स वेदैतत् परमं ब्रह्म धाम उपासते यत्र विश्वं निहितं भाति शुभ्रम्। पुरुषं ये ह्यकामा- स्ते शुक्रमेतदतिवर्तन्ति धीराः ॥ १ ॥ २७४ page ईशादि नौ उपनिषद् [ मुण्डक ३ सः- वह (निष्कामभाववाला पुरुष); एतत्-इस; परमम् परम; शुभ्रम्-विशुद्ध (प्रकाशमान); ब्रह्म धाम ब्रह्मधामको; वेद जान लेता है; यत्र जिसमें; विश्वम् सम्पूर्ण जगत्; निहितम् स्थित हुआ; भाति प्रतीत होता है; ये हि जो भी कोई; अकामाः निष्काम साधकः पुरुषम् उपासते परमपुरुषकी उपासना करते हैं; ते-वे; धीराः बुद्धिमान्; शुक्रम्-रजोवीर्यमय; एतत्-इस शरीरको; अतिवर्तन्ति-अतिक्रमण कर जाते हैं॥ १॥ व्याख्या - थोड़ा-सा विचार करनेपर प्रत्येक बुद्धिमान् मनुष्यकी समझमें यह बात आ जाती है कि इस प्रत्यक्ष दिखायी देनेवाले जगत्के रचयिता और परमाधार कोई एक परमेश्वर अवश्य हैं। इस प्रकार जिनमें यह सम्पूर्ण जगत् स्थित हुआ प्रतीत होता है, उन परम विशुद्ध प्रकाशमय धामस्वरूप परब्रह्मपरमात्माको समस्त भोगोंकी कामनाका त्याग करके निरन्तर उनका ध्यान करनेवाला साधक जान लेता है। यह बात निश्चित है कि जो मनुष्य उन परम पुरुष परमात्माकी उपासना करते हैं और एकमात्र उन्हींको चाहते हैं, वे सर्वथा पूर्ण निष्काम होकर रहते हैं। किसी प्रकारके भोगोंमें उनका मन नहीं अटकता, अतः वे इस रजोवीर्यमय शरीरको लाँघ जाते हैं। उनका पुनर्जन्म नहीं होता। इसीलिये उन्हें बुद्धिमान् कहा गया है; क्योंकि जो सार वस्तुके लिये असारको त्याग दे वही बुद्धिमान् है ॥ १ ॥
स वेदैतत् परमं ब्रह्म धाम उपासते यत्र विश्वं निहितं भाति शुभ्रम्। पुरुषं ये ह्यकामा- स्ते शुक्रमेतदतिवर्तन्ति धीराः ॥ १ ॥ २७४ page ईशादि नौ उपनिषद् [ मुण्डक ३ सः- वह (निष्कामभाववाला पुरुष); एतत्-इस; परमम् परम; शुभ्रम्-विशुद्ध (प्रकाशमान); ब्रह्म धाम ब्रह्मधामको; वेद जान लेता है; यत्र जिसमें; विश्वम् सम्पूर्ण जगत्; निहितम् स्थित हुआ; भाति प्रतीत होता है; ये हि जो भी कोई; अकामाः निष्काम साधकः पुरुषम् उपासते परमपुरुषकी उपासना करते हैं; ते-वे; धीराः बुद्धिमान्; शुक्रम्-रजोवीर्यमय; एतत्-इस शरीरको; अतिवर्तन्ति-अतिक्रमण कर जाते हैं॥ १॥ व्याख्या - थोड़ा-सा विचार करनेपर प्रत्येक बुद्धिमान् मनुष्यकी समझमें यह बात आ जाती है कि इस प्रत्यक्ष दिखायी देनेवाले जगत्के रचयिता और परमाधार कोई एक परमेश्वर अवश्य हैं। इस प्रकार जिनमें यह सम्पूर्ण जगत् स्थित हुआ प्रतीत होता है, उन परम विशुद्ध प्रकाशमय धामस्वरूप परब्रह्मपरमात्माको समस्त भोगोंकी कामनाका त्याग करके निरन्तर उनका ध्यान करनेवाला साधक