यदि आप इस प्रवाह पर उपलब्ध वक्तव्यों के बदले किसी प्रकार की आर्थिक सेवा निवेदित करना चाहते हैं तो आप निम्न विवरण पर अपनी इच्छानुसार धनराशि का भुगतान कर सकते हैं। If you want to provide any financial support for the videos of this channel, you may pay the desired amount at these details. Shri Bhagavatananda Guru Bank of Baroda Ratu Chatti Branch 54240100000958 IFSC - BARB0RATUCH (कोड का पांचवां वर्ण शून्य है | Fifth letter of code is Zero) UPI - nagshakti.vishvarakshak@okaxis
क्या बोलें गुरु जी, आपकी सब बातों का मैं समर्थन करता हूं आंख मूंद कर पर अगर सनातन और हिन्दू के घर वापसी इतना जटिल होगा तो कौन आना चाहेगा। सिकुड़ रहे हैं सिकुड़ते रहिए। ये तो जजिया कर से भी जटिल है।😪😪😪
Ghar wapsi naam ka koi system nhi hota hai kal ek mullo ki ghar wapsi karwake kshtriye banake tumhari behn ke saath byah de to karwadoge ?? maleech ek alag yoni hai , wo maleech alag rehke jayda se jyada kuch karna chahe to bhagwan ki bhakti apne adhikar me rehke kar sakte , hinduo ko chahiye ki wo apni jan sankhya badaye , ghar wapsi chhod de
यज्ञदेवम की शोध के आलोक में हम कह सकते हैं कि आर्य भारतवर्ष के ही मूलनिवासी थे और कहीं बाहर से आक्रमणकारी बनकर नहीं आए थे। बल्कि यहीं से बाहर गए। वन्देभारतमातरम्।
Swamiji aap acharya Prashant, arya Samaji aur anya Paakhandiyo ke saath shaastrarth ka manaa krte hai jo uchit bhi hai kintu Adi Shankaracharya jaise vidwaan ne bhi toh naastik bauddho aur jainiyo se shaastrarth krke unhe haraaya tha Mera maanana hai ki jo Dharm ki durgati us waqt thi usse kahi zyaada aaj hai isliye aap shaastrarth ka vichar kare Ye daas ki vinati hai aapse 🙏 Narayan 🙏
विश्व राष्ट्र राज धर्म = सनातन दक्ष धर्म । सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार। ब्रह्म = ज्ञान ब्रह्म वर्ण = ज्ञान शिक्षण विभाग। ब्राह्मण = ज्ञानी अध्यापक गुरूजन पुरोहित। मुख = ब्रह्मण बांह = क्षत्रिय पेटउदर = शूद्रण चरण = वैश्य। चरण चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय ट्रांसपोर्ट वैशम वर्ण कर्म होता है। अध्यापक = ब्रह्मन, सुरक्षण = क्षत्रिन, उत्पादक = शूद्रन और वितरक = वैशन। चार आश्रम = ब्रह्मचर्य + गृहस्थ + वानप्रस्थ + यतिआश्रम। चार वर्ण = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम। राजसेवक/ दासजन = वेतनमान पर कार्यरत सेवाजन। पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म वर्णाश्रम संस्कार।
गुरु भगवान जी एक प्रश्न मेरे मन में गूँजता रहता है कि भगवान कहीं यह तो नहीं चाहते कि कलियुग में पाप बढ़े,क्यूंकि कहीं ना कहीं कुछ भी होता है तो उसमे ईश्वर की ही इच्छा होती है, यदि कलियुग में पाप नहीं बढ़ेगा तो भगवान कल्कि कैसे आयेंगें? क्या बिना किसी पाप के होने के बावजूद भी ईश्वर अवतार लेते हैं. हो सकता है गुरु भगवान मेरा प्रश्न आपको क्रोध दिलाने का कारण बने लेकिन फिर भी आपसे क्षमा याचना करता हूँ
