क्या श्री राम ने शिवलिंग की पूजा की थी? सत्यार्थ प्रकाश, ग्यारहवाँ समुल्लास। आचार्य अंकित प्रभाकर
HTML-код
- Опубликовано: 15 окт 2024
- सत्यार्थ प्रकाश को ऑनलाइन पढ़ने के लिए- satyarthprakash...
वेदों को ऑनलाइन पढ़ें-
www.onlineved....
vedicscripture...
xn--j2b3a4c.co...
सनातन धर्म के प्रचार में आप अपने सामर्थ्य के अनुसार हमें सहयोग कर सकते हैं।
हमारा खाता विवरण इस प्रकार है-
खाताधारक- अंकित कुमार
बैंक- State Bank of India
Branch- station road, ajmer
A/C no. 33118016323
IFSC- SBIN0031104
UPI- 7240584434@upi
१. सत्यार्थ प्रकाश - रात्रि 8:30 बजे से (यू-ट्यूब पर)
२. योग दर्शन - प्रातः 6 बजे से (ज़ूम पर)
३. ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका - गुरुवार प्रातः 5:30 बजे से (ज़ूम पर)
हमारी कक्षाओं से जुड़ने के लिये इस लिंक पर जाकर समूह से जुड़ें
chat.whatsapp....
हमारे चैनल की सभी कक्षाओं को क्रम से देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें
योग दर्शन
• योग दर्शन
ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका
• Rigved-aadi Bhaashya B...
अध्यात्म
• अध्यात्म
प्रथम समुल्लास
• सत्यार्थ प्रकाश (प्रथम...
द्वितीय समुल्लास
• सत्यार्थ प्रकाश (दूसरा...
तृतीय समुल्लास
• सत्यार्थ प्रकाश (तीसरा...
चतुर्थ समुल्लास
• सत्यार्थ प्रकाश (चौथा ...
पंचम समुल्लास
• सत्यार्थ प्रकाश (पाँचव...
षष्ठ समुल्लास
• सत्यार्थ प्रकाश (छठा स...
सप्तम समुल्लास
• सत्यार्थ प्रकाश (सातवा...
आठवाँ समुल्लास
• सत्यार्थ प्रकाश (आठवाँ...
नौवाँ समुल्लास
• सत्यार्थ प्रकाश (नौवाँ...
दसवाँ समुल्लास
• सत्यार्थ प्रकाश (दसवाँ...
ग्यारहवाँ समुल्लास
• सत्यार्थ प्रकाश (ग्यार...
सत्यार्थ प्रकाश सार
• सत्यार्थ प्रकाश सार
ओऊम सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जय
काफी सार्थक एवं ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई।
सत्य ही कह रहे कह रहे हो भैया सत्य को सामने लाने के लिए धन्यवाद
बहुत सुंदर । आप मिलने योग्य है ।
जय हो,सत्य सनातन वैदिक धर्म की ,आप प्रहरियो की जय हो,
जय हो सनातन वैदिक धर्म की।।
Hamein vedik dharam ko gehraai se samjhne kee zaroorat hei
Om
आचार्य जी को सादर प्रणाम
जय आर्य समाज
जय महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी 🙏🏻🙏🏻
ओम् नमस्ते आचार्य जीं जय सनातन
Sanatan ko bhee gehrai se samjhne kee zaroorat
सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय हो।
ॐ नमस्ते जी
Bahut tarkik vichar aur jankari hay
बहुत ही सार्थक प्रयास है।
बहुत अच्छी तरह से समझ आ गई आचार्य जी 🙏🏻🙏🏻
आर्य समाज की जय आचार्य जी नमस्ते
Jai shree Ram
अच्छी जानकारी है। साधुवाद
बहुत-बहुत धन्यवाद आचार्य जी, सत्य का उद्घाटन करने के लिए आप धन्यवाद के पात्र हैं।
विद्वानों को जनमानस से ऐसे तथ्यों को दूर करने का प्रयास करना ही चाहिए।
जय सनातन धर्म की।
सादर नमस्ते जी।
🙏🙏🙏🙏🙏 pranaam guruji 🙏🙏🙏🙏
बहुत अच्छा विश्लेषण किया है रामायण के संदर्भ में
मोर मन यह परम कल्पना। करिया हूं यहां शंभू शंभू स्थापना ।।
Ati sundr jay ho
Satya kah rahe hain . Thanks .
