विश्वमित्रो! ऊची नीची जाति होने का मतलब? ऊची नीची जाति मानने का समान अवसर सबजन को उपलब्ध है। महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा के अनुसार हरएक मानव जन मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । चरण पांव चलाकर ट्रांसपोर्ट वाणिज्य क्रय विक्रय वितरण वैशम वर्ण कर्म करते हैं इसलिए चरण समान वैश्य हैं। चार वर्ण = चार कर्म = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम। 1- ब्रह्म वर्ण में -अध्यापक वैद्यन पुरोहित संगीतज्ञ = ज्ञानसे शिक्षण कर्म करने वाला ब्रह्मन/ विप्रजन। 2- क्षत्रम वर्ण में - सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड = ध्यानसे सुरक्षा न्याय कर्म करने वाला क्षत्रिय। 3- शूद्रम वर्ण में- उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार = तपसे उद्योग कर्म करने वाला शूद्रण। 4- वैशम वर्ण में - वितरक वणिक वार्ताकार ट्रांसपोर्टर क्रेता विक्रेता व्यापारीकरण = तमसे व्यापार वाणिज्य कर्म करने वाला वैश्य । पांचवेजन चारो वर्ण कर्म विभाग में राजसेवक जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन वेतनमान पर कार्यरत हैं। यह पांचजन्य चार वर्णिय कार्मिक वर्ण कर्म व्यवस्था है। जो इस पोस्ट को पढ़कर समझने में नाकाम हैं वे यह बताएं कि चार वर्ण कर्म जैसे शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादण-शूद्रण और वितरण-वैशम वर्ण कर्म किये बिना समाज में जीविकोपार्जन प्रबन्धन कैसे होगा? शूद्रं, क्षुद्र, अशूद्र तीनो वैदिक शब्दों के अलग अलग अर्थ हैं, लेकिन लेखक प्रकाशक इन शब्दों के सही अर्थ अंतर को नहीं समझ कर एक ही शब्द शूद्रं लिखते हैं उन्ही के लिखे प्रिंट को पढ़कर सामन्य जन भी शब्दो के सही मतलब नहीं समझते हैं।
विश्वमित्रो! ऊची नीची जाति होने का मतलब? ऊची नीची जाति मानने का समान अवसर सबजन को उपलब्ध है। महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा के अनुसार हरएक मानव जन मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । चरण पांव चलाकर ट्रांसपोर्ट वाणिज्य क्रय विक्रय वितरण वैशम वर्ण कर्म करते हैं इसलिए चरण समान वैश्य हैं। चार वर्ण = चार कर्म = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम। 1- ब्रह्म वर्ण में -अध्यापक वैद्यन पुरोहित संगीतज्ञ = ज्ञानसे शिक्षण कर्म करने वाला ब्रह्मन/ विप्रजन। 2- क्षत्रम वर्ण में - सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड = ध्यानसे सुरक्षा न्याय कर्म करने वाला क्षत्रिय। 3- शूद्रम वर्ण में- उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार = तपसे उद्योग कर्म करने वाला शूद्रण। 4- वैशम वर्ण में - वितरक वणिक वार्ताकार ट्रांसपोर्टर क्रेता विक्रेता व्यापारीकरण = तमसे व्यापार वाणिज्य कर्म करने वाला वैश्य । पांचवेजन चारो वर्ण कर्म विभाग में राजसेवक जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन वेतनमान पर कार्यरत हैं। यह पांचजन्य चार वर्णिय कार्मिक वर्ण कर्म व्यवस्था है। जो इस पोस्ट को पढ़कर समझने में नाकाम हैं वे यह बताएं कि चार वर्ण कर्म जैसे शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादण-शूद्रण और वितरण-वैशम वर्ण कर्म किये बिना समाज में जीविकोपार्जन प्रबन्धन कैसे होगा? शूद्रं, क्षुद्र, अशूद्र तीनो वैदिक शब्दों के अलग अलग अर्थ हैं, लेकिन लेखक प्रकाशक इन शब्दों के सही अर्थ अंतर को नहीं समझ कर एक ही शब्द शूद्रं लिखते हैं उन्ही के लिखे प्रिंट को पढ़कर सामन्य जन भी शब्दो के सही मतलब नहीं समझते हैं।
विश्वमित्रो! ऊची नीची जाति होने का मतलब? ऊची नीची जाति मानने का समान अवसर सबजन को उपलब्ध है। महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा के अनुसार हरएक मानव जन मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । चरण पांव चलाकर ट्रांसपोर्ट वाणिज्य क्रय विक्रय वितरण वैशम वर्ण कर्म करते हैं इसलिए चरण समान वैश्य हैं। चार वर्ण = चार कर्म = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम। 1- ब्रह्म वर्ण में -अध्यापक वैद्यन पुरोहित संगीतज्ञ = ज्ञानसे शिक्षण कर्म करने वाला ब्रह्मन/ विप्रजन। 2- क्षत्रम वर्ण में - सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड = ध्यानसे सुरक्षा न्याय कर्म करने वाला क्षत्रिय। 3- शूद्रम वर्ण में- उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार = तपसे उद्योग कर्म करने वाला शूद्रण। 4- वैशम वर्ण में - वितरक वणिक वार्ताकार ट्रांसपोर्टर क्रेता विक्रेता व्यापारीकरण = तमसे व्यापार वाणिज्य कर्म करने वाला वैश्य । पांचवेजन चारो वर्ण कर्म विभाग में राजसेवक जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन वेतनमान पर कार्यरत हैं। यह पांचजन्य चार वर्णिय कार्मिक वर्ण कर्म व्यवस्था है। जो इस पोस्ट को पढ़कर समझने में नाकाम हैं वे यह बताएं कि चार वर्ण कर्म जैसे शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादण-शूद्रण और वितरण-वैशम वर्ण कर्म किये बिना समाज में जीविकोपार्जन प्रबन्धन कैसे होगा? शूद्रं, क्षुद्र, अशूद्र तीनो वैदिक शब्दों के अलग अलग अर्थ हैं, लेकिन लेखक प्रकाशक इन शब्दों के सही अर्थ अंतर को नहीं समझ कर एक ही शब्द शूद्रं लिखते हैं उन्ही के लिखे प्रिंट को पढ़कर सामन्य जन भी शब्दो के सही मतलब नहीं समझते हैं।
विश्वमित्रो! ऊची नीची जाति होने का मतलब? ऊची नीची जाति मानने का समान अवसर सबजन को उपलब्ध है। महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा के अनुसार हरएक मानव जन मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । चरण पांव चलाकर ट्रांसपोर्ट वाणिज्य क्रय विक्रय वितरण वैशम वर्ण कर्म करते हैं इसलिए चरण समान वैश्य हैं। चार वर्ण = चार कर्म = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम। 1- ब्रह्म वर्ण में -अध्यापक वैद्यन पुरोहित संगीतज्ञ = ज्ञानसे शिक्षण कर्म करने वाला ब्रह्मन/ विप्रजन। 2- क्षत्रम वर्ण में - सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड = ध्यानसे सुरक्षा न्याय कर्म करने वाला क्षत्रिय। 3- शूद्रम वर्ण में- उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार = तपसे उद्योग कर्म करने वाला शूद्रण। 4- वैशम वर्ण में - वितरक वणिक वार्ताकार ट्रांसपोर्टर क्रेता विक्रेता व्यापारीकरण = तमसे व्यापार वाणिज्य कर्म करने वाला वैश्य । पांचवेजन चारो वर्ण कर्म विभाग में राजसेवक जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन वेतनमान पर कार्यरत हैं। यह पांचजन्य चार वर्णिय कार्मिक वर्ण कर्म व्यवस्था है। जो इस पोस्ट को पढ़कर समझने में नाकाम हैं वे यह बताएं कि चार वर्ण कर्म जैसे शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादण-शूद्रण और वितरण-वैशम वर्ण कर्म किये बिना समाज में जीविकोपार्जन प्रबन्धन कैसे होगा? शूद्रं, क्षुद्र, अशूद्र तीनो वैदिक शब्दों के अलग अलग अर्थ हैं, लेकिन लेखक प्रकाशक इन शब्दों के सही अर्थ अंतर को नहीं समझ कर एक ही शब्द शूद्रं लिखते हैं उन्ही के लिखे प्रिंट को पढ़कर सामन्य जन भी शब्दो के सही मतलब नहीं समझते हैं।
किसी व्यक्ति या संस्था या पार्टी की बुराई उस समय के देश काल को ध्यान में रख कर की जानी चाहिए। यदि उस समय कुछ गलतियां हुई भी हैं तो उन गलतियों से सबक सीख कर मिशन को आगे बढ़ाने का काम करना चाहिए.
विश्वमित्रो! ऊची नीची जाति होने का मतलब? ऊची नीची जाति मानने का समान अवसर सबजन को उपलब्ध है। महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा के अनुसार हरएक मानव जन मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । चरण पांव चलाकर ट्रांसपोर्ट वाणिज्य क्रय विक्रय वितरण वैशम वर्ण कर्म करते हैं इसलिए चरण समान वैश्य हैं। चार वर्ण = चार कर्म = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम। 1- ब्रह्म वर्ण में -अध्यापक वैद्यन पुरोहित संगीतज्ञ = ज्ञानसे शिक्षण कर्म करने वाला ब्रह्मन/ विप्रजन। 2- क्षत्रम वर्ण में - सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड = ध्यानसे सुरक्षा न्याय कर्म करने वाला क्षत्रिय। 3- शूद्रम वर्ण में- उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार = तपसे उद्योग कर्म करने वाला शूद्रण। 4- वैशम वर्ण में - वितरक वणिक वार्ताकार ट्रांसपोर्टर क्रेता विक्रेता व्यापारीकरण = तमसे व्यापार वाणिज्य कर्म करने वाला वैश्य । पांचवेजन चारो वर्ण कर्म विभाग में राजसेवक जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन वेतनमान पर कार्यरत हैं। यह पांचजन्य चार वर्णिय कार्मिक वर्ण कर्म व्यवस्था है। जो इस पोस्ट को पढ़कर समझने में नाकाम हैं वे यह बताएं कि चार वर्ण कर्म जैसे शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादण-शूद्रण और वितरण-वैशम वर्ण कर्म किये बिना समाज में जीविकोपार्जन प्रबन्धन कैसे होगा? शूद्रं, क्षुद्र, अशूद्र तीनो वैदिक शब्दों के अलग अलग अर्थ हैं, लेकिन लेखक प्रकाशक इन शब्दों के सही अर्थ अंतर को नहीं समझ कर एक ही शब्द शूद्रं लिखते हैं उन्ही के लिखे प्रिंट को पढ़कर सामन्य जन भी शब्दो के सही मतलब नहीं समझते हैं।
निष्पक्ष सोच अपनाकर दिमाग सदुपयोग कर - बताओ दस इंद्रिया जन्म हरएक मानव जन के अंदर होती हैं या नहीं ? बताओ मुख, बांह, पेट और चरण जन्म से हरएक मानव जन के होती हैं या नहीं? बताओ समाज में कम से कम चार वर्ण कर्म विभाग जैसे की शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उद्योगण-शूद्रम और वितरण-वैशम वर्ण कर्म किए जीविकोपार्जन हो सकता है क्या? बताओ ज्ञान ब्रह्म वर्ण कर्म शिक्षण प्रशिक्षण आदान-प्रदान कर्म मुख के बिना हो सकता है क्या? बताओ ध्यान चौकीदार कर्म क्षत्रम वर्ण कर्म सुरक्षण कार्य बांह बिना होता है क्या? बताओ उत्पादन निर्माण उद्योग कर्म शूद्रम वर्ण कर्म ब्लड संतान उत्पन्न निर्माण उद्योग कर्म पेट के बिना होता है क्या? बताओ व्यापार वितरण ट्रांसपोर्ट वाणिज्य चरण पांव चलाए बिना होता है क्या? बताओ राजसेवक जनसेवक नौकरजन दासजन बिना वेतन भोजन दिये होता है क्या? सवालो के जवाब दाखिल करें जो चार वर्ण पांचजन सामाजिक प्रबन्धन का मतलब समझने में नाकाम साबित हो रहे हैं? धर्मनिरपेक्षता की बात करने वाले द्विजनो (स्त्री-पुरुषो) ! धर्म संस्कार विषय पर वार्तालाप करते समय - धर्म, अधर्म, आप्तधर्म, पुराणिक इतिहास और समय काल इन पांचो विषय पर बातचीत करनी चाहिए। पांचो परिस्थिति धर्म, अधर्म, आप्तधर्म, पुराणिक इतिहास और समय काल इन पांचविषय पर निष्पक्ष सोच रखकर विधान विज्ञान सम्मत मानव हित की करनी चाहिए। समय समय पर पैदा हुए साम्प्रदायिक पन्थगुरुओ का फालोअर भक्त होकर मत परिवर्तन करने जीने वालो को इन पांचो विषयों पर विश्लेषण करना चाहिए। जय विश्व राष्ट्र राज प्राजापत्य दक्ष धर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम् ।।ॐ।।
शिक्षित विद्वान मानव जनों! जन्म से हरएक मानव जन दस इन्द्रियां समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन को जानना चाहिए कि वे जन्म से मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । इसलिए हरएक मानव जन खुद को ब्रह्मण, क्षत्रिय, शूद्रण और वैश्य में कोई भी वर्ण वाला मानकर बताकर नामधारी वर्ण वाला मानकर बताकर जी सकते हैं। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है। हरएक महिला मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी हैं। इन सबको भी समान अवसर उपलब्ध है। चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म विभाग होता है। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए। कर्मधारी वर्ण वाला कैसे? जानें - चार कर्म शिक्षण, सुरक्षण, उत्पादण और वितरण। चारवर्ण कर्म में ब्रह्म वर्ण ( ज्ञान शिक्षण वैद्यन संगीत कर्म करने वाले जैसे कि शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत कर्मी जन हैं वे कर्मधारी ब्रह्मण अध्यापक होते हैं , क्षत्रम वर्ण में सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड कर्मी जन क्षत्रिय होते हैं, शूद्रम वर्ण में तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार कर्मिक जन शूद्रण होते हैं और वैशम वर्ण में वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर जन वैश्य होते हैं। महिला भी अध्यापिका ही ब्राह्मणी, सुरक्षिका ही क्षत्राणी, उत्पादिका निर्माता ही शूद्राणी और वितरिका ट्रांसपोर्टर व्यापारी ही वैश्याणी होती हैं। यह समान अवसर महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा ने सबजन को उपलब्ध कराया है। हरएक मानव जन को खुद की सोच सुधार करनी चाहिए। चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरत हैं। प्रत्यक्ष भी प्रमाण उपलब्ध है। पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म शास्त्र के साथ साथ प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है। बुद्ध प्रकाश प्रजापति की इस ज्ञान भरी पोस्ट को पढ़कर समझकर ज्ञान बढ़ा कर अन्य सबजन को भेजकर ज्ञानवर्धन करना कराना उचित सोच वाला कार्य है और आवश्यक प्रिंट सुधार करवाना उचित सोच कदम है। सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम्।। ॐ ।।