Dashami ko sham ko swalpahar karna hai Ekadashi ko sampoorna upawas Dwadashi ko harivas Khatam hone k bad subah hi jaldi bhojan karna hai Dwadashi ko evening me fir se swalpahar karna hai Ekadashi (Harivas kaal) me Vishnu Bhagwan ki puja aur naam smaran karna hai Bas itna hi hai
स्वामी जी यज्ञदेवम नामक एक विज्ञानी ने एक नये शोध में सिन्धु लिपि को पूर्णरूपेण पढ़ने का दावा किया है। मोहनजोदड़ो हडप्पा की सभ्यता (2600 ईसापूर्व) को वैदिक संस्कृति और सभ्यता साबित किया है। तथा प्राप्त शिलालेखों पर वैदिक संस्कृत भाषा में लिखा हुआ पाया है। और वैदिक संस्कृति 7000 ईसापूर्व से अक्षुण्ण प्रवाहमान रही है। वन्देभारतमातरम्।
मित्रो! प्रिंट सुधार करवाएं । जब ब्रह्म शब्द में ण जोड़कर ब्रह्मण लिख कर प्रिंट करते हैं तो शूद्र शब्द मे ण जोड़कर शूद्रण लिखकर प्रिंट क्यों नहीं करते हैं? यजुर्वेद अनुसार शूद्रं शब्द में बङे श पर बङे ऊ की मात्रा लगाकर अंक की मात्रा बिंदी लगती है जिसके कारण शूद्रन शूद्रण शूद्रम लिख प्रिंट कर बोल सकते हैं। अत: ब्रह्म में जोड़कर ब्रह्मण लिखा करते हैं तो फिर शूद्र में भी ण जोड़कर शूद्रण लिखना प्रिंट करना चाहिए और शूद्रण ही बोलना चाहिए । अर्थात शूद्रण को उत्पादक निर्माता तपस्वी उद्योगण ही बोलना चाहिए। वैदिक शब्द शूद्रण, क्षुद्र, अशूद्र तीनो शब्दो का मतलब अलग अलग समझना चाहिए। चार वर्ण कर्म विभाग मे कार्यरत मानव जन ब्रह्मण-अध्यापक, क्षत्रिय-सुरक्षक, शूद्रण-उत्पादक और वैश्य-वितरक होते हैं तथा पांचवेजन इन्ही चतुरवर्ण में वेतनभोगी होकर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन होते हैं।
Guruji kya bharat northeast state mein jitne bhi van mein upajati aur vanbasi rehte hain kya wo antargat aate hain hindu dharm ke hii aur varnashram ke hii ??
शूद्रं, क्षुद्र, अशूद्र और वृषल चारो वैदिक शब्दों के अलग अलग अर्थ हैं लेकिन लेखक प्रकाशक जन इनके अर्थ के अंतर को सही समझकर नहीं लिखते हैं फलस्वरूप सामन्य जन भी सही अर्थ नहीं समझते हैं।
to kya wo ras Khan ji ki taraf rhe per raskhan swayam muslim rahe kaha Brahm sambandh ke baad to wo bhi vaishnav hue to kya kerna chahiye ek muslim ko vaishalnav Santo ki sharan
श्री निग्रहाचार्य जी जय जगन्नाथ। बृहद्धर्म नाम से एक उप पुराण प्रचलित है। इसी पुराण के १.२५.२६ में खुद को १८ उप पुराणों में ये पुराण खुदको रखता है। पर इस पुराण का अन्य कहीं पर भी प्रमाण नही मिलता। स्कन्द, मत्स्य, कुर्म, गरुड़, देवी भागवत,पाराशर, वारुण पुराण इत्यादि में भी मैने देखा जहां १८ उप पुराण का नाम वर्णन है। पर इस पुराण का नाम कहीं नहीं आता। ऐसे परिस्थिति में क्या इस पुराण को प्रामाणिक माना जाए? अगर माना जाए तो किस आधार पर? क्या किसी पूर्वाचार्य जी ने इसे उद्धृत किया है? या किसी अन्य शास्त्र में इसका वर्णन आता है? इस पर आपका मत क्या है?