Har har mahadev ❤
ओ३म्🚩 नमस्ते आचार्य जी🙏
वैदिक धर्म की जय
ओ३म् नमस्ते जी 🙏
🕉️ Jai shree Ram ❤❤
ओ३म सादर नमस्ते आचार्य जी 🙏
आर्य समाज के बहुत से बहादुर फेसबुक पर कूदते हैं पर आपका सम्बोधन बहुत ही सुन्दर वीडियो। आपको सुनते रहेंगे ❤❤❤❤❤
श्री तुलसीदास दास जी राम चरित मानस में लिखा है चौपाई मोरे मन यह परम कल्पना । करिहहु यहां शंभु थापना।।
Jai shree Ram 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩 Jai ved 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
आर्य समाज अमर रहे स्वामी दयानंद की जय
नमस्ते आचार्य जी
जय श्री राम
Just I have gone through Valmiki Ramayan Yudhkand Sarg 123 Shlok Nos 19 to 21 after your yutube pravachan
अत्रेति प्रकृते विशेषणादेव विभोरपि भगवत: स्थानविशेषेभिव्यक्ति: लिङ्गरूपेण सिद्ध्यति
कठोपनिषद के अनुसार परमात्मा अलिंग है -
*अव्यक्तात्तु परः पुरुषो व्यापकोऽलिङ्ग एव च । यं ज्ञात्वा मुच्यते जन्तुरमृतत्वं च गच्छति ॥* कठोपनिषद २.३.८
- अव्यक्त वा सक्ष्म मूल प्रकृति से भी सूक्ष्म परस्मात्म-पुरुष सर्वव्यापक एवं अलिंग-चिह्नरहित है, उसे जानने वाला जीवात्मा मुक्त हो जाता है और अमृतत्व को प्राप्त होता है ॥८॥
ओ३म् ओ३म् ओ३म्
🙏🙏
धन निरंकार जी
I agree with you
सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय हो आर्यावर्त की जय हो भारत माता की जय हो आर्य समाज अमर रहे वेद की ज्योति जलती रहे ओम का झंडा ऊंचा रहे आचार्य जी को नमस्ते
वैदिक धर्म की जय कैसे होगी ?
आप वैदिक और पौराणिक में बंटकर चूर्ण हो रहे हैं पिसे को क्या पीसना|
वेद तो श्रीमन नारायण के स्वांस से प्रकट हु़वा है इसीलिए श्री नारायण ही परब्रह्म है वो साकार भी है
हिन्दु या सनातन धर्म नही
मानवता पर कलंक है
जनेऊ का जहरीला डंक है
हिन्दु या सनातन धर्म नही
मानवता पर कलंक है
जनेऊ का जहरीला डंक है
शिवा का अर्थ परमात्मा लिंग का अर्थ कामवासना और ऋग्वेद 10 में मंडल में तो खुद ही कहा गया है कि ईश्वर की कामना से ही यह जगत की उत्पत्ति हुई गीता में भी श्री कृष्णा कहां है की प्रकृति याेनी है और उसके गर्भ में बीज डालने वाला मैं पिता पुरुषोत्तम हू फिर शिवलिंग पूजा गलत क्योंइस संसार में हर एक जीव की उत्पत्ति माता और पिता से ही हुई है माता की योनि पिता का लिंग फिर चाहे वह वेद के ऋषि हो चाहे कृष्ण हो चाहे दयानंद सरस्वती हो चाए आप और मैं हूं लिंग और योनि पूजा सनातन है इनको प्रमाण की जरूरत नहीं गहराई के अनुभव की जरूरत है
ईश्वर ना तो मनुष्य की तरह और प्रकृति भी न नारी की तरह होती है। ईश्वर सर्व शक्तिमान चेतन और प्रकृति त्रिगुणात्मक जड़ पदार्थ है ईश्वर अपनी इच्छा शक्ति से प्रकृति में कंपन पैदा कर देता है और सृष्टि बनने लगती है। वह ईश्वर पुरुष की तरह प्रकृति को योनि मानकर संभोग नहीं करता है। ऐसी घिनौनी कल्पना वेद विरुद्ध वामपंथियो ने महान योगी शिव को कलंकित करने के लिए की है।
👉 पूजा तो परमात्मा की करनी चाहिए और यही पूजा सनातन है। शरीर और शारीरिक अंग यह प्रकृति के विकार है, न तो यह जीवात्मा हैं और न परमात्मा। जो संसार को बनाने की कामना करता है, जो सबका माता-पिता, सृष्टि को बनाने वाला और मनुष्य के शरीरों को बनाने वाला परमात्मा है, उसकी पूजा को छोड़कर शरीर और उसके अंगों के चित्र आदि प्राकृतिक विकारों की पूजा नहीं करनी चाहिए।
👉 और श्री कृष्ण ने गीता में कहीं यह नहीं लिखा कि लिंग और योनि की पत्थर आदि से मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करो, परंतु परमात्मा की उपासना के लिए उन्होंने ध्यानयोग की विधि बताई है और विशेष कर उसका वर्णन छठे अध्याय में किया है। योगदर्शन ग्रंथ में भी परमात्मा की उपासना के लिए योग अर्थात् ध्यान और समाधि आदि का वर्णन है।
