श्री साहेब जी, तुम्हे समझ आया हुआ हे।।। मन कभी भरता ही नहीं।।। मन का खेल को जानना होगा।।। शरीर, मन और भाव से बाहर होना हे और इनसे ऊपर उठ जाना है।।। और आत्मा में होना हे।।। मिला हुआ ही हे।।। हम भूले हुए हे।।। उसे सिर्फ याद करना हे।।। स्वप्न को तोड़ना हे।।। जग जाना हे।।। आप को मेरी शुभेच्छा हे।।।
श्री साहेब जी,
तुम्हे समझ आया हुआ हे।।।
मन कभी भरता ही नहीं।।। मन का खेल को जानना होगा।।।
शरीर, मन और भाव से बाहर होना हे
और
इनसे ऊपर उठ जाना है।।।
और
आत्मा में होना हे।।।
मिला हुआ ही हे।।। हम भूले हुए हे।।। उसे सिर्फ याद करना हे।।।
स्वप्न को तोड़ना हे।।। जग जाना हे।।।
आप को मेरी शुभेच्छा हे।।।
Aapaka sunakar man prasanna hota hai
क्या ले आए थे क्या ले जाओगे कब तक रखोगे मुट्ठी बंद हो जीने के हैं लम्हें चंद जीने के हैं लम्हें चंद