💐🌱 ऊस समय में आर एस एस और विश्र्व हिंदु परिषद वाले अपना मनु वादी विचार धारा सभी के मन मगज में ठसाने में कामयाब नहीं रहा होग कम शिक्षा और एजंसियों सिमित था आज का समय अलग है
विश्वमित्रो! ऊची नीची जाति होने का मतलब? ऊची नीची जाति मानने का समान अवसर सबजन को उपलब्ध है। महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा के अनुसार हरएक मानव जन मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । चरण पांव चलाकर ट्रांसपोर्ट वाणिज्य क्रय विक्रय वितरण वैशम वर्ण कर्म करते हैं इसलिए चरण समान वैश्य हैं। चार वर्ण = चार कर्म = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम। 1- ब्रह्म वर्ण में -अध्यापक वैद्यन पुरोहित संगीतज्ञ = ज्ञानसे शिक्षण कर्म करने वाला ब्रह्मन/ विप्रजन। 2- क्षत्रम वर्ण में - सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड = ध्यानसे सुरक्षा न्याय कर्म करने वाला क्षत्रिय। 3- शूद्रम वर्ण में- उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार = तपसे उद्योग कर्म करने वाला शूद्रण। 4- वैशम वर्ण में - वितरक वणिक वार्ताकार ट्रांसपोर्टर क्रेता विक्रेता व्यापारीकरण = तमसे व्यापार वाणिज्य कर्म करने वाला वैश्य । पांचवेजन चारो वर्ण कर्म विभाग में राजसेवक जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन वेतनमान पर कार्यरत हैं। यह पांचजन्य चार वर्णिय कार्मिक वर्ण कर्म व्यवस्था है। जो इस पोस्ट को पढ़कर समझने में नाकाम हैं वे यह बताएं कि चार वर्ण कर्म जैसे शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादण-शूद्रण और वितरण-वैशम वर्ण कर्म किये बिना समाज में जीविकोपार्जन प्रबन्धन कैसे होगा? शूद्रं, क्षुद्र, अशूद्र तीनो वैदिक शब्दों के अलग अलग अर्थ हैं, लेकिन लेखक प्रकाशक इन शब्दों के सही अर्थ अंतर को नहीं समझ कर एक ही शब्द शूद्रं लिखते हैं उन्ही के लिखे प्रिंट को पढ़कर सामन्य जन भी शब्दो के सही मतलब नहीं समझते हैं।
जब तक आप अपने समाज के महान एवं उनके विकासात्मक कार्यों की समीक्षात्मक विवेचना नही कर सकते आप आगे नही बढ़ सकते बल्कि वहीं से नीचे जाने लगेगे क्योंकि समय एवं परिस्थितियां एक समान नही होती
शिक्षित विद्वान मानव जनों! जन्म से हरएक मानव जन दस इन्द्रियां समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन को जानना चाहिए कि वे जन्म से मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । इसलिए हरएक मानव जन खुद को ब्रह्मण, क्षत्रिय, शूद्रण और वैश्य में कोई भी वर्ण वाला मानकर बताकर नामधारी वर्ण वाला मानकर बताकर जी सकते हैं। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है। हरएक महिला मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी हैं। इन सबको भी समान अवसर उपलब्ध है। चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म विभाग होता है। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए। कर्मधारी वर्ण वाला कैसे? जानें - चार कर्म शिक्षण, सुरक्षण, उत्पादण और वितरण। चारवर्ण कर्म में ब्रह्म वर्ण ( ज्ञान शिक्षण वैद्यन संगीत कर्म करने वाले जैसे कि शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत कर्मी जन हैं वे कर्मधारी ब्रह्मण अध्यापक होते हैं , क्षत्रम वर्ण में सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड कर्मी जन क्षत्रिय होते हैं, शूद्रम वर्ण में तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार कर्मिक जन शूद्रण होते हैं और वैशम वर्ण में वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर जन वैश्य होते हैं। महिला भी अध्यापिका ही ब्राह्मणी, सुरक्षिका ही क्षत्राणी, उत्पादिका निर्माता ही शूद्राणी और वितरिका ट्रांसपोर्टर व्यापारी ही वैश्याणी होती हैं। यह समान अवसर महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा ने सबजन को उपलब्ध कराया है। हरएक मानव जन को खुद की सोच सुधार करनी चाहिए। चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरत हैं। प्रत्यक्ष भी प्रमाण उपलब्ध है। पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म शास्त्र के साथ साथ प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है। बुद्ध प्रकाश प्रजापति की इस ज्ञान भरी पोस्ट को पढ़कर समझकर ज्ञान बढ़ा कर अन्य सबजन को भेजकर ज्ञानवर्धन करना कराना उचित सोच वाला कार्य है और आवश्यक प्रिंट सुधार करवाना उचित सोच कदम है। सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम्।। ॐ ।।
सर एक व्याख्यान दिलीप मंडल जैसे गद्दारों पर भी आयोजित किया जाए ताकि हमारे बहुजन समाज के लोगों को पता चले कि समाज के बीच कौन से वह लोग हैं जो आरएसएस के एजेंट है
शिक्षित विद्वान मानव जनों! जन्म से हरएक मानव जन दस इन्द्रियां समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन को जानना चाहिए कि वे जन्म से मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । इसलिए हरएक मानव जन खुद को ब्रह्मण, क्षत्रिय, शूद्रण और वैश्य में कोई भी वर्ण वाला मानकर बताकर नामधारी वर्ण वाला मानकर बताकर जी सकते हैं। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है। हरएक महिला मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी हैं। इन सबको भी समान अवसर उपलब्ध है। चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म विभाग होता है। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए। कर्मधारी वर्ण वाला कैसे? जानें - चार कर्म शिक्षण, सुरक्षण, उत्पादण और वितरण। चारवर्ण कर्म में ब्रह्म वर्ण ( ज्ञान शिक्षण वैद्यन संगीत कर्म करने वाले जैसे कि शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत कर्मी जन हैं वे कर्मधारी ब्रह्मण अध्यापक होते हैं , क्षत्रम वर्ण में सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड कर्मी जन क्षत्रिय होते हैं, शूद्रम वर्ण में तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार कर्मिक जन शूद्रण होते हैं और वैशम वर्ण में वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर जन वैश्य होते हैं। महिला भी अध्यापिका ही ब्राह्मणी, सुरक्षिका ही क्षत्राणी, उत्पादिका निर्माता ही शूद्राणी और वितरिका ट्रांसपोर्टर व्यापारी ही वैश्याणी होती हैं। यह समान अवसर महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा ने सबजन को उपलब्ध कराया है। हरएक मानव जन को खुद की सोच सुधार करनी चाहिए। चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरत हैं। प्रत्यक्ष भी प्रमाण उपलब्ध है। पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म शास्त्र के साथ साथ प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है। बुद्ध प्रकाश प्रजापति की इस ज्ञान भरी पोस्ट को पढ़कर समझकर ज्ञान बढ़ा कर अन्य सबजन को भेजकर ज्ञानवर्धन करना कराना उचित सोच वाला कार्य है और आवश्यक प्रिंट सुधार करवाना उचित सोच कदम है। सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम्।। ॐ ।।
शिक्षित विद्वान मानव जनों! जन्म से हरएक मानव जन दस इन्द्रियां समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन को जानना चाहिए कि वे जन्म से मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । इसलिए हरएक मानव जन खुद को ब्रह्मण, क्षत्रिय, शूद्रण और वैश्य में कोई भी वर्ण वाला मानकर बताकर नामधारी वर्ण वाला मानकर बताकर जी सकते हैं। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है। हरएक महिला मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी हैं। इन सबको भी समान अवसर उपलब्ध है। चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म विभाग होता है। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए। कर्मधारी वर्ण वाला कैसे? जानें - चार कर्म शिक्षण, सुरक्षण, उत्पादण और वितरण। चारवर्ण कर्म में ब्रह्म वर्ण ( ज्ञान शिक्षण वैद्यन संगीत कर्म करने वाले जैसे कि शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत कर्मी जन हैं वे कर्मधारी ब्रह्मण अध्यापक होते हैं , क्षत्रम वर्ण में सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड कर्मी जन क्षत्रिय होते हैं, शूद्रम वर्ण में तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार कर्मिक जन शूद्रण होते हैं और वैशम वर्ण में वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर जन वैश्य होते हैं। महिला भी अध्यापिका ही ब्राह्मणी, सुरक्षिका ही क्षत्राणी, उत्पादिका निर्माता ही शूद्राणी और वितरिका ट्रांसपोर्टर व्यापारी ही वैश्याणी होती हैं। यह समान अवसर महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा ने सबजन को उपलब्ध कराया है। हरएक मानव जन को खुद की सोच सुधार करनी चाहिए। चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरत हैं। प्रत्यक्ष भी प्रमाण उपलब्ध है। पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म शास्त्र के साथ साथ प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है। बुद्ध प्रकाश प्रजापति की इस ज्ञान भरी पोस्ट को पढ़कर समझकर ज्ञान बढ़ा कर अन्य सबजन को भेजकर ज्ञानवर्धन करना कराना उचित सोच वाला कार्य है और आवश्यक प्रिंट सुधार करवाना उचित सोच कदम है। सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम्।। ॐ ।।
विश्व राष्ट्र राज धर्म = सनातन दक्ष धर्म । सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। ब्रह्म = ज्ञान ब्रह्म वर्ण = ज्ञान शिक्षण विभाग। ब्राह्मण = ज्ञानी अध्यापक गुरूजन पुरोहित। मुख = ब्रह्मण बांह = क्षत्रिय पेटउदर = शूद्रण चरण = वैश्य। चरण चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय ट्रांसपोर्ट वैशम वर्ण कर्म होता है। अध्यापक = ब्रह्मन, सुरक्षण = क्षत्रिन, उत्पादक = शूद्रन और वितरक = वैशन। चार आश्रम = ब्रह्मचर्य + गृहस्थ + वानप्रस्थ + यतिआश्रम। चार वर्ण = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम। राजसेवक/ दासजन = वेतनमान पर कार्यरत सेवाजन। पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म वर्णाश्रम संस्कार।
मायावती द्वारा मिशन को बढ़ाने के लिए किया गया कार्य। बहुजन-सर्वजन बहुजन संघटक पत्रिका बंद -मायायुग बहुजन means 85%- according to mayavati दलित braman ठाकुर
शिक्षित विद्वान द्विजनो ( स्त्री-पुरुषो ) ! जब एसी ,एसटी और बीसी कहना लिखना हो तो इसके साथ इडब्लुएस और जनरल कहना बोलना लिखना चाहिए। ये शब्द आजकल के संविधान लोकतंत्र युग काल आरक्षण अनुसार कुछ समय के लिए निर्मित हैं। लेकिन जब पौराणिक वैदिक शब्द ब्रह्मण को बोलना लिखना प्रयोग करना हो तो इसके साथ अन्य वैदिक शब्द जैसे कि राजन्य, क्षत्रिय, शूद्रण, वैश्य और दास शब्द चयन कर प्रयोग करने चाहिए । ये वैदिक शब्द सदा शाश्वत रहने वाले हैं। पौराणिक वैदिक सतयुग सनातन वर्णाश्रम प्रबन्धन जीविकोपार्जन प्रबन्धन विषय विधि-विधान नियम अनुसार हैं। एक समय काल के शब्द एक स्थान पर प्रयोग करने चाहिए । शिक्षित मनुष्यों को व्यर्थ अन्धविरोध ईर्ष्याग्रस्त सोच छोड़कर निष्पक्ष सोच रखकर पोस्ट पढ़कर समझकर ज्ञान प्राप्त शब्दों का सही चयन वार्तालाप बातचीत के लिए प्रयोग करना चाहिए।
शिक्षित विद्वान मानव जनों! जन्म से हरएक मानव जन दस इन्द्रियां समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन को जानना चाहिए कि वे जन्म से मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । इसलिए हरएक मानव जन खुद को ब्रह्मण, क्षत्रिय, शूद्रण और वैश्य में कोई भी वर्ण वाला मानकर बताकर नामधारी वर्ण वाला मानकर बताकर जी सकते हैं। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है। हरएक महिला मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी हैं। इन सबको भी समान अवसर उपलब्ध है। चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म विभाग होता है। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए। कर्मधारी वर्ण वाला कैसे? जानें - चार कर्म शिक्षण, सुरक्षण, उत्पादण और वितरण। चारवर्ण कर्म में ब्रह्म वर्ण ( ज्ञान शिक्षण वैद्यन संगीत कर्म करने वाले जैसे कि शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत कर्मी जन हैं वे कर्मधारी ब्रह्मण अध्यापक होते हैं , क्षत्रम वर्ण में सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड कर्मी जन क्षत्रिय होते हैं, शूद्रम वर्ण में तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार कर्मिक जन शूद्रण होते हैं और वैशम वर्ण में वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर जन वैश्य होते हैं। महिला भी अध्यापिका ही ब्राह्मणी, सुरक्षिका ही क्षत्राणी, उत्पादिका निर्माता ही शूद्राणी और वितरिका ट्रांसपोर्टर व्यापारी ही वैश्याणी होती हैं। यह समान अवसर महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा ने सबजन को उपलब्ध कराया है। हरएक मानव जन को खुद की सोच सुधार करनी चाहिए। चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरत हैं। प्रत्यक्ष भी प्रमाण उपलब्ध है। पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म शास्त्र के साथ साथ प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है। बुद्ध प्रकाश प्रजापति की इस ज्ञान भरी पोस्ट को पढ़कर समझकर ज्ञान बढ़ा कर अन्य सबजन को भेजकर ज्ञानवर्धन करना कराना उचित सोच वाला कार्य है और आवश्यक प्रिंट सुधार करवाना उचित सोच कदम है। सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम्।। ॐ ।।
सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम सनातन धर्म संस्कार। धर्मगुरु /पुरोहित/ पन्थगुरु/ अध्यापक/ चिकित्सक/धर्माचार्य/ कविजन/ विप्रजन/ शिक्षक ( ब्रह्मण ) का सदाचार आचरण व्यवहार कैसा होना चाहिए ? जाने ! इस पोस्ट के विषय ज्ञान अनुसार उचित विचार संस्कार नियम पालन करते हुए अन्य सबजन को मानवीय मूल्य वाले संस्कार प्राप्त करवाते हुए अपराध मुक्त वातावरण बनवाते रहें। अध्यापक/ धर्माचार्य को - 1- सत्यवादी आचरण व्यवहार वाला होना चाहिए , 2 - शुद्ध चित आचरण रखने वाला होना चाहिए, 3 - सत्यवृतपरायण आचरण वाला होना चाहिए, 4 - नित्य सनातन दक्षधर्म में रत होना चाहिए, 5 - शान्त चित वाला बने रहने वाला होना चाहिए, 6 - व्यर्थ अनर्गल बातो से रहित होना चाहिए, 7- द्रोहरहित स्वभाव वाला होना चाहिए, 8 - चोरकर्म से रहित सही आदत वाला होना चाहिए, 9 - प्राणियो के हित में लगे रहने वाला होना चाहिए, 10 - अपनी स्त्री भार्या में रत रहने वाला होना चाहिए, 11- सविनय नर्म स्वभाव वाला होना चाहिए, 12- न्याय प्रिय सुरक्षक स्वभाव होना चाहिए, 13 - अकर्कश सरल स्वभाव वाला होना चाहिए, 14 - माता पिता का आज्ञाकारी होना चाहिए, 15 - गुरुओ का सम्मान करने वाला होना चाहिए, 16 - वृद्धो पर श्रद्धा रखने वाला होना चाहिए , 17- श्रद्घालु स्वभाव वाला होना चाहिए, 18ङ- वेदमंत्र दक्षधर्म शास्त्ररज्ञाता होना चाहिए, 19 - वैदिक धर्म संस्कार गुण क्रियावान होना चाहिए और 20- भिक्षा दान दक्षिणा वेतन से जीवन यावन करने वाला होना चाहिए। इन सभी बीस (20) मानवीय गुणों को विप्रजन/अध्यापक/ गुरूजन/ पुरोहित/ चिकित्सक /पन्थगुरु/अभिनयी/द्विजोत्तम/शिक्षक (ब्रह्मण) को अपनाकर जीना चाहिए ताकि इन्ही गुण स्वभाव वाले शिक्षको को देखकर इनसे प्रेरित होकर अन्य द्विजनों ( स्त्री-पुरुषो ) को आचरण व्यवहार निर्माण कर जीने में लाभ मिलता रहना चाहिए। पौराणिक वैदिक सतयुग संस्कृत भाषा श्लोक विधिनियम - ॐ सत्यवाक् शुद्धचेता यः सत्यव्रतपरायणः । नित्यं धर्मरतः शान्तः स भिन्नलापवर्जितः।। अद्रोहोऽस्तेयकर्मा च सर्वप्राणिहिते रतः। स्वस्त्रीरतः सविनया नयचक्षुरकर्कशः ।। पितृमातृवचः कर्ता गुरूवृद्धपराष्टि ( ति) कः । श्रध्दालुर्वेदशास्त्रज्ञः क्रियावान्भैक्ष्य जीवकः ।। जय विश्व राष्ट्र सनातन प्राजापत्य दक्ष धर्म। जय वर्णाश्रम संस्कार प्रबन्धन। श्रेष्ठतम जीवन प्रबंधन । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम।। ॐ ।। विश्वराष्ट्र मित्रो! पौराणिक वैदिक पुरोहित संस्कार शिक्षको लिए बताए गए गुण नियम की तरह सभी साम्प्रदायिक पन्थी गुरुओ के बने नियमो को पोस्ट करना चाहिए, ताकि सबजन के विचार को तुलनात्मक रूप से विश्लेषण कर अध्ययन करना चाहिए और एक समान अवसर देने वाले मानवीय गुण क्रियावान कर संस्कार सुधार किये जाने चाहिएं । साम्प्रदायिक गुरुओ की निजी पन्थी सोच ने पौराणिक वैदिक सनातन प्रजापत्य दक्ष धर्म संस्कार विधि-विधान नियमों में क्या सुधार और क्या क्या बिगाङ किया है ? वह सबजन जानकर समझकर सुधार करना चाहिए सकें और अपने पूर्वजो बहुदेवो ऋषिओ की पौराणिक वैदिक श्रेष्ठ सनातन धर्म संस्कार विधि पहचान कर श्रेष्ठ जीवन निर्वाह करना चाहिए। जय विश्व राष्ट्र दक्षराज वर्णाश्रम सनातन धर्म संस्कार प्रबन्धन। श्रेष्ठतम जीवन प्रबंधन। जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम।। ॐ ।।
सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार l राष्ट्र राज धर्म= जनसेवक/दासजन × [( ब्राह्म धर्म + क्षात्र धर्म + शौद्र धर्म + वैश्व धर्म ) + ( ब्रह्मचर्य धर्म + गृहस्थ धर्म+ वानप्रस्थ धर्म + यतिआश्रम धर्म )] । ब्राह्म धर्म ( शिक्षण ज्ञान कर्म ) = ब्रह्म वर्ण कर्म ( अध्यापन कर्म ) = संस्कृत श्लोक विधिनियम - ॐ यथा यथा हि पुरूष: शास्त्रं समधिगच्छति । तथा तथा विजानाति विज्ञानं चास्य रोचते। शास्त्रस्य पारं गत्वा तु भूयो भूयस्तदभ्यसेत् । तच्छास्त्रं शबलं कुर्यान्न चाधीत्य त्यजेत्पुन: ।। पौराणिक वैदिक ऋषि स्मृति धर्मशास्त्र।। भावार्थ- मनुष्य जैसे जैसे विशेष रूप से ज्ञान विज्ञान शास्त्रो का अच्छी प्रकार से अध्ययन अभ्यास करता है वैसे वैसे वह विषयक ज्ञान विज्ञान जानकर विज्ञान सम्मत विश्लेषण करता है। अत: अपने शास्त्रो का पारगामी होकर बार-बार अभ्यास करना चाहिए और ज्ञानवर्धन करते हुए फिर से ज्ञान प्राप्त करना चाहिए छोड़ना नहीं चाहिए। पंचजन्य चतुरवर्णिय चतुर आश्रमिय चतुर कर्मिय समाज प्रबंधन। जयविश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम्। जय अखण्ड भारत । जय वसुधैव कुटुम्बकम ।। ॐ ।।
शूद्रं, क्षुद्र, अशूद्र तीनो वैदिक शब्दों के अलग अलग अर्थ हैं लेकिन लेखक प्रकाशक सही से अंतर को समझकर नहीं लिखते हैं इसलिए सामन्य जन भी नहीं समझते हैं।
ये रतनलाल जी भी होउ सकत नाहीं के सिद्धांत वाले इतिहास कार हैं। रतनलाल को यह मालूम नहीं है कि सभी सवर्ण मनुवादी नहीं होते।जो मनुवादी व्यवस्था का पोषक है वहीं मनुवादी है। मान्यवर ने कभी भी नहीं कहा कि सभी सवर्ण मनुवादी नहीं होते।ये रतनलाल इतिहास रटकर अपने को इतिहास कार बताता है। बाबा साहब की आलोचना करता है।ये कांग्रेस का चमचा है।
चार वर्ण कर्म विभाग जीविकोपार्जन प्रबन्धन विषय। चार वर्ण = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम। जब एक मानव जन है तो वह मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य है। हरएक महिला स्त्री मुख समान ब्रह्माणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैश्याणी हैं। लेकिन जब पांचजन हैं तो एक अध्यापक ब्राह्मण/ब्राह्मणी है, दूसरे सुरक्षक चौकीदार क्षत्रिय/क्षत्राणी है, तीसरे उत्पादक निर्माता शूद्राण/ शूद्राणी है और चौथे वितरक वैश्य/ वैश्याणी हैं तथा पांचवे जन चारवर्णो कर्मो विभागो में वेतनमान पर कार्यरत दासजन जनसेवक नौकरजन सेवकजन हैं। यही पंचजन्य चतुरवर्णिय व्यवस्था जीविकोपार्जन प्रबन्धन विषय है।
शिक्षित विद्वान मानव जनों! जन्म से हरएक मानव जन दस इन्द्रियां समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन को जानना चाहिए कि वे जन्म से मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । इसलिए हरएक मानव जन खुद को ब्रह्मण, क्षत्रिय, शूद्रण और वैश्य में कोई भी वर्ण वाला मानकर बताकर नामधारी वर्ण वाला मानकर बताकर जी सकते हैं। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है। हरएक महिला मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी हैं। इन सबको भी समान अवसर उपलब्ध है। चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म विभाग होता है। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए। कर्मधारी वर्ण वाला कैसे? जानें - चार कर्म शिक्षण, सुरक्षण, उत्पादण और वितरण। चारवर्ण कर्म में ब्रह्म वर्ण ( ज्ञान शिक्षण वैद्यन संगीत कर्म करने वाले जैसे कि शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत कर्मी जन हैं वे कर्मधारी ब्रह्मण अध्यापक होते हैं , क्षत्रम वर्ण में सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड कर्मी जन क्षत्रिय होते हैं, शूद्रम वर्ण में तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार कर्मिक जन शूद्रण होते हैं और वैशम वर्ण में वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर जन वैश्य होते हैं। महिला भी अध्यापिका ही ब्राह्मणी, सुरक्षिका ही क्षत्राणी, उत्पादिका निर्माता ही शूद्राणी और वितरिका ट्रांसपोर्टर व्यापारी ही वैश्याणी होती हैं। यह समान अवसर महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा ने सबजन को उपलब्ध कराया है। हरएक मानव जन को खुद की सोच सुधार करनी चाहिए। चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरत हैं। प्रत्यक्ष भी प्रमाण उपलब्ध है। पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म शास्त्र के साथ साथ प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है। बुद्ध प्रकाश प्रजापति की इस ज्ञान भरी पोस्ट को पढ़कर समझकर ज्ञान बढ़ा कर अन्य सबजन को भेजकर ज्ञानवर्धन करना कराना उचित सोच वाला कार्य है और आवश्यक प्रिंट सुधार करवाना उचित सोच कदम है। सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम्।। ॐ ।।
सरकारी नौकरियाँ दलितों के पास क्यों नहीं होती ? क्या दलित वर्ग भारत का नागरिक नहीं है ? क्या इनका कोई हिस्सा नहीं है ? तथा दलित वर्ग को नौकरियों का आरक्षण यूं ही नहीं मिला है, बहुत संघर्ष किया गया है इसके लिए, तथा उन वक़्तों में दुनिया के हालात भी काम आए थे। दलितों को थोड़ा बहुत हक़ हिस्सा नहीं दिया जाता, तो या तो इंडिया आज़ाद नहीं होता, या फिर कई टुकड़ों में बंटता। आप तो यह बताओ कि जब आज़ादी के बाद खेती ज़मीन अलॉट की जा रही थी, तो तत्कालीन कांग्रेस सरकारों ने एससी वर्ग की चार करोड़ बीघा ज़मीन क्यों लूट ली ? 16 पर्सेंट एससी वर्ग के पास सिर्फ़ 8 पर्सेंट खेती ज़मीन क्यों है ? तथा, आज़ादी के बाद किस कांग्रेस सरकार ने रिजर्वेशन का कोटा पूरा भरा है ? इंडिया में 72 करोड़ लोगों के पास जीडीपी कि एक पर्सेंट हिस्सा भी नहीं है, इसकी जिम्मेदार क्या अमेरिका की सरकार है ? बाक़ी, मान्यवर कांशीराम को आप ग़लत क्वोट ना करें। जो आप बोल रहे हैं, मान्यवर कांशीराम ने ऐसख कभी भी नहीं कहा है, बल्कि उन्होंने तो बहुजन कर्मचारियों को इकट्ठा करके बामसेफ़ बनाया था।
शिक्षित विद्वान द्विजनो ( स्त्री-पुरुषो ) ! जब एसी ,एसटी और बीसी कहना लिखना हो तो इसके साथ इडब्लुएस और जनरल कहना बोलना लिखना चाहिए। ये शब्द आजकल के संविधान लोकतंत्र युग काल आरक्षण अनुसार कुछ समय के लिए निर्मित हैं। लेकिन जब पौराणिक वैदिक शब्द ब्रह्मण को बोलना लिखना प्रयोग करना हो तो इसके साथ अन्य वैदिक शब्द जैसे कि राजन्य, क्षत्रिय, शूद्रण, वैश्य और दास शब्द चयन कर प्रयोग करने चाहिए । ये वैदिक शब्द सदा शाश्वत रहने वाले हैं। पौराणिक वैदिक सतयुग सनातन वर्णाश्रम प्रबन्धन जीविकोपार्जन प्रबन्धन विषय विधि-विधान नियम अनुसार हैं। एक समय काल के शब्द एक स्थान पर प्रयोग करने चाहिए । शिक्षित मनुष्यों को व्यर्थ अन्धविरोध ईर्ष्याग्रस्त सोच छोड़कर निष्पक्ष सोच रखकर पोस्ट पढ़कर समझकर ज्ञान प्राप्त शब्दों का सही चयन वार्तालाप बातचीत के लिए प्रयोग करना चाहिए।
नाम ज्ञाति वंश/ जाति वर्ण पर अनर्गल प्रलाप करना अज्ञानतापूर्ण सोच रखकर समय खराब कर अपना नुकसान करना होता है। दिमाग सदुपयोग कर निष्पक्ष सोच अपनाकर व्यर्थ अंधविरोध ईर्ष्याग्रस्त सोच छोड़कर सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए। शिक्षित विद्वान मानव जनों! जन्म से हरएक मानव जन दस इन्द्रियां समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन को जानना चाहिए कि वे जन्म से मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । इसलिए हरएक मानव जन खुद को ब्रह्मण, क्षत्रिय, शूद्रण और वैश्य में कोई भी वर्ण वाला मानकर बताकर नामधारी वर्ण वाला मानकर बताकर जी सकते हैं। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है। हरएक महिला मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी हैं। इन सबको भी समान अवसर उपलब्ध है। चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म विभाग होता है। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए। कर्मधारी वर्ण वाला कैसे? जानें - चार कर्म शिक्षण, सुरक्षण, उत्पादण और वितरण। चारवर्ण कर्म में ब्रह्म वर्ण ( ज्ञान शिक्षण वैद्यन संगीत कर्म करने वाले जैसे कि शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत कर्मी जन हैं वे कर्मधारी ब्रह्मण अध्यापक होते हैं , क्षत्रम वर्ण में सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड कर्मी जन क्षत्रिय होते हैं, शूद्रम वर्ण में तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार कर्मिक जन शूद्रण होते हैं और वैशम वर्ण में वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर जन वैश्य होते हैं। महिला भी अध्यापिका ही ब्राह्मणी, सुरक्षिका ही क्षत्राणी, उत्पादिका निर्माता ही शूद्राणी और वितरिका ट्रांसपोर्टर व्यापारी ही वैश्याणी होती हैं। यह समान अवसर महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा ने सबजन को उपलब्ध कराया है। हरएक मानव जन को खुद की सोच सुधार करनी चाहिए। चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरत हैं। प्रत्यक्ष भी प्रमाण उपलब्ध है। पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म शास्त्र के साथ साथ प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है। बुद्ध प्रकाश प्रजापति की इस ज्ञान भरी पोस्ट को पढ़कर समझकर ज्ञान बढ़ा कर अन्य सबजन को भेजकर ज्ञानवर्धन करना कराना उचित सोच वाला कार्य है और आवश्यक प्रिंट सुधार करवाना उचित सोच कदम है। चार आयु आश्रम परिवार कल्याण के लिए निर्मित हैं जैसे कि ब्रह्मचर्य, ग्रहस्थ, वानप्रस्थ और यतिआश्रम। सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम्।। ॐ ।।