👉 यह ठीक है कि काम द्वारा मनुष्य के लिंग और योनि के प्रयोग से संतानों की उत्पत्ति होती है, परंतु वेद और गीता में ब्रह्मचर्य को भी विशेष स्थान दिया गया है कि इन अंगों पर संयम किया जाए। इसलिए इनको वस्त्रों से ढक कर भी रखा जाता है। यह कहीं गीता में नहीं लिखा कि उनको खुला करके लोगों को सार्वजनिक दिखाया जाए अथवा इनकी फोटो और मूर्ति बनाकर सार्वजनिक रूप से प्रचारित किया जाए और इनको भोग लगाया जाए, जैसा कि मंदिरों में होता है।
👉 फिर जो पत्थर के लिंग बनाते हैं, वह कुछ खाते तो है नहीं, फिर व्यर्थ में लोगों को दिखावा क्यों किया जाता है, कि इनके द्वारा हम परमात्मा को भोग लगा रहे हैं। गीता में तो काम, क्रोध और लोभ को नरक का द्वार भी माना है। एक जगह तो श्रीकृष्ण ने गीता में यह भी लिखते हैं कि काम के कारण मनुष्य का ज्ञान ढका रहता है, इसलिए काम को मारो। सीधी सी बात है, जहां काम है, वहां ब्रह्मचर्य और संयम का महत्व उससे भी अधिक है, जो कि योग की सीढ़ी का काम करते हैं। यह शिवलिंग की पूजा सनातन नहीं है, योग हमारी सनातन विद्या है, जिसके द्वारा परमात्मा की उपासना की जाती है। महर्षि पतंजलि अष्टांगयोग में योग के अंतर्गत ब्रह्मचर्य को भी स्थान देते हैं। गीता में कहां लिखा है कि षुरुष के लिंग और नारी की योनि की मूर्ति बनाकर उसे ईश्वर मानकर दूध, जलादि का भोग लगाओ? प्रिय बंधु! ईश्वर की उपासना बाहर नहीं, भीतर अपने अंतरात्मा में होती है, जहां ईश्वर मिल सकता है। इसलिए गीता में कहा है कि योगी उस असीम ईश्वरीय परमानंद का अनुभव करता है, जो कि उसकी अंतरात्मा में है -
*🌷बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत् सुखम्। स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते॥🌷* - गीता ५/२१
*पदार्थः* - (बाह्य-स्पर्शेषु अ-सक्त-आत्मा) बाह्य-स्पर्शों में अनासक्त आत्मज्ञानी (विन्दति) प्राप्त करता है, [उस] (सुखम्) सुख को (यत् आत्मनि) जो आत्मा में है। (सः ब्रह्म-योग-युक्त-आत्मा) वह ब्रह्म-योग से युक्त रहनेवाला आत्मज्ञानी (अक्षयम् सुखम् अश्नुते) अक्षय सुख को सेवन करता है।
*भावार्थः* - जो आत्मज्ञानी इंद्रियों द्वारा प्राप्त होने वाले बाहरी विषयों के सुख में अनासक्त होकर ध्यानोपासना द्वारा ब्रह्मयोग से युक्त होता है, वह उस ईश्वरीय सुख वा आनंद को प्राप्त करता है, जो उसके आत्मा में विद्यमान है और जो अक्षय सुख कहलाता है।
Jai हो ऋषि Dayanand जी
यज्ञ और संध्या उपासना ही आर्यो की पहचान है राम ने यज्ञ की रक्षा के लिए धनुष उठाया ना की पाषाण की रक्षा के लिए।।
आर्य समाज के संस्थापक महात्मा दयानंद सरस्वती जी द्वारा लिखित धार्मिक पुस्तक का हमने अध्ययन तो नहीं किया है कुछ कुछ सुना है आप धन्य है हालांकि कुछ टिप्पणी करता को देखकर लगता है कि जैसे आप उनकी निंदा कर रहे हो इससे आप विचलित नहीं होंगे वास्तव में आप निंदा नहीं कर रहे हैं आप के अंदर वह सनातन के चले जाने का दुख है भारत से धर्म के उठ जाने सेजो दुख एक संवेदनशील व्यक्ति को होना चाहिए वह आपको हुआ है सनातन की जगह हम कर्मकांड की स्थापना कर लिए हैं जिसे कुछ लोग ब्राह्मण धर्म भी बोल रहे हैं इसका एक मात्र उद्देश्य आजीविका की पूर्ति है और धर्म कभी आजीविका का साधन नहीं हो सकता हां यह अवश्य है कि जहां धर्म रहेगा वहां आजीविका की कमी नहीं रहेगी इस प्रकार स्वामी दयानंद ने मनुष्य के लिए जो परमार्थ का मार्ग प्रशस्त किया और इसे प्रसारित करने में आप के योगदान की हम सराहना करते हैं प्रणाम करते हैं और आपको धन्यवाद देते हैं
Sach kha.
