मन को मारना नही मन को समझाना है। जैसे बालक को उसकी गलती पर समझाया जाता है जो बालक समझ जाता है वह अपने जीवन में फिर कभी गलती नही दोहराता। ममन मरता नहीं लीन हो जाता है सत में एकाकार और एक दिन वही उसका रुप बन जाता है मन को दबाना भी नहीं तो समय पाकर स्पिरिंग की तरह उछलेगा मन का जो काम है अनेक इच्छाओ में विचरण करना बस उसे उसका ही काम देना है मोक्ष की इच्छा।
❤❤ गीता में श्री कृष्ण भगवान कहते हैं कि तुम मेरे शरण में आओ तुम भक्ति करो मैं तुम्हारी सारे बंधन काट दूंगा और जो भी मेरे धाम में आता है उन्हें दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता है
@@AaradhyaJivan शरीर को किसी तत्व की जरूरत पड़ती है जल और पृथ्वी स्थूल तत्व है सूक्ष्म शरीर को इनकी जरूरत नहींहै आकाश वायु आदि सूक्ष्म तत्व है सूक्ष्म शरीर को इनकी जरूरतपड़ती है हमारे शरीर में एक जीवात्मा ही चेतन है बाकी सब कुछ जड़ है जीवात्मा ही इन्हें चलती है जिस तरह जड़ गाड़ी पेट्रोल आदि से चल जाती है और टीवी आदि मोटर आदि बिजली से जड़ वास्तुचल जाती है चलाएं मान हो जाती है हमारे शरीर में जीवात्मा ही मन इंद्रियों बुद्धि को चलती है इनके बिना कुछ भी नहीं होता जीव आत्मा शरीर से निकल जाए तो शरीर मिट्ट है अकेला मन किसका शरीर l लगा और किसकी ऊर्जा से चलेग अकेले मन को सूक्ष्म तत्व के शरीर की जरूरत है और जीव आत्मा की ऊर्जा की जरूरत है
@@AaradhyaJivan आपने कहा मान ही सूक्ष्म शरीरहै फेक वीडियो सूक्ष्म मन को सूक्ष्म तत्व चाहिए जो आकाश बाजू आदि है सूक्ष्म शरीर को एनर्जी चाहिए जो जीवात्मा की ह जि स तरह जड़ ट गाड़ी को पैट्रोल आदि से चलाया जा सकता है इस तरह जड़ मन इंद्रिय बुद्धि को जीवात्मा चलताहै बिना सूक्ष्म तत्वों के शरीर नहीं बनता है और बिना जीवात्मा की एनर्जी से मन क्या है कुछ भी नहीं है सूक्ष्म मन को सूक्ष्म तत्वों के शरीर की जरूरत है और जीवात्मा की एलर्जी कीजरूरत है
प्राप्त करने वाली वस्तु या विषय बिछड़ने वाली होती है अपने आप को प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है यह तो खुद में प्राप्तव्य है इसे सिर्फ ध्यान साधना में बैठकर निरंतर अभ्यास के द्वारा देखने की आवश्यकता है
सतनाम साहेब मैं आपसे बोलने की आज्ञा चाहता हूँ दया करना साहेब मैं आपसे पूछना चाहता हूँ जीव का स्वरूप जीव को दिखेगा कैसे और दिख भी जाय तो उसे प्राप्त कैसे करेगा तुम मुझे अपने निज विवेक से दिखायें