शिक्षित विद्वान मानव जनों! जन्म से हरएक मानव जन दस इन्द्रियां समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन को जानना चाहिए कि वे जन्म से मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । इसलिए हरएक मानव जन खुद को ब्रह्मण, क्षत्रिय, शूद्रण और वैश्य में कोई भी वर्ण वाला मानकर बताकर नामधारी वर्ण वाला मानकर बताकर जी सकते हैं। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है। हरएक महिला मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी हैं। इन सबको भी समान अवसर उपलब्ध है। चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म विभाग होता है। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए। कर्मधारी वर्ण वाला कैसे? जानें - चार कर्म शिक्षण, सुरक्षण, उत्पादण और वितरण। चारवर्ण कर्म में ब्रह्म वर्ण ( ज्ञान शिक्षण वैद्यन संगीत कर्म करने वाले जैसे कि शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत कर्मी जन हैं वे कर्मधारी ब्रह्मण अध्यापक होते हैं , क्षत्रम वर्ण में सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड कर्मी जन क्षत्रिय होते हैं, शूद्रम वर्ण में तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार कर्मिक जन शूद्रण होते हैं और वैशम वर्ण में वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर जन वैश्य होते हैं। महिला भी अध्यापिका ही ब्राह्मणी, सुरक्षिका ही क्षत्राणी, उत्पादिका निर्माता ही शूद्राणी और वितरिका ट्रांसपोर्टर व्यापारी ही वैश्याणी होती हैं। यह समान अवसर महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा ने सबजन को उपलब्ध कराया है। हरएक मानव जन को खुद की सोच सुधार करनी चाहिए। चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरत हैं। प्रत्यक्ष भी प्रमाण उपलब्ध है। पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म शास्त्र के साथ साथ प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है। बुद्ध प्रकाश प्रजापति की इस ज्ञान भरी पोस्ट को पढ़कर समझकर ज्ञान बढ़ा कर अन्य सबजन को भेजकर ज्ञानवर्धन करना कराना उचित सोच वाला कार्य है और आवश्यक प्रिंट सुधार करवाना उचित सोच कदम है। सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम्।। ॐ ।।
क्या मायावती की भ्रष्ट बुध्दि निजी हित राजनीतिक अकुशलता कि वजह से मान्यवर साहब का मिशन बर्बाद न हुआ होता तो मान्यवर साहब को दोषी मानते। आप मायावती को जो कहना है कहिए मान्यवर साहब को नहीं।
शिक्षित विद्वान मानव जनों! जन्म से हरएक मानव जन दस इन्द्रियां समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन को जानना चाहिए कि वे जन्म से मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । इसलिए हरएक मानव जन खुद को ब्रह्मण, क्षत्रिय, शूद्रण और वैश्य में कोई भी वर्ण वाला मानकर बताकर नामधारी वर्ण वाला मानकर बताकर जी सकते हैं। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है। हरएक महिला मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी हैं। इन सबको भी समान अवसर उपलब्ध है। चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म विभाग होता है। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए। कर्मधारी वर्ण वाला कैसे? जानें - चार कर्म शिक्षण, सुरक्षण, उत्पादण और वितरण। चारवर्ण कर्म में ब्रह्म वर्ण ( ज्ञान शिक्षण वैद्यन संगीत कर्म करने वाले जैसे कि शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत कर्मी जन हैं वे कर्मधारी ब्रह्मण अध्यापक होते हैं , क्षत्रम वर्ण में सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड कर्मी जन क्षत्रिय होते हैं, शूद्रम वर्ण में तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार कर्मिक जन शूद्रण होते हैं और वैशम वर्ण में वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर जन वैश्य होते हैं। महिला भी अध्यापिका ही ब्राह्मणी, सुरक्षिका ही क्षत्राणी, उत्पादिका निर्माता ही शूद्राणी और वितरिका ट्रांसपोर्टर व्यापारी ही वैश्याणी होती हैं। यह समान अवसर महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा ने सबजन को उपलब्ध कराया है। हरएक मानव जन को खुद की सोच सुधार करनी चाहिए। चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरत हैं। प्रत्यक्ष भी प्रमाण उपलब्ध है। पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म शास्त्र के साथ साथ प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है। बुद्ध प्रकाश प्रजापति की इस ज्ञान भरी पोस्ट को पढ़कर समझकर ज्ञान बढ़ा कर अन्य सबजन को भेजकर ज्ञानवर्धन करना कराना उचित सोच वाला कार्य है और आवश्यक प्रिंट सुधार करवाना उचित सोच कदम है। सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम्।। ॐ ।।
शिक्षित विद्वान द्विजनो ( स्त्री-पुरुषो ) ! जब एसी ,एसटी और बीसी कहना लिखना हो तो इसके साथ इडब्लुएस और जनरल कहना बोलना लिखना चाहिए। ये शब्द आजकल के संविधान लोकतंत्र युग काल आरक्षण अनुसार कुछ समय के लिए निर्मित हैं। लेकिन जब पौराणिक वैदिक शब्द ब्रह्मण को बोलना लिखना प्रयोग करना हो तो इसके साथ अन्य वैदिक शब्द जैसे कि राजन्य, क्षत्रिय, शूद्रण, वैश्य और दास शब्द चयन कर प्रयोग करने चाहिए । ये वैदिक शब्द सदा शाश्वत रहने वाले हैं। पौराणिक वैदिक सतयुग सनातन वर्णाश्रम प्रबन्धन जीविकोपार्जन प्रबन्धन विषय विधि-विधान नियम अनुसार हैं। एक समय काल के शब्द एक स्थान पर प्रयोग करने चाहिए । शिक्षित मनुष्यों को व्यर्थ अन्धविरोध ईर्ष्याग्रस्त सोच छोड़कर निष्पक्ष सोच रखकर पोस्ट पढ़कर समझकर ज्ञान प्राप्त शब्दों का सही चयन वार्तालाप बातचीत के लिए प्रयोग करना चाहिए।
Main bhai Haryana se hun. Pahle yah BSP ke log Congress ko harane ke liye BSP ko vote karte the. Ab parliament aur state election mein sidha BJP ko vote Kiya hai. Sabse jyada hamara bada Ghar is BSP ne kiya hai. Mayawati Sabse badi agent hai RSS ki. Main bhi 2009 Tak BSP ka andhbhakt tha. Maine BSP ke state office mein sab kuchh dekha central office mein jakar sab kuchh dekha. Pata chala yah to hamari aisi ki taisi ho rahi hai. Munh ke bad mein kisi bhi party ka vote dalne ke liye nahin Gaya Hun. Aaj BSP ke Jo log hai unko dekh kar mein hairan hun.😮
सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम सनातन धर्म संस्कार। धर्मगुरु /पुरोहित/ पन्थगुरु/ अध्यापक/ चिकित्सक/धर्माचार्य/ कविजन/ विप्रजन/ शिक्षक ( ब्रह्मण ) का सदाचार आचरण व्यवहार कैसा होना चाहिए ? जाने ! इस पोस्ट के विषय ज्ञान अनुसार उचित विचार संस्कार नियम पालन करते हुए अन्य सबजन को मानवीय मूल्य वाले संस्कार प्राप्त करवाते हुए अपराध मुक्त वातावरण बनवाते रहें। अध्यापक/ धर्माचार्य को - 1- सत्यवादी आचरण व्यवहार वाला होना चाहिए , 2 - शुद्ध चित आचरण रखने वाला होना चाहिए, 3 - सत्यवृतपरायण आचरण वाला होना चाहिए, 4 - नित्य सनातन दक्षधर्म में रत होना चाहिए, 5 - शान्त चित वाला बने रहने वाला होना चाहिए, 6 - व्यर्थ अनर्गल बातो से रहित होना चाहिए, 7- द्रोहरहित स्वभाव वाला होना चाहिए, 8 - चोरकर्म से रहित सही आदत वाला होना चाहिए, 9 - प्राणियो के हित में लगे रहने वाला होना चाहिए, 10 - अपनी स्त्री भार्या में रत रहने वाला होना चाहिए, 11- सविनय नर्म स्वभाव वाला होना चाहिए, 12- न्याय प्रिय सुरक्षक स्वभाव होना चाहिए, 13 - अकर्कश सरल स्वभाव वाला होना चाहिए, 14 - माता पिता का आज्ञाकारी होना चाहिए, 15 - गुरुओ का सम्मान करने वाला होना चाहिए, 16 - वृद्धो पर श्रद्धा रखने वाला होना चाहिए , 17- श्रद्घालु स्वभाव वाला होना चाहिए, 18ङ- वेदमंत्र दक्षधर्म शास्त्ररज्ञाता होना चाहिए, 19 - वैदिक धर्म संस्कार गुण क्रियावान होना चाहिए और 20- भिक्षा दान दक्षिणा वेतन से जीवन यावन करने वाला होना चाहिए। इन सभी बीस (20) मानवीय गुणों को विप्रजन/अध्यापक/ गुरूजन/ पुरोहित/ चिकित्सक /पन्थगुरु/अभिनयी/द्विजोत्तम/शिक्षक (ब्रह्मण) को अपनाकर जीना चाहिए ताकि इन्ही गुण स्वभाव वाले शिक्षको को देखकर इनसे प्रेरित होकर अन्य द्विजनों ( स्त्री-पुरुषो ) को आचरण व्यवहार निर्माण कर जीने में लाभ मिलता रहना चाहिए। पौराणिक वैदिक सतयुग संस्कृत भाषा श्लोक विधिनियम - ॐ सत्यवाक् शुद्धचेता यः सत्यव्रतपरायणः । नित्यं धर्मरतः शान्तः स भिन्नलापवर्जितः।। अद्रोहोऽस्तेयकर्मा च सर्वप्राणिहिते रतः। स्वस्त्रीरतः सविनया नयचक्षुरकर्कशः ।। पितृमातृवचः कर्ता गुरूवृद्धपराष्टि ( ति) कः । श्रध्दालुर्वेदशास्त्रज्ञः क्रियावान्भैक्ष्य जीवकः ।। जय विश्व राष्ट्र सनातन प्राजापत्य दक्ष धर्म। जय वर्णाश्रम संस्कार प्रबन्धन। श्रेष्ठतम जीवन प्रबंधन । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम।। ॐ ।। विश्वराष्ट्र मित्रो! पौराणिक वैदिक पुरोहित संस्कार शिक्षको लिए बताए गए गुण नियम की तरह सभी साम्प्रदायिक पन्थी गुरुओ के बने नियमो को पोस्ट करना चाहिए, ताकि सबजन के विचार को तुलनात्मक रूप से विश्लेषण कर अध्ययन करना चाहिए और एक समान अवसर देने वाले मानवीय गुण क्रियावान कर संस्कार सुधार किये जाने चाहिएं । साम्प्रदायिक गुरुओ की निजी पन्थी सोच ने पौराणिक वैदिक सनातन प्रजापत्य दक्ष धर्म संस्कार विधि-विधान नियमों में क्या सुधार और क्या क्या बिगाङ किया है ? वह सबजन जानकर समझकर सुधार करना चाहिए सकें और अपने पूर्वजो बहुदेवो ऋषिओ की पौराणिक वैदिक श्रेष्ठ सनातन धर्म संस्कार विधि पहचान कर श्रेष्ठ जीवन निर्वाह करना चाहिए। जय विश्व राष्ट्र दक्षराज वर्णाश्रम सनातन धर्म संस्कार प्रबन्धन। श्रेष्ठतम जीवन प्रबंधन। जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम।। ॐ ।।
शूद्रं, क्षुद्र, अशूद्र तीनो वैदिक शब्दों के अलग अलग अर्थ हैं लेकिन लेखक प्रकाशक सही से अंतर को समझकर नहीं लिखते हैं इसलिए सामन्य जन भी नहीं समझते हैं।
डा. रतन लाल साहब मै आपसे सहमत हूँ
विश्वमित्रो! ऊची नीची जाति होने का मतलब? ऊची नीची जाति मानने का समान अवसर सबजन को उपलब्ध है। महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा के अनुसार हरएक मानव जन मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । चरण पांव चलाकर ट्रांसपोर्ट वाणिज्य क्रय विक्रय वितरण वैशम वर्ण कर्म करते हैं इसलिए चरण समान वैश्य हैं।
चार वर्ण = चार कर्म = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम।
1- ब्रह्म वर्ण में -अध्यापक वैद्यन पुरोहित संगीतज्ञ = ज्ञानसे शिक्षण कर्म करने वाला ब्रह्मन/ विप्रजन।
2- क्षत्रम वर्ण में - सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड = ध्यानसे सुरक्षा न्याय कर्म करने वाला क्षत्रिय।
3- शूद्रम वर्ण में- उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार = तपसे उद्योग कर्म करने वाला शूद्रण।
4- वैशम वर्ण में - वितरक वणिक वार्ताकार ट्रांसपोर्टर क्रेता विक्रेता व्यापारीकरण = तमसे व्यापार वाणिज्य कर्म करने वाला वैश्य ।
पांचवेजन चारो वर्ण कर्म विभाग में राजसेवक जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन वेतनमान पर कार्यरत हैं।
यह पांचजन्य चार वर्णिय कार्मिक वर्ण कर्म व्यवस्था है।
जो इस पोस्ट को पढ़कर समझने में नाकाम हैं वे यह बताएं कि चार वर्ण कर्म जैसे शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादण-शूद्रण और वितरण-वैशम वर्ण कर्म किये बिना समाज में जीविकोपार्जन प्रबन्धन कैसे होगा?
शूद्रं, क्षुद्र, अशूद्र तीनो वैदिक शब्दों के अलग अलग अर्थ हैं, लेकिन लेखक प्रकाशक इन शब्दों के सही अर्थ अंतर को नहीं समझ कर एक ही शब्द शूद्रं लिखते हैं उन्ही के लिखे प्रिंट को पढ़कर सामन्य जन भी शब्दो के सही मतलब नहीं समझते हैं।
सराहनीय भाषण डा अम्बेडकर की सही व्याख्या
विश्वमित्रो! ऊची नीची जाति होने का मतलब? ऊची नीची जाति मानने का समान अवसर सबजन को उपलब्ध है। महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा के अनुसार हरएक मानव जन मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । चरण पांव चलाकर ट्रांसपोर्ट वाणिज्य क्रय विक्रय वितरण वैशम वर्ण कर्म करते हैं इसलिए चरण समान वैश्य हैं।
चार वर्ण = चार कर्म = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम।
1- ब्रह्म वर्ण में -अध्यापक वैद्यन पुरोहित संगीतज्ञ = ज्ञानसे शिक्षण कर्म करने वाला ब्रह्मन/ विप्रजन।
2- क्षत्रम वर्ण में - सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड = ध्यानसे सुरक्षा न्याय कर्म करने वाला क्षत्रिय।
3- शूद्रम वर्ण में- उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार = तपसे उद्योग कर्म करने वाला शूद्रण।
4- वैशम वर्ण में - वितरक वणिक वार्ताकार ट्रांसपोर्टर क्रेता विक्रेता व्यापारीकरण = तमसे व्यापार वाणिज्य कर्म करने वाला वैश्य ।
पांचवेजन चारो वर्ण कर्म विभाग में राजसेवक जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन वेतनमान पर कार्यरत हैं।
यह पांचजन्य चार वर्णिय कार्मिक वर्ण कर्म व्यवस्था है।
जो इस पोस्ट को पढ़कर समझने में नाकाम हैं वे यह बताएं कि चार वर्ण कर्म जैसे शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादण-शूद्रण और वितरण-वैशम वर्ण कर्म किये बिना समाज में जीविकोपार्जन प्रबन्धन कैसे होगा?