बिल्कुल शास्त्रीय और प्रामाणिक है। बृहद्विवेक, पुराण दिग्दर्शन आदि देखें। ये अवश्य है कि कुछ श्रेणी में भेद है। कहीं उपपुराणों के नाम वस्तुतः औपपुराणों के भी हैं और कहीं कुछ महापुराणों के नाम उपपुराणों में भी हैं। बस वर्गीकरण का भेद है, प्रामाणिकता का नहीं। शक्तितत्त्वविमर्श में इसे प्रामाणिक बता गया है। स्वामी करपात्रीजी ने भी वेदस्वरूपविमर्श में बृहद्धर्म पुराण से सन्दर्भ दिए हैं। बृहत् सनातन धर्म मार्तंड में भी इसे प्रामाणिक माना गया है।
क्योंकि हम यूट्यूब के कंटेंट मैनेजर और कस्टमर केयर नहीं हैं कि दिन भर फोन खोलकर बैठे रहें और सबकी सभी बातों का उत्तर देते रहें। बहुत से प्रश्नों का उत्तर हमने अन्य वीडियो में दिया हुआ है, बहुत का उत्तर टाइप करके समझाना सम्भव नहीं, बहुत से हमारी रुचि नहीं।
Bhai koi constructive kaam kar le. Kab tak past me jiyega aur logo ko criticise karta firega. Har cheez par sir complain karta hai, solution kuch hai nahi. Good bye karen
यदि आप इस प्रवाह पर उपलब्ध वक्तव्यों के बदले किसी प्रकार की आर्थिक सेवा निवेदित करना चाहते हैं तो आप निम्न विवरण पर अपनी इच्छानुसार धनराशि का भुगतान कर सकते हैं।
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Guru Ji Kya sikh hindu he? Ager koi sikh krishna bhakt he vo hindu ban na chata he to kya vo hindu ban sakta he?
जय मॉं भगवती जय हो सत्य सनातन धर्म की जय हो श्री निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु महाराज जी की जय 🌹🙏🌷🙏🪷🙏🌼🙏🌻🙏🌹🌺🏵️🪷🌷
बड़ा दिव्य स्वरुप दिख रहा है गुरु भगवान जी इस वीडियो में 🌟🌟🌟🌟🌟
जय हो प्रभु सत्य वचन
🙏🙏🙏🙏🙏
Mahraj ji dandvat
नारायण नारायण 🌺🙏
Jai Shree ManNarayan
Nigraha charya Ji Maharaj 🙏🙏🌹🥀🥀🥀🌹🙏🌹🥀🙏🌹🙏🙏🌹🥀🙏🌹🥀🙏🙏🙏🙏🌹🥀🙏🌹🙏🙏🌹🙏🙏🌹🙏🙏🙏🙏
राम राम
जय रघुनन्दन
सादर जय जय सियाराम
श्री मन नरायण महाराज जी
क्या बोलें गुरु जी, आपकी सब बातों का मैं समर्थन करता हूं आंख मूंद कर
पर अगर सनातन और हिन्दू के घर वापसी इतना जटिल होगा तो कौन आना चाहेगा। सिकुड़ रहे हैं सिकुड़ते रहिए। ये तो जजिया कर से भी जटिल है।😪😪😪
Ghar wapsi naam ka koi system nhi hota hai kal ek mullo ki ghar wapsi karwake kshtriye banake tumhari behn ke saath byah de to karwadoge ??
