आदरणीय श्री रतन सिंह जी आपको और आपकी पूरी टीम को जय माता जी की हुकम 🙏🙏🙏 आपकी जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है। इसके लिए आपको कोटि कोटि वंदन। आप की प्रत्येक विडियो समाज और संस्कृति से ओत प्रोत है जो की देखने योग्य है। आपसे एक आग्रह है की इस बार नागाणा ठाकुर साहेब राजश्री श्री बख्तावर सिंह जी जोधा का इंटरव्यू भी आप ले। वे इतिहास की बहुत अच्छी जानकारी रखते है। ताकि हमको नागाणा ठिकाणे के बारे में भी जानकारी मिले। ये पूर्व में सरपंच रहे है और उनके पिता जी भी सरपंच रहे है। 🙏🙏🙏
= Jai Mata , naganarai , Nagnechi Maa ji Jai ho. ! Shandar , bhavy , darshaniy maa ka Mandir ! Lot of Congratulations to Mandir Trust & Trusties for good managements. Thanks.
देवी आवड़ नागणेची माता का सम्पूर्ण इतिहास श्री आवड़ माता का अपरनाम श्रीनागणेचियां माता का इतिहास, मान्यताएं व परम्परा :- लेखक आढ़ा) डॉ नरेन्द्र सिंह आढ़ा (नरसा प्रधानाचार्य राउमावि बिकरनी सिंध के नानणगढ प्रवास के दौरान श्री आवडादि शक्तियां एक दिन हाकरा दरियाव (नदी) पर स्नान कर रहे थे। तभी नानणगढ के शासक अदन (ऊमर) सूमरा के पुत्र के नूरन के मित्र लूंचीया नाई ने इनकों स्नान करते हुए छिप कर देख लिया और उसने इनके कपड़ों को अपनी छडी से छू. दिया था। जब आवाडाधी बहनों संग स्नान करके बाहर आयी तो श्री आवडजी ने देखा कि वहां किसी पुरुष के पैरों के निशान पडे हुए थे। इस पर उन्होंने अपनी बहिनों को कहा कि उस पुरुष ने अपने कपड़ों को अपवित्र कर दिया हैं, अब ये कपडें हम पहन नहीं सकते हैं, इस जंगल में कपडें कहां से लाये जाये ? तब श्री आवडजी ने अपनी दैविक शक्ति से सभी बहिनों को काली नागिनों का रुप धारण करके झोपडे की ओर चलने का आदेश दिया। उधर लूंचीया नाई ने बादशाह के लडके नूरन के पास जाकर इनके अपूर्व रुप सौन्दर्य की जानकारी दे दी। इस पर वे दोनों घोडे पर सवार होकर हाकरा नदी पर आ गये। लेकिन वहां इन्हें मामडियां चारण की सातों पुत्रियां नहीं मिलती हैं। उन्होंने देखा कि सात नागिन जो यहां से मामडियांजी के झोपडी की ओर गये हैं। इसप्रकार श्री आवडादि शक्तियां ने कई बार नागिनों के रुप धारण किये जिसके कारण ये शक्तियां नागणेची या नागणेचियां के नाम से प्रसिद्ध हुए। इसी नाम से ये राठौड राजपूतों में कुलदेवी के रुप में पूजी जाती हैं। इस सम्बन्ध में डिंगल के विद्वान जयसिंहजी सिंढायच के आवड़ माता के रंग के दोहे निम्न प्रकार से हैं। नागणियां बण नीर में, सारी सगत्यां संग। तज वसन निसरी तुरत, रंग माँ आवड़ रंग ।। उण दिन सु अखिलेशरी, आश्रित हेत उमंग। नाम धरे नगणैच निज, रंग माँ आवड़ रंग ।। राठौड शब्द का प्रयोग एक राजपूत शाखा के लिए प्रयुक्त हुआ हैं जिसका प्रचलन केवल भाषा में हैं। संस्कृत