जब जन्म समय ही निश्चित नहीं है तो राशी कैसे निश्चित करोगे। गर्भ मे जिव कब पैदा हुआ यही निश्चित नहीं। जिव कब पैदा हो रहा है यह भी निश्चित नहीं। जिव नित्य गती मे है उसका ठहराव नहीं। ऐसा नहीं की बालक का जन्म हो रहा है और समय रुख गया हो। समय कभी ठहरता नहीं इसलिए जन्म समय निश्चित नहीं। जब जन्म समय ही निश्चित नहीं तो जन्म कुंडली कैसे बनेगी। और फलादेश सिद्ध कैसा होगा। आज के पंडीत जन्म के बाद जन्म कुंडली बनाते है। यह गलत है। बालक गर्भ मे जितने दिन रहता है वे दीन भी तो जन्म के ही पकडना होगा न। गर्भ के जिव पर भी ग्रह नक्षत्र को परीनाम तो होगा न। जिव कभी जन्म लेता नहीं जिव कभी मृत होता नहीं जिव कभी मुक्त होता नहीं जिव नित्य अमृत है। इसलिए फलज्योतीष बकवास है। सत्य कुछ भी नहीं।
Guru ji namosto ,maine ek hindu pariwar main janm liya hai, kya mai jain dharm apna sakta hun ?, kripaya marg darshan karen,main jain dharm se bachpan se hi bahut prabhavit hun
@@vaishalijain6885 aapke dhram me bhot gyan h tyag vgrh sb thik h pr esa to blkl nhi mam ke jain dhram apnane wale log achee h vo real life me apne dhrm ko ek percent apply nhi krte h
प्रणाम आचार्य जी, 🙏🏻😊, एक प्रश्न है यहां की काल सर्प दोष क्या होता है और इसको कैसे पहचाना जाता है, व्यक्ति विशेष को कैसे समझ में आए उसको काल सर्प दोष है, तात्पर्य है कि जीवन में कोई उसका प्रभाव पड़ रहा है यह कैसे समझ में आता है.
Mera janm January me hua tha pr har sal jabse mujhe yaad h December 15 se January 31 tak mujhe paresani hi hoti h mann bahut udas hara hua jindagi khatm si lagti h
SADHU RAM KRISHNAPARAM HANS ne kaha tha agar grah ka prabhab kisi insaan ke uoer padhta he to insaan to kya prithvi ki haalat ke baare mein soch sakte ho. Yeh baat kisi bhakt ne jab baba se ek aadmi ne pochaa tha.To hum to itne bade sadhu ki baat ko kaise jhutla sakte hain? Unhonne kaha tha insaan apne karmon hisab fal pata hai. Yehi baat bhi MAHATMA BUDDHA ne kahatha.Aajkaal ke baba ko unse jyads hi jnyan prapt hui hai.Asal main insaan ko aachhi karm karna hai naki grahnakhyata ko puja karne main time waste karen.Grah nakhsyatra kebal 5 bhuton se bani prithvi jaise grahon hain. Hum ne to kabhi suna nahin hain ki prithvi ke asar kisi par padne ki.,lekin ye suna hai ki sani,ya budh,bruhaspati ,mangalgrahon ke kharab asar bare main jarur suna hai. Yeh sab fantasism ke alawa kichh nahin.
Aap gyaani lagte ho. Ek baat Ka jawaab dijiye ki dusro ko taklef dene, kasth Dene, dhokha Dene, brimaani, kapat Karne waale badi acchi Life MEI jee rahe hai. Unko Kabhi Bhi kismat yaa bhagwan Kabhi sabak kyu Nahi Deta ki bandh Kar ghamand aur beimaani.
