अच्छा साक्षात्कार । त्रिपाठी जी को अपने मूलभूत प्रगतिशील मानवतावादी दृष्टिकोण को रखने का इसमें पूरा अवसर दिया गया है । दरअसल साधन भी साध्य की सीमा और संभावनाओं को तय करने में बड़ी भूमिका अदा करते है । संस्कृत भाषा और संस्कृत साहित्य का ही अवलंबन, ये दोनों एक बहुत बड़े घर की अलंघ्य चौखट भी तैयार करते हैं । घर बहुत बड़ा है पर उसकी चारदीवारी भी है । राधावल्लभ जी के समान एक प्रकांड पंडित जहां भी अपने टीकाकार रूप का अतिक्रमण कर चिंतन के काव्यात्मक प्रकाश की झलक देते हैं, बहुत उम्मीद जगाते हैं । पर जब किसी के भी लिए भी लोगों की अपेक्षाएं प्रमुख होती है, ज़ाहिर है कि वहीं उसके स्वात्म का दमन होता है । समाज के दबाववश सीता को न अपनाने वाले और अश्वमेध यज्ञ में उसी दबाव की उपेक्षा करके सीता की मूर्ति के साथ बैठने वाले राम में यही फ़र्क़ है कि दूसरे ने स्वातंत्र्य को अपना साधन बनाया । बहरहाल, इस शानदार साक्षात्कार के लिए आप दोनों के प्रति आभार ।
हिंदवी के कारण जीवन के आखिरी क्षणों में भारतवर्ष की एक महान विभूति राधावल्लभ त्रिपाठी से मिलना हुआ, बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद, इन कम शब्दों को असंख्य शब्दों में समझा जाए
संस्कृत एवं संस्कृत साहित्य के प्रति नज़रिये को समृद्ध करने वाला इंटरव्यू। बहुआयमी विद्वता के पुंज हैं राधावल्लभ जी। बधाई अंजुम जी एक महत्वपूर्ण इंटरव्यू को हम तक पहुँचाने के लिए।
धन्यवाद अंजुम जी ये साक्षात्कार मुझे बहुत अच्छा लगा । संस्कृत के महान विद्वान एवं साहित्य कार को सुनना एक अभूतपूर्व अनुभव रहा। बहुत कुछ नया जाना , आदरणीय सर को बहुत धन्यवाद 🙏
कितना ज्ञानवर्धक साक्षात्कार है... हां ऐसे ही साक्षात्कार असल में साक्षात्कार होते हैं.. इनसे ही हम सीख सकते हैं.. इनसे ही कुछ प्राप्त होता है...। ऐसे ही विद्वदजन साकार करते हैं साक्षात्कार को...। बहुत सुंदर...
संस्कृत साहित्य का व्यापक परिदृश्य प्रो राधावल्लभ त्रिपाठी जी ने व्याख्यायित किया है । नया साहित्य नया साहित्यशास्त्र, इस सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है।आचार्य प्रवर का हार्दिक अभिनन्दन
अंजुम जी ने बहुत अच्छा साक्षात्कार किया। गुरुवर जी महान प्रज्ञावान विभूति हैं। अतुलनीय और व्याख्यातीत है उनका सृजन व चिंतन संसार। यह अब तक के सबसे अच्छे संगत में एक रहा। गुरुजी ने बहुत विनम्रता से उत्तर दिये। कहीं कोई कमी रहने के स्वीकार की भावना उनको श्रेष्ठ बनाती है। उनके शतायु होने व सृजन रत रहने की शुभ कामनाएं।
सम्पूर्ण साक्षात्कार अनुपम है। बहुत दिनों बाद संस्कृत को केन्द्र में रखकर भारतीय परम्पराओं को जानने और समझने का दुर्लभ अवसर दिया आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी जी ने। यह साक्षात्कार संस्कृतज्ञों और भारतीय संस्कृति से प्रेम करने वालों को बहुत सावधान होकर सुनना चाहिए। इसमें वह सब कुछ है, जो हमें भविष्य के लिये तैयार करता है।
जैसा सोचा था, वैसा ही ज्ञानवर्धक, विचारोत्तेजक साक्षात्कार। अंजुम जी, बहुत साधुवाद आपको राधावल्लभ जी जैसे विद्वान, बहुआयामी व्यक्तित्व से इस तरह से मिलवाने के लिए।
अंजुम जी ! हाल के दिनों के इंटरव्यू में आप थोड़े अधीर दिखते हैं। आप वक्ता को बीच में टोकते से दिखते हैं और अधीरता से उसकी बात काटते हुए दूसरा सवाल पूछने लगते हैं। इस फोरम में समय की कोई कमी नहीं है तो ऐसी अधीरता क्यों। एक अच्छा इंटरव्यूअर वह है जो कम से कम हस्तक्षेप करे। राज्यसभा टीवी के गुफ्तगू के इरफान की तरह कम हस्तक्षेप करें तो यह और भी बेहतर हो सकता है। बहरहाल इस बेहतरीन कार्यक्रम के लिए धन्यवाद। एक जीवन्त इतिहास बन रहा है
आदरणीय राधावल्लभ जी आपने दलित साहित्य पर बोलते समय सहानुभूति और स्वानुभूति पर बोलते समय आपने दलित साहित्य को जाति को महत्वपूर्ण नही माना लेकिन इंटरव्यू के अंतिम चरण में आपने रामायण-रामचरितमानस का जिक्र करते हुए सीता की दृष्टि से न लिख पाने पर खेद व्यक्त करते हुए, कहा कि पुरुष हो के के कारण ऐसा नही कर सका। सवाल यह है कि यहां पर आपने सहानुभूति और स्वानुभूति के मसले पर आप यहां पर डिफर है ?