पुस्तकों, अभिलेखों और दानपत्रों उसके लिए राष्ट्रकूट शब्द मिलता हैं । प्राकृत शब्दों की उत्पति के नियमानुसार राष्ट्रकूट शब्द का प्राकृत रुप राठ्ठऊड़ होता हैं, जिससे राठउड़ या राठोड़ शब्द बनता हैं, जैसे चित्रकूट से चित्तऊड़ और उससे चित्तौड़ या चीतोड़ बनता हैं। राष्ट्रकूट वंश का प्रतापी शासक अमोघवर्ष (814-876ई.) श्री आवड़ माता का समकालीन था। जेठमल चारण की प्राचीन रचना के अनुसार अमोघवर्ष द्वारा श्री आवड़ माता की पूजा की गई थी जो उसके पद्य में इस प्रकार से मिलता हैं। चोट करतां राकसां, चक्र गेब चलाडै। अमोघव्रख राठवड, पूजा ईक त्यारै ।। अमोघवर्ष के संजन ताम्र पत्र से पता चलता हैं कि वह देवी का बडा भक्त था जिसने एक बार देवी को अपने बाये हाथ की अंगूली श्रद्धावश चढा दी थी। इसकी तुलना दधीचि जैसे पौराणिक महापुरुषों से की जाती हैं। अमोघवर्ष श्री आवड माता का परम भक्त था। उसकी सहायता में श्री आवड़ माता ने गेबी (अदृश्य) चक्र चलाये जिससे उसके राज्य के अधीन अंग, बंग, मालवा और मगध के राजाओं ने उसकी अधीनता स्वीकार की। भगवती श्री आवड़ माता ने अपने भक्त अमोघवर्ष की सहायता में अदीठ चक्र चलाये जिसके कारण वे चक्रेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध हुए। मां श्री आवड़ की कृपा से उसने 60 वर्षभक्त अमोघवर्ष की सहायता में अदीठ चक्र चलाये जिसके कारण वे चक्रेश्वरी के नाम से प्रसिद्धजिसके कारण वे चक्रेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध हुए।
मां श्री आवड़ की कृपा से उसने 60 वर्ष से अधिक राज किया उसके बाद वह अपने पुत्र कृष्णराज को सौप कर स्वयं भगवती श्री आवड़ माता की साधना में लग गया। उसने कविराजमार्ग नाम का अलंकार ग्रंथ की कन्नड़ भाषा में रचना की। उसके दरबार में विद्धानों का बड़ा आदर था। उसने भगवती श्री आवड़ माता की कृपा से अपनी राजधानी मान्यखेत को इन्द्रपुरी से अधिक सुन्दर बनाया। अमोघवर्ष के बारे में अरबी लेखक सुलेमान अपने ग्रंथ सिल्सिलातुत्तवारीख में लिखा हैं कि वह दुनियां के चार बड़े बादशाहों में से एक था। श्री आवड़ माता की कृपा स्वरुप अमोघवर्ष यशस्वी एवं प्रतापी शासक के रुप में प्रसिद्ध हुआ। उसने ही श्रीआव माता की मूर्ति की स्थापना दक्षिण के कर्णाटक देश में चक्रेश्वरी माता के नाम से की थी। जो राठेश्वरी माता (राठासण माता) भी कही जाती है, जिसे धूहढ़ ने दक्षिण भारत के कर्नाटक से लाकर नागाणा गांव(,निकट कल्याणपुर, जिला बाडमेर) में स्थापित किया था। वर्तमान में नागाणा गांव में नागणेचियां माता का भव्य मंदिर बना हुआ। जोधपुर राज्य की ख्यात(सं. रघुवीरसिंह एवं मनोहरसिंह राणावत) के पृ.स.27 पर लिखा हैं कि “राव धूहड सम्वत् 1248 रा जैठ सुद 13 (26 मई मंगलवार 1192 ई.) पाट बैठा, नै करणाटक देश सूं कुल देवी चक्रेश्वरी री सोना री मूरत लाय ने गांव नागाणे थापत किवी। तिण सूं नागणेची कहाई” ं। इस ख्यात के संदर्भ की पुष्टि वीर विनोद भाग 3 के पृ.