आचार्य जी नमस्ते ।मुझे लगता है कि मैक्स्म्यूलर की तरह मध्यकाल में भी वेदव्यास जी ने अपने आप को सर्वोच्च आसन पर स्थापित करने के लिए अन्य महान ऋषियों को चुनौती दी और यह पुराण लिखकर और वेदों के आधार पर कपोलकल्पित मनगारन्त कहानी “पुराण” लिखडाली और वैदिक संस्कृति पर प्रश्नचिनह लगा दी ।
😅😅😅😅😅😅 muje bhi lagta hai tera dimaag 😅abhiman se bhar gaya hai aur tu apne apko bahot bada gyaani samaj raha 😅hai par vo tera ek bharm hai
@@omchauhan1821😂😂😂😂
No one could challenge Swamy Vivekanand jee in America. He proved that Moorty Pooja is pure science. After Swamy Vivekanand jee till date I think no one born on earth who would have challenge his Brain level and adhyaatm level.
ধন্যবাদ
Ram
Aap mere baat ka answer nahi dete but mai kahta hu krishna ne kaha hai pahle sakar puja se shurawat kare dhere dhere nirakar badhe jaisa baccha pahle kg mai padhta dhere स्तर mai vridhi hoti hai aur aage ki class mai jata hai nirakar brhm ki aur badhana bhi dhere dhere hota ek baccha kabhi nirakar brahm ko na samgh payega guruwar 🙏🙏🚩🚩 pranaam 🙏🙏🚩🚩 om tat satt 🕉️ bhaiya 🙏🙏🚩🚩
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Sanatan.vaidik.dharm.ki.
jay.🕉️🙏
नमस्ते आचार्य जी। रामचरितमानस में लिंगस्थापना की चर्चा है। मैं भी वैदिक मत और ऋषि दयानंद के विचारों को ही मानता हूं। परन्तु शायद आपसे एक बात छूट गई, कृपया समाधान करें।रामचरितमानस के लंकाकांड के शुरु में ही एक चौपाई आती है - लिंग थापि विधिवत करि पूजा। सिव समान प्रिय मोहि न दूजा।।
(मैं भी भगवान श्रीराम के जीवन चरित्र के लिए वाल्मीकि रामायण को ही प्रमाण मानता हूं)
Bilkul
ईश्वर साकार भी है ये आपको रिसर्च करना है साकार और निराकार के प्रति रही बात आर्य समाजी की तो क्या दयानंद वेद व्यास ,वाल्मिकी और तुलसीदास जी से ज्यादा ज्ञानी थे जो साकार ईश्वर की बात कही है पूरी विस्तार से
@@RaviKumar-so7eh sakar roop hai shiv Vishnu Ram Krishna Brahma Hanuman Ganesh aur deviyan aur bhi baki devta hena uske baad nirakar toh wohi param brahm hi toh hoga
@@brucechetri2886 अरे भाई परब्रह्म की ही साकार रूप ब्रह्मा ,विष्णु, महेश यही सर्वोच्च है
@@brucechetri2886 आर्य नमाजी बोलते है की श्री राम विष्णु जी के अवतार नही थे वो महापुरुष थे तो आर्य नमाजी ये भी बतावे की श्री राम की मृत्यु कैसे हुई थी उनकी शरीर को अग्नि कौन दिया था ये कहा लिखा है और ये भी बताए की श्री राम जी को जब समुद्र से लंका जाना था तो रामसेतु कैसे बना क्योंकि पानी में पत्थर डालने पर पत्थर तो डूब जाता है तो इसका भी बताए और शिव जी कोई ब्रह्म नही थे तो रावण ने शिव जी की पूजा क्यों करता था
आप जैसे लोग ही समाज के लिए घातक हैं।आप तो वेदों के विषय में जानते हो फिर भी आपके अंदर घमंड और दिखावा ज्यादा है।आप कभी भी भगवान के प्रिय नही हो सकते । वास्तविक सत्य यह है कि कितने भी ग्रंथ पढ़ लो सत्संग कर लो परंतु ईश्वर में विश्वास नहीं हुआ तो मूर्ख ही माने जाओगे ।हमारे माता पिता ने वेदों को नही पढ़ा पूर्ण विश्वास के साथ भगवान का भजन किया ।हमारी नजर में पूर्ण विद्वान थे ।कहने वाला ग्रंथो को पढ़ने वाला विद्वान नहीं होता है।विद्वान तो करके दिखाने वाला होता है ।
अगर वाल्मीकि रामायण में शिव जी की चर्चा नहीं है तो रावण किस शिव जी का भक्त था आपको विचार करना चाहिए और हां अगर रामायण काल में शिव जी नहीं थे तो माता सीता के स्वयंबर में भगवान राम किस शिव धनुष को तोड़े थे