जान लेता है। यह बात निश्चित है कि जो मनुष्य उन परम पुरुष परमात्माकी उपासना करते हैं और एकमात्र उन्हींको चाहते हैं, वे सर्वथा पूर्ण निष्काम होकर रहते हैं। किसी प्रकारके भोगोंमें उनका मन नहीं अटकता, अतः वे इस रजोवीर्यमय शरीरको लाँघ जाते हैं। उनका पुनर्जन्म नहीं होता। इसीलिये उन्हें बुद्धिमान् कहा गया है; क्योंकि जो सार वस्तुके लिये असारको त्याग दे वही बुद्धिमान् है ॥ १ ॥
Allah se kushti.... astaghfirullah.... ... kya bole, na hasi aati hai or na thik se rona aata hai... mai soch rahi hu jo isko follow karte hain vo kitne confusion me rehte honge Alhamdulillah ke Allah ne hame maa ki god me kalma ata kiya
स वेदैतत् परमं ब्रह्म धाम उपासते यत्र विश्वं निहितं भाति शुभ्रम्। पुरुषं ये ह्यकामा- स्ते शुक्रमेतदतिवर्तन्ति धीराः ॥ १ ॥ २७४ page ईशादि नौ उपनिषद् [ मुण्डक ३ सः- वह (निष्कामभाववाला पुरुष); एतत्-इस; परमम् परम; शुभ्रम्-विशुद्ध (प्रकाशमान); ब्रह्म धाम ब्रह्मधामको; वेद जान लेता है; यत्र जिसमें; विश्वम् सम्पूर्ण जगत्; निहितम् स्थित हुआ; भाति प्रतीत होता है; ये हि जो भी कोई; अकामाः निष्काम साधकः पुरुषम् उपासते परमपुरुषकी उपासना करते हैं; ते-वे; धीराः बुद्धिमान्; शुक्रम्-रजोवीर्यमय; एतत्-इस शरीरको; अतिवर्तन्ति-अतिक्रमण कर जाते हैं॥ १॥ व्याख्या - थोड़ा-सा विचार करनेपर प्रत्येक बुद्धिमान् मनुष्यकी समझमें यह बात आ जाती है कि इस प्रत्यक्ष दिखायी देनेवाले जगत्के रचयिता और परमाधार कोई एक परमेश्वर अवश्य हैं। इस प्रकार जिनमें यह सम्पूर्ण जगत् स्थित हुआ प्रतीत होता है, उन परम विशुद्ध प्रकाशमय धामस्वरूप परब्रह्मपरमात्माको समस्त भोगोंकी कामनाका त्याग करके निरन्तर उनका ध्यान करनेवाला साधक जान लेता है। यह बात निश्चित है कि जो मनुष्य उन परम पुरुष परमात्माकी उपासना करते हैं और एकमात्र उन्हींको चाहते हैं, वे सर्वथा पूर्ण निष्काम होकर रहते हैं। किसी प्रकारके भोगोंमें उनका मन नहीं अटकता, अतः वे इस रजोवीर्यमय शरीरको लाँघ जाते हैं। उनका पुनर्जन्म नहीं होता। इसीलिये उन्हें बुद्धिमान् कहा गया है; क्योंकि जो सार वस्तुके लिये असारको त्याग दे वही बुद्धिमान् है ॥ १ ॥
ATIF Reyyan 🎉
ATIF BHAI Rock 💪 Jewish Shock 😲
Zabardast
Masha Allah Atif Bhai Zabardast ❤️❤️❤️
Assalamualaikum amir bhai ❤
Ye padna jo deya he sanatni punarjanam ka bolne he unke leye,
स वेदैतत् परमं ब्रह्म धाम उपासते यत्र विश्वं निहितं भाति शुभ्रम्। पुरुषं ये ह्यकामा- स्ते शुक्रमेतदतिवर्तन्ति धीराः ॥ १ ॥