सं. 799-800, जोधपुर राज्य का इतिहास भाग 1(गौरीशंकर हिराचंद ओझा)के पृ.सं. 109 आदि ग्रंथों में हुआ हैं। लोक देवता पाबूजी राठौड़ पर मोडजी आसिया ने पाबू प्रकास ग्रंथ की रचना की थी। इस ग्रंथ का प्रकासन शंकरसिंह आसिया ने किया हैं। इस ग्रंथ के पृ.सं. 95 में लिखा हुआ हैं कि ।। छप्पय ।। || आणंद का पूर्व परिचय तथा गांव कड़ाणी की जागीर मिलना।। प्रथम मार परमार। लियौ जूनौ लोहां लड़।। रहै राव पाखती। भड़ा घोड़ा भीड़ोहड़ || करणाणंद, आणंद कवेस। वहण मारूभाषा वट ।। बगस जिकां बिरदैत। ईकड़ाणी आगाहट ।। कनवज हूंता किरंड । लाग हठ पेथड़ लायौ । थप नागांणे थांन। पाटपत इम वर पायौ ।। जयचंद हरा तो सिर जपूं। रजाबंध सबदिन रहूं।। इण भाखर सूं राजस अडिग । सौ-सौ कोस दिसा चहूं।। 56।। अर्थ-आसथान के पुत्र धांधल ने अपने पिता के राज्य से हिस्सा प्राप्त न कर अपनी तलवार की ताकत से नया राज्य स्थापित किया। उसने वहां के परमार राजा को युद्ध में मारकर जूनो (कोळू) नामक राज्य प्राप्त किया। राव धांधल के पास में योद्धाओं और घोड़ों की व्यापकता हैं। मारू भाषा के विद्वान व उसकी राह पर चलने वाले गढवी करमाणंद और आनंद हैं। अनेक उपमाओं से अलंकृत यशस्वी राव धांधल ने कवियों को कड़ाणी नामक गांव सांसण में दिया। राव धूहड़ के पुत्र पेथड़ ने हठपूर्वक कन्नौज जाकर अपनी आराध्य देवी चक्रेश्वरी का किरंड (लकड़ी की बनी पूजा की पेटी) को लाया। फिर उसका नागाणा नामक गांव में स्थापित किया। वहां शक्ति आवड़ ने नागिन रूप में प्रकट होकर खेड़ के राजा को यह आशीर्वाद दिया कि हे जयचंद के पुत्र मैं सदैव तुम्हारे ऊपर प्रसन्न हूँ। इस कारण मेरे स्थान के इस पहाड़ से सो-सो कोस दूर तुम्हारा अडिग शासन चाहती हू ।। छंद अनुष्टप।। ।। शक्ति नागणेची वृतांत ।। चक्रेस्वरी बलेस्थाने। राटेश्वरी तथा रटे ।। पंखणी सप्त मात्रेण नागणेची नमस्तुते।। 57।। अर्थ:-बलुचिस्तान के लासबेला में हिंगोल पर्वत पर अधिष्ठाती हिंगलाज देवी ही चक्रेश्वरी के नाम से हैं। उसी का राटेस्वरी नाम से स्मरण करते हैं। जब इस देवी ने विक्रमी की आठवीं सदी के प्रारम्भ में आवड़ देवी व उसकी छ: अन्य बहिनों सहित अवतार लिया तथा नागिन के रूप में उपस्थित होकर धूहड़ को दर्शन देकर आशीर्वाद दिया तब से राठौड़ उसे नागणेची देवी के नाम से सात मूर्तियों में पूजते हैं। हे नागणेची देवी तुझे नमस्कार हैं। इसको पंखनी व सप्त माता भी कहते हैं।
If you dont mind.spirituality all world ki hoti hai that means yeh hamari thinking hai ki yeh hamari hai .geeta me shrikrishna ne kaha hua all sabhi me mai hi ho.mataji that means only respect mataji.cast not important.
