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१) अन्नमय-कोष: संसार से दाना-पानी लेकर हमने जिस कोष का निर्माण किया उसे कहते हैं अन्नमय-कोष २) प्राणमय कोष: जिसमें चौदह तरह की वायु रहती हैं। ३) मनोमय कोष: जहां अव्यवस्थित मानसिक गतिविधि चलती ही रहती है लगातार। मन वृत्तियों द्वारा संचालित है और मन उतश्रृंखल है। मन पूरे तरीके से मात्र, प्राकृतिक गति कर रहा है उसको प्रकृति से आगे जाने की कोई अभीप्सा नहीं है। बिखरा हुआ विचार, वृत्तियों द्वारा शासित विचार आएंगे मनोमयकोष में। ४) विज्ञानमय कोष: वो तल जिसपर बहुत कम लोग पहुँचते हैं। विज्ञानमय कोष विचारणा का वो विरलतल है जिसमें विचार पहली बात तो व्यवस्थित हो जाता है और दूसरी बात अपनी ओर मुड़ जाता है। विचार जैसे किसी जबरदस्त ताकत के प्रभाव क्षेत्र में आ गया है। अब विचार की पूरी शक्ति एकाग्र होकर के कुछ पाना चाहती है। विचार की इस अवस्था को कहते हैं- विज्ञान। एकाग्र विचार, अनुशासित विचार, व्यवस्थित विचार आएंगे विज्ञानमय कोष में। ५) आनंदमय कोष: विज्ञानमय कोष में जो साधना कर रहा है विचार, जो आत्माजिज्ञासा कर रहा है विचार तो विचार फिर कटने लगता है, विचार अपनी ही आँच में पिघलने लगता है। और रह जाता है एक निर्विचार आनंद। जिसको कहते हैं आनंदमय कोष। आनंद है पर उस आनंद का कारण कोई विचार या विषय नहीं है। एक विषयहीन आनंद है ये आनंदमय कोष है, इसमें अहम विषयहीन हो गया है। -आचार्य प्रशांत
Turiy stithi last nahi. Turiya awastha me aham brahsmi ki anubhuti hai. Aham ke civa kuch nahi Aham ka gyan lekin vishwa ka nahi Esake Uppar samadhi samadhi me aham aur vishwa jagat ka ekrup ki anubhuti Vo bhi sanjivan Niranjan aur Nirvikalp samadhi. Viswa jagat aur khudaka gyan jagruti awastha swapn awastha swapna jagat ka gyan lekin aham aur Viswa jagat ka gyan nahi Sushupti me na khudaka gyan na viswa jagat ka gyan Na neniv na janiv _ brahm stithi Turiya Sirf aham ka gyan vishwa jagat bhi aham Samadhi Viswa jagat aur aham ka ekdeshiy (at a time) gyan rahata hai Chetana nitya shudhya hai sirf pragatikaran kam jyadha ashudhya maya tatwonke karan hota hai esliye uske Uppar ashudhutwonki shudhata jaruri hoti hai.