बहुत सुंदर प्रश्न क्या आप अपनी आंख को देख सकते हैं यदि आंख को देख सकते हैं तो स्वरूप को भी देख सकते हैं। यदि आंख को नहीं देख सकते तो स्वरूप को भी नहीं देख सकते। जरा विचार करिए आंख से देखने वाला कौन है कान से सुनने वाला कौन है मन बुद्धि से विषय वस्तुओं को समझने की कला किसमें है। जो आप अभी इस संदेश को पढ़ रहे हो यही तो आप हो। अब आप सोचोगे कि मेरा स्वरूप क्या है भाई आपका स्वरूप चेतना है। इसे आप भौतिक दृष्टि से तो देख नहीं पा रहे हैं तो इसे मन इंद्रियों से भी देखना संभव नहीं है। आप हो इससे बड़ा प्रमाण और क्या चाहिए आप अभी साक्षात हैं यही तो आपका स्वरूप है। जब आप थोड़ी साधना के विषय को समझ जाएंगे और प्रातः ध्यान साधना में बैठना प्रारंभ करेंगे तो इन प्रश्नों का उत्तर मिलन प्रारंभ हो जाएगा आप शुद्ध चैतन्य हैं और कुछ नहीं। बाहरी प्राकृतिक वासनाओं में हम स्वयं को भूल चुके हैं इसलिए मन इंद्रियों के द्वारा अपने को कुछ और मान बैठे हैं । जो दिखता है वह होता नहीं और जो होता है वह दिखता नहीं यह अकाट्य सत्य है। 🙏🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏
जैसे आंख का भौतिक रूप है ऐसे ही चेतना का अदृश्य रूप ज्ञान स्वरूप है इसे देखने का अर्थ है आभास करना जो की स्वयं में है अब इसे जो ध्यान साधना करता है उसके समझ में आ जाती है और जो ध्यान साधना नहीं करता उसे ध्यान साधना करने की आवश्यकता होती है कोई कक्षा एक में बैठकर कक्षा 10 की बातें पूछे तो कक्षा 10 वाले को कहना मजबूरी हो जाता है कि भैया पहले कक्षा एक को पढ़ लीजिए तत्पश्चात दो तीन चार पांच छे सात आठ नो तथा अंत में दसवीं कक्षा की बातें समझ में आएगी। अतः ध्यान में बैठने के बाद ही प्रश्नों का समाधान हो पता है🌺🙏🌺
Saheb bandagi 🚩🚩🚩 SATNAAM 🚩🚩🚩
साहेब बंदगी साहेब
🌹🌹🙏🙏🙏🌹🌹
सत्य गुरू साहेब
🙏
Apka satyagyan bahut acha laga Jay Gurudev
Khub samjh me aai
Acha h
सतलोक में भी जीवन का बंधन है।
Sat saheb g
Satnam saheb bandagi
👌👌👌👌👌
परमात्मा कबीर साहेब भक्त की सभी इच्छाओं को पूर्ण करते हैं जो आवश्यक है
बिन गुरु ज्ञान किसे ना पाया❤
NYC🙏
Saheb bandagi sahib ji🙏
साहेब बंदगी साहेब 🙏🙏🙏🙏
Thank you saheb bandagi Saheb ❤🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🏳️🏳️🏳️🏳️👌👌👌👌👌😊😊😊😊💐💐💐💐
Nice
जै हो प्रभु
🙏🌺 साहेब को सप्रेम बंदगी 🌺🙏
Sahib Bandgi Satnaam ji ki Jay ho
🌺🙏Saheb ko Koti koti Bandagi🙏🌺
Saheb bandagi 🙏
Very true ,
मन को मारना नही मन को समझाना है। जैसे बालक को उसकी गलती पर समझाया जाता है जो बालक समझ जाता है वह अपने जीवन में फिर कभी गलती नही दोहराता। ममन मरता नहीं लीन हो जाता है सत में एकाकार और एक दिन वही उसका रुप बन जाता है मन को दबाना भी नहीं तो समय पाकर स्पिरिंग की तरह उछलेगा मन का जो काम है अनेक इच्छाओ में विचरण करना बस उसे उसका ही काम देना है मोक्ष की इच्छा।
🙏🙏
Sat saheb kabir ki jay alah kabir
🙏🌺 साहेब को सप्रेम बंदगी 🌺🙏
साहेब बंदगी 🙏
🙏🌺 साहेब को सप्रेम बंदगी 🌺🙏
Namo buddhay Koti Koti Pranam Kabir Das Ji ko bahut Sundar bahut Achcha
🙏
🌺🙏 Namo budhhay 🙏🌺
Enlightening
कोटि कोटि नमन गुरुदेवजी 🙏
🌺🙏🌺 सप्रेम बंदगी 🌺🙏🌺