देवी के लिए कोई जाति मायने नहीं रखती लेकिन हर जाति किसी ना किसी देवी को अपनी कुलदेवी मानती है हालाँकि देवी एक ही होती है अलग अलग नामों से पहचानी जाती है बस |
Nagana mata ji ko lane me rajpurohit pithad ji or rao duhad ji ke aaham bhumika rahe h lakin afsos rajpurohit samaj ke is ithas ko har ghadi dabaya gya h
जानकारी के लिए धन्यवाद | अगले किसी वीडियो में यह जानकारी भी जोड़ने की कोशिश करेंगे, दरअसल दबाने की मंशा किसी की नहीं होती, जानकारी का अभाव इसका मुख्य कारण है |
Jai Maa Naganarai Ki Sa 🙏🙏
जय श्री कूलदेवी चक्रेवरी माँ भवानी नागणेच्या माता की जय वरमवार प्रणाम🎉🎊
जय हो नागाणा राय की जय 🌹🙏🌺। हमारी कुळदेवी,हंस वाहिनी बाण माता है 🌹🙏🌺🧖🥥🥭🙋🐚🚩।जय हो करनल किनीयाणी,
जय हो कुलदेवी मां नागणेचिया माता 🙏🏻🚩
आदरणीय श्री रतन सिंह जी आपको और आपकी पूरी टीम को जय माता जी की हुकम 🙏🙏🙏 आपकी जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है। इसके लिए आपको कोटि कोटि वंदन। आप की प्रत्येक विडियो समाज और संस्कृति से ओत प्रोत है जो की देखने योग्य है। आपसे एक आग्रह है की इस बार नागाणा ठाकुर साहेब राजश्री श्री बख्तावर सिंह जी जोधा का इंटरव्यू भी आप ले। वे इतिहास की बहुत अच्छी जानकारी रखते है। ताकि हमको नागाणा ठिकाणे के बारे में भी जानकारी मिले। ये पूर्व में सरपंच रहे है और उनके पिता जी भी सरपंच रहे है। 🙏🙏🙏
अगली बार जाना हुआ तो ठाकुर साहेब राजश्री श्री बख्तावर सिंह जी जोधा का इंटरव्यू जरुर करेंगे
Jai nagnechiya mata ki🙏🙏🙏
Jai maa nagnechi Ji ki Jai Ho ❤❤❤❤
जय श्री कुलदेवी मां राजराजेश्वरी नागाणा राय
Jai maa nagnechiya mata di 🙏🙏🌹🙏🙏
= Jai Mata , naganarai , Nagnechi Maa ji Jai ho. ! Shandar , bhavy , darshaniy maa ka Mandir ! Lot of Congratulations to Mandir Trust & Trusties for good managements. Thanks.
🙏 जय मां नागेश्वरी
Jai shree kuldevi mata Nagnechiya ji
जय श्री मां नागाणा राय 🙏🙏🚩🔥🔥
जय हो कुलदेवी की जय हो
Jay kuldevi maa 🙏
जय कुलदेवी मां नागणेच्या महर राखजे मां 🎉
जय श्री कुलदेवी नागणेच्या मां
जय नागणेच्चा जी की।
🌹🙏🏻 Jay Nageshwari Mata
ram ram ram ram ram ram naganaraye meldi me ❤
Jay shree Nagnechiya Rai Jay Bhathiji Rathor Fagvel na Raja 🎉❤
🚩🙏 जय हो मां कुलदेवी नागणेच्या जी आप की, दिया दृष्टि राखज्यों सभी भक्तों और राजपूतों की। 🙏जय हो कुलदेवी माता नागणेच्या जी कि 🙏 पदम सिंह राठौड़
Jay mataji
❤ जय माता नागणेच्या माता दी
🙏🙏🙏Jay maa Naganaray Maa 💐💐💐
जय मां नागणेच्या जय मां करणी
Jai Maa Naganarai🙏🚩
Jai Mata Di.........