आप विचार कीजिए और इसपर भी एक वीडियो बनाइए
सम्मान निय
Acharyaji दुर्गा माता का उत्पति के बारे में भी बता दे
Varn vyavastha jati vyavastha per satyarth ji ke vichar bataye
22:52
23:17
धन लूटते रहो। वकवास करते रहो। गीता रामायण की निंदा करते रहो।
Itna gayan hona k liye dimak hona chaiya jo appme nahi h
चर्चा है तुलसी दास की रामायण में लिंग थापि बिधि वत करि पूंजा। शिव समान प्रिय मो हि न दूजा।।
बंधु! श्रीराम की सत्य कथा के लिए वाल्मीकि रामायण ही मूल और प्रामाणिक ग्रंथ है, क्योंकि वह श्रीराम के ही काल में लिखा गया। श्रीराम के विषय में रामायण कालीन जन ही तथ्यों के आधार पर उनकी सत्य कथा बता सकते थे, अन्य नहीं। अन्य जितनी रामायण लिखी गई, वह वाल्मीकि रामायण को ही आधार लेकर लिखी गई, परंतु इन लेखकों ने केवल मूल में ही परिवर्तन नहीं किया, उसमें अपनी ओर से अतिरिक्त मिलावट भी कर दी, जैसे - रामचरितमानस में अहल्या का गौतम ऋषि के शाप से पत्थर की शिला बन जाना ( *गौतम नारि श्राप बस उपल देह धरि धीर* - बालकाण्ड २१०) और श्रीराम के पैर के स्पर्श से उसका जीवित हो जाना लिखा है, जबकि वाल्मीकि रामायण में अहल्या का पत्थर की शिला बन जाना नहीं लिखा है, परंतु यह लिखा है कि श्रीराम और लक्ष्मण ने अहल्या से मिलने पर उसके चरणस्पर्श किये ( *राघवौ तु तदा तस्याः पादौ जगृहतुर्मुदा* - बालकाण्ड ४९/१७), न कि श्रीराम ने अहल्या को अपने चरणों से स्पर्श किया। रामचरितमानस के अनुसार राक्षसराज रावण द्वारा सीता का नहीं, परंतु उसकी छाया का हरण किया गया था और वास्तविक सीता ने अग्नि में निवास किया था ( *प्रभु पद धरि हियँ, अनल समानी, निज प्रतिबिंब राखि तहँ सीता* - अरण्यकाण्ड २३/२), जबकि वाल्मीकि रामायण में ऐसा कुछ नहीं लिखा। रामचरितमानस में रावण के महल में अंगद का पृथ्वी पर पैर जमाना और राक्षसों द्वारा प्रयत्न करके भी उसे उठा न पाना ( *झपटहिं टरै न कपि चरन, पुनि बैठहिं सिर नाइ* - लंकाकाण्ड ३४) - यह प्रसंग भी वाल्मीकि रामायण में नहीं हैं।
तुलसीदास ने रामचरितमानस में अनेक स्थानों पर सभी नारियों के लिए अपमानजनक शब्द लिख डाले, जबकि वाल्मीकि रामायण में ऐसा एक शब्द भी नहीं है। यदि इन प्रसंगों और बातों को स्वीकार किया जाता है, तो मूल वाल्मीकि रामायण से विरोध होगा, इसलिए मूल को ही स्वीकार करना उचित है। सत्य घटना एक ही प्रकार हो सकती है, दो भिन्न प्रकार की नहीं। अतः जो इन रामायणों में वाल्मीकि रामायण के अनुकूल है, वह अवश्य स्वीकार किया जा सकता है, उसके विरुद्ध नहीं। जब मूल वाल्मीकि रामायण में ही श्रीराम द्वारा शिवलिंग पूजा नहीं है, तो अन्य रामायणों में उसके विरुद्ध प्रसंग को स्वीकार करना मूल कथा की हानि करना ही होगा।
अद्भुत रामायण संस्कृत भाषा में रचित २७ सर्गों का काव्य-विशेष है। कहा जाता है कि इस ग्रंथ के प्रणेता भी वाल्मीकि थे। किंतु शोधकर्ताओं के अनुसार इसकी भाषा और रचना से लगता है, कि किसी बहुत परवर्ती कवि ने इसका प्रणयन किया है अर्थात् यह वाल्मीकि कृत नहीं है।
पुष्पक विमान था तो कैसा रहा होगा
कोई ग्रन्थकि सारे बात अच्छी अर सत्य नेही है। सत्यार्थमे कुछ मिथ्या होते है, दयानन्द ज़ी बेदकी कितने बातको माना है? दुनिया मिथ्या माया जगत है! पुराणमे कितना सच्चाई है देखनेकी जरुरत नेही है, जोकुछ अच्छा लगे उठालो। मानोतो गंगा मा है, श्रद्धा है, भक्ति है । अनु परमाणुमे ईश्वर है, देब दबीमे निराकार ईश्वरके रूप है।
Shiv or shankr me antr spast kre
Sham karoti iti Shankaarah. Jo Kalyan kare vahi Shankar hai. Shiv ka matulab auspicious/divine.
आपने पैसा कमाने का बहुत अच्छा तरीका निकाला है ।
Aapne kitna diya
App be kr lo asa lakin sahi gayan hona chiya
पूजन जब रामचंद्र कीना। जीतके लंका विविषण दीना।।
Vedik kal kitne samay pahle tha bataye
भगवान राम ने न केवल रामेश्वरम में पूजा की , वरन नो ग्रह का पूजन एवं शिव लिंग की स्थापना भी की, ताकि लंका जीत सके।
मेने नवग्रह जो अब समुद्र के किनारे पानी में है १९८७-८८ में, तथा रामेश्वरम भगवान के २२ कुंडों में स्नान करके तीन बार मेरठ से जाकर दर्शन किए
पौत्र / वंशज आत्मज्ञानी सर्व विष्णु अवतार परमेश्वरी सहाय गुप्त मेरठ
Namaste, Rig ved 7/59/12
Mrityunjay Mantra. Ka Arth ke bare me
Hame aap se explanation chahiye
(I am from Karnataka, Hindi very poor)
Acharyaji ! Veda sabse purana grantha hai, us grantha me tatkalin samajik parives me likhagaya tha, aaj ke liye yeha margadarsak grantha hai , tab se samajik pariwartan kitna ho chhuka hai , o hi pariwartan mutabik sare grantha bante gaye , so hamare puran aadi grantha me varnit aiswerya bhawana ko kaise na mane? yehi sare viswas me sara Sanatani samsaj tikshuwa hai. He hi Sanatan Dharma ka mahanta hai. Or ek bat puchhna chahata hu keya kohi yese aryasamaji milsakta hai jo Nirakar iswar se mil ke yaya ho? us ka nam dene ki kripa kare.
वेद मुझे मेरे प्राणों से प्यारे हैं गौ हमारी माता से प्यारी है लेकिन खुद को वैदिक कहकर हम पुराणो की निन्दा नही सह सकते क्यों कि पुराण उसी निराकार के साकार रुप का दर्शन कराते हैं|
शैयद इब्राहिम रसखान को श्रीकृष्ण मिल सकते हैं हमें नहीं?
तुम आर्यसमाजी केवल और केवल हमारी भावनाओं को ठेस पहुँचा रहे हो |
खुद भी गर्त में जा रहे हो|
बदलाव प्रकृति का नियम है |
यदि भक्त की पुकार पर वेद पुरुष रुप धारण नहीं कर सकता तो हम ऐसे ईश्वर की ऐसे ब्रह्म की ऐसे भगवान की निन्दा करते हुए उसके सर्वशक्तिमान न होने के कारण वैदिक भगवान का त्याग ही अच्छा समझेंगे|
Purano me mughlo ne milawat kar rakhi hai,use padhna bekar hai
@@AdyaRai345 kya praman hai ki muglon ne puran brasht kiye. Kya praman hai ki puran brasht hue?