maleech ek alag yoni hai , wo maleech alag rehke jayda se jyada kuch karna chahe to bhagwan ki bhakti apne adhikar me rehke kar sakte , hinduo ko chahiye ki wo apni jan sankhya badaye , ghar wapsi chhod de
Jay shree Ram Ramji 😊🎉❤
गुरु जी प्रणाम ❤❤
कोई बात नहीं हम जैन धर्म में घर वापसी करवा देंगे ।
maharaj ji ekadashi vrat 26 ko h ya 27 ko
यज्ञदेवम की शोध के आलोक में हम कह सकते हैं कि आर्य भारतवर्ष के ही मूलनिवासी थे और कहीं बाहर से आक्रमणकारी बनकर नहीं आए थे। बल्कि यहीं से बाहर गए। वन्देभारतमातरम्।
चारकर्म = शिक्षण + शासन + उद्योग + व्यापार
चार वर्ण = ब्रह्म + क्षत्रम + शूद्रम + वैशम।
ब्रह्म वर्ण = ज्ञानी वर्ग।
क्षत्रम वर्ण = ध्यानी वर्ग।
शूद्रम वर्ण = तपसी वर्ग।
वैशम वर्ण = तमसी वर्ग।
1- अध्यापक चिकित्सक = ब्रह्मन
2- सुरक्षक चौकीदार = क्षत्रिय
3- उत्पादक निर्माता = शूद्रन
4- वितरक वणिक = वैश्य
पांचवेजन वेतनमान पर कार्यरत = दासजन सेवकजन राजसेवक ।
Ram ram
Swamiji aap acharya Prashant, arya Samaji aur anya Paakhandiyo ke saath shaastrarth ka manaa krte hai jo uchit bhi hai kintu Adi Shankaracharya jaise vidwaan ne bhi toh naastik bauddho aur jainiyo se shaastrarth krke unhe haraaya tha
Mera maanana hai ki jo Dharm ki durgati us waqt thi usse kahi zyaada aaj hai isliye aap shaastrarth ka vichar kare
Ye daas ki vinati hai aapse 🙏
Narayan 🙏
विश्व राष्ट्र राज धर्म = सनातन दक्ष धर्म ।
सतयुग दक्षराज वर्णाश्रम संस्कार।
ब्रह्म = ज्ञान
ब्रह्म वर्ण = ज्ञान शिक्षण विभाग।
ब्राह्मण = ज्ञानी अध्यापक गुरूजन पुरोहित।
मुख = ब्रह्मण
बांह = क्षत्रिय
पेटउदर = शूद्रण
चरण = वैश्य।
चरण चलाकर ही व्यापार वितरण वाणिज्य क्रय विक्रय ट्रांसपोर्ट वैशम वर्ण कर्म होता है।
अध्यापक = ब्रह्मन,
सुरक्षण = क्षत्रिन,
उत्पादक = शूद्रन और
वितरक = वैशन।
चार आश्रम = ब्रह्मचर्य + गृहस्थ + वानप्रस्थ + यतिआश्रम।
चार वर्ण = शिक्षण-ब्रह्म + सुरक्षण-क्षत्रम + उत्पादन-शूद्रम + वितरण-वैशम।
राजसेवक/ दासजन = वेतनमान पर कार्यरत सेवाजन।
पौराणिक वैदिक सनातन दक्षधर्म वर्णाश्रम संस्कार।
महाराज जी प्रणाम, आपने एक बार बताया था की किसी तंत्र ग्रन्थ में भी नारायण कवच है, पर वो फेसबुक अकाउंट बंद हो गया है, कृपया आप बता सकते फिर से ??