Har Har mahadev jai Mata di
Jay Ho kuldevi MAA ki Jay Ho
जय हो माँ कुलदेवी ❤🙏
जय श्री मां भवानी नागाणा राय जय श्री पाबूजी राठौड़
Jy ho mata di
🙏🙏
जय हो कुलदेवी माँ
जय माता दी
देवी आवड़ नागणेची माता का सम्पूर्ण इतिहास
श्री आवड़ माता का अपरनाम
श्रीनागणेचियां माता का इतिहास, मान्यताएं
व परम्परा :-
लेखक
आढ़ा)
डॉ नरेन्द्र सिंह आढ़ा (नरसा
प्रधानाचार्य राउमावि बिकरनी
सिंध के नानणगढ प्रवास के दौरान श्री आवडादि शक्तियां एक दिन हाकरा दरियाव (नदी) पर स्नान कर रहे थे। तभी नानणगढ के शासक अदन (ऊमर) सूमरा के पुत्र के नूरन के मित्र लूंचीया नाई ने इनकों स्नान करते हुए छिप कर देख लिया और उसने इनके कपड़ों को अपनी छडी से छू. दिया था। जब आवाडाधी बहनों संग स्नान करके बाहर आयी तो श्री आवडजी ने देखा कि वहां किसी पुरुष के पैरों के निशान पडे हुए थे। इस पर उन्होंने अपनी बहिनों को कहा कि उस पुरुष ने अपने कपड़ों को अपवित्र कर दिया हैं, अब ये कपडें हम पहन नहीं सकते हैं, इस जंगल में कपडें कहां से लाये जाये ? तब श्री आवडजी ने अपनी दैविक शक्ति से सभी बहिनों को काली नागिनों का रुप धारण करके झोपडे की ओर चलने का आदेश दिया। उधर लूंचीया नाई ने बादशाह के लडके नूरन के पास जाकर इनके अपूर्व रुप सौन्दर्य की जानकारी दे दी। इस पर वे दोनों घोडे पर सवार होकर हाकरा नदी पर आ गये। लेकिन वहां इन्हें मामडियां चारण की सातों पुत्रियां नहीं मिलती हैं। उन्होंने देखा कि सात नागिन जो यहां से मामडियांजी के झोपडी की ओर गये हैं। इसप्रकार श्री आवडादि शक्तियां ने कई बार नागिनों के रुप धारण किये जिसके कारण ये शक्तियां नागणेची या नागणेचियां के नाम से प्रसिद्ध हुए। इसी नाम से ये राठौड राजपूतों में कुलदेवी के रुप में पूजी जाती हैं। इस सम्बन्ध में डिंगल के विद्वान जयसिंहजी सिंढायच के आवड़ माता के रंग के दोहे निम्न प्रकार से हैं।
नागणियां बण नीर में, सारी सगत्यां संग। तज वसन निसरी तुरत, रंग माँ आवड़ रंग ।। उण दिन सु अखिलेशरी, आश्रित हेत उमंग। नाम धरे नगणैच निज, रंग माँ आवड़ रंग ।।
राठौड शब्द का प्रयोग एक राजपूत शाखा
के लिए प्रयुक्त हुआ हैं जिसका प्रचलन केवल भाषा में हैं। संस्कृत पुस्तकों, अभिलेखों और दानपत्रों उसके लिए राष्ट्रकूट शब्द मिलता हैं । प्राकृत शब्दों की उत्पति के नियमानुसार राष्ट्रकूट शब्द का प्राकृत रुप राठ्ठऊड़ होता हैं, जिससे राठउड़ या राठोड़ शब्द बनता हैं, जैसे चित्रकूट से चित्तऊड़ और उससे चित्तौड़ या चीतोड़ बनता हैं। राष्ट्रकूट वंश का प्रतापी शासक अमोघवर्ष (814-876ई.) श्री आवड़ माता का समकालीन था। जेठमल चारण की प्राचीन रचना के अनुसार अमोघवर्ष द्वारा श्री आवड़ माता की पूजा की गई थी जो उसके पद्य में इस प्रकार से मिलता हैं। चोट करतां राकसां, चक्र गेब चलाडै। अमोघव्रख राठवड, पूजा ईक त्यारै ।। अमोघवर्ष के संजन ताम्र पत्र से पता चलता हैं कि वह देवी का बडा भक्त था जिसने एक बार देवी को अपने बाये हाथ की अंगूली श्रद्धावश चढा दी थी। इसकी तुलना दधीचि जैसे पौराणिक महापुरुषों से की जाती हैं। अमोघवर्ष श्री आवड माता का परम भक्त था। उसकी सहायता में श्री आवड़ माता ने गेबी (अदृश्य) चक्र चलाये