शूद्रं, क्षुद्र, अशूद्र तीनो वैदिक शब्दों के अलग अलग अर्थ हैं, लेकिन लेखक प्रकाशक इन शब्दों के सही अर्थ अंतर को नहीं समझ कर एक ही शब्द शूद्रं लिखते हैं उन्ही के लिखे प्रिंट को पढ़कर सामन्य जन भी शब्दो के सही मतलब नहीं समझते हैं।
Shandar
जय भीम जय किसान
Real analysis... Dr sahib... You are an asset for samaaj🎉
Totally Agree with professor Ratan Lal sir Ji 🇮🇳🇮🇳🇮🇳
Aap jaisay professor ki zroorat hai aap apnay jaisay 200 log tayaiar karain
बेहतर विश्लेषण
जय जय भीम जय भारत जय संविधान
विश्वमित्रो! ऊची नीची जाति होने का मतलब? ऊची नीची जाति मानने का समान अवसर सबजन को उपलब्ध है। महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा के अनुसार हरएक मानव जन मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । चरण पांव चलाकर ट्रांसपोर्ट वाणिज्य क्रय विक्रय वितरण वैशम वर्ण कर्म करते हैं इसलिए चरण समान वैश्य हैं।
चार वर्ण = चार कर्म = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम।
1- ब्रह्म वर्ण में -अध्यापक वैद्यन पुरोहित संगीतज्ञ = ज्ञानसे शिक्षण कर्म करने वाला ब्रह्मन/ विप्रजन।
2- क्षत्रम वर्ण में - सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड = ध्यानसे सुरक्षा न्याय कर्म करने वाला क्षत्रिय।
3- शूद्रम वर्ण में- उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार = तपसे उद्योग कर्म करने वाला शूद्रण।
4- वैशम वर्ण में - वितरक वणिक वार्ताकार ट्रांसपोर्टर क्रेता विक्रेता व्यापारीकरण = तमसे व्यापार वाणिज्य कर्म करने वाला वैश्य ।
पांचवेजन चारो वर्ण कर्म विभाग में राजसेवक जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन वेतनमान पर कार्यरत हैं।
यह पांचजन्य चार वर्णिय कार्मिक वर्ण कर्म व्यवस्था है।
जो इस पोस्ट को पढ़कर समझने में नाकाम हैं वे यह बताएं कि चार वर्ण कर्म जैसे शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादण-शूद्रण और वितरण-वैशम वर्ण कर्म किये बिना समाज में जीविकोपार्जन प्रबन्धन कैसे होगा?
शूद्रं, क्षुद्र, अशूद्र तीनो वैदिक शब्दों के अलग अलग अर्थ हैं, लेकिन लेखक प्रकाशक इन शब्दों के सही अर्थ अंतर को नहीं समझ कर एक ही शब्द शूद्रं लिखते हैं उन्ही के लिखे प्रिंट को पढ़कर सामन्य जन भी शब्दो के सही मतलब नहीं समझते हैं।
सही जवाब| सादर सैल्यूट है आपको सर|
रत्न सर का आंख खोल देने वाला भाषण बहुत अच्छा लगा।नमो बुद्धाय,जय भीम।
विश्वमित्रो! ऊची नीची जाति होने का मतलब? ऊची नीची जाति मानने का समान अवसर सबजन को उपलब्ध है। महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा के अनुसार हरएक मानव जन मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । चरण पांव चलाकर ट्रांसपोर्ट वाणिज्य क्रय विक्रय वितरण वैशम वर्ण कर्म करते हैं इसलिए चरण समान वैश्य हैं।
चार वर्ण = चार कर्म = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम।
1- ब्रह्म वर्ण में -अध्यापक वैद्यन पुरोहित संगीतज्ञ = ज्ञानसे शिक्षण कर्म करने वाला ब्रह्मन/ विप्रजन।
2- क्षत्रम वर्ण में - सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड = ध्यानसे सुरक्षा न्याय कर्म करने वाला क्षत्रिय।
3- शूद्रम वर्ण में- उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार = तपसे उद्योग कर्म करने वाला शूद्रण।
4- वैशम वर्ण में - वितरक वणिक वार्ताकार ट्रांसपोर्टर क्रेता विक्रेता व्यापारीकरण = तमसे व्यापार वाणिज्य कर्म करने वाला वैश्य ।
पांचवेजन चारो वर्ण कर्म विभाग में राजसेवक जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन वेतनमान पर कार्यरत हैं।
यह पांचजन्य चार वर्णिय कार्मिक वर्ण कर्म व्यवस्था है।
जो इस पोस्ट को पढ़कर समझने में नाकाम हैं वे यह बताएं कि चार वर्ण कर्म जैसे शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादण-शूद्रण और वितरण-वैशम वर्ण कर्म किये बिना समाज में जीविकोपार्जन प्रबन्धन कैसे होगा?
शूद्रं, क्षुद्र, अशूद्र तीनो वैदिक शब्दों के अलग अलग अर्थ हैं, लेकिन लेखक प्रकाशक इन शब्दों के सही अर्थ अंतर को नहीं समझ कर एक ही शब्द शूद्रं लिखते हैं उन्ही के लिखे प्रिंट को पढ़कर सामन्य जन भी शब्दो के सही मतलब नहीं समझते हैं।
Very nice speech sahab ji
Salute Prof.Ratan Lal Sir Ji
JAY BHEEM JAY SAMBIDHAN
Very good🌹🌹🌹
Great sir 🙏🙏🙏🙏🙏
किसी व्यक्ति या संस्था या पार्टी की बुराई उस समय के देश काल को ध्यान में रख कर की जानी चाहिए। यदि उस समय कुछ गलतियां हुई भी हैं तो उन गलतियों से सबक सीख कर मिशन को आगे बढ़ाने का काम करना चाहिए.
जय भीम क्रान्तिकारी साथियों लाईक करें शेयर करें दोस्तों
विश्वमित्रो! ऊची नीची जाति होने का मतलब? ऊची नीची जाति मानने का समान अवसर सबजन को उपलब्ध है। महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा के अनुसार हरएक मानव जन मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । चरण पांव चलाकर ट्रांसपोर्ट वाणिज्य क्रय विक्रय वितरण वैशम वर्ण कर्म करते हैं इसलिए चरण समान वैश्य हैं।
चार वर्ण = चार कर्म = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम।
1- ब्रह्म वर्ण में -अध्यापक वैद्यन पुरोहित संगीतज्ञ = ज्ञानसे शिक्षण कर्म करने वाला ब्रह्मन/ विप्रजन।
2- क्षत्रम वर्ण में - सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड = ध्यानसे सुरक्षा न्याय कर्म करने वाला क्षत्रिय।
3- शूद्रम वर्ण में- उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार = तपसे उद्योग कर्म करने वाला शूद्रण।
4- वैशम वर्ण में - वितरक वणिक वार्ताकार ट्रांसपोर्टर क्रेता विक्रेता व्यापारीकरण = तमसे व्यापार वाणिज्य कर्म करने वाला वैश्य ।
पांचवेजन चारो वर्ण कर्म विभाग में राजसेवक जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन वेतनमान पर कार्यरत हैं।
यह पांचजन्य चार वर्णिय कार्मिक वर्ण कर्म व्यवस्था है।
जो इस पोस्ट को पढ़कर समझने में नाकाम हैं वे यह बताएं कि चार वर्ण कर्म जैसे शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादण-शूद्रण और वितरण-वैशम वर्ण कर्म किये बिना समाज में जीविकोपार्जन प्रबन्धन कैसे होगा?
शूद्रं, क्षुद्र, अशूद्र तीनो वैदिक शब्दों के अलग अलग अर्थ हैं, लेकिन लेखक प्रकाशक इन शब्दों के सही अर्थ अंतर को नहीं समझ कर एक ही शब्द शूद्रं लिखते हैं उन्ही के लिखे प्रिंट को पढ़कर सामन्य जन भी शब्दो के सही मतलब नहीं समझते हैं।
Mai aap se shmt hu phle se hi aap ne shi jankari di🙏
Very nice statement by Pro.Ratan Lal .
Verigood
Dr Ratan Lal sir welcome to Maharashtra Nagar 🙏🙏🙏💐👍
salute u sr
✌️✌️✌️
Thank you Dr Ratan Lal sir ji 🙏🙏🙏💐💐💐👍
EXCELLENT ANALYSIS ❤❤❤❤❤
Bharat me sacha ambedkar vadi ❤❤❤🎉🎉
Nice🎉
Sahi explaination
Excellent speach with analysis and criticizing on the chamcha yug since De Babasaheb still upto date
Jai bhim jai sabidhan namo bhudhay
हमारे कुछ नेताओं के कट्टर कांग्रेस विरोध की वजह से आज संघ विचारधारा को मानने वाली भाजपा सत्ता में है
निष्पक्ष सोच अपनाकर दिमाग सदुपयोग कर -
बताओ दस इंद्रिया जन्म हरएक मानव जन के अंदर होती हैं या नहीं ?
बताओ मुख, बांह, पेट और चरण जन्म से हरएक मानव जन के होती हैं या नहीं?
बताओ समाज में कम से कम चार वर्ण कर्म विभाग जैसे की शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उद्योगण-शूद्रम और वितरण-वैशम वर्ण कर्म किए जीविकोपार्जन हो सकता है क्या?
बताओ ज्ञान ब्रह्म वर्ण कर्म शिक्षण प्रशिक्षण आदान-प्रदान कर्म मुख के बिना हो सकता है क्या?
बताओ ध्यान चौकीदार कर्म क्षत्रम वर्ण कर्म सुरक्षण कार्य बांह बिना होता है क्या?
बताओ उत्पादन निर्माण उद्योग कर्म शूद्रम वर्ण कर्म ब्लड संतान उत्पन्न निर्माण उद्योग कर्म पेट के बिना होता है क्या?
बताओ व्यापार वितरण ट्रांसपोर्ट वाणिज्य चरण पांव चलाए बिना होता है क्या?
बताओ राजसेवक जनसेवक नौकरजन दासजन बिना वेतन भोजन दिये होता है क्या?
सवालो के जवाब दाखिल करें जो चार वर्ण पांचजन सामाजिक प्रबन्धन का मतलब समझने में नाकाम साबित हो रहे हैं?
धर्मनिरपेक्षता की बात करने वाले द्विजनो (स्त्री-पुरुषो) !
धर्म संस्कार विषय पर वार्तालाप करते समय - धर्म, अधर्म, आप्तधर्म, पुराणिक इतिहास और समय काल इन पांचो विषय पर बातचीत करनी चाहिए।
पांचो परिस्थिति धर्म, अधर्म, आप्तधर्म, पुराणिक इतिहास और समय काल इन पांचविषय पर निष्पक्ष सोच रखकर विधान विज्ञान सम्मत मानव हित की करनी चाहिए।
समय समय पर पैदा हुए साम्प्रदायिक पन्थगुरुओ का फालोअर भक्त होकर मत परिवर्तन करने जीने वालो को इन पांचो विषयों पर विश्लेषण करना चाहिए।
जय विश्व राष्ट्र राज प्राजापत्य दक्ष धर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम् ।।ॐ।।
शिक्षित विद्वान मानव जनों! जन्म से हरएक मानव जन दस इन्द्रियां समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन को जानना चाहिए कि वे जन्म से मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । इसलिए हरएक मानव जन खुद को ब्रह्मण, क्षत्रिय, शूद्रण और वैश्य में कोई भी वर्ण वाला मानकर बताकर नामधारी वर्ण वाला मानकर बताकर जी सकते हैं। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है।
हरएक महिला मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी हैं। इन सबको भी समान अवसर उपलब्ध है।
चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म विभाग होता है। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए।
कर्मधारी वर्ण वाला कैसे? जानें -
चार कर्म शिक्षण, सुरक्षण, उत्पादण और वितरण। चारवर्ण कर्म में ब्रह्म वर्ण ( ज्ञान शिक्षण वैद्यन संगीत कर्म करने वाले जैसे कि शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत कर्मी जन हैं वे कर्मधारी ब्रह्मण अध्यापक होते हैं ,
क्षत्रम वर्ण में सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड कर्मी जन क्षत्रिय होते हैं,
शूद्रम वर्ण में तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार कर्मिक जन शूद्रण होते हैं और
वैशम वर्ण में वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर जन वैश्य होते हैं। महिला भी अध्यापिका ही ब्राह्मणी, सुरक्षिका ही क्षत्राणी, उत्पादिका निर्माता ही शूद्राणी और वितरिका ट्रांसपोर्टर व्यापारी ही वैश्याणी होती हैं। यह समान अवसर महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा ने सबजन को उपलब्ध कराया है। हरएक मानव जन को खुद की सोच सुधार करनी चाहिए।
चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरत हैं। प्रत्यक्ष भी प्रमाण उपलब्ध है।
पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म शास्त्र के साथ साथ प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है।
बुद्ध प्रकाश प्रजापति की इस ज्ञान भरी पोस्ट को पढ़कर समझकर ज्ञान बढ़ा कर अन्य सबजन को भेजकर ज्ञानवर्धन करना कराना उचित सोच वाला कार्य है और आवश्यक प्रिंट सुधार करवाना उचित सोच कदम है।
सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम्।। ॐ ।।
आपत्तिकाल सच मैं अनुशासन पर्व था। तथ्यों को समक्षने की आवश्यकता है।
You must lead our society
Badly needed for us
Chamcha log toh hamara astitwa hi khatam karne me tule huye
Inko sirf Chanda chahiye
💐🌱 ऊस समय में आर एस एस और विश्र्व हिंदु परिषद वाले अपना मनु वादी विचार धारा सभी के मन मगज में ठसाने में कामयाब नहीं रहा होग कम शिक्षा और एजंसियों सिमित था
आज का समय अलग है
Good Ratanlal Sir 😂😂😂
विश्वमित्रो! ऊची नीची जाति होने का मतलब? ऊची नीची जाति मानने का समान अवसर सबजन को उपलब्ध है। महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा के अनुसार हरएक मानव जन मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । चरण पांव चलाकर ट्रांसपोर्ट वाणिज्य क्रय विक्रय वितरण वैशम वर्ण कर्म करते हैं इसलिए चरण समान वैश्य हैं।
चार वर्ण = चार कर्म = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम।
1- ब्रह्म वर्ण में -अध्यापक वैद्यन पुरोहित संगीतज्ञ = ज्ञानसे शिक्षण कर्म करने वाला ब्रह्मन/ विप्रजन।
2- क्षत्रम वर्ण में - सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड = ध्यानसे सुरक्षा न्याय कर्म करने वाला क्षत्रिय।
3- शूद्रम वर्ण में- उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार = तपसे उद्योग कर्म करने वाला शूद्रण।
4- वैशम वर्ण में - वितरक वणिक वार्ताकार ट्रांसपोर्टर क्रेता विक्रेता व्यापारीकरण = तमसे व्यापार वाणिज्य कर्म करने वाला वैश्य ।
पांचवेजन चारो वर्ण कर्म विभाग में राजसेवक जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन वेतनमान पर कार्यरत हैं।
यह पांचजन्य चार वर्णिय कार्मिक वर्ण कर्म व्यवस्था है।
जो इस पोस्ट को पढ़कर समझने में नाकाम हैं वे यह बताएं कि चार वर्ण कर्म जैसे शिक्षण-ब्रह्म, सुरक्षण-क्षत्रम, उत्पादण-शूद्रण और वितरण-वैशम वर्ण कर्म किये बिना समाज में जीविकोपार्जन प्रबन्धन कैसे होगा?