बिरले होते हैं वो जो आनंदमय कोष को साधनमात्र, मार्गमात्र समझते हैं आत्मा तक पहुँचने का। जो आनंदमय कोष का भी अतिक्रमण कर गया वो आत्मा तक पहुंच जाता है। -आचार्य प्रशांत
एक एक अक्षर मोती जैसा इतना सुंदर समझाया है इतनी स्पष्ट ता आचार्य जी जैसे गुरु ही कर सकते हैं आचार्य जी को कोटि-कोटि प्रणाम आचार्य जी को जितना सुनो उतना ही कम लगता है लगता है सुनते जाओ सुनते जाओ आचार्य जी के शब्दों में जादू ही जादू है
आचार्य जी जैसे गुरु की प्राप्ति भगवद्गीता के कृष्ण प्राप्ति के समान है ,कोटि कोटि नमन 🙏आचार्य जी के कहने के बाद कहने को कुछ रह ही नहीं जाता , और कहने का कुछ मन भी नहीं करता , बस उनके शब्दों की गूंज को , गहराई को कुछ देर मौन रहकर मन में महसूस करते हुए आनंदित रहने का मन करता है l नमन है इस युगपुरुष को 🙏❤️
आचार्य जी कोई शब्द नहीं है हमारे पास जिससे मैं आपका आभार प्रकट कर सकूं बस आपको सामने पाते ही मैं खो चूका होता हूँ जैसे मैं अपनी किसी खोई हुई चीजों को पा रहा हूँ 🙏🙏🙏
❤️U , आचार्य जी, इस तरह के वीडियो को देखने की बड़ी गहरी चाहत थी। और मैं क्षमा चाहता हूँ आप से , इस लिए की जो ज्ञान आपने दिया है इस वीडियो के माध्यम से मिल रहा है , यह ज्ञान मैंने तय ही कर लिया था अपने अंदर की , आप से नहीं मिल सकता , या आप दे ही नहीं सकते। और यह भ्रम मुझे इसलिए रहता था क्योंकि आपके किसी भी वीडियो में जब मैं आपके हाउ-भाउ देखता था, या आप हस्ते हुए नहीं दिखते थे और इसी के साथ यह तय कर लिया था कि जो हस नहीं सकता वो प्रेम भी नहीं जनता और प्रेम कर भी नहीं सकता। लेकिन आज मेरा यह भ्रम टूट गया। इतने गहरे ज्ञान की समझ आप के पास थी और मैं आपकी हसी और हाउ-भाउ पर आकर रुक गया था। लेकिन आज मेरे मन से एक और पर्दा उठ जाने की खुशी के कारण शिथिल आनंद का खजाना और बढ़ गया है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद आचार्य जी।
The best acharya for vedant. (To demolish all that is false) आचार्य जी की वाणी से आत्मा तृप्त हो जाता है हम बहुत भाग्यशाली है की आज के जमाने मे ऐसे आचार्य प्रोफेशनल करिअर छोडके ऐसे काम कर रहे है
अप्रतिम...सविस्तर जानकारी प्राप्त हुई है..बहुत प्रसन्नता, शांतता प्रस्थापित होने का अनुभव आया है... कोटी कोटी धन्यवाद.. आचार्य जी...सांष्टाग नमन....🙏🏻😊💐
Clearmost explained by the GURUDEV ACHARYA PRASHANT JI MAHARAJ JI'S PRAVACHAN IS TOP MOST IMPORTANT TO ALL SADHAKA'S ABOUT DEEPLY PANCH KOSH & FOUR BODIES AS WELL AS THEIR AVASTHA (JAGRITI,SVAPNA,SUSHUPTI & TURYA). I AM VERY GLAD OF THIS PRAVACHAN WICH IS PROVIDED BY AIRTEL 4G THANKS AGAIN & AGAIN.
मन आदि (अन्तःचतुष्टय), प्राण आदि (चौदह प्राण), इच्छा आदि (इच्छा-द्वेष), सत्त्व आदि (सतु, रज, तम) और पुण्य आदि (पाप-पुण्य) इन पाँचों को पञ्च वर्ग कहा जाता है। इनका धर्मी (धारक) बनकर जीवात्मा ज्ञानरहित होकर इनसे मुक्ति नहीं पा सकता। मन आदि जो सूक्ष्म तत्त्व हैं, इनकी . उपाधि सदैव आत्मा के साथ लगी प्रतीत होती है, जिसे लिङ्ग शरीर कहते हैं, वही हृदय की ग्रन्थि है॥७॥ सर्वसार उपनिषद
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Sir please bhgvan per video banao
Kya bhgvan hotel h
Please God per video banao
आचार्य जी आज वास्तव में सुनकर आनंद की अनुभूति हुई
यह बात भी बिल्कुल सही है की अध्यात्म समझने के लिए भी वो मानसिक स्तर होना चाहिए!
तुम्हारा मानसिक स्तर गिराया जाता है,मीडिया ke द्वारा
Jai ho Aacharya ji Satyam Shivam Sundaram Yhi Param Satya h Sabhi Koso Se Bhar Nikal Jao Anand May Kos m Isthapit ho Jao ❤❤❤❤❤
जो बुद्धिजीवी हो गये, वो रहने लग गए विज्ञानमय कोष में।
-आचार्य प्रशांत
ट्रांसपेरेंट मामला है आचार्य जी का
तुरीय ही आत्मा है, तुरीय ही साक्षी है।
-आचार्य प्रशांत
Thanks!