जिससे उसके राज्य के अधीन अंग, बंग, मालवा और मगध के राजाओं ने उसकी अधीनता स्वीकार की। भगवती श्री आवड़ माता ने अपने भक्त अमोघवर्ष की सहायता में अदीठ चक्र चलाये जिसके कारण वे चक्रेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध हुए। मां श्री आवड़ की कृपा से उसने 60 वर्षभक्त अमोघवर्ष की सहायता में अदीठ चक्र चलाये जिसके कारण वे चक्रेश्वरी के नाम से प्रसिद्धजिसके कारण वे चक्रेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध
हुए।
मां श्री आवड़ की कृपा से उसने 60 वर्ष से अधिक राज किया उसके बाद वह अपने पुत्र कृष्णराज को सौप कर स्वयं भगवती श्री आवड़ माता की साधना में लग गया। उसने कविराजमार्ग नाम का अलंकार ग्रंथ की कन्नड़ भाषा में रचना की। उसके दरबार में विद्धानों का बड़ा आदर था। उसने भगवती श्री आवड़ माता की कृपा से अपनी राजधानी मान्यखेत को इन्द्रपुरी से अधिक सुन्दर बनाया। अमोघवर्ष के बारे में अरबी लेखक सुलेमान अपने ग्रंथ सिल्सिलातुत्तवारीख में लिखा हैं कि वह दुनियां के चार बड़े बादशाहों में से एक था। श्री आवड़ माता की कृपा स्वरुप अमोघवर्ष यशस्वी एवं प्रतापी शासक के रुप में प्रसिद्ध हुआ। उसने ही श्रीआव माता की मूर्ति की स्थापना दक्षिण के कर्णाटक देश में चक्रेश्वरी माता के नाम से की थी। जो राठेश्वरी माता (राठासण माता) भी कही जाती है, जिसे धूहढ़ ने दक्षिण भारत के कर्नाटक से लाकर नागाणा गांव(,निकट कल्याणपुर, जिला बाडमेर) में स्थापित किया था। वर्तमान में नागाणा गांव में नागणेचियां माता का भव्य मंदिर बना हुआ।
जोधपुर राज्य की ख्यात(सं. रघुवीरसिंह एवं मनोहरसिंह राणावत) के पृ.स.27 पर लिखा हैं कि “राव धूहड सम्वत् 1248 रा जैठ सुद 13 (26 मई मंगलवार 1192 ई.) पाट बैठा, नै करणाटक देश सूं कुल देवी चक्रेश्वरी री सोना री मूरत लाय ने गांव नागाणे थापत किवी। तिण सूं नागणेची कहाई” ं। इस ख्यात के संदर्भ की पुष्टि वीर विनोद भाग 3 के पृ.सं. 799-800, जोधपुर राज्य का इतिहास भाग 1(गौरीशंकर हिराचंद ओझा)के पृ.सं. 109 आदि ग्रंथों में हुआ हैं। लोक देवता पाबूजी राठौड़ पर मोडजी आसिया ने पाबू प्रकास ग्रंथ की रचना की थी। इस ग्रंथ का प्रकासन शंकरसिंह आसिया ने किया हैं। इस ग्रंथ के पृ.सं. 95 में लिखा हुआ हैं कि
।। छप्पय ।।
|| आणंद का पूर्व परिचय तथा गांव कड़ाणी की जागीर मिलना।। प्रथम मार परमार। लियौ जूनौ लोहां लड़।। रहै राव पाखती। भड़ा घोड़ा भीड़ोहड़ || करणाणंद, आणंद कवेस। वहण मारूभाषा
वट ।।
बगस जिकां बिरदैत। ईकड़ाणी आगाहट ।। कनवज हूंता किरंड । लाग हठ पेथड़ लायौ । थप नागांणे थांन। पाटपत इम वर पायौ ।। जयचंद हरा तो सिर जपूं। रजाबंध सबदिन रहूं।।
इण भाखर सूं राजस अडिग । सौ-सौ कोस दिसा चहूं।। 