शूद्रं, क्षुद्र, अशूद्र तीनो वैदिक शब्दों के अलग अलग अर्थ हैं, लेकिन लेखक प्रकाशक इन शब्दों के सही अर्थ अंतर को नहीं समझ कर एक ही शब्द शूद्रं लिखते हैं उन्ही के लिखे प्रिंट को पढ़कर सामन्य जन भी शब्दो के सही मतलब नहीं समझते हैं।
जब तक आप अपने समाज के महान एवं उनके विकासात्मक कार्यों की समीक्षात्मक विवेचना नही कर सकते आप आगे नही बढ़ सकते बल्कि वहीं से नीचे जाने लगेगे क्योंकि समय एवं परिस्थितियां एक समान नही होती
शिक्षित विद्वान मानव जनों! जन्म से हरएक मानव जन दस इन्द्रियां समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन को जानना चाहिए कि वे जन्म से मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । इसलिए हरएक मानव जन खुद को ब्रह्मण, क्षत्रिय, शूद्रण और वैश्य में कोई भी वर्ण वाला मानकर बताकर नामधारी वर्ण वाला मानकर बताकर जी सकते हैं। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है।
हरएक महिला मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी हैं। इन सबको भी समान अवसर उपलब्ध है।
चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म विभाग होता है। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए।
कर्मधारी वर्ण वाला कैसे? जानें -
चार कर्म शिक्षण, सुरक्षण, उत्पादण और वितरण। चारवर्ण कर्म में ब्रह्म वर्ण ( ज्ञान शिक्षण वैद्यन संगीत कर्म करने वाले जैसे कि शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत कर्मी जन हैं वे कर्मधारी ब्रह्मण अध्यापक होते हैं ,
क्षत्रम वर्ण में सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड कर्मी जन क्षत्रिय होते हैं,
शूद्रम वर्ण में तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार कर्मिक जन शूद्रण होते हैं और
वैशम वर्ण में वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर जन वैश्य होते हैं। महिला भी अध्यापिका ही ब्राह्मणी, सुरक्षिका ही क्षत्राणी, उत्पादिका निर्माता ही शूद्राणी और वितरिका ट्रांसपोर्टर व्यापारी ही वैश्याणी होती हैं। यह समान अवसर महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा ने सबजन को उपलब्ध कराया है। हरएक मानव जन को खुद की सोच सुधार करनी चाहिए।
चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरत हैं। प्रत्यक्ष भी प्रमाण उपलब्ध है।
पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म शास्त्र के साथ साथ प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है।
बुद्ध प्रकाश प्रजापति की इस ज्ञान भरी पोस्ट को पढ़कर समझकर ज्ञान बढ़ा कर अन्य सबजन को भेजकर ज्ञानवर्धन करना कराना उचित सोच वाला कार्य है और आवश्यक प्रिंट सुधार करवाना उचित सोच कदम है।
सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम्।। ॐ ।।
सर एक व्याख्यान दिलीप मंडल जैसे गद्दारों पर भी आयोजित किया जाए ताकि हमारे बहुजन समाज के लोगों को पता चले कि समाज के बीच कौन से वह लोग हैं जो आरएसएस के एजेंट है
शिक्षित विद्वान मानव जनों! जन्म से हरएक मानव जन दस इन्द्रियां समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन को जानना चाहिए कि वे जन्म से मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । इसलिए हरएक मानव जन खुद को ब्रह्मण, क्षत्रिय, शूद्रण और वैश्य में कोई भी वर्ण वाला मानकर बताकर नामधारी वर्ण वाला मानकर बताकर जी सकते हैं। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है।
हरएक महिला मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी हैं। इन सबको भी समान अवसर उपलब्ध है।
चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म विभाग होता है। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए।
कर्मधारी वर्ण वाला कैसे? जानें -
चार कर्म शिक्षण, सुरक्षण, उत्पादण और वितरण। चारवर्ण कर्म में ब्रह्म वर्ण ( ज्ञान शिक्षण वैद्यन संगीत कर्म करने वाले जैसे कि शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत कर्मी जन हैं वे कर्मधारी ब्रह्मण अध्यापक होते हैं ,
क्षत्रम वर्ण में सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड कर्मी जन क्षत्रिय होते हैं,
शूद्रम वर्ण में तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार कर्मिक जन शूद्रण होते हैं और
वैशम वर्ण में वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर जन वैश्य होते हैं। महिला भी अध्यापिका ही ब्राह्मणी, सुरक्षिका ही क्षत्राणी, उत्पादिका निर्माता ही शूद्राणी और वितरिका ट्रांसपोर्टर व्यापारी ही वैश्याणी होती हैं। यह समान अवसर महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा ने सबजन को उपलब्ध कराया है। हरएक मानव जन को खुद की सोच सुधार करनी चाहिए।
चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरत हैं। प्रत्यक्ष भी प्रमाण उपलब्ध है।
पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म शास्त्र के साथ साथ प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है।
बुद्ध प्रकाश प्रजापति की इस ज्ञान भरी पोस्ट को पढ़कर समझकर ज्ञान बढ़ा कर अन्य सबजन को भेजकर ज्ञानवर्धन करना कराना उचित सोच वाला कार्य है और आवश्यक प्रिंट सुधार करवाना उचित सोच कदम है।
सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम्।। ॐ ।।
Ratan lal apke samne baithe huve sub ardh Gyani hai jo chup nahi rah sakte
यह अर्थ सहयोग बाबा साहेब आंबेडकर ने मांगे थे वह किस किताब मे है सर जी प्लीज बताबे
जय जय भीम जय भारत जय संविधान
शिक्षित विद्वान मानव जनों! जन्म से हरएक मानव जन दस इन्द्रियां समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन को जानना चाहिए कि वे जन्म से मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । इसलिए हरएक मानव जन खुद को ब्रह्मण, क्षत्रिय, शूद्रण और वैश्य में कोई भी वर्ण वाला मानकर बताकर नामधारी वर्ण वाला मानकर बताकर जी सकते हैं। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है।
हरएक महिला मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी हैं। इन सबको भी समान अवसर उपलब्ध है।
चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म विभाग होता है। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए।
कर्मधारी वर्ण वाला कैसे? जानें -
चार कर्म शिक्षण, सुरक्षण, उत्पादण और वितरण। चारवर्ण कर्म में ब्रह्म वर्ण ( ज्ञान शिक्षण वैद्यन संगीत कर्म करने वाले जैसे कि शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत कर्मी जन हैं वे कर्मधारी ब्रह्मण अध्यापक होते हैं ,
क्षत्रम वर्ण में सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड कर्मी जन क्षत्रिय होते हैं,
शूद्रम वर्ण में तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार कर्मिक जन शूद्रण होते हैं और
वैशम वर्ण में वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर जन वैश्य होते हैं। महिला भी अध्यापिका ही ब्राह्मणी, सुरक्षिका ही क्षत्राणी, उत्पादिका निर्माता ही शूद्राणी और वितरिका ट्रांसपोर्टर व्यापारी ही वैश्याणी होती हैं। यह समान अवसर महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा ने सबजन को उपलब्ध कराया है। हरएक मानव जन को खुद की सोच सुधार करनी चाहिए।
चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरत हैं। प्रत्यक्ष भी प्रमाण उपलब्ध है।
पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म शास्त्र के साथ साथ प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है।
बुद्ध प्रकाश प्रजापति की इस ज्ञान भरी पोस्ट को पढ़कर समझकर ज्ञान बढ़ा कर अन्य सबजन को भेजकर ज्ञानवर्धन करना कराना उचित सोच वाला कार्य है और आवश्यक प्रिंट सुधार करवाना उचित सोच कदम है।
सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम्।। ॐ ।।
विश्व राष्ट्र राज धर्म = सनातन दक्ष धर्म ।
सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार।
ब्रह्म = ज्ञान
ब्रह्म वर्ण = ज्ञान शिक्षण विभाग।
ब्राह्मण = ज्ञानी अध्यापक गुरूजन पुरोहित।
मुख = ब्रह्मण
बांह = क्षत्रिय
पेटउदर = शूद्रण
चरण = वैश्य।
चरण चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय ट्रांसपोर्ट वैशम वर्ण कर्म होता है।
अध्यापक = ब्रह्मन,
सुरक्षण = क्षत्रिन,
उत्पादक = शूद्रन और
वितरक = वैशन।
चार आश्रम = ब्रह्मचर्य + गृहस्थ + वानप्रस्थ + यतिआश्रम।
चार वर्ण = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम।
राजसेवक/ दासजन = वेतनमान पर कार्यरत सेवाजन।
पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म वर्णाश्रम संस्कार।
इंदिरा गांधी ने संविधान का सबसे ज्यादा नुकसान किया
जिसे मिनी constitution कहते है
Amendment 42 me
मायावती द्वारा मिशन को बढ़ाने के लिए किया गया कार्य।
बहुजन-सर्वजन
बहुजन संघटक पत्रिका बंद -मायायुग
बहुजन means 85%- according to mayavati दलित braman ठाकुर
शिक्षित विद्वान द्विजनो ( स्त्री-पुरुषो ) !
जब एसी ,एसटी और बीसी कहना लिखना हो तो इसके साथ इडब्लुएस और जनरल कहना बोलना लिखना चाहिए। ये शब्द आजकल के संविधान लोकतंत्र युग काल आरक्षण अनुसार कुछ समय के लिए निर्मित हैं।
लेकिन
जब पौराणिक वैदिक शब्द ब्रह्मण को बोलना लिखना प्रयोग करना हो तो इसके साथ अन्य वैदिक शब्द जैसे कि राजन्य, क्षत्रिय, शूद्रण, वैश्य और दास शब्द चयन कर प्रयोग करने चाहिए । ये वैदिक शब्द सदा शाश्वत रहने वाले हैं। पौराणिक वैदिक सतयुग सनातन वर्णाश्रम प्रबन्धन जीविकोपार्जन प्रबन्धन विषय विधि-विधान नियम अनुसार हैं।
एक समय काल के शब्द एक स्थान पर प्रयोग करने चाहिए । शिक्षित मनुष्यों को व्यर्थ अन्धविरोध ईर्ष्याग्रस्त सोच छोड़कर निष्पक्ष सोच रखकर पोस्ट पढ़कर समझकर ज्ञान प्राप्त शब्दों का सही चयन वार्तालाप बातचीत के लिए प्रयोग करना चाहिए।
शिक्षित विद्वान मानव जनों! जन्म से हरएक मानव जन दस इन्द्रियां समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन को जानना चाहिए कि वे जन्म से मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । इसलिए हरएक मानव जन खुद को ब्रह्मण, क्षत्रिय, शूद्रण और वैश्य में कोई भी वर्ण वाला मानकर बताकर नामधारी वर्ण वाला मानकर बताकर जी सकते हैं। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है।
हरएक महिला मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी हैं। इन सबको भी समान अवसर उपलब्ध है।
चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म विभाग होता है। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए।
कर्मधारी वर्ण वाला कैसे? जानें -
चार कर्म शिक्षण, सुरक्षण, उत्पादण और वितरण। चारवर्ण कर्म में ब्रह्म वर्ण ( ज्ञान शिक्षण वैद्यन संगीत कर्म करने वाले जैसे कि शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत कर्मी जन हैं वे कर्मधारी ब्रह्मण अध्यापक होते हैं ,
क्षत्रम वर्ण में सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड कर्मी जन क्षत्रिय होते हैं,
शूद्रम वर्ण में तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार कर्मिक जन शूद्रण होते हैं और
वैशम वर्ण में वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर जन वैश्य होते हैं। महिला भी अध्यापिका ही ब्राह्मणी, सुरक्षिका ही क्षत्राणी, उत्पादिका निर्माता ही शूद्राणी और वितरिका ट्रांसपोर्टर व्यापारी ही वैश्याणी होती हैं। यह समान अवसर महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा ने सबजन को उपलब्ध कराया है। हरएक मानव जन को खुद की सोच सुधार करनी चाहिए।
चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरत हैं। प्रत्यक्ष भी प्रमाण उपलब्ध है।
पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म शास्त्र के साथ साथ प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है।
बुद्ध प्रकाश प्रजापति की इस ज्ञान भरी पोस्ट को पढ़कर समझकर ज्ञान बढ़ा कर अन्य सबजन को भेजकर ज्ञानवर्धन करना कराना उचित सोच वाला कार्य है और आवश्यक प्रिंट सुधार करवाना उचित सोच कदम है।
सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम्।। ॐ ।।
बाबासाहेब को नेहरू ने नहीं लाया था संविधान सभा में
Ye aanevale samay mecongress me janeki taiyari kar rahaa he
सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम सनातन धर्म संस्कार।
धर्मगुरु /पुरोहित/ पन्थगुरु/ अध्यापक/ चिकित्सक/धर्माचार्य/ कविजन/ विप्रजन/ शिक्षक ( ब्रह्मण ) का सदाचार आचरण व्यवहार कैसा होना चाहिए ? जाने !
