|| श्री ज्ञानसार सूत्र ||पूर्णता अष्टक श्लोक 7

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  • Опубликовано: 25 окт 2024

Комментарии • 3

  • @HarshadShah-hg3im
    @HarshadShah-hg3im 2 дня назад

    श्री साहेब जी,
    तुम्हे समझ आया हुआ हे।।।
    मन कभी भरता ही नहीं।।। मन का खेल को जानना होगा।।।
    शरीर, मन और भाव से बाहर होना हे
    और
    इनसे ऊपर उठ जाना है।।।
    और
    आत्मा में होना हे।।।
    मिला हुआ ही हे।।। हम भूले हुए हे।।। उसे सिर्फ याद करना हे।।।
    स्वप्न को तोड़ना हे।।। जग जाना हे।।।
    आप को मेरी शुभेच्छा हे।।।

  • @mangalapatni2065
    @mangalapatni2065 3 месяца назад

    Aapaka sunakar man prasanna hota hai

  • @PraveenKumar-wz5lr
    @PraveenKumar-wz5lr 3 месяца назад

    क्या ले आए थे क्या ले जाओगे कब तक रखोगे मुट्ठी बंद हो जीने के हैं लम्हें चंद जीने के हैं लम्हें चंद