महोदय ! चिन्तन करें अापका जितने भि प्रवचन हे सभिमे देहअहंकार या देहका हि विषय अाता हे देहिका नहि, क्या देहिको पहचान नहि ! जैसे कुछ वाणी का शीर्षक पर चिन्तन करें - ग्रहोंका प्रभाव , पुजा किसकि, शकुन अपशकुन, ऋद्धिसिद्धि, कन्यादान, असाध्य रोग, मानसिक तनाव, विश्वास किस पर, वास्तुका जीवन मे प्रभाव अादि, कहाँ हे अध्यात्मका विषय सभितो देहाध्यका ,अाप दिगम्वरोंसे अपेक्षा अध्यात्मका करना भि नहि चाहिए क्योकि अापका ( समग्र मे जैनपथका) सम्प्रदायका तेरापंथि सहित सभि देहाध्यका सिवाए अध्यात्मका नहि, अन्यथा न लगे तो ! महावीर जैनने अध्यात्मकि अोर इसारा किया लेकिन उनका वह इसारा कोहिने समझनेका वा समझानेका प्रयत्न हि नहि हुए, उनका उपदेश सभि अात्मअभिमानका हे उसको यथार्थ न समझ पानेसे देहअभिमानका बना, नग्न या निर्वस्त्र रहना ज्ञान नहि अज्ञान हे, निरवस्त्र रहनेसे कोइ महावीर वन न सके।इसका भावार्थको किसिने चिन्तन अभितक न होने से अमर्यादित कर्म होते अाए हे। वस्त्रविहिन रहनेकन अर्थ बहुत गहरा हे, गर उस गहरेअर्थमे रहते अौर रहना सिखाते तो अाज जितना जैनीहे सभि महावीर हि बने।लेकिन अनर्थका कर्मसे महावीर का बडनाम हि कर अाए हे। उसके अलावा तरुण सागर , पुलकसागर महाश्रमण अादि सभि उसि अनर्थका मार्गहि पकड ग्लानी करनेसे चुके नहि। निवेदन हे उनका योगदानको शिखरसे भि उंचा ले जा सके तो उनका महात्म्य बुद्ध से भि अागे निकलेगी ,उनके हि समकालीन बुद्ध के अनुयायी चाहे कोइ क्वालिटिका न हो फिर भि सायद ज्यादा हि होगा, वह भि बुद्धकि बडनाममे हि जुटे हुए हे लेकिन पता नहि। कृपया महावीरका दिया हुवा उपदेशको यथार्थ भावअर्थको जान उसपर हमे अक्षरस् चलना हे, दिखावटि मे नहि, अभि सव कृया देखावटी हि हो रहा हे यथार्थ नहि। धन्यवाद !!!
@@jayjain4139 महाशय ! मात्र जैनका हि जय नहि सभि प्राणीयाेंकि जय हाेनी चाहिय नहि ताे जैनका हि नारा " सव्व भवतु मंगलव् " कैसे सिद्ध हो । महावीरने ताे समग्र जगतका कल्याण हेतु अपना जिवन बलिदान किए ,उसका दिया ज्ञानकाे जिवनमे संवारे अगर ताे उसका जीवन भि महावीर समान हि बने, बाहारसे सवारते अनगिनत मिला जाे मात्र दिखावा हि हे , उनका इसारा बाहरसे सजना नहि था, हाँ दिखावा बहारके हे ताेभि इसारा शरिरके नग्नताका नहि अात्माका नग्नताका हे । जाे भि तिर्थंकराें - पार्श्वनाथ अौर महावीर ने अहिंसा, सत्य ,अस्तेय, अपरिग्रह, जितेन्द्रियता, संयम,तपस्या इत्यादि पर हि जाेड दिया हे, यह सभि गुण शरिरसे नहि अात्मासे किए जानेसे हि " जय जिन्न्द्रिय " बन जाते हे। जाे भि गुणकाे प्रस्तुत किय वह सभि गीतामे प्रभावशालि ढंगसे प्रेरणादायक रुपमे (१६: १ - ३) कियागया हे। वास्तवमे `जैन´ शब्द हि जितेन्द्रियता