मन की तीन अवस्थाए । ईश्वर सत्य है या मिथ्या ? रमण महर्षि से बात-चीत ।

Поделиться
HTML-код
  • Опубликовано: 27 янв 2025

Комментарии • 2

  • @mohanbhanushali7931
    @mohanbhanushali7931 2 дня назад

    जय गुरुदेव।

  • @madanbaranwal1531
    @madanbaranwal1531 2 дня назад +1

    अब तक सही सही यह समझ में आया है कि मैं शरीर इंद्रियां अंतःकरण नहीं हूं इनसे भिन्न हूं प्रतित होता है कि मन बुद्धि चित्त अहंकार समय-समय पर मुझमें अपनी उपस्थिति महसूस कराते हैं मुझे स्पष्ट महसूस होता है कि मन बुद्धि चित्त अहंकार एक जीव की तरह मुझे संलग्न करना चाहते हैं मैं एक-दो मिनट बाद ही स्वयं को इनसे अलग पाता हूं। संभवतः मैं विवेक ही हूं जो मन बुद्धि चित्त अहंकार से मेल नहीं खाता है। स्वयं को साक्षी कहना बड़बोलापन होगा लेकिन फिर भी लगता है ईश्वर अदृश्य साक्षी के रूप में उपस्थित हैं और मेरे सभी विचारों का अवलोकन कर रहे हैं। कृपया मार्गदर्शन करें।