ध्यान की विधियाँ भी आख़िरकार आत्मा के ख़िलाफ़ एक अवरोध बन जाती हैं।
-आचार्य प्रशांत
तो कैसे चेतना को जाग्रत किया जाय बिना ध्यान के
Dhanyavad Acharyaji apne Pancho cosho ke vishya me bahut ache se samjhaya
Charad sparsh Aacharya ji 🙏👩🦰
बहुत बहुत धन्यवाद आचार्य जी❤आपके चरणों मे कोटि कोटि प्रणाम🙏🕉🙏🙏🙏🙏🙇♀🙇♀🙇♀🙇♀
सरकार को सनातन व संस्कृति मंत्रालय बनाना चाहिए भारत
को पश्चिम संस्कृति से बचाने के लिए
खुशकिस्मत है हम जिन्हें आपका सानिध्य प्राप्त हुआ। कोटि -कोटि प्रणाम आचार्य जी 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
भारत का नाम इंडिया से (भारत )हो ,इंडिया गुलामी का प्रतीक है
Thank you sir
उपनिषदों को पढ़ना भी अपने आप में एक कला है। लगातार पूछना पड़ता है कि ये जो बात कही जा रही है ये किससे कही जा रही है?
-आचार्य प्रशांत
😀
इतना स्पष्ट लेक्चर पहली बार सुने।
आपने ऋषियों के वचनों को सरल सूत्र में बदल दिया।
🙏🙏🙏 Pranaam Acharyaji. Thank you so much.
Osho , Budh , Krishan , Ram
Sab Chetna hai
Aap bhi Acharya ji
१) अन्नमय-कोष: संसार से दाना-पानी लेकर
हमने जिस कोष का निर्माण किया
उसे कहते हैं अन्नमय-कोष
२) प्राणमय कोष: जिसमें चौदह तरह की वायु रहती हैं।
३) मनोमय कोष: जहां अव्यवस्थित मानसिक गतिविधि चलती ही रहती है लगातार।
मन वृत्तियों द्वारा संचालित है और
मन उतश्रृंखल है।
मन पूरे तरीके से मात्र, प्राकृतिक गति कर रहा है उसको प्रकृति से आगे जाने की कोई अभीप्सा नहीं है।
बिखरा हुआ विचार, वृत्तियों द्वारा शासित विचार आएंगे मनोमयकोष में।
४) विज्ञानमय कोष: वो तल जिसपर बहुत कम लोग पहुँचते हैं।
विज्ञानमय कोष विचारणा का वो विरलतल है जिसमें विचार पहली बात तो व्यवस्थित हो जाता है और दूसरी बात अपनी ओर मुड़ जाता है। विचार जैसे किसी जबरदस्त ताकत के प्रभाव क्षेत्र में आ गया है। अब विचार की पूरी शक्ति एकाग्र होकर के कुछ पाना चाहती है। विचार की इस अवस्था को कहते हैं- विज्ञान।
एकाग्र विचार, अनुशासित विचार, व्यवस्थित
विचार आएंगे विज्ञानमय कोष में।
५) आनंदमय कोष: विज्ञानमय कोष में जो साधना कर रहा है विचार, जो आत्माजिज्ञासा कर रहा है विचार
तो विचार फिर कटने लगता है,
विचार अपनी ही आँच में पिघलने लगता है।
और रह जाता है एक निर्विचार आनंद।
जिसको कहते हैं आनंदमय कोष।
आनंद है पर उस आनंद का कारण
कोई विचार या विषय नहीं है।
एक विषयहीन आनंद है ये आनंदमय कोष है, इसमें अहम विषयहीन हो गया है।
-आचार्य प्रशांत
Aap to bade serious ho gaye.... 👌
आपका बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🏻
जब चेतना बिल्कुल स्वच्छ और शुद्ध हो जाती है,
विशुद्ध चेतना मात्र हो जाती है
तो तुरीय कहलाती है।
-आचार्य प्रशांत
Parmatma gyaniyon ke liye nahin pagalon ke liye hai
Turiy stithi last nahi. Turiya awastha me aham brahsmi ki anubhuti hai. Aham ke civa kuch nahi Aham ka gyan lekin vishwa ka nahi
Esake Uppar samadhi samadhi me aham aur vishwa jagat ka ekrup ki anubhuti
Vo bhi sanjivan Niranjan aur Nirvikalp samadhi.
Viswa jagat aur khudaka gyan jagruti awastha
swapn awastha swapna jagat ka gyan lekin aham aur Viswa jagat ka gyan nahi
Sushupti me na khudaka gyan na viswa jagat ka gyan Na neniv na janiv _ brahm stithi
Turiya Sirf aham ka gyan vishwa jagat bhi aham
Samadhi Viswa jagat aur aham ka ekdeshiy (at a time) gyan rahata hai
Chetana nitya shudhya hai sirf pragatikaran kam jyadha ashudhya maya tatwonke karan hota hai esliye uske Uppar ashudhutwonki shudhata jaruri hoti hai.
Naman acharya ji 🎉
Pranam acharya ji
बिरले होते हैं वो जो आनंदमय कोष को साधनमात्र, मार्गमात्र समझते हैं आत्मा तक पहुँचने का।
जो आनंदमय कोष का भी अतिक्रमण कर गया वो आत्मा तक पहुंच जाता है।
-आचार्य प्रशांत
Anadmay kosh ko sadhan samjke ke aatma tak pahuche kese?
Anandmay kosh ka sadhan ki tarah ethemal kese kare
Wo bhi bta diya to krupa hogi
Sat sat naman ACHARAYJI...🙏🙏
ज्ञान और विज्ञान के महासागर आचार्य प्रशांत 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻❤️❤️❤️❤️❤️❤️🤗🤗🤗😌😌😇😇😇
तुरीय चेतना की कोई अवस्था होती ही नहीं है।
तुरीय विशुद्ध चेतना मात्र है।
-आचार्य प्रशांत
This channel deserves 1 billion subscribers and 100+ billion views
Prnaam acharya ji bhot bhot shukriya aapka kitna mehnat karte hai aap humare liye videos Banate hai.
जो ज्ञान हम लोग पढते थे लेकिन समझ मे नहीं आता आपको दो बार सुनकर कुछ हद तक समझ मे आ जाता है |बहुत उपकार हैं | प्रणाम
अरबों साष्टांग प्रणाम ☘🍂🍁✨❄🌼🙏
इतनी गहराई से कभी नहीं जाना ये सब, धन्यवाद गुरु जी ❤️🙏
खूब खूब धन्यवाद आचार्यजी खूब खूब धन्यवाद एस सत्संग के लिये खूब धन्यवाद
Koti koti pranam guruji 🙏🙏🙏
चार अवस्था का रहस्य केवल आज जाना - बीसों बार पढ़ा और सुना . आचार्य जी का आभार
आचार्य जी को सादर प्रणाम आप की सदा ही जय हो जय जय हो🙏🙏🙏
Apko naman
pranamji hajur aachary ji 🎆🙏🌺 bahut sundar saral tarika se samjhaya koti koti pranamji 🙏🙏🙏🌺🎆❤️🙏
दिल को छू लेते है आचार्य जी।
Bahut logo ko suna aap bilkul alag ho...
Pranam
धन्यवाद आचार्य श्री ☘🍁🍂✨❄🌼🙏
एक एक अक्षर मोती जैसा इतना सुंदर समझाया है इतनी स्पष्ट ता आचार्य जी जैसे गुरु ही कर सकते हैं आचार्य जी को कोटि-कोटि प्रणाम आचार्य जी को जितना सुनो उतना ही कम लगता है लगता है सुनते जाओ सुनते जाओ आचार्य जी के शब्दों में जादू ही जादू है
आनन्द ही आनन्द
मुझे जीवन एक छलावा लगता है🌻
आप श्री ने अच्छी तरह समझाया,
🙏🙏🙏🙏🙏🙏।
आप श्री को ह्रदय से धन्यवाद।
Troublesome topic, very easy explanation, Thank you so much.