या जय का वाचक हे। हम सभि अात्मावाे के साथ रहे कर्मेन्द्रिय अौर ज्ञानेन्द्रिय पर नियन्त्रण कर अात्मा राग-द्वेष पर विजय वने यहि ताे " जय जिनेन्द्रिय हे , जाे गीता २:६१,६४,६८, ३:३४ पर हर मानवकाे बारबार पुकार रहा हे। पुनश्र्च महावीर ने सम्यक विश्र्वास गीता १७:३, १८:३०,३१,३२ मे सम्यक बुद्धि का तथा १८:३३,३४,३५ मे सम्यक घृतिका स्पष्ट वर्णन किए हे, ऐसे हि सम्यक ज्ञान (गीता- १३:१)का साथमे ७:२, ९:१, तथा १४:१ मे भि सम्यकज्ञान का हि इसारा किय हे। इन सम्यक - विश्वास, ज्ञान अौर कर्म (गीता - १८:२४ से लेकर अनेक श्लोकाेंमे सम्यक-कर्मका परिचय हे) तिनाे काे समग्रमे " त्रिरत्न " का उपदेश महावीर ने दिए जाे गीतामे ताे प्रत्यकका स्वर - व्यन्जन सहित अभिव्यंजित किए हे। जाे पार्श्वनाथ शब्द के साथ अलग तिर्थांकर दिखे वह वास्तवमे महावीर का हि रुप हे। पार्श्वनाथ अर्थात पारसनाथ ,पारस एक ऐसि वस्तु दिखाए हे जिसके स्पर्श से हि लाेहा साेना बन जाते हे, वास्तवमे ऐसे काेइ वस्तुताे हे नहि पर इसारा हे कि हम जैसे जंगलगे बुद्धिवाला मानवको महावीर से मिले ज्ञानसे साेना समान मुल्यवान बनाना क्या पारस से कम हे महावीर ! ऐसे हि उनका दिया ज्ञानसे सभि मुल्यवान वनाना तभि " सव्व् भवतु मंगलम्" बने। चिन्तन करें महाशय ! महावीर ऐसि मुल्यवान बनाना चाहा पर इसारा न समझ पानेसे सभि महाेदय बहारसे महाविर जैसा दिखनेमे प्रतिश्पर्धामे रहे ; निर्वस्त्र रहना उन समान नहि यह ताे मानव से पशुत्वमे उतरना हे , अन्यथा न लगे - गीतामे शरिररुपि वस्त्र जब जिर्ण अर्थात कामका न हो ,जैसे हम अपने पहने काेइ वस्त्र बडलते वस्त्रकाे उतारते हे वैसे हि अात्माभि इस जिर्ण शरिरकाे छाेड नुतन या नए (मानव) शरिर रुपि वस्त्र धारण करते हे ,इसिलिए हम वास्तवमे अात्मा जाे शरिरके बिना नग्न या निर्वस्त्र हे , यहि दिखाने या समझ देने महावीर नग्न दिखे अौर यह सभि ज्ञान परमात्मासे प्राप्त हुवा ,वहि परमात्मा काे निरन्तर स्मरणमे रह सम्यककर्म करने का इसारा हे अात्मास्वरुपमे रह तप करना, इतना स्पष्ट समझानेमे अपना जीवन हम सभिके लिए समर्पण किया तभि ताे महा - वीर = महावीर बने हे। ऐसि शरिरकि नग्नता महावीर नहि यह ताे मानवीय मर्यादाका उलंघन हे चाहे जैनी हाे या अघाेरियाें ,यह अघाेरि पन भि अज्ञानताका पराकाष्ठा हे। काेहि ज्ञानसे नहि अज्ञानसे हे , जवकि ज्ञानकि नजर से अात्मास्वरुपमे निरन्तर रह परमात्मास्मृतिमे मस्त रहनेका ज्ञान न समझने से अन्य नशालु वस्तुवाेंका सेवन कर अमर्यादित बनना अघाेरी नहि यह ताे अति निश्कृष्ट कर्म हे। अपने हि नहि दुनियाकाे ढाेखा देना या दिग्भ्रमित करना हे । अन्यथा न लगे ,त्रुटीके लिए क्षमाप्रार्थी हुं। धन्यवाद !!!
भैया , यह जो आप title युक्त छोटी वीडियो देख रहे है यह कोई प्रवचन नही है यह तो आम जन मानस के मन मे उठती हुई जिज्ञासाएं है जो गुरुजी on the spot हल कर देते है ,,,,, वैसे जो दिगम्बर मुद्रा और महावीर भगवान बनने वाले आपके सवाल आज एक मूर्ख कबीर पंथ के नाम से अपनी अय्यासी करने वाले जेल बंद पाखंडी रामपाल ने बिना पूर्ण जानकारी और सत्य की खोज किए हुए और भी बहुत लोगों में फैली है।
@@shubhamjain1385 भाइ साहेव ! जाे ज्ञानी हे वह प्रवचन देता हे न हि नग्न घुमते हे, महावीर जैसा उधाहरणिय बनना हे , वह भि शारिरिक प्रदर्शन से नहि अात्मिक प्रदर्शन से, जब सत्यका बाेध हुए काे सत्य समझानेके लिए अात्मिक नग्नता काे दिखाए चलते हे, महाशयाेंका दिगम्बरि पन हि अात्मविराेधि कृया हे ,जवतक उन महाशयाें दिगम्वरि पन हे तबतक ज्ञानमे हे हि नहि पूरा तमस अौर अन- उपलब्धि पुर्ण अज्ञानयुक्त कर्म हि हे जिनसे काेइ ज्ञानका कर्म कभि बनेगे नहि यह धुर्व सत्य हे, अन्यथा न लगे ; ज्ञानका वास्तविक नग्नपनकाे धारणकरें , अज्ञानयुक्त शरिरकाे नग्न किए रहना हि इनका अधाेरिपन हे,जाे मानविय कर्म हे हि नहि यह ताे पशुत्वका व्यवहार दिखे इसिलिए परमपितापरमात्मा का सहस्र नामाेमे एक नाम हे पशुपति नाथ,। सत्यकाे सामने रखनेका प्रयत्न से किसिकाे कुछ अपशब्द लगे ताे क्षमाप्रार्थी हुँ ; जाे काेहि किसिका निन्दा स्तुतिमे संलग्न हाेता हे वह ताे मुढामानुषि हे ,शास्त्र हि कहते हे।धन्यवाद !!!
itna accha to Koi bhi nahi samjha sakta aap ko koti koti pranam maharaj Ji aap great ho
Ek tuhi nirankar ☺️
Thank you guru ji aapne bahut acha margdarshan kiya
नमोस्तु गुरूदेव🙏🏻
Tri baar namostu guru ji ❤🕉🙏🕉❤🕉🙏🕉❤🕉🙏🕉❤🕉🙏🕉❤🕉🙏🕉❤🕉🙏🕉❤🕉🙏🕉❤🕉🙏🕉❤🕉🙏🕉❤🕉🙏🕉❤🕉🙏🕉❤🕉🙏🕉
स्वामी जी ने बड़ी सरलता से गूढ़ तत्व को समझा दिया !
नमन है मुनि जी के चरणों में
Very well explain guru ji
सबका भला करो भगवान सबके कष्ट मिटे भगवान सबको सन्मति दे भगवान सब सुख सच हो सब दुख झूठ धन्यवाद परमात्मा आपका और सब देवी देवता और आत्मा ओंका र का नमो नमः
बारम्बार नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु मुनिश्री को 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 जरकारा गुरूदेव का जय जय जय गुरूदेव🙌🙌🙌🙌🙌🙌🙌🙌🙌🙌🙌🙌🙌
Jai Gurudev , very nice explained
Karmanye Va Dhikaraste Maa Faleshu Kadachan, Jai Gurudev 🙏
Jai Gurudev
राशी अलग है , ग्रह अलग है ,भाव अलग है , सभी बातों का सभी पर प्रभाव पड़ता है।
जब जन्म समय ही निश्चित नहीं है तो राशी कैसे निश्चित करोगे। गर्भ मे जिव कब पैदा हुआ यही निश्चित नहीं। जिव कब पैदा हो रहा है यह भी निश्चित नहीं। जिव नित्य गती मे है उसका ठहराव नहीं। ऐसा नहीं की बालक का जन्म हो रहा है और समय रुख गया हो। समय कभी ठहरता नहीं इसलिए जन्म समय निश्चित नहीं। जब जन्म समय ही निश्चित नहीं तो जन्म कुंडली कैसे बनेगी। और फलादेश सिद्ध कैसा होगा।
आज के पंडीत जन्म के बाद जन्म कुंडली बनाते है। यह गलत है। बालक गर्भ मे जितने दिन रहता है वे दीन भी तो जन्म के ही पकडना होगा न। गर्भ के जिव पर भी ग्रह नक्षत्र को परीनाम तो होगा न।
जिव कभी जन्म लेता नहीं जिव कभी मृत होता नहीं जिव कभी मुक्त होता नहीं जिव नित्य अमृत है। इसलिए फलज्योतीष बकवास है। सत्य कुछ भी नहीं।
@@dwaitastroguru5187 लेकिन तुम्हारे नाम के पीछे astro guru क्यों लिखा है
Thanks
Bahot khub Prabhu
Jai Gurudev !! Highly appreciated !!🙏🙏🙏
Thanks Gurudev🙏🙏
Namostu Namostu Namostu Gurudev Ji 🙏
Jai ho Gurudev namostu🙏🙏
Namostu gurudev
DIGVIJAY HERALAGE JJ
Namoastu grudev ji
Thank u Guru ji
Guru ji namosto ,maine ek hindu pariwar main janm liya hai, kya mai jain dharm apna sakta hun ?, kripaya marg darshan karen,main jain dharm se bachpan se hi bahut prabhavit hun
Jain Dharam kisi vyakti vishes ya cast ke liye nii hai jiske aachar vichar karam Jain jaise h to vo hi Jain h
@@vaishalijain6885 aapke dhram me bhot gyan h tyag vgrh sb thik h pr esa to blkl nhi mam ke jain dhram apnane wale log achee h vo real life me apne dhrm ko ek percent apply nhi krte h
नमस्कार
बहुत दूर की बात पुछ रही हूँ क्यूकी महाराज जी के साथ कुछ अंतर पैदल चलने की इच्छा है
इस सल उनका चातुर्मास कहा है ?
Andhe ke aage roye apne Nayan khoye,apne aap ko sarvgyani samje baithe he, ahnkar
🙏🙏🙏Namostu gurudev ji 🙏🙏🙏
Kodi namaskaram Guruji
प्रणाम आचार्य जी, 🙏🏻😊, एक प्रश्न है यहां की काल सर्प दोष क्या होता है और इसको कैसे पहचाना जाता है, व्यक्ति विशेष को कैसे समझ में आए उसको काल सर्प दोष है, तात्पर्य है कि जीवन में कोई उसका प्रभाव पड़ रहा है यह कैसे समझ में आता है.
Namastu Gurudev
namostu
Bagwaan balmikki me bhi jyotish ko Acha mana hai.
Sir yeh sab astrology to bataati hai aur ye vigyan hai andhvishwas nahi hai...🙏
Namsto Maharaj ji
🙏🙏🙏🙏🌺🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Mera janm January me hua tha pr har sal jabse mujhe yaad h December 15 se January 31 tak mujhe paresani hi hoti h mann bahut udas hara hua jindagi khatm si lagti h
ज्योतिष विज्ञान है
SADHU RAM KRISHNAPARAM HANS ne kaha tha agar grah ka prabhab kisi insaan ke uoer padhta he to insaan to kya prithvi ki haalat ke baare mein soch sakte ho. Yeh baat kisi bhakt ne jab baba se ek aadmi ne pochaa tha.To hum to itne bade sadhu ki baat ko kaise jhutla sakte hain?
Unhonne kaha tha insaan apne karmon hisab fal pata hai. Yehi baat bhi MAHATMA BUDDHA ne kahatha.Aajkaal ke baba ko unse jyads hi jnyan prapt hui hai.Asal main insaan ko aachhi karm karna hai naki grahnakhyata ko puja karne main time waste karen.Grah nakhsyatra kebal 5 bhuton se bani prithvi jaise grahon hain. Hum ne to kabhi suna nahin hain ki prithvi ke asar kisi par padne ki.,lekin ye suna hai ki sani,ya budh,bruhaspati ,mangalgrahon ke kharab asar bare main jarur suna hai. Yeh sab fantasism ke alawa kichh nahin.
Aap gyaani lagte ho. Ek baat Ka jawaab dijiye ki dusro ko taklef dene, kasth Dene, dhokha Dene, brimaani, kapat Karne waale badi acchi Life MEI jee rahe hai. Unko Kabhi Bhi kismat yaa bhagwan Kabhi sabak kyu Nahi Deta ki bandh Kar ghamand aur beimaani.
Not Rellivent
महोदय ! चिन्तन करें अापका जितने भि प्रवचन हे सभिमे देहअहंकार या देहका हि विषय अाता हे देहिका नहि, क्या देहिको पहचान नहि ! जैसे कुछ वाणी का शीर्षक पर चिन्तन करें - ग्रहोंका प्रभाव , पुजा किसकि, शकुन अपशकुन, ऋद्धिसिद्धि, कन्यादान, असाध्य रोग, मानसिक तनाव, विश्वास किस पर, वास्तुका जीवन मे प्रभाव अादि, कहाँ हे अध्यात्मका विषय सभितो देहाध्यका ,अाप दिगम्वरोंसे अपेक्षा अध्यात्मका करना भि नहि चाहिए क्योकि अापका ( समग्र मे जैनपथका) सम्प्रदायका तेरापंथि सहित सभि देहाध्यका सिवाए अध्यात्मका नहि, अन्यथा न लगे तो ! महावीर जैनने अध्यात्मकि अोर इसारा किया लेकिन उनका वह इसारा कोहिने समझनेका वा समझानेका प्रयत्न हि नहि हुए, उनका उपदेश सभि अात्मअभिमानका हे उसको यथार्थ न समझ पानेसे देहअभिमानका बना, नग्न या निर्वस्त्र रहना ज्ञान नहि अज्ञान हे, निरवस्त्र रहनेसे कोइ महावीर वन न सके।इसका भावार्थको किसिने चिन्तन अभितक न होने से अमर्यादित कर्म होते अाए हे। वस्त्रविहिन रहनेकन अर्थ बहुत गहरा हे, गर उस गहरेअर्थमे रहते अौर रहना सिखाते तो अाज जितना जैनीहे सभि महावीर हि बने।लेकिन अनर्थका कर्मसे महावीर का बडनाम हि कर अाए हे। उसके अलावा तरुण सागर , पुलकसागर महाश्रमण अादि सभि उसि अनर्थका मार्गहि पकड ग्लानी करनेसे चुके नहि। निवेदन हे उनका योगदानको शिखरसे भि उंचा ले जा सके तो उनका महात्म्य बुद्ध से भि अागे निकलेगी ,उनके हि समकालीन बुद्ध के अनुयायी चाहे कोइ क्वालिटिका न हो फिर भि सायद ज्यादा हि होगा, वह भि बुद्धकि बडनाममे हि जुटे हुए हे लेकिन पता नहि। कृपया महावीरका दिया हुवा उपदेशको यथार्थ भावअर्थको जान उसपर हमे अक्षरस् चलना हे, दिखावटि मे नहि, अभि सव कृया देखावटी हि हो रहा हे यथार्थ नहि। धन्यवाद !!!