गुरु भगवान जी एक प्रश्न मेरे मन में गूँजता रहता है कि भगवान कहीं यह तो नहीं चाहते कि कलियुग में पाप बढ़े,क्यूंकि कहीं ना कहीं कुछ भी होता है तो उसमे ईश्वर की ही इच्छा होती है, यदि कलियुग में पाप नहीं बढ़ेगा तो भगवान कल्कि कैसे आयेंगें? क्या बिना किसी पाप के होने के बावजूद भी ईश्वर अवतार लेते हैं. हो सकता है गुरु भगवान मेरा प्रश्न आपको क्रोध दिलाने का कारण बने लेकिन फिर भी आपसे क्षमा याचना करता हूँ
गुरु जी में एकादशी व्रत प्रारम्भ करना चाहता हूं। एकादशी व्रत प्रारम्भ करने के लिए शास्त्रीय विधि क्या है जी
Dashami ko sham ko swalpahar karna hai
Ekadashi ko sampoorna upawas
Dwadashi ko harivas Khatam hone k bad subah hi jaldi bhojan karna hai
Dwadashi ko evening me fir se swalpahar karna hai
Ekadashi (Harivas kaal) me Vishnu Bhagwan ki puja aur naam smaran karna hai
Bas itna hi hai
Maharaj agar koi vyakti bina bhav ke name jap kare jabrjasti to kya to kya uski bhagvtaprapti ho jayegi kripya marg darsan kare maharaj ji
स्वामी जी यज्ञदेवम नामक एक विज्ञानी ने एक नये शोध में सिन्धु लिपि को पूर्णरूपेण पढ़ने का दावा किया है। मोहनजोदड़ो हडप्पा की सभ्यता (2600 ईसापूर्व) को वैदिक संस्कृति और सभ्यता साबित किया है। तथा प्राप्त शिलालेखों पर वैदिक संस्कृत भाषा में लिखा हुआ पाया है। और वैदिक संस्कृति 7000 ईसापूर्व से अक्षुण्ण प्रवाहमान रही है। वन्देभारतमातरम्।
Maharaj ji name jap kya bina bhav se Japte hi kya mughe bhagvat prapti kar sakte hi
Nahi hoga
@sachkopahchano koi hi be Tu sale haram khor
मित्रो! प्रिंट सुधार करवाएं ।
जब ब्रह्म शब्द में ण जोड़कर ब्रह्मण लिख कर प्रिंट करते हैं तो शूद्र शब्द मे ण जोड़कर शूद्रण लिखकर प्रिंट क्यों नहीं करते हैं?
यजुर्वेद अनुसार शूद्रं शब्द में बङे श पर बङे ऊ की मात्रा लगाकर अंक की मात्रा बिंदी लगती है जिसके कारण शूद्रन शूद्रण शूद्रम लिख प्रिंट कर बोल सकते हैं। अत: ब्रह्म में जोड़कर ब्रह्मण लिखा करते हैं तो फिर शूद्र में भी ण जोड़कर शूद्रण लिखना प्रिंट करना चाहिए और शूद्रण ही बोलना चाहिए । अर्थात शूद्रण को उत्पादक निर्माता तपस्वी उद्योगण ही बोलना चाहिए।
वैदिक शब्द शूद्रण, क्षुद्र, अशूद्र तीनो शब्दो का मतलब अलग अलग समझना चाहिए।
चार वर्ण कर्म विभाग मे कार्यरत मानव जन ब्रह्मण-अध्यापक, क्षत्रिय-सुरक्षक, शूद्रण-उत्पादक और वैश्य-वितरक होते हैं तथा
पांचवेजन इन्ही चतुरवर्ण में वेतनभोगी होकर कार्यरत जनसेवक नौकरजन दासजन सेवकजन होते हैं।
Guruji kya bharat northeast state mein jitne bhi van mein upajati aur vanbasi rehte hain kya wo antargat aate hain hindu dharm ke hii aur varnashram ke hii ??
😅कौन सा वेद पढ़ रहे हो गुरु जी?