२७४ page
ईशादि नौ उपनिषद्
[ मुण्डक ३
सः- वह (निष्कामभाववाला पुरुष); एतत्-इस; परमम् परम; शुभ्रम्-विशुद्ध
(प्रकाशमान); ब्रह्म धाम ब्रह्मधामको; वेद जान लेता है; यत्र जिसमें; विश्वम् सम्पूर्ण जगत्; निहितम् स्थित हुआ; भाति प्रतीत होता है; ये हि जो भी कोई; अकामाः निष्काम साधकः पुरुषम् उपासते परमपुरुषकी उपासना करते हैं; ते-वे; धीराः बुद्धिमान्; शुक्रम्-रजोवीर्यमय; एतत्-इस शरीरको; अतिवर्तन्ति-अतिक्रमण कर जाते हैं॥ १॥
व्याख्या - थोड़ा-सा विचार करनेपर प्रत्येक बुद्धिमान् मनुष्यकी समझमें यह बात आ जाती है कि इस प्रत्यक्ष दिखायी देनेवाले जगत्के रचयिता और परमाधार कोई एक परमेश्वर अवश्य हैं। इस प्रकार जिनमें यह सम्पूर्ण जगत् स्थित हुआ प्रतीत होता है, उन परम विशुद्ध प्रकाशमय धामस्वरूप परब्रह्मपरमात्माको समस्त भोगोंकी कामनाका त्याग करके निरन्तर उनका ध्यान करनेवाला साधक जान लेता है। यह बात निश्चित है कि जो मनुष्य उन परम पुरुष परमात्माकी उपासना करते हैं और एकमात्र उन्हींको चाहते हैं, वे सर्वथा पूर्ण निष्काम होकर रहते हैं। किसी प्रकारके भोगोंमें उनका मन नहीं अटकता, अतः वे इस रजोवीर्यमय शरीरको लाँघ जाते हैं। उनका पुनर्जन्म नहीं होता। इसीलिये उन्हें बुद्धिमान् कहा गया है; क्योंकि जो सार वस्तुके लिये असारको त्याग दे वही बुद्धिमान् है ॥ १ ॥
स वेदैतत् परमं ब्रह्म धाम उपासते यत्र विश्वं निहितं भाति शुभ्रम्। पुरुषं ये ह्यकामा- स्ते शुक्रमेतदतिवर्तन्ति धीराः ॥ १ ॥
२७४ page
ईशादि नौ उपनिषद्
[ मुण्डक ३
सः- वह (निष्कामभाववाला पुरुष); एतत्-इस; परमम् परम; शुभ्रम्-विशुद्ध
(प्रकाशमान); ब्रह्म धाम ब्रह्मधामको; वेद जान लेता है; यत्र जिसमें; विश्वम् सम्पूर्ण जगत्; निहितम् स्थित हुआ; भाति प्रतीत होता है; ये हि जो भी कोई; अकामाः निष्काम साधकः पुरुषम् उपासते परमपुरुषकी उपासना करते हैं; ते-वे; धीराः बुद्धिमान्; शुक्रम्-रजोवीर्यमय; एतत्-इस शरीरको; अतिवर्तन्ति-अतिक्रमण कर जाते हैं॥ १॥
व्याख्या - थोड़ा-सा विचार करनेपर प्रत्येक बुद्धिमान् मनुष्यकी समझमें यह बात आ जाती है कि इस प्रत्यक्ष दिखायी देनेवाले जगत्के रचयिता और परमाधार कोई एक परमेश्वर अवश्य हैं। इस प्रकार जिनमें यह सम्पूर्ण जगत् स्थित हुआ प्रतीत होता है, उन परम विशुद्ध प्रकाशमय धामस्वरूप परब्रह्मपरमात्माको समस्त भोगोंकी कामनाका त्याग करके निरन्तर उनका ध्यान करनेवाला साधक जान लेता है। यह बात निश्चित है कि जो मनुष्य उन परम पुरुष परमात्माकी उपासना करते हैं और एकमात्र उन्हींको चाहते हैं, वे सर्वथा पूर्ण निष्काम होकर रहते हैं। किसी प्रकारके भोगोंमें उनका मन नहीं अटकता, अतः वे इस रजोवीर्यमय शरीरको लाँघ जाते हैं। उनका पुनर्जन्म नहीं होता। इसीलिये उन्हें बुद्धिमान् कहा गया है; क्योंकि जो सार वस्तुके लिये असारको त्याग दे वही बुद्धिमान् है ॥ १ ॥
