पैदा हुई इसलिए उन्हे अप्सरा कहा गया, ठीक है किंतु (अप के रस से इसलिए) अप्+ रस= अपरसा यह नाम यथोचित होता।😊
आचार्य जी सदर नमस्ते आचार्य जी आपकी आवाज ही आनी बंद हो गई
Enhance ensan ke Ander केसे pervas कर skta h
आचार्य जी नमस्ते ।
स्वामी जगदीश्वरानंद जी द्वारा बाल्मीकि रामायण में ४५,४६,४७ सर्ग है ही नहीं ।
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