You are right
Namami samisham nirvanrupm vibhumvyapakam brahmvedam swarupam this is for Shiva by tulsidas
શિવ ધનુષ કા કયા સત્ય હૈ
रामचरितमानस से,
जे रामेश्वर दर्शनु करिहइ।
ते तनु तजि मम लोक सिधरिह इ।
लिंग थापि बिधिवत करि पूजा।
सिव समान प्रिय मोहि न दूजा।।
As per Great hidtorian Shree PN Oak sahab the Vedas cannot be cannot be translated fully in any other language on earth. The Great Richaas of the Vedas can be experienced only in our hearts byv long penance very long penance. Only great Sannayis Yogis can understand few Richas of the Vedaas. Because Same Richa gives meaning of Mathematics same richa gives Chemistry theory same Richa can give Physics theory same Richa can give the Theory of Bhramh. they are having so deep amd vast meaning booned by Pitamah Bhramha jee. Hardly any one can experience those meanings.
So our great Sage Bhagwaan Vedvyaas jee written simpler forms so that even a common man also can follow the path of Spirituality upto some extent.
As you mentioned PN oak was historian. He was not a scholar of sanskrit nor even he knows sanskrit grammar. How his commentary on Vegas can be proven correct? It's just your personal biasing. By mentioning his name you trying to narrate your beliefs. We should provide logics & evidences & on those facts we should be ready to accept the truth. In ancient times we had a tradition of shastrarth, where great Rishis used to conclude the things & differentiate between truth & anomalies. It's really sad that we have forgotten those tradition & became superstitious. That is the main reason we were slaves for thousands of years. Anyone who is sanskrit scholars, knows astadhyayi, Chanda & vyakarana can read & understand Vedas. When someone attains stage of samadhi, he can even translate different types of meaning of a single veda mantra. But to attain that stage we need to go through a tough process. We need to go through 8 stages to reach samadhi level.
@@TrueIndianHistory Sir, he has not written any commentary on the Vedas. He wrote that the Vedas cannot be translated into other languages. Just like physics chemistry or history every one can study by reading the books. Unlike this the Vedas cannot be understood by just reading them. We have to do strict Penance KATHOR TAPAM then only the Richas of the Vedas will reveal their inner meanings.the same richas can give to Mathamatics aspirants the Sutras of Mathamatics at the same time the same Richa can give the Knowledges of Chemistry who is desirous of knowing Chemistry and the same richa may reveal in our minds the sutras of biology. That Shree P N oak sahab wanted to give. At present We have very short span of life sir. Only 80 to 100 years in Kaliyuga. Earlier our Rishis have got 500 yeas 1000 years or more life span. They were able to do long Penance for understanding the Vedas.
@@TrueIndianHistory and regarding Shree P N Oak sahab. He had done meditation of Bhagwaan Shivjee he has his third eye Jagrut a little bit. As per him so many things have been written in his books after seeing the past things in meditation by the third eye. Not like present historians who sit in university mix two or three books and write the history books. A history professor should be an extensive traveller. Bookish knowledge is not enough for history teacher. Or a History professor should be given every 3 to 4 years transfers all over the country. The actual knowledge is gained by seeing every place.
@@TrueIndianHistory sir I have stayed in the 12 States of our great Bharat . Visited various monuments Mandirs etc. I have done the study as per Shree P N Oak's books. After study, I found that whatever we have been taught in the shools in history books so many things needs modification or complete change. I found that Shree P N Oak sahab is correct in his books . Sir there is big difference between theoretical knowledge and practical knowledge.
Sindhu ghati Sabhyataa Mahabharat kaal kaa hai. vahan bhi Nandi jee aur Bhoo devi mile hain same culture thaa
Dwadas jyotirling kya hai
Rishi Dayanand Ji ke naam per apni roti sekna bahut acchi Tarika hai
Rishi dhayand sarswati ka gayan Laker app be sak lo kon mna krta h lakin glt nahi hona chahiye nahi virod kr daga
शनातन धर्म पर टिप्पणी करना सबको बड़ा आनन्द आता है यदि हिम्मत है तो अन्य धर्मों के ग्रन्थ पर भी टिप्पणी कर के बताए। जय हिन्द वन्देमातरम जय सियाराम जय शनातन धर्म धन्यवाद।
रमेशप्रस्दिवारी जी पहले आप आर्य समाज और सत्यार्थ प्रकाश पढ़े फर आप इस तरह की बात नहीं कहेंगे, भारत में शुद्धि आंदोलन और विधर्म अपना चुके लोगों को दुबारा धर्म से जोड़ने का काम आर्य समाज ने ही किया था। सुभाष चन्द्र बोस , चन्द्र शेखर आज़ाद, भगत सिंह, सावरकर को जन्म देने वाली संस्था आर्य समाज ही था। गौरक्षा के लिए आंदोलन चलाने वाली संस्था आर्यसमाज ही था ।
@@suchitchoudhary श्रीमान जी का कहना है कि राम चरित मानस में लिंग शब्द नहीं है कृपया लंका काण्ड में दोहा नम्बर दो की चौपाई नम्बर छः में लिखा है, लिंग थापि विधिवत् करि पूजा।सिव समान प्रिय मोहि न दूजा।।ये श्री राम जी की ओर से कहना तुलसीदास जी द्वारा लिखित है।। श्रृष्टि की रचना ही विना लिंग के नहीं हो सकती है ऐसा मेरा मानना है।आगे मनीषियों के जो भी विचार है।पर रामचरितमानस को,नाना पुराण निगमागम सममतं यदा, के अनुसार लिखा गया है दूसरी वात,हरि अनेक हरि कथा अनंता।कहंहि सुनहिं बहु बिधि सब संता।। और कल्प भेद हरि चरित सुहाए।। किसी भी उत्पत्ति के बाद तो बिवाद होना ये नियम ही है।। जय हिन्द वन्देमातरम जय सियाराम जय शनातन धर्म
Ishwar sakar aur nirakar donon hote hain unki marjee .ye Swamy Vivekanand jee ne Cicago men 1893 men prove kiye the.