मैंने उसे ऐसे समझा कि उनके कहने का यह अर्थ नहीं था कि कोई पुरुष सीता की दृष्टि से देख ही नहीं सकता, अपितु उनका संकेत उनकी असमर्थताओं की ओर था, कि वह उस दृष्टि से पूर्णतः नहीं देख पाए, सीमाओं को तोड़ने का प्रयास अवश्य किया।
अच्छा साक्षात्कार । त्रिपाठी जी को अपने मूलभूत प्रगतिशील मानवतावादी दृष्टिकोण को रखने का इसमें पूरा अवसर दिया गया है । दरअसल साधन भी साध्य की सीमा और संभावनाओं को तय करने में बड़ी भूमिका अदा करते है । संस्कृत भाषा और संस्कृत साहित्य का ही अवलंबन, ये दोनों एक बहुत बड़े घर की अलंघ्य चौखट भी तैयार करते हैं । घर बहुत बड़ा है पर उसकी चारदीवारी भी है । राधावल्लभ जी के समान एक प्रकांड पंडित जहां भी अपने टीकाकार रूप का अतिक्रमण कर चिंतन के काव्यात्मक प्रकाश की झलक देते हैं, बहुत उम्मीद जगाते हैं । पर जब किसी के भी लिए भी लोगों की अपेक्षाएं प्रमुख होती है, ज़ाहिर है कि वहीं उसके स्वात्म का दमन होता है । समाज के दबाववश सीता को न अपनाने वाले और अश्वमेध यज्ञ में उसी दबाव की उपेक्षा करके सीता की मूर्ति के साथ बैठने वाले राम में यही फ़र्क़ है कि दूसरे ने स्वातंत्र्य को अपना साधन बनाया ।
बहरहाल, इस शानदार साक्षात्कार के लिए आप दोनों के प्रति आभार ।
हिंदवी के कारण जीवन के आखिरी क्षणों में भारतवर्ष की एक महान विभूति राधावल्लभ त्रिपाठी से मिलना हुआ, बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद, इन कम शब्दों को असंख्य शब्दों में समझा जाए
बहुत बढ़िया साक्षात्कार, बहुमूल्य विचारों से भरपूर..
हिंदवी को इस पेशकश के लिए बधाई और शुभकामनाएं.💐
संस्कृत एवं संस्कृत साहित्य के प्रति नज़रिये को समृद्ध करने वाला इंटरव्यू। बहुआयमी विद्वता के पुंज हैं राधावल्लभ जी। बधाई अंजुम जी एक महत्वपूर्ण इंटरव्यू को हम तक पहुँचाने के लिए।
धन्यवाद अंजुम जी ये साक्षात्कार मुझे बहुत अच्छा लगा । संस्कृत के महान विद्वान एवं साहित्य कार को सुनना एक अभूतपूर्व अनुभव रहा। बहुत कुछ नया जाना , आदरणीय सर को बहुत धन्यवाद 🙏
बहुत सुंदर बातचीत। राधावल्लभ जी को पढ़ना और सुनना हमेशा अच्छा लगता है।...
कितना ज्ञानवर्धक साक्षात्कार है... हां ऐसे ही साक्षात्कार असल में साक्षात्कार होते हैं.. इनसे ही हम सीख सकते हैं.. इनसे ही कुछ प्राप्त होता है...। ऐसे ही विद्वदजन साकार करते हैं साक्षात्कार को...। बहुत सुंदर...
सम्यक दृष्टि, सम्यक ज्ञान, सम्यक अभिव्यक्ति। ज्ञानवर्धक साक्षात्कार।
संस्कृत साहित्य का व्यापक परिदृश्य प्रो राधावल्लभ त्रिपाठी जी ने व्याख्यायित किया है । नया साहित्य नया साहित्यशास्त्र, इस सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है।आचार्य प्रवर का हार्दिक अभिनन्दन
माँ पर दिया गया विमर्श मन को छू गया!
बहुत ही ज्ञानवर्धक सरस सारगर्भित इंटरव्यू!