इस पोस्ट के विषय ज्ञान अनुसार उचित विचार संस्कार नियम पालन करते हुए अन्य सबजन को मानवीय मूल्य वाले संस्कार प्राप्त करवाते हुए अपराध मुक्त वातावरण बनवाते रहें।
अध्यापक/ धर्माचार्य को -
1- सत्यवादी आचरण व्यवहार वाला होना चाहिए ,
2 - शुद्ध चित आचरण रखने वाला होना चाहिए,
3 - सत्यवृतपरायण आचरण वाला होना चाहिए,
4 - नित्य सनातन दक्षधर्म में रत होना चाहिए,
5 - शान्त चित वाला बने रहने वाला होना चाहिए,
6 - व्यर्थ अनर्गल बातो से रहित होना चाहिए,
7- द्रोहरहित स्वभाव वाला होना चाहिए,
8 - चोरकर्म से रहित सही आदत वाला होना चाहिए,
9 - प्राणियो के हित में लगे रहने वाला होना चाहिए,
10 - अपनी स्त्री भार्या में रत रहने वाला होना चाहिए,
11- सविनय नर्म स्वभाव वाला होना चाहिए,
12- न्याय प्रिय सुरक्षक स्वभाव होना चाहिए,
13 - अकर्कश सरल स्वभाव वाला होना चाहिए,
14 - माता पिता का आज्ञाकारी होना चाहिए,
15 - गुरुओ का सम्मान करने वाला होना चाहिए,
16 - वृद्धो पर श्रद्धा रखने वाला होना चाहिए ,
17- श्रद्घालु स्वभाव वाला होना चाहिए,
18ङ- वेदमंत्र दक्षधर्म शास्त्ररज्ञाता होना चाहिए,
19 - वैदिक धर्म संस्कार गुण क्रियावान होना चाहिए और
20- भिक्षा दान दक्षिणा वेतन से जीवन यावन करने वाला होना चाहिए।
इन सभी बीस (20) मानवीय गुणों को विप्रजन/अध्यापक/ गुरूजन/ पुरोहित/ चिकित्सक /पन्थगुरु/अभिनयी/द्विजोत्तम/शिक्षक (ब्रह्मण) को अपनाकर जीना चाहिए ताकि इन्ही गुण स्वभाव वाले शिक्षको को देखकर इनसे प्रेरित होकर अन्य द्विजनों ( स्त्री-पुरुषो ) को आचरण व्यवहार निर्माण कर जीने में लाभ मिलता रहना चाहिए।
पौराणिक वैदिक सतयुग संस्कृत भाषा श्लोक विधिनियम -
ॐ सत्यवाक् शुद्धचेता यः सत्यव्रतपरायणः । नित्यं धर्मरतः शान्तः स भिन्नलापवर्जितः।। अद्रोहोऽस्तेयकर्मा च सर्वप्राणिहिते रतः। स्वस्त्रीरतः सविनया नयचक्षुरकर्कशः ।। पितृमातृवचः कर्ता गुरूवृद्धपराष्टि ( ति) कः । श्रध्दालुर्वेदशास्त्रज्ञः क्रियावान्भैक्ष्य जीवकः ।।
जय विश्व राष्ट्र सनातन प्राजापत्य दक्ष धर्म। जय वर्णाश्रम संस्कार प्रबन्धन। श्रेष्ठतम जीवन प्रबंधन । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम।। ॐ ।।
विश्वराष्ट्र मित्रो! पौराणिक वैदिक पुरोहित संस्कार शिक्षको लिए बताए गए गुण नियम की तरह सभी साम्प्रदायिक पन्थी गुरुओ के बने नियमो को पोस्ट करना चाहिए, ताकि सबजन के विचार को तुलनात्मक रूप से विश्लेषण कर अध्ययन करना चाहिए और एक समान अवसर देने वाले मानवीय गुण क्रियावान कर संस्कार सुधार किये जाने चाहिएं ।
साम्प्रदायिक गुरुओ की निजी पन्थी सोच ने पौराणिक वैदिक सनातन प्रजापत्य दक्ष धर्म संस्कार विधि-विधान नियमों में क्या सुधार और क्या क्या बिगाङ किया है ? वह सबजन जानकर समझकर सुधार करना चाहिए सकें और अपने पूर्वजो बहुदेवो ऋषिओ की पौराणिक वैदिक श्रेष्ठ सनातन धर्म संस्कार विधि पहचान कर श्रेष्ठ जीवन निर्वाह करना चाहिए।
जय विश्व राष्ट्र दक्षराज वर्णाश्रम सनातन धर्म संस्कार प्रबन्धन। श्रेष्ठतम जीवन प्रबंधन। जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम।। ॐ ।।
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सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार l
राष्ट्र राज धर्म= जनसेवक/दासजन × [( ब्राह्म धर्म + क्षात्र धर्म + शौद्र धर्म + वैश्व धर्म ) + ( ब्रह्मचर्य धर्म + गृहस्थ धर्म+ वानप्रस्थ धर्म + यतिआश्रम धर्म )] ।
ब्राह्म धर्म ( शिक्षण ज्ञान कर्म ) = ब्रह्म वर्ण कर्म ( अध्यापन कर्म ) =
संस्कृत श्लोक विधिनियम -
ॐ यथा यथा हि पुरूष: शास्त्रं समधिगच्छति । तथा तथा विजानाति विज्ञानं चास्य रोचते। शास्त्रस्य पारं गत्वा तु भूयो भूयस्तदभ्यसेत् । तच्छास्त्रं शबलं कुर्यान्न चाधीत्य त्यजेत्पुन: ।। पौराणिक वैदिक ऋषि स्मृति धर्मशास्त्र।।
भावार्थ- मनुष्य जैसे जैसे विशेष रूप से ज्ञान विज्ञान शास्त्रो का अच्छी प्रकार से अध्ययन अभ्यास करता है वैसे वैसे वह विषयक ज्ञान विज्ञान जानकर विज्ञान सम्मत विश्लेषण करता है। अत: अपने शास्त्रो का पारगामी होकर बार-बार अभ्यास करना चाहिए और ज्ञानवर्धन करते हुए फिर से ज्ञान प्राप्त करना चाहिए छोड़ना नहीं चाहिए।
पंचजन्य चतुरवर्णिय चतुर आश्रमिय चतुर कर्मिय समाज प्रबंधन।
जयविश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम्। जय अखण्ड भारत । जय वसुधैव कुटुम्बकम ।। ॐ ।।
शूद्रं, क्षुद्र, अशूद्र तीनो वैदिक शब्दों के अलग अलग अर्थ हैं लेकिन लेखक प्रकाशक सही से अंतर को समझकर नहीं लिखते हैं इसलिए सामन्य जन भी नहीं समझते हैं।
ये रतनलाल जी भी होउ सकत नाहीं के सिद्धांत वाले इतिहास कार हैं। रतनलाल को यह मालूम नहीं है कि सभी सवर्ण मनुवादी नहीं होते।जो मनुवादी व्यवस्था का पोषक है वहीं मनुवादी है। मान्यवर ने कभी भी नहीं कहा कि सभी सवर्ण मनुवादी नहीं होते।ये रतनलाल इतिहास रटकर अपने को इतिहास कार बताता है। बाबा साहब की आलोचना करता है।ये कांग्रेस का चमचा है।
चार वर्ण कर्म विभाग जीविकोपार्जन प्रबन्धन विषय।
चार वर्ण = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम।
जब एक मानव जन है तो वह मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य है। हरएक महिला स्त्री मुख समान ब्रह्माणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैश्याणी हैं।
लेकिन जब पांचजन हैं तो एक अध्यापक ब्राह्मण/ब्राह्मणी है, दूसरे सुरक्षक चौकीदार क्षत्रिय/क्षत्राणी है, तीसरे उत्पादक निर्माता शूद्राण/ शूद्राणी है और चौथे वितरक वैश्य/ वैश्याणी हैं तथा पांचवे जन चारवर्णो कर्मो विभागो में वेतनमान पर कार्यरत दासजन जनसेवक नौकरजन सेवकजन हैं। यही पंचजन्य चतुरवर्णिय व्यवस्था जीविकोपार्जन प्रबन्धन विषय है।
Ratanlal sir krwi bat krte esi liye chm cho ko bura lgata hai
विधानसभा और लोकसभा की आरक्षित क्षेत्र मे चक्रानुक्रम आरक्षण हो तभी राजनेतिक जमींदारी खत्म होगी और अनुसूचित नेतृत्व को व्यापक विकास होगा।
शिक्षित विद्वान मानव जनों! जन्म से हरएक मानव जन दस इन्द्रियां समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन को जानना चाहिए कि वे जन्म से मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । इसलिए हरएक मानव जन खुद को ब्रह्मण, क्षत्रिय, शूद्रण और वैश्य में कोई भी वर्ण वाला मानकर बताकर नामधारी वर्ण वाला मानकर बताकर जी सकते हैं। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है।
हरएक महिला मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी हैं। इन सबको भी समान अवसर उपलब्ध है।
चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म विभाग होता है। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए।
कर्मधारी वर्ण वाला कैसे? जानें -
चार कर्म शिक्षण, सुरक्षण, उत्पादण और वितरण। चारवर्ण कर्म में ब्रह्म वर्ण ( ज्ञान शिक्षण वैद्यन संगीत कर्म करने वाले जैसे कि शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत कर्मी जन हैं वे कर्मधारी ब्रह्मण अध्यापक होते हैं ,
क्षत्रम वर्ण में सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड कर्मी जन क्षत्रिय होते हैं,
शूद्रम वर्ण में तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार कर्मिक जन शूद्रण होते हैं और
वैशम वर्ण में वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर जन वैश्य होते हैं। महिला भी अध्यापिका ही ब्राह्मणी, सुरक्षिका ही क्षत्राणी, उत्पादिका निर्माता ही शूद्राणी और वितरिका ट्रांसपोर्टर व्यापारी ही वैश्याणी होती हैं। यह समान अवसर महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा ने सबजन को उपलब्ध कराया है। हरएक मानव जन को खुद की सोच सुधार करनी चाहिए।
चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरत हैं। प्रत्यक्ष भी प्रमाण उपलब्ध है।
पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म शास्त्र के साथ साथ प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है।
बुद्ध प्रकाश प्रजापति की इस ज्ञान भरी पोस्ट को पढ़कर समझकर ज्ञान बढ़ा कर अन्य सबजन को भेजकर ज्ञानवर्धन करना कराना उचित सोच वाला कार्य है और आवश्यक प्रिंट सुधार करवाना उचित सोच कदम है।
सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम्।। ॐ ।।
सरकारी नौकरियाँ दलितों के पास क्यों नहीं होती ? क्या दलित वर्ग भारत का नागरिक नहीं है ? क्या इनका कोई हिस्सा नहीं है ?
तथा दलित वर्ग को नौकरियों का आरक्षण यूं ही नहीं मिला है, बहुत संघर्ष किया गया है इसके लिए, तथा उन वक़्तों में दुनिया के हालात भी काम आए थे। दलितों को थोड़ा बहुत हक़ हिस्सा नहीं दिया जाता, तो या तो इंडिया आज़ाद नहीं होता, या फिर कई टुकड़ों में बंटता।
आप तो यह बताओ कि जब आज़ादी के बाद खेती ज़मीन अलॉट की जा रही थी, तो तत्कालीन कांग्रेस सरकारों ने एससी वर्ग की चार करोड़ बीघा ज़मीन क्यों लूट ली ?
16 पर्सेंट एससी वर्ग के पास सिर्फ़ 8 पर्सेंट खेती ज़मीन क्यों है ?
तथा, आज़ादी के बाद किस कांग्रेस सरकार ने रिजर्वेशन का कोटा पूरा भरा है ?
इंडिया में 72 करोड़ लोगों के पास जीडीपी कि एक पर्सेंट हिस्सा भी नहीं है, इसकी जिम्मेदार क्या अमेरिका की सरकार है ?
बाक़ी, मान्यवर कांशीराम को आप ग़लत क्वोट ना करें। जो आप बोल रहे हैं, मान्यवर कांशीराम ने ऐसख कभी भी नहीं कहा है, बल्कि उन्होंने तो बहुजन कर्मचारियों को इकट्ठा करके बामसेफ़ बनाया था।
अगर अपनी तरक्की चाहते हो तो बार बार अपने को दलित कहना और समझना बंद करना होगा।
शिक्षित विद्वान द्विजनो ( स्त्री-पुरुषो ) !