Padbi Bikram Shrestha
@@jayjain4139 महाशय ! मात्र जैनका हि जय नहि सभि प्राणीयाेंकि जय हाेनी चाहिय नहि ताे जैनका हि नारा " सव्व भवतु मंगलव् " कैसे सिद्ध हो । महावीरने ताे समग्र जगतका कल्याण हेतु अपना जिवन बलिदान किए ,उसका दिया ज्ञानकाे जिवनमे संवारे अगर ताे उसका जीवन भि महावीर समान हि बने, बाहारसे सवारते अनगिनत मिला जाे मात्र दिखावा हि हे , उनका इसारा बाहरसे सजना नहि था, हाँ दिखावा बहारके हे ताेभि इसारा शरिरके नग्नताका नहि अात्माका नग्नताका हे । जाे भि तिर्थंकराें - पार्श्वनाथ अौर महावीर ने अहिंसा, सत्य ,अस्तेय, अपरिग्रह, जितेन्द्रियता, संयम,तपस्या इत्यादि पर हि जाेड दिया हे, यह सभि गुण शरिरसे नहि अात्मासे किए जानेसे हि " जय जिन्न्द्रिय " बन जाते हे। जाे भि गुणकाे प्रस्तुत किय वह सभि गीतामे प्रभावशालि ढंगसे प्रेरणादायक रुपमे (१६: १ - ३) कियागया हे। वास्तवमे `जैन´ शब्द हि जितेन्द्रियता या जय का वाचक हे। हम सभि अात्मावाे के साथ रहे कर्मेन्द्रिय अौर ज्ञानेन्द्रिय पर नियन्त्रण कर अात्मा राग-द्वेष पर विजय वने यहि ताे " जय जिनेन्द्रिय हे , जाे गीता २:६१,६४,६८, ३:३४ पर हर मानवकाे बारबार पुकार रहा हे। पुनश्र्च महावीर ने सम्यक विश्र्वास गीता १७:३, १८:३०,३१,३२ मे सम्यक बुद्धि का तथा १८:३३,३४,३५ मे सम्यक घृतिका स्पष्ट वर्णन किए हे, ऐसे हि सम्यक ज्ञान (गीता- १३:१)का साथमे ७:२, ९:१, तथा १४:१ मे भि सम्यकज्ञान का हि इसारा किय हे। इन सम्यक - विश्वास, ज्ञान अौर कर्म (गीता - १८:२४ से लेकर अनेक श्लोकाेंमे सम्यक-कर्मका परिचय हे) तिनाे काे समग्रमे " त्रिरत्न " का उपदेश महावीर ने दिए जाे गीतामे ताे प्रत्यकका स्वर - व्यन्जन सहित अभिव्यंजित किए हे। जाे पार्श्वनाथ शब्द के साथ अलग तिर्थांकर दिखे वह वास्तवमे महावीर का हि रुप हे। पार्श्वनाथ अर्थात पारसनाथ ,पारस एक ऐसि वस्तु दिखाए हे जिसके स्पर्श से हि लाेहा साेना बन जाते हे, वास्तवमे ऐसे काेइ वस्तुताे हे नहि पर इसारा हे कि हम जैसे जंगलगे बुद्धिवाला मानवको महावीर से मिले ज्ञानसे साेना समान मुल्यवान बनाना क्या पारस से कम हे महावीर ! ऐसे हि उनका दिया ज्ञानसे सभि मुल्यवान वनाना तभि " सव्व् भवतु मंगलम्" बने। चिन्तन करें महाशय ! महावीर ऐसि मुल्यवान बनाना चाहा पर इसारा न समझ पानेसे सभि महाेदय बहारसे महाविर जैसा दिखनेमे प्रतिश्पर्धामे रहे ; निर्वस्त्र रहना उन समान नहि यह ताे मानव से पशुत्वमे उतरना हे , अन्यथा न लगे - गीतामे शरिररुपि वस्त्र जब जिर्ण अर्थात कामका न हो ,जैसे हम अपने पहने काेइ वस्त्र बडलते वस्त्रकाे उतारते