Very beautiful ji
🙏🌺🙏jai sadguru dev ki
Satnam, saheb bandagi saheb 🌷🌷😁👈🙏🙏
🌺🙏 साहेब को सप्रेम बंदगी🙏🌺
👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻
🙏🌺🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏🌺🙏
Aapne batai moksh ki jankari bahut aachhi hay dilko zakazor karnewali sabit hui hay dhanywad
समझने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद🙏🌺🙏
Jay sadgurudev..❤....Kabir hi parmatama hai ..❤
🌺🙏Saheb ko Koti koti Bandagi🙏🌺
मुझे मोक्ष नही चाइए क्योंकि मुझे जन्म जन्म श्रीराम की सेवा करनी anath काल तक
Jay sri ram
Jay Sri Ram🌺🙏🌺
Samja
साहेब जी आप का ज्ञान सुनकर धन्य हो गया आप को कोटी कोटी धन्यवाद साहेब बंदगी गुरु
🌺🙏 saheb Bandagi saheb🙏🌺
Atma aur jivatma Ko janne ke liye padhe तत्व ज्ञान सार भेद
❤❤ गीता में श्री कृष्ण भगवान कहते हैं कि तुम मेरे शरण में आओ तुम भक्ति करो मैं तुम्हारी सारे बंधन काट दूंगा और जो भी मेरे धाम में आता है उन्हें दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता है
Lakha n I have a
Kal ke log me jate hen aur Kabeer ji ke Bhakta Jo satguru se mantra liya ho vo satlok jata hai.🎉.
एक इच्छात्याग ౹ हाचि खरा याग ౹
नुरे द्वेषराग ౹ लाभे मुक्ति ॥ १ ॥
धर्माचा या सार ౹ सेवा त्याग प्रीत ౹
करी आत्मसात ౹ शीघ्र जीवा ॥ २ ॥
इच्छेचे बंधन ౹ राही जन्मोजन्मी ౹
नच मुक्तिधामी ౹ जाई जीव ॥ ३ ॥
साईपदरज म्हणे ౹ शरीर नश्वर ౹
भेटवी ईश्वर ౹ सेवेद्वारे ॥ ४ ॥
सूक्ष्म शरीर कैसे बनता है
मन ही सूक्ष्म शरीर है।
@@AaradhyaJivan शरीर को किसी तत्व की जरूरत पड़ती है जल और पृथ्वी स्थूल तत्व है सूक्ष्म शरीर को इनकी जरूरत नहींहै
आकाश वायु आदि सूक्ष्म तत्व है सूक्ष्म शरीर को इनकी जरूरतपड़ती है
हमारे शरीर में एक जीवात्मा ही चेतन है बाकी सब कुछ जड़ है जीवात्मा ही इन्हें चलती है
जिस तरह जड़ गाड़ी पेट्रोल आदि से चल जाती है और टीवी आदि मोटर आदि बिजली से जड़ वास्तुचल जाती है चलाएं मान हो जाती है
हमारे शरीर में जीवात्मा ही मन इंद्रियों बुद्धि को चलती है इनके बिना कुछ भी नहीं होता जीव आत्मा शरीर से निकल जाए तो शरीर मिट्ट है
अकेला मन किसका शरीर l लगा और किसकी ऊर्जा से चलेग अकेले मन को सूक्ष्म तत्व के शरीर की जरूरत है और जीव आत्मा की ऊर्जा की जरूरत है
@@AaradhyaJivan आपने कहा मान ही सूक्ष्म शरीरहै फेक वीडियो सूक्ष्म मन को सूक्ष्म तत्व चाहिए जो आकाश बाजू आदि है सूक्ष्म शरीर को एनर्जी चाहिए जो जीवात्मा की ह
जि
स तरह जड़ ट गाड़ी को पैट्रोल आदि से चलाया जा सकता है इस तरह जड़ मन इंद्रिय बुद्धि को जीवात्मा चलताहै बिना सूक्ष्म तत्वों के शरीर नहीं बनता है और बिना जीवात्मा की एनर्जी से मन क्या है कुछ भी नहीं है