Masha Allah ❤ ❤❤❤bhaiya
Allah se kushti.... astaghfirullah.... ... kya bole, na hasi aati hai or na thik se rona aata hai... mai soch rahi hu jo isko follow karte hain vo kitne confusion me rehte honge
Alhamdulillah ke Allah ne hame maa ki god me kalma ata kiya
Atif reyyan❤
Waah Atif Bhai Zabardast Atif Bhai Mja Aa Gya 😂
Asslam alikum
😂😂😂😂😂😂😂😂
Assalam walaikum
Meri gujaris hai mere bete ko sudhar dijie
😂😂😂
Yar isme aamir haq bhai hone chaiye the unki speciality hai
Bhai WhatsApp bandh hai aapka ??
Ji
@@halalroaster.2.0 are to raabta kaise Karu
स वेदैतत् परमं ब्रह्म धाम उपासते यत्र विश्वं निहितं भाति शुभ्रम्। पुरुषं ये ह्यकामा- स्ते शुक्रमेतदतिवर्तन्ति धीराः ॥ १ ॥
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ईशादि नौ उपनिषद्
[ मुण्डक ३
सः- वह (निष्कामभाववाला पुरुष); एतत्-इस; परमम् परम; शुभ्रम्-विशुद्ध
(प्रकाशमान); ब्रह्म धाम ब्रह्मधामको; वेद जान लेता है; यत्र जिसमें; विश्वम् सम्पूर्ण जगत्; निहितम् स्थित हुआ; भाति प्रतीत होता है; ये हि जो भी कोई; अकामाः निष्काम साधकः पुरुषम् उपासते परमपुरुषकी उपासना करते हैं; ते-वे; धीराः बुद्धिमान्; शुक्रम्-रजोवीर्यमय; एतत्-इस शरीरको; अतिवर्तन्ति-अतिक्रमण कर जाते हैं॥ १॥
व्याख्या - थोड़ा-सा विचार करनेपर प्रत्येक बुद्धिमान् मनुष्यकी समझमें यह बात आ जाती है कि इस प्रत्यक्ष दिखायी देनेवाले जगत्के रचयिता और परमाधार कोई एक परमेश्वर अवश्य हैं। इस प्रकार जिनमें यह सम्पूर्ण जगत् स्थित हुआ प्रतीत होता है, उन परम विशुद्ध प्रकाशमय धामस्वरूप परब्रह्मपरमात्माको समस्त भोगोंकी कामनाका त्याग करके निरन्तर उनका ध्यान करनेवाला साधक जान लेता है। यह बात निश्चित है कि जो मनुष्य उन परम पुरुष परमात्माकी उपासना करते हैं और एकमात्र उन्हींको चाहते हैं, वे सर्वथा पूर्ण निष्काम होकर रहते हैं। किसी प्रकारके भोगोंमें उनका मन नहीं अटकता, अतः वे इस रजोवीर्यमय शरीरको लाँघ जाते हैं। उनका पुनर्जन्म नहीं होता। इसीलिये उन्हें बुद्धिमान् कहा गया है; क्योंकि जो सार वस्तुके लिये असारको त्याग दे वही बुद्धिमान् है ॥ १ ॥