हे वैसे हि अात्माभि इस जिर्ण शरिरकाे छाेड नुतन या नए (मानव) शरिर रुपि वस्त्र धारण करते हे ,इसिलिए हम वास्तवमे अात्मा जाे शरिरके बिना नग्न या निर्वस्त्र हे , यहि दिखाने या समझ देने महावीर नग्न दिखे अौर यह सभि ज्ञान परमात्मासे प्राप्त हुवा ,वहि परमात्मा काे निरन्तर स्मरणमे रह सम्यककर्म करने का इसारा हे अात्मास्वरुपमे रह तप करना, इतना स्पष्ट समझानेमे अपना जीवन हम सभिके लिए समर्पण किया तभि ताे महा - वीर = महावीर बने हे। ऐसि शरिरकि नग्नता महावीर नहि यह ताे मानवीय मर्यादाका उलंघन हे चाहे जैनी हाे या अघाेरियाें ,यह अघाेरि पन भि अज्ञानताका पराकाष्ठा हे। काेहि ज्ञानसे नहि अज्ञानसे हे , जवकि ज्ञानकि नजर से अात्मास्वरुपमे निरन्तर रह परमात्मास्मृतिमे मस्त रहनेका ज्ञान न समझने से अन्य नशालु वस्तुवाेंका सेवन कर अमर्यादित बनना अघाेरी नहि यह ताे अति निश्कृष्ट कर्म हे। अपने हि नहि दुनियाकाे ढाेखा देना या दिग्भ्रमित करना हे । अन्यथा न लगे ,त्रुटीके लिए क्षमाप्रार्थी हुं। धन्यवाद !!!
भैया , यह जो आप title युक्त छोटी वीडियो देख रहे है यह कोई प्रवचन नही है यह तो आम जन मानस के मन मे उठती हुई जिज्ञासाएं है जो गुरुजी on the spot हल कर देते है ,,,,,
वैसे जो दिगम्बर मुद्रा और महावीर भगवान बनने वाले आपके सवाल आज एक मूर्ख कबीर पंथ के नाम से अपनी अय्यासी करने वाले जेल बंद पाखंडी रामपाल ने बिना पूर्ण जानकारी और सत्य की खोज किए हुए और भी बहुत लोगों में फैली है।
@@shubhamjain1385 भाइ साहेव ! जाे ज्ञानी हे वह प्रवचन देता हे न हि नग्न घुमते हे, महावीर जैसा उधाहरणिय बनना हे , वह भि शारिरिक प्रदर्शन से नहि अात्मिक प्रदर्शन से, जब सत्यका बाेध हुए काे सत्य समझानेके लिए अात्मिक नग्नता काे दिखाए चलते हे, महाशयाेंका दिगम्बरि पन हि अात्मविराेधि कृया हे ,जवतक उन महाशयाें दिगम्वरि पन हे तबतक ज्ञानमे हे हि नहि पूरा तमस अौर अन- उपलब्धि पुर्ण अज्ञानयुक्त कर्म हि हे जिनसे काेइ ज्ञानका कर्म कभि बनेगे नहि यह धुर्व सत्य हे, अन्यथा न लगे ; ज्ञानका वास्तविक नग्नपनकाे धारणकरें , अज्ञानयुक्त शरिरकाे नग्न किए रहना हि इनका अधाेरिपन हे,जाे मानविय कर्म हे हि नहि यह ताे पशुत्वका व्यवहार दिखे इसिलिए परमपितापरमात्मा का सहस्र नामाेमे एक नाम हे पशुपति नाथ,। सत्यकाे सामने रखनेका प्रयत्न से किसिकाे कुछ अपशब्द लगे ताे क्षमाप्रार्थी हुँ ; जाे काेहि किसिका निन्दा स्तुतिमे संलग्न हाेता हे वह ताे मुढामानुषि हे ,शास्त्र हि कहते हे।धन्यवाद !!!
I don't agree with you
Namostu gurudev
Namostu
Namostu Gurudev