Tumhara bageshwar dhongi too parta hi nhi
शूद्रं, क्षुद्र, अशूद्र और वृषल चारो वैदिक शब्दों के अलग अलग अर्थ हैं लेकिन लेखक प्रकाशक जन इनके अर्थ के अंतर को सही समझकर नहीं लिखते हैं फलस्वरूप सामन्य जन भी सही अर्थ नहीं समझते हैं।
to kya wo ras Khan ji ki taraf rhe
per raskhan swayam muslim rahe kaha Brahm sambandh ke baad to wo bhi vaishnav hue to kya kerna chahiye ek muslim ko vaishalnav Santo ki sharan
श्री निग्रहाचार्य जी जय जगन्नाथ। बृहद्धर्म नाम से एक उप पुराण प्रचलित है। इसी पुराण के १.२५.२६ में खुद को १८ उप पुराणों में ये पुराण खुदको रखता है। पर इस पुराण का अन्य कहीं पर भी प्रमाण नही मिलता। स्कन्द, मत्स्य, कुर्म, गरुड़, देवी भागवत,पाराशर, वारुण पुराण इत्यादि में भी मैने देखा जहां १८ उप पुराण का नाम वर्णन है। पर इस पुराण का नाम कहीं नहीं आता। ऐसे परिस्थिति में क्या इस पुराण को प्रामाणिक माना जाए? अगर माना जाए तो किस आधार पर? क्या किसी पूर्वाचार्य जी ने इसे उद्धृत किया है? या किसी अन्य शास्त्र में इसका वर्णन आता है? इस पर आपका मत क्या है?
बिल्कुल शास्त्रीय और प्रामाणिक है। बृहद्विवेक, पुराण दिग्दर्शन आदि देखें। ये अवश्य है कि कुछ श्रेणी में भेद है। कहीं उपपुराणों के नाम वस्तुतः औपपुराणों के भी हैं और कहीं कुछ महापुराणों के नाम उपपुराणों में भी हैं। बस वर्गीकरण का भेद है, प्रामाणिकता का नहीं। शक्तितत्त्वविमर्श में इसे प्रामाणिक बता गया है। स्वामी करपात्रीजी ने भी वेदस्वरूपविमर्श में बृहद्धर्म पुराण से सन्दर्भ दिए हैं। बृहत् सनातन धर्म मार्तंड में भी इसे प्रामाणिक माना गया है।
Swamiji aapne mere prashn ka uttar kyu nhi diya 😢
क्योंकि हम यूट्यूब के कंटेंट मैनेजर और कस्टमर केयर नहीं हैं कि दिन भर फोन खोलकर बैठे रहें और सबकी सभी बातों का उत्तर देते रहें। बहुत से प्रश्नों का उत्तर हमने अन्य वीडियो में दिया हुआ है, बहुत का उत्तर टाइप करके समझाना सम्भव नहीं, बहुत से हमारी रुचि नहीं।
@@SwamiNigrahacharya क्षमा करें स्वामी जी 🙏
Badiya answer diya 😂
Bhai koi constructive kaam kar le. Kab tak past me jiyega aur logo ko criticise karta firega.
Har cheez par sir complain karta hai, solution kuch hai nahi.
Good bye karen
Jai Shree ManNarayan
Nigraha charya Ji Maharaj 🙏🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🙏🌹🥀🥀🌹🙏🙏🌹🙏🙏🌹🙏🙏🌹🥀🙏🙏🙏🙏🌹🥀🥀🥀🥀🌹🙏🌹🙏🌹🙏🙏
Jai Shree ManNarayan
Nigraha charya Ji Maharaj 🙏🙏🌹🙏🙏🙏🙏🌹🥀🙏🌹🥀🥀🌹🙏🙏🙏🙏🙏🌹🥀🙏🙏🙏🙏🙏🌹🥀🥀🌹🌹🙏🌹🥀🥀🥀🥀🥀🌹🙏🌹🙏🙏🌹🥀🙏🙏🌹🙏🙏🌹🙏🌹🙏
Jai Shree ManNarayan
Nigraha charya Ji Maharaj 🙏🙏🌹🥀🥀🌹🙏🌹🥀🥀🥀🌹🙏🌹🥀🙏🌹🥀🙏🌹🥀🙏🌹🙏🌹🥀🥀🥀🥀🥀🌹🌹🙏🙏🙏🙏
Jai Shree ManNarayan
Nigraha charya Ji Maharaj 🙏 🙏🌹🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🙏🌹🌹🙏🙏🌹🙏🙏🙏🌹🙏🙏🙏🙏🙏🌹🙏🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌹