ब्रम्हचारी जी प्रणाम करना /कराना शिष्टाचार करना/कराना है। यह भाव ही अपने में महान है। परसुराम को अपनी स्थिति के बारे में सोचना चाहिये,क्योंकि आपका परिचय मुनि विश्वामित्र ने कराया हे।
यद्यपि दोनों ही अभिनेता प्रकाण्ड विद्वान हैं लेकिन परसुराम जी के वक्तव्यों में व्यवहिरकता और वैज्ञानिकता का अभाव रहा है। जितना मैं समझ पा रहा हूं। कटु टिप्पणी के लिये प्रभू क्षमा करें। जय जय श्री सीताराम जी सरकार।
Bahut sunder samvad,
ब्रम्हचारी जी प्रणाम करना /कराना शिष्टाचार करना/कराना है।
यह भाव ही अपने में महान है।
परसुराम को अपनी स्थिति के बारे में सोचना चाहिये,क्योंकि आपका परिचय मुनि विश्वामित्र ने कराया हे।
अति सुंदर लीला
Jay shree Ram
Vishvamitra ,ne jabardast mitrata nibhayi
आदरणीय सुरेश जी के बाद भी आज ऐसा लग रहा है जैसे इस मंच भी वही उदित हो रहे हैं।
यद्यपि दोनों ही अभिनेता प्रकाण्ड विद्वान हैं लेकिन परसुराम जी के वक्तव्यों में व्यवहिरकता और वैज्ञानिकता का अभाव रहा है। जितना मैं समझ पा रहा हूं।
कटु टिप्पणी के लिये प्रभू क्षमा करें।
जय जय श्री सीताराम जी सरकार।
आवत हिय हरसे नहीं नैनन नहीं सनेह....दोहे का तार्किक प्रयोग प्रसंगानुकूल है, और ऐसा तर्क जैसे तुरुप का इक्का।