अद्भुत
भाषा और साहित्य - एक दुनिया से निकलती दूसरी दुनिया
कितने दिनों से प्रतीक्षा कर रहा था ❤ आचार्य राधावल्लभ सहृदय विद्वान हैं
अंजुम जी ने बहुत अच्छा साक्षात्कार किया। गुरुवर जी महान प्रज्ञावान विभूति हैं। अतुलनीय और व्याख्यातीत है उनका सृजन व चिंतन संसार। यह अब तक के सबसे अच्छे संगत में एक रहा। गुरुजी ने बहुत विनम्रता से उत्तर दिये। कहीं कोई कमी रहने के स्वीकार की भावना उनको श्रेष्ठ बनाती है। उनके शतायु होने व सृजन रत रहने की शुभ कामनाएं।
सम्पूर्ण साक्षात्कार अनुपम है। बहुत दिनों बाद संस्कृत को केन्द्र में रखकर भारतीय परम्पराओं को जानने और समझने का दुर्लभ अवसर दिया आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी जी ने। यह साक्षात्कार संस्कृतज्ञों और भारतीय संस्कृति से प्रेम करने वालों को बहुत सावधान होकर सुनना चाहिए। इसमें वह सब कुछ है, जो हमें भविष्य के लिये तैयार करता है।
बहुत सुंदर साक्षात्कार । आचार्य को मैं बराबर सुनती हूं । शत शत प्रणाम। अंजुमजी को धन्यवाद
संस्कृत संस्कृति और हिंदी के सेतु🌞
बहुत सटीक और ज्ञानवर्धक संवाद !🙏
राधा वल्लभ त्रिपाठी को सुनना बड़ी बात है।
एक और मास्टरक्लास धन्यवाद अंजुम जी
जैसा सोचा था, वैसा ही ज्ञानवर्धक, विचारोत्तेजक साक्षात्कार। अंजुम जी, बहुत साधुवाद आपको राधावल्लभ जी जैसे विद्वान, बहुआयामी व्यक्तित्व से इस तरह से मिलवाने के लिए।
M apke sabhi interviews bar bar dekhti hun
बहुत खूब टीम हिंदवी 😊
One of the best ❤ channels i have subscribed on RUclips .
Hat's off to Anjum Sharma 🎉
ज्ञानवर्धक साक्षात्कार...
ज्ञानवर्धक साक्षात्कार, संगत की पूरी टीम को बहुत-बहुत धन्यवाद🙏🙏
अंजुम तुम्हारा शिव हो🌞🌷🌱
अद्भुत और ज्ञानवर्धक
बेहतरीन साक्षात्कार💐💐
अत्यंत ज्ञानवर्धक साक्षात्कार
बहुत सुंदर वार्ता।
नमस्ते सर कृपया समकालीन बाल साहित्य समीक्षा बैठक भी दिखाएं
अंजुम जी ! हाल के दिनों के इंटरव्यू में आप थोड़े अधीर दिखते हैं। आप वक्ता को बीच में टोकते से दिखते हैं और अधीरता से उसकी बात काटते हुए दूसरा सवाल पूछने लगते हैं। इस फोरम में समय की कोई कमी नहीं है तो ऐसी अधीरता क्यों। एक अच्छा इंटरव्यूअर वह है जो कम से कम हस्तक्षेप करे। राज्यसभा टीवी के गुफ्तगू के इरफान की तरह कम हस्तक्षेप करें तो यह और भी बेहतर हो सकता है। बहरहाल इस बेहतरीन कार्यक्रम के लिए धन्यवाद। एक जीवन्त इतिहास बन रहा है
कवियोँ की बातपूरी नही होने देते
नाम राधावल्लभ यानी कृष्ण, लेकिन चर्चा में न कृष्ण न राधा बल्कि सिर्फ राम ही आए।
रोचक संवाद
सुन्दर चर्चा
साचिन्दानंद सिन्हा जी का इंटरव्यू यदि हो सके, तो करें,
Please interview Geetanjali Shree
सहज ढंग से गूढ़ से गूढ़ विषयों को जिस तरह से रखते है वह विरल हैं
श्यामचरण दुबे योगेंद्र सिंह नही रहे वरना उनके इंटरव्यू मील का पत्थर साबित होते
अति सुन्दर अन्तर्वार्ता।
अस्मिन् महति ब्रह्माण्डखण्डे जम्बूद्वीपे।
विचारोत्तेजक।
आदरणीय राधावल्लभ जी आपने दलित साहित्य पर बोलते समय सहानुभूति और स्वानुभूति पर बोलते समय आपने दलित साहित्य को जाति को महत्वपूर्ण नही माना लेकिन इंटरव्यू के अंतिम चरण में आपने रामायण-रामचरितमानस का जिक्र करते हुए सीता की दृष्टि से न लिख पाने पर खेद व्यक्त करते हुए, कहा कि पुरुष हो के के कारण ऐसा नही कर सका। सवाल यह है कि यहां पर आपने सहानुभूति और स्वानुभूति के मसले पर आप यहां पर डिफर है ?
मैंने उसे ऐसे समझा कि उनके कहने का यह अर्थ नहीं था कि कोई पुरुष सीता की दृष्टि से देख ही नहीं सकता, अपितु उनका संकेत उनकी असमर्थताओं की ओर था, कि वह उस दृष्टि से पूर्णतः नहीं देख पाए, सीमाओं को तोड़ने का प्रयास अवश्य किया।
पहली बार आपने अपने मेहमान को कठिन सवालों से रूबरू कराया। बहुतो को पसंद नही आयेगी।