अति सुंदर व्याख्यान गुरु जी मजा आ गया 😊🌹❤️🌻🌼🌺💐🌸👍🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻😌😌😌😌😌😌😌😌😌😌😌😌😌😌
अद्भुत है आपके समझाने का तरीका आचार्य जी।
कोटि कोटि प्रणाम आचार्य श्री ☘🍁🍂✨❄🌼🙏
Koti koti Naman aaur Aabhar Aacharya ji 🙏🏻🌹 Lots of blessings and gratitude to you 🙏🙇🌹
जी समझ में आयी, प्रभु जी,
आखिरी अवरोध और आत्मा का विवेचन....आनन्दं
अभिनंदन, अनुकम्पा 🙏🏼🙏🏼🙏🏼🚩🌺
आचार्य जी आपको इन निशुल्क वीडियोज के लिये बहुत धन्यवाद। वेदांत के इस प्रकार के महत्वपूर्ण व गूढ़ तथ्यों से हमें परिचित कराते रहें ऐसी आपसे आशा है!🙏🙏🙏🙏
आचार्य जी जैसे गुरु की प्राप्ति भगवद्गीता के कृष्ण प्राप्ति के समान है ,कोटि कोटि नमन 🙏आचार्य जी के कहने के बाद कहने को कुछ रह ही नहीं जाता , और कहने का कुछ मन भी नहीं करता , बस उनके शब्दों की गूंज को , गहराई को कुछ देर मौन रहकर मन में महसूस करते हुए आनंदित रहने का मन करता है l
नमन है इस युगपुरुष को 🙏❤️
Bahut badhiya samjhaya acharya ji ne chetna ke baare me....
Har baat mere se sambandhit lg rhi thi..
सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपगार।
लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावणहार ।।
बहुत बहुत आभार आचार्य जी! 🙏
जो आध्यात्मिक साधक हो गए
उन्हें स्वाद मिलने लग जाता है- आनंदमय कोष का।
-आचार्य प्रशांत
अंतःकरण चतुष्ट है जिसमें मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार है। 🙏🙏🙏 अति दुर्लभ व गूढ़ जानकारी हेतु धन्यवाद आचार्य जी ।🙏🙏 धन्य है आप आचार्य जी। 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🌹🙏🙏प्रणाम आचार्य जी🙏🙏🌹
प्रणाम आचार्य जी 🙏
आचार्य जी कोई शब्द नहीं है हमारे पास जिससे मैं आपका आभार प्रकट कर सकूं बस आपको सामने पाते ही मैं खो चूका होता हूँ जैसे मैं अपनी किसी खोई हुई चीजों को पा रहा हूँ 🙏🙏🙏
🙏🙏 Aacharya Ji ko S Hriday Pranam
pranam guruvar!
मैं आपको सुन कर आनन्दमय कोष की अवस्था में पहुंच गया ।।
जाग्रत, स्वप्न , सुषुप्ति
ये चेतना की तीन अशुद्ध अवस्थाओं के नाम हैं।
-आचार्य प्रशांत
Aanand May kosh se paar karke aatma ke tal par kese jay....
परम पूज्य गुरुदेव के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम
सुनकर ऐसे लगा जैसे अहम अपने आप को छोटे सुखों मे स्थापित करके ऊँचे आनंद से वंचित कर रहा है।लोभ और लालच का ,तमासा का उपयोग कर के।
❤️U , आचार्य जी, इस तरह के वीडियो को देखने की बड़ी गहरी चाहत थी। और मैं क्षमा चाहता हूँ आप से , इस लिए की जो ज्ञान आपने दिया है इस वीडियो के माध्यम से मिल रहा है , यह ज्ञान मैंने तय ही कर लिया था अपने अंदर की , आप से नहीं मिल सकता , या आप दे ही नहीं सकते। और यह भ्रम मुझे इसलिए रहता था क्योंकि आपके किसी भी वीडियो में जब मैं आपके हाउ-भाउ देखता था, या आप हस्ते हुए नहीं दिखते थे और इसी के साथ यह तय कर लिया था कि जो हस नहीं सकता वो प्रेम भी नहीं जनता और प्रेम कर भी नहीं सकता। लेकिन आज मेरा यह भ्रम टूट गया। इतने गहरे ज्ञान की समझ आप के पास थी और मैं आपकी हसी और हाउ-भाउ पर आकर रुक गया था। लेकिन आज मेरे मन से एक और पर्दा उठ जाने की खुशी के कारण शिथिल आनंद का खजाना और बढ़ गया है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद आचार्य जी।
शत-शत नमन आचार्य जी।
The best acharya for vedant. (To demolish all that is false) आचार्य जी की वाणी से आत्मा तृप्त हो जाता है हम बहुत भाग्यशाली है की आज के जमाने मे ऐसे आचार्य प्रोफेशनल करिअर छोडके ऐसे काम कर रहे है
हमारे प्रिय आचार्य जी के चरणो में कोटि कोटि वंदन🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼❤❤❤ इतनी स्पष्ट रूप से हमें आचार्य जी ही समझा सकते हैं🙏🏻🙏🏻
हम इस कोस का उपयोग करके अहंकार को आत्मा को जानने मे पूरी तरह जोक दे बस। 🙏
कोटि कोटि नमन 🙏❤💐
you are the only one successor of Osho ❤
Thanks guruji
Very Nice. Best explained. Thanks from heart. Touching your feet.
अप्रतिम...सविस्तर जानकारी प्राप्त हुई है..बहुत प्रसन्नता, शांतता प्रस्थापित होने का अनुभव आया है... कोटी कोटी धन्यवाद.. आचार्य जी...सांष्टाग नमन....🙏🏻😊💐
इतने सुंदर और सरल ढंग से समझाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आचार्य जी🙏🙏
धन्यवाद आचार्य जी इस वीडियो से बहुत सीखने को मिला 🙏🙏🙏
Smjhane wala , achary jaisa spst pragat guru ho to bat smjh me aa hi jayegi .
This clarified most of my doubts regarding meditation experiences . Thanks a ton 🙏🙏🙏
Bahut achchha 🙏🙏
🙏🏼 🙏🏼 सादर प्रणाम आचार्य जी
Pranam achrya ji...
Naman Acharya g
शत शत नमन आचार्य श्री 🙏
संख्या ,वेदान्त योग तीनो दर्शन पढ़ा दिए आचार्य जी ने🙏🙏
आप जो सपने ले रहे हैं,
वो आपके अनुभव लोलुपता के प्रदर्शक हैं।
-आचार्य प्रशांत
🙏🏻🙏🏻🙏🏻 thankyou acharya ji... for this golden knowledge.
Thank you so much🙏🙏🙏
Clearmost explained by the GURUDEV ACHARYA PRASHANT JI MAHARAJ JI'S PRAVACHAN IS TOP MOST IMPORTANT TO ALL SADHAKA'S ABOUT DEEPLY PANCH KOSH & FOUR BODIES
AS WELL AS THEIR AVASTHA
(JAGRITI,SVAPNA,SUSHUPTI &
TURYA). I AM VERY GLAD OF THIS PRAVACHAN WICH IS PROVIDED BY AIRTEL 4G THANKS AGAIN &
AGAIN.
धन्यवाद आचार्य जी
नमन
🙏🙏
Guru dev ji maharaj pranam 🙏
Aacharyaji aaj spast hua haibahu t bahut dhanyabad .
Pranam🙏
बहुत बहुत धन्यवाद् धन्यवाद्
Excellent satya 👌🏻🙏
The best and most useful video I have ever watched.
Kitna sahi vislashan, bilkul jivan par mera
प्रणाम आचार्य जी...🙏❤😍😊
Pranam Acharya Ji. Thanks for explaining existence with so much clarity.
मन आदि (अन्तःचतुष्टय), प्राण आदि (चौदह प्राण), इच्छा आदि (इच्छा-द्वेष), सत्त्व आदि (सतु, रज, तम) और पुण्य आदि (पाप-पुण्य) इन पाँचों को पञ्च वर्ग कहा जाता है। इनका धर्मी (धारक) बनकर जीवात्मा ज्ञानरहित होकर इनसे मुक्ति नहीं पा सकता। मन आदि जो सूक्ष्म तत्त्व हैं, इनकी . उपाधि सदैव आत्मा के साथ लगी प्रतीत होती है, जिसे लिङ्ग शरीर कहते हैं, वही हृदय की ग्रन्थि है॥७॥
सर्वसार उपनिषद