56।। अर्थ-आसथान के पुत्र धांधल ने अपने पिता के राज्य से हिस्सा प्राप्त न कर अपनी तलवार की ताकत से नया राज्य स्थापित किया। उसने वहां के परमार राजा को युद्ध में मारकर जूनो (कोळू) नामक राज्य प्राप्त किया। राव धांधल के पास में योद्धाओं और घोड़ों की व्यापकता हैं। मारू भाषा के विद्वान व उसकी राह पर चलने वाले गढवी करमाणंद और आनंद हैं। अनेक उपमाओं से अलंकृत यशस्वी राव धांधल ने कवियों को कड़ाणी नामक गांव सांसण में दिया। राव धूहड़ के पुत्र पेथड़ ने हठपूर्वक कन्नौज जाकर अपनी आराध्य देवी चक्रेश्वरी का किरंड (लकड़ी की बनी पूजा की पेटी) को लाया। फिर उसका नागाणा नामक गांव में स्थापित किया। वहां शक्ति आवड़ ने नागिन रूप में प्रकट होकर खेड़ के राजा को यह आशीर्वाद दिया कि हे जयचंद के पुत्र मैं सदैव तुम्हारे ऊपर प्रसन्न हूँ। इस कारण मेरे स्थान के इस पहाड़ से सो-सो कोस दूर तुम्हारा अडिग शासन चाहती हू
।। छंद अनुष्टप।। ।। शक्ति नागणेची वृतांत ।। चक्रेस्वरी बलेस्थाने। राटेश्वरी तथा रटे ।। पंखणी सप्त मात्रेण नागणेची नमस्तुते।। 57।।
अर्थ:-बलुचिस्तान के लासबेला में हिंगोल पर्वत पर अधिष्ठाती हिंगलाज देवी ही चक्रेश्वरी के नाम से हैं। उसी का राटेस्वरी नाम से स्मरण करते हैं। जब इस देवी ने विक्रमी की आठवीं सदी के प्रारम्भ में आवड़ देवी व उसकी छ: अन्य बहिनों सहित अवतार लिया तथा नागिन के रूप में उपस्थित होकर धूहड़ को दर्शन देकर आशीर्वाद दिया तब से राठौड़ उसे नागणेची देवी के नाम से सात मूर्तियों में पूजते हैं। हे नागणेची देवी तुझे नमस्कार हैं। इसको पंखनी व सप्त माता भी कहते हैं।
जय माता की🙏🙏
जय माँ नागाणाराय 🙏🙏
राठौड़ो की कुलदेवी नागणेची माता जी जय l
सब लोगों में मजबूती धर दो माँ p 🙏🙏🦅🦅
Jay ma naganarai 🙏🙏
Jai jai shri kuldevi maa nagana maa kripa kare 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
Jai maa nagnarai
❤❤👏👏
Jay kuldevi MAA ki Jay Ho
Jay nagnechyna mataji ki
Jadaun ki kuldevi k bare m bhi video bano
जय श्री मां नागणेच्या
🙏जय हो माँ नागणा राय जय हो 🙏
जय मां नागाणा राय री।🙏🙏
Shrimati Vashundhara medam ko koti -koti naman❤❤🎉🎉
नागणेची माता की जय हो
jay ho kuldevi sa
Jay maa Naganaray....
पशुबलि व शराब को रोकने हेतु किए गए प्रयास सराहनीय है........
Ye kaha he please send address ye hamari bhi kuldevi he hum Kai salo se inhe dhudh rahe he
जोधपुर से बाड़मेर रास्ते में नागाणा गांव में है | maps.app.goo.gl/5n1MYeQH9pGHC1eA7
Jai ma nagana Rai 🚩🙏🙏
Jay man Nagnechi
🙏🚩🚩
कुलदेवी मां नागणेच्या माता जी
🙏🙏🙏🙏🙏
🙏🚩🚩🚩🚩🚩
If you dont mind.spirituality all world ki hoti hai that means yeh hamari thinking hai ki yeh hamari hai .geeta me shrikrishna ne kaha hua all sabhi me mai hi ho.mataji that means only respect mataji.cast not important.
देवी के लिए कोई जाति मायने नहीं रखती लेकिन हर जाति किसी ना किसी देवी को अपनी कुलदेवी मानती है हालाँकि देवी एक ही होती है अलग अलग नामों से पहचानी जाती है बस |
Jai maa naganaray ❤❤
Sanjukawer
,,,,,,,,,, 🙏🙏🙏🙏🙏
Nagana mata ji ko lane me rajpurohit pithad ji or rao duhad ji ke aaham bhumika rahe h lakin afsos rajpurohit samaj ke is ithas ko har ghadi dabaya gya h
जानकारी के लिए धन्यवाद | अगले किसी वीडियो में यह जानकारी भी जोड़ने की कोशिश करेंगे, दरअसल दबाने की मंशा किसी की नहीं होती, जानकारी का अभाव इसका मुख्य कारण है |
6:27 कुछ भी बक दिया 😂
Jai Maa Naganarai Ki Sa 🙏🙏
Jay mataji
जय मां नागणेच्या माता जी
🙏🙏🚩🚩