सूक्ष्म मन को सूक्ष्म तत्वों के शरीर की जरूरत है और जीवात्मा की एलर्जी कीजरूरत है
Jai bhim army ,parkirtik me lopat ho jata hai,jai budhay jai gurunamak
ताकि मैं भी अपने स्वरूप को प्राप्त कलूँ
प्राप्त करने वाली वस्तु या विषय बिछड़ने वाली होती है अपने आप को प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है यह तो खुद में प्राप्तव्य है इसे सिर्फ ध्यान साधना में बैठकर निरंतर अभ्यास के द्वारा देखने की आवश्यकता है
सतनाम साहेब मैं आपसे बोलने की आज्ञा चाहता हूँ दया करना साहेब मैं आपसे पूछना चाहता हूँ जीव का स्वरूप जीव को दिखेगा कैसे और दिख भी जाय तो उसे प्राप्त कैसे करेगा तुम मुझे अपने निज विवेक से दिखायें
बहुत सुंदर प्रश्न
क्या आप अपनी आंख को देख सकते हैं यदि आंख को देख सकते हैं तो स्वरूप को भी देख सकते हैं। यदि आंख को नहीं देख सकते तो स्वरूप को भी नहीं देख सकते।
जरा विचार करिए आंख से देखने वाला कौन है कान से सुनने वाला कौन है मन बुद्धि से विषय वस्तुओं को समझने की कला किसमें है। जो आप अभी इस संदेश को पढ़ रहे हो यही तो आप हो।
अब आप सोचोगे कि मेरा स्वरूप क्या है भाई आपका स्वरूप चेतना है। इसे आप भौतिक दृष्टि से तो देख नहीं पा रहे हैं तो इसे मन इंद्रियों से भी देखना संभव नहीं है। आप हो इससे बड़ा प्रमाण और क्या चाहिए आप अभी साक्षात हैं यही तो आपका स्वरूप है।
जब आप थोड़ी साधना के विषय को समझ जाएंगे और प्रातः ध्यान साधना में बैठना प्रारंभ करेंगे तो इन प्रश्नों का उत्तर मिलन प्रारंभ हो जाएगा आप शुद्ध चैतन्य हैं और कुछ नहीं। बाहरी प्राकृतिक वासनाओं में हम स्वयं को भूल चुके हैं इसलिए मन इंद्रियों के द्वारा अपने को कुछ और मान बैठे हैं ।
जो दिखता है वह होता नहीं और जो होता है वह दिखता नहीं यह अकाट्य सत्य है।
🙏🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏
साहेब जी आखं का रूप है वो दिख जायेगा लेकिन स्वरूप का रूप नहीं है वो कैसे दिखेगा
और हमारे साहेब ने कहा आँख माया है और जो दिखा रही है वो भी माया है
जैसे आंख का भौतिक रूप है ऐसे ही चेतना का अदृश्य रूप ज्ञान स्वरूप है इसे देखने का अर्थ है आभास करना जो की स्वयं में है अब इसे जो ध्यान साधना करता है उसके समझ में आ जाती है और जो ध्यान साधना नहीं करता उसे ध्यान साधना करने की आवश्यकता होती है कोई कक्षा एक में बैठकर कक्षा 10 की बातें पूछे तो कक्षा 10 वाले को कहना मजबूरी हो जाता है कि भैया पहले कक्षा एक को पढ़ लीजिए तत्पश्चात दो तीन चार पांच छे सात आठ नो तथा अंत में दसवीं कक्षा की बातें समझ में आएगी।
अतः ध्यान में बैठने के बाद ही प्रश्नों का समाधान हो पता है🌺🙏🌺
साहेब जी एक और बात बता दीजिये दया करके स्वरूप कहते किस को हैं
Saheb Tum Pahele Jano Fir Gyan Diya Karo
Bakwas
धन्यवादम्🌺🙏🌺
Saheb bandagi saheb
Saheb bandagi Saheb Ji 🌹🌹🙏🙏