जब कबीर साहेब ने ली राजा बीर सिंह और ब्राह्मणी की परीक्षा | Sant Rampal Ji Animation | Kabir Saheb
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- Опубликовано: 26 окт 2024
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जब कबीर साहेब ने ली राजा बीर सिंह और ब्राह्मणी की परीक्षा | Sant Rampal Ji Animation | Kabir Saheb |
2D Animation Story | Sant Rampal Ji Maharaj| Dharti Upar Swarg | धरती ऊपर स्वर्ग | कबीर साहेब ने राजा बीर सिंह और उनकी पूरी सेना को बचाया |
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कुछ दिनों बाद एक दिन कबीर साहेब राजा बीर सिंह बघेल के पास आए हुए थे।
B: भगवन, अपने दास पर सारनाम की रजा कीजिए। क्योंकि सार नाम बिना तो मोक्ष संभव नहीं है।
G: हां राजन, सारनाम ही मोक्ष मंत्र है।
लेकिन आपको एक काम करना पड़ेगा।
B: क्यों नही गुरुदेव, आज्ञा दीजिए अपने दास को।
G: आपके इस नगर में आपकी एक भक्त बहन रहती है। उसका नाम चंद्रप्रभा है। उसने अपने जहर के आंगन में खुद के हाथो से कपास बोकर, गंगा जल से सिंचाई की, रूई काती है और अपने ही हाथो से धोती बनाई है। उससे वह ले आओ, फिर में आपको सारनाम दे दूंगा।
राजा बहुत खुस हुआ।
B: जेसी आपकी आज्ञा गुरुदेव।
G: लेकिन याद रखना, अगर वह स्वयं अपनी इच्छा से दे तभी लाना। जबरदस्ती मत करना।
B: जो आपकी आज्ञा भगवन। में तो धन्य हो गया।
राजा ने दो सेवक चंद्रप्रभा के घर भेज दिए।
S: राजा बीर देव सिंह बघेल आपसे मिलने आ रहे है।
चंद्रप्रभा और उसकी इकलौती बेटी डर गई की हमने ऐसी क्या गलती कर दी होगी।
राजा आया और चंद्रप्रभा से विनती करने लगा।
B: हे भक्त बहन। आपने जो धोती अपने हाथो से इसी आंगन में तैयार की है, वह मुझे दे दीजिए।
C: क्षमा करें राजन, में यह धोती आपको नही दे सकती।
B: क्यों बहन, मुझे गुरुदेव से सारनाम लेना है, और वे मुझे सारनाम ये धोती ले जाकर देने पर ही देंगे।
C: नही राजन, मेने यह धोती जगन्नाथ जी के लिए बनाई है। में उन्हें इसे सप्रेम भेंट करना चाहती हूं।
B: बहन, में तुम्हे इसके बदले पांच - सात गांव दे दूंगा। लेकिन ये धोती देदो।
C: राजन, में इसे किसी कीमत पर नही दे सकती। चाहे आप मेरी और मेरी बेटी की गर्दन काट दो, तो इसे ले जा सकते हो।
B: नही बहन में ऐसा नही करूंगा। अगर आप अपने खुद से देना चाहो तो से दो।
चंद्रप्रभा ने राजा को मना कर दिया।
उदास मन से राजा वापस आ गया।
B: गुरुदेव, उसने कहा है की वह उस धोती को केवल जगन्नाथ में ही भेंट करना चाहती हैं। किसी कीमत पर मुझे नही दे सकती।
G: कोई बात नही राजन, आप ऐसा करो, चंद्रप्रभा के साथ जगन्नाथ के लिए आपके दो सिपाही भेज दो। ताकि उसे रास्ते में कोई दिक्कत ना हो। जब वह वापस आ जायेगी, तो में आपको सारनाम की दीक्षा दे दूंगा।
राजा बीर सिंह बघेल की खुसी का कोई ठिकाना नही था और उस दिन इंतजार करने लगा।
अगले दिन राजा ने यह आदेश देकर अपने दो सैनिक चंद्रप्रभा के घर भेज दिए।
चंद्रप्रभा जगन्नाथ के लिए चल पड़ी।
जगन्नाथ मंदिर पहुंच कर चंद्रप्रभा ने वह धोती भेंट की।
C: हे भगवन, अपनी दासी की यह तुच्छ भेंट स्वीकार कीजिए।
तभी वह धोती वहां से उड़कर मंदिर के आंगन में आ गिरी और आकाशवाणी हुई।
A: अरे नादान, भगवान ने तो यह धोती राजा बीर सिंह द्वारा काशी में ही मंगवाली थी, वहां क्यूं भेंट नही की। ले जा इसे वहीं, यहां क्यों लाई है। परमात्मा तो वहीं बैठा है।
चंद्रप्रभा ब्राह्मणी को बहुत पश्चाताप हुआ और रोती हुई वहां से वापस चल पड़ी। अपने कर्मो को कोसती हुई चंद्रप्रभा काशी पहुंची।
कबीर साहेब उस समय राजा के महल में ही थे। चंद्रप्रभा ने धोती कबीर साहेब के चरणो में रख दी।
G: क्या हुआ बेटी, आपके जगन्नाथ ने धोती स्वीकार नही की क्या?
C: क्षमा करो भगवन, मुझे नही मालूम था की आप ही जगन्नाथ में बैठे लीला कर रहे हो।
तब चंद्रप्रभा और साथ गए दोनो सैनिकों ने पूरी कहानी बताई।
राजा को भी बहुत आश्चर्य हुआ की कबीर साहेब ही पूर्ण परमेश्वर है।
B: हे भगवन, हम तो तुच्छ बुद्धि के जीव है। में भी आपको केवल सिद्ध पुरुष और गुरु ही मानता था।
सच में मैं तो अभी सारनाम के काबिल ही नहीं हूं।
G: पुण्यात्माओं, जब तक आप गुरु को भगवान तुल्य नही स्वीकारते हो, तब तक आपकी भक्ति व्यर्थ जाती हैं।
"गुरु मानुष कर जानते, ते नर कहिए अंध"
"होवे दुखी संसार में, फिर आगे काल का फंद"
कबीर साहेब ने उनकी दीक्षा सुद्ध की और सत उपदेश दिया।