जब एसी ,एसटी और बीसी कहना लिखना हो तो इसके साथ इडब्लुएस और जनरल कहना बोलना लिखना चाहिए। ये शब्द आजकल के संविधान लोकतंत्र युग काल आरक्षण अनुसार कुछ समय के लिए निर्मित हैं।
लेकिन
जब पौराणिक वैदिक शब्द ब्रह्मण को बोलना लिखना प्रयोग करना हो तो इसके साथ अन्य वैदिक शब्द जैसे कि राजन्य, क्षत्रिय, शूद्रण, वैश्य और दास शब्द चयन कर प्रयोग करने चाहिए । ये वैदिक शब्द सदा शाश्वत रहने वाले हैं। पौराणिक वैदिक सतयुग सनातन वर्णाश्रम प्रबन्धन जीविकोपार्जन प्रबन्धन विषय विधि-विधान नियम अनुसार हैं।
एक समय काल के शब्द एक स्थान पर प्रयोग करने चाहिए । शिक्षित मनुष्यों को व्यर्थ अन्धविरोध ईर्ष्याग्रस्त सोच छोड़कर निष्पक्ष सोच रखकर पोस्ट पढ़कर समझकर ज्ञान प्राप्त शब्दों का सही चयन वार्तालाप बातचीत के लिए प्रयोग करना चाहिए।
नाम ज्ञाति वंश/ जाति वर्ण पर अनर्गल प्रलाप करना अज्ञानतापूर्ण सोच रखकर समय खराब कर अपना नुकसान करना होता है।
दिमाग सदुपयोग कर निष्पक्ष सोच अपनाकर व्यर्थ अंधविरोध ईर्ष्याग्रस्त सोच छोड़कर सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए।
शिक्षित विद्वान मानव जनों! जन्म से हरएक मानव जन दस इन्द्रियां समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन को जानना चाहिए कि वे जन्म से मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । इसलिए हरएक मानव जन खुद को ब्रह्मण, क्षत्रिय, शूद्रण और वैश्य में कोई भी वर्ण वाला मानकर बताकर नामधारी वर्ण वाला मानकर बताकर जी सकते हैं। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है।
हरएक महिला मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी हैं। इन सबको भी समान अवसर उपलब्ध है।
चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म विभाग होता है। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए।
कर्मधारी वर्ण वाला कैसे? जानें -
चार कर्म शिक्षण, सुरक्षण, उत्पादण और वितरण। चारवर्ण कर्म में ब्रह्म वर्ण ( ज्ञान शिक्षण वैद्यन संगीत कर्म करने वाले जैसे कि शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत कर्मी जन हैं वे कर्मधारी ब्रह्मण अध्यापक होते हैं ,
क्षत्रम वर्ण में सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड कर्मी जन क्षत्रिय होते हैं,
शूद्रम वर्ण में तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार कर्मिक जन शूद्रण होते हैं और
वैशम वर्ण में वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर जन वैश्य होते हैं। महिला भी अध्यापिका ही ब्राह्मणी, सुरक्षिका ही क्षत्राणी, उत्पादिका निर्माता ही शूद्राणी और वितरिका ट्रांसपोर्टर व्यापारी ही वैश्याणी होती हैं। यह समान अवसर महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा ने सबजन को उपलब्ध कराया है। हरएक मानव जन को खुद की सोच सुधार करनी चाहिए।
चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरत हैं। प्रत्यक्ष भी प्रमाण उपलब्ध है।
पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म शास्त्र के साथ साथ प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है।
बुद्ध प्रकाश प्रजापति की इस ज्ञान भरी पोस्ट को पढ़कर समझकर ज्ञान बढ़ा कर अन्य सबजन को भेजकर ज्ञानवर्धन करना कराना उचित सोच वाला कार्य है और आवश्यक प्रिंट सुधार करवाना उचित सोच कदम है।
चार आयु आश्रम परिवार कल्याण के लिए निर्मित हैं जैसे कि ब्रह्मचर्य, ग्रहस्थ, वानप्रस्थ और यतिआश्रम।
सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम्।। ॐ ।।
शिक्षित विद्वान मानव जनों! जन्म से हरएक मानव जन दस इन्द्रियां समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन को जानना चाहिए कि वे जन्म से मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । इसलिए हरएक मानव जन खुद को ब्रह्मण, क्षत्रिय, शूद्रण और वैश्य में कोई भी वर्ण वाला मानकर बताकर नामधारी वर्ण वाला मानकर बताकर जी सकते हैं। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है।
हरएक महिला मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी हैं। इन सबको भी समान अवसर उपलब्ध है।
चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म विभाग होता है। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए।
कर्मधारी वर्ण वाला कैसे? जानें -
चार कर्म शिक्षण, सुरक्षण, उत्पादण और वितरण। चारवर्ण कर्म में ब्रह्म वर्ण ( ज्ञान शिक्षण वैद्यन संगीत कर्म करने वाले जैसे कि शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत कर्मी जन हैं वे कर्मधारी ब्रह्मण अध्यापक होते हैं ,
क्षत्रम वर्ण में सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड कर्मी जन क्षत्रिय होते हैं,
शूद्रम वर्ण में तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार कर्मिक जन शूद्रण होते हैं और
वैशम वर्ण में वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर जन वैश्य होते हैं। महिला भी अध्यापिका ही ब्राह्मणी, सुरक्षिका ही क्षत्राणी, उत्पादिका निर्माता ही शूद्राणी और वितरिका ट्रांसपोर्टर व्यापारी ही वैश्याणी होती हैं। यह समान अवसर महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा ने सबजन को उपलब्ध कराया है। हरएक मानव जन को खुद की सोच सुधार करनी चाहिए।
चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरत हैं। प्रत्यक्ष भी प्रमाण उपलब्ध है।
पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म शास्त्र के साथ साथ प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है।
बुद्ध प्रकाश प्रजापति की इस ज्ञान भरी पोस्ट को पढ़कर समझकर ज्ञान बढ़ा कर अन्य सबजन को भेजकर ज्ञानवर्धन करना कराना उचित सोच वाला कार्य है और आवश्यक प्रिंट सुधार करवाना उचित सोच कदम है।
सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम्।। ॐ ।।
क्या मायावती की भ्रष्ट बुध्दि निजी हित राजनीतिक अकुशलता कि वजह से मान्यवर साहब का मिशन बर्बाद न हुआ होता तो मान्यवर साहब को दोषी मानते। आप मायावती को जो कहना है कहिए मान्यवर साहब को नहीं।
इसने एक भी शब्द sc st classification ke bare me nahi bola
Abi tak Sc st ke liye Jo Kuch hua Congress ne hi kya abi tho manuwadii jatiwadi rss bjp sab Kuch ktm kar Rahi h
Harijan ek derogatory remarks hai
Congres ke pracharaarak or pravakta ratanlaal
Patan lal bhai congress aur BJP aur SP ek hi hai...aap ki chaplusi sabko pata hai
Tum bar bar harijan Kyo bolted ho.tum chance ho
जय भीम,
चाहे जितने सविंधान नियम कानून बना लो, सत्ता पाने के लिए शतरंज के खेल का समझ होनी चाहिए, सत्ता शतरंज के खेल समझने से राजनीति समझ आती है
शिक्षित विद्वान मानव जनों! जन्म से हरएक मानव जन दस इन्द्रियां समान लेकर जन्म लेते हैं इसलिए जन्म से सबजन बराबर होते हैं। हरएक मानव जन को जानना चाहिए कि वे जन्म से मुख समान ब्रह्मण, बांह समान क्षत्रिय, पेटउदर समान शूद्रण और चरण समान वैश्य हैं । इसलिए हरएक मानव जन खुद को ब्रह्मण, क्षत्रिय, शूद्रण और वैश्य में कोई भी वर्ण वाला मानकर बताकर नामधारी वर्ण वाला मानकर बताकर जी सकते हैं। सबजन को समान अवसर उपलब्ध है।
हरएक महिला मुख समान ब्राह्मणी, बांह समान क्षत्राणी, पेट समान शूद्राणी और चरण समान वैशाणी हैं। इन सबको भी समान अवसर उपलब्ध है।
चरण पांव चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय वैशम वर्ण कर्म होता है। इसलिए चरण समान वैशम वर्ण कर्म विभाग होता है। यह अकाट्य सत्य सनातन शाश्वत ज्ञान प्राप्त कर अज्ञान मिटाई करना चाहिए।
कर्मधारी वर्ण वाला कैसे? जानें -
चार कर्म शिक्षण, सुरक्षण, उत्पादण और वितरण। चारवर्ण कर्म में ब्रह्म वर्ण ( ज्ञान शिक्षण वैद्यन संगीत कर्म करने वाले जैसे कि शिक्षण वैद्यन पुरोहित संगीत कर्मी जन हैं वे कर्मधारी ब्रह्मण अध्यापक होते हैं ,
क्षत्रम वर्ण में सुरक्षक चौकीदार न्यायाधीश गार्ड कर्मी जन क्षत्रिय होते हैं,
शूद्रम वर्ण में तपस्वी उत्पादक निर्माता उद्योगण शिल्पकार कर्मिक जन शूद्रण होते हैं और
वैशम वर्ण में वितरक वणिक व्यापारी ट्रांसपोर्टर जन वैश्य होते हैं। महिला भी अध्यापिका ही ब्राह्मणी, सुरक्षिका ही क्षत्राणी, उत्पादिका निर्माता ही शूद्राणी और वितरिका ट्रांसपोर्टर व्यापारी ही वैश्याणी होती हैं। यह समान अवसर महर्षि नारायण और महर्षि ब्रह्मा ने सबजन को उपलब्ध कराया है। हरएक मानव जन को खुद की सोच सुधार करनी चाहिए।
चतुरवर्ण में पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन चारो वर्ण कर्म विभाग में कार्यरत हैं। प्रत्यक्ष भी प्रमाण उपलब्ध है।
पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म शास्त्र के साथ साथ प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध है।
बुद्ध प्रकाश प्रजापति की इस ज्ञान भरी पोस्ट को पढ़कर समझकर ज्ञान बढ़ा कर अन्य सबजन को भेजकर ज्ञानवर्धन करना कराना उचित सोच वाला कार्य है और आवश्यक प्रिंट सुधार करवाना उचित सोच कदम है।
सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। जय विश्व राष्ट्र प्राजापत्य दक्षधर्म सनातनम् । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम्।। ॐ ।।
शिक्षित विद्वान द्विजनो ( स्त्री-पुरुषो ) !
जब एसी ,एसटी और बीसी कहना लिखना हो तो इसके साथ इडब्लुएस और जनरल कहना बोलना लिखना चाहिए। ये शब्द आजकल के संविधान लोकतंत्र युग काल आरक्षण अनुसार कुछ समय के लिए निर्मित हैं।
लेकिन
जब पौराणिक वैदिक शब्द ब्रह्मण को बोलना लिखना प्रयोग करना हो तो इसके साथ अन्य वैदिक शब्द जैसे कि राजन्य, क्षत्रिय, शूद्रण, वैश्य और दास शब्द चयन कर प्रयोग करने चाहिए । ये वैदिक शब्द सदा शाश्वत रहने वाले हैं। पौराणिक वैदिक सतयुग सनातन वर्णाश्रम प्रबन्धन जीविकोपार्जन प्रबन्धन विषय विधि-विधान नियम अनुसार हैं।
एक समय काल के शब्द एक स्थान पर प्रयोग करने चाहिए । शिक्षित मनुष्यों को व्यर्थ अन्धविरोध ईर्ष्याग्रस्त सोच छोड़कर निष्पक्ष सोच रखकर पोस्ट पढ़कर समझकर ज्ञान प्राप्त शब्दों का सही चयन वार्तालाप बातचीत के लिए प्रयोग करना चाहिए।
Main bhai Haryana se hun.
Pahle yah BSP ke log Congress ko harane ke liye BSP ko vote karte the.
Ab parliament aur state election mein sidha BJP ko vote Kiya hai.
Sabse jyada hamara bada Ghar is BSP ne kiya hai.
Mayawati Sabse badi agent hai RSS ki.
Main bhi 2009 Tak BSP ka andhbhakt tha.
Maine BSP ke state office mein sab kuchh dekha central office mein jakar sab kuchh dekha.
Pata chala yah to hamari aisi ki taisi ho rahi hai.
Munh ke bad mein kisi bhi party ka vote dalne ke liye nahin Gaya Hun.
Aaj BSP ke Jo log hai unko dekh kar mein hairan hun.😮
SC ST ke vargikarn ke bare me kyo nahi bo rahe hai bhai
सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम सनातन धर्म संस्कार।
धर्मगुरु /पुरोहित/ पन्थगुरु/ अध्यापक/ चिकित्सक/धर्माचार्य/ कविजन/ विप्रजन/ शिक्षक ( ब्रह्मण ) का सदाचार आचरण व्यवहार कैसा होना चाहिए ? जाने !
इस पोस्ट के विषय ज्ञान अनुसार उचित विचार संस्कार नियम पालन करते हुए अन्य सबजन को मानवीय मूल्य वाले संस्कार प्राप्त करवाते हुए अपराध मुक्त वातावरण बनवाते रहें।
अध्यापक/ धर्माचार्य को -
1- सत्यवादी आचरण व्यवहार वाला होना चाहिए ,
2 - शुद्ध चित आचरण रखने वाला होना चाहिए,
3 - सत्यवृतपरायण आचरण वाला होना चाहिए,
4 - नित्य सनातन दक्षधर्म में रत होना चाहिए,
5 - शान्त चित वाला बने रहने वाला होना चाहिए,
6 - व्यर्थ अनर्गल बातो से रहित होना चाहिए,
7- द्रोहरहित स्वभाव वाला होना चाहिए,
8 - चोरकर्म से रहित सही आदत वाला होना चाहिए,
9 - प्राणियो के हित में लगे रहने वाला होना चाहिए,
10 - अपनी स्त्री भार्या में रत रहने वाला होना चाहिए,
11- सविनय नर्म स्वभाव वाला होना चाहिए,
12- न्याय प्रिय सुरक्षक स्वभाव होना चाहिए,
13 - अकर्कश सरल स्वभाव वाला होना चाहिए,
14 - माता पिता का आज्ञाकारी होना चाहिए,
15 - गुरुओ का सम्मान करने वाला होना चाहिए,
16 - वृद्धो पर श्रद्धा रखने वाला होना चाहिए ,
17- श्रद्घालु स्वभाव वाला होना चाहिए,
18ङ- वेदमंत्र दक्षधर्म शास्त्ररज्ञाता होना चाहिए,
19 - वैदिक धर्म संस्कार गुण क्रियावान होना चाहिए और
20- भिक्षा दान दक्षिणा वेतन से जीवन यावन करने वाला होना चाहिए।
इन सभी बीस (20) मानवीय गुणों को विप्रजन/अध्यापक/ गुरूजन/ पुरोहित/ चिकित्सक /पन्थगुरु/अभिनयी/द्विजोत्तम/शिक्षक (ब्रह्मण) को अपनाकर जीना चाहिए ताकि इन्ही गुण स्वभाव वाले शिक्षको को देखकर इनसे प्रेरित होकर अन्य द्विजनों ( स्त्री-पुरुषो ) को आचरण व्यवहार निर्माण कर जीने में लाभ मिलता रहना चाहिए।
पौराणिक वैदिक सतयुग संस्कृत भाषा श्लोक विधिनियम -
ॐ सत्यवाक् शुद्धचेता यः सत्यव्रतपरायणः । नित्यं धर्मरतः शान्तः स भिन्नलापवर्जितः।। अद्रोहोऽस्तेयकर्मा च सर्वप्राणिहिते रतः। स्वस्त्रीरतः सविनया नयचक्षुरकर्कशः ।। पितृमातृवचः कर्ता गुरूवृद्धपराष्टि ( ति) कः । श्रध्दालुर्वेदशास्त्रज्ञः क्रियावान्भैक्ष्य जीवकः ।।
जय विश्व राष्ट्र सनातन प्राजापत्य दक्ष धर्म। जय वर्णाश्रम संस्कार प्रबन्धन। श्रेष्ठतम जीवन प्रबंधन । जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम।। ॐ ।।
विश्वराष्ट्र मित्रो! पौराणिक वैदिक पुरोहित संस्कार शिक्षको लिए बताए गए गुण नियम की तरह सभी साम्प्रदायिक पन्थी गुरुओ के बने नियमो को पोस्ट करना चाहिए, ताकि सबजन के विचार को तुलनात्मक रूप से विश्लेषण कर अध्ययन करना चाहिए और एक समान अवसर देने वाले मानवीय गुण क्रियावान कर संस्कार सुधार किये जाने चाहिएं ।
साम्प्रदायिक गुरुओ की निजी पन्थी सोच ने पौराणिक वैदिक सनातन प्रजापत्य दक्ष धर्म संस्कार विधि-विधान नियमों में क्या सुधार और क्या क्या बिगाङ किया है ? वह सबजन जानकर समझकर सुधार करना चाहिए सकें और अपने पूर्वजो बहुदेवो ऋषिओ की पौराणिक वैदिक श्रेष्ठ सनातन धर्म संस्कार विधि पहचान कर श्रेष्ठ जीवन निर्वाह करना चाहिए।
जय विश्व राष्ट्र दक्षराज वर्णाश्रम सनातन धर्म संस्कार प्रबन्धन। श्रेष्ठतम जीवन प्रबंधन। जय अखण्ड भारत। जय वसुधैव कुटुम्बकम।। ॐ ।।
शूद्रं, क्षुद्र, अशूद्र तीनो वैदिक शब्दों के अलग अलग अर्थ हैं लेकिन लेखक प्रकाशक सही से अंतर को समझकर नहीं लिखते हैं इसलिए सामन्य जन भी नहीं समझते हैं।