Sakar mein kaun hai aur kaun nahi hai ye kaise bataoge
दयानन्द कलयुग मे पैदा हुये थे ये उनके खुद के विचार हो सकते हैं मगर वाल्मीकि ने लिखा हैं शिव की पूजा की थी रावण शिव भक्त थे
.....राम मांसाहारी थे, ऐसा भी लिखा है।। सही है, क्योंकि रामायण में लिखा है।
Aap log Sanskrit sikho aur fir valmiki ramayan padho. Fir sahi galat ka nirnay lijiye ...
Shastro ko khud padhiye. Andhbhakti ke chakkar me kab tak padega rahenge? Shri Ram aur Shri krishna jaise mahapurusho par naa Jane kitne hi lanchan hamare Shastro me milavat se lag gayi lekin ham hai ki mante nahi.
@@sp19611712yaha glt likha gaya h milavati h
Mahoday Lanka kand doha2me "ling thapi bidhivat Kari Puja"likha hai (ramcharit Manas)
Vaidic mantra kabhi raat ko nahi japa sastro mai manahi hai ram ram jaap sakte hai 🙏🙏🚩🚩
Acharyaji parnam! Mera Question aaj ke topic se to sambandhit nhi hai, lekin is bindu per margdarshan kren to meharbani hogi.
'Ghar Ki diwaron me pipal aur bargad ke ped ug janye to kya karna padega '
Unko kahi aur laga do
गुरुदेव जी प्रणाम अगर आप सच्चाई बता रहे हैं कि श्री राम जी ने रामेश्वर स्थापना नहीं की तो कृपया आप ही बता दीजिए कि रामेश्वर की स्थापना किस राजा ने की आप प्रमाण दे दो आप बता दो कि इस राजा ने रामेश्वर की स्थापना की हम तो आपको ही मान लेंगे सच्चे भगत जी🙏🙏
Bohot acha lekin References ko screen pe share kiya kijiye
एक कहावत है गुण खिलाए गां--मारे|
आप भगवान को मानते भी हो पूजा रोकते भी हो| तुम तो आस्तीन के सांप दिखते हो तुमसे अच्छा तो इस्लाम है जो सीधे अल्ला अकबर कहता और किसी भगवान को नहीं मानता|
क्या वेद पूर्ण है?
वेद में तो मेरी चर्चा भी नहीं है तो क्या मै नहीं हूँ?
भगवान को मानते भी हो पूजा रोकते भी हो|दुधारी तलवार|
इस्लाम की तरह सीधे कहते अल्ला अकबर्र और कोई भगवान नही|
तुम और तुम्हारे अनुयायी तो आस्तीन के सांप लग रहे हो |
जब तुलसीदास 27 कल्प के पहले का रामचरितमानस लिख रहे हैं तो बाल्मीक से तुलना क्यों?
,👌👌✔️🙏🚩
क्या भगवान राम ने समुद्र पर पुल बनाने से पहले जब समुद्र का अहबान किया तब क्या समुद्र मानव रूप एम प्रकट हुआ?कृपया जरूर बताएं।
नही तुलसीदास ने काव्य लिखा है तो हमें भी इसे काव्य के तरह ही लेना पड़ेगा
@@dhshsshzh Arya Samaj ki Drishti Samaj Sudhar ki Drishti aur Satya ko prakat karne ki yah Mane Ya Na Mane yah Sabhi chijen aapke Vivek per nirbhar karta hai soche soche samjhe aur satyarth Prakash ka adhyayan Karen
लिंग थापि विधिवत करि पूजा। सिव समान प्रिय मोहि न दूजा।। ल .का . पहला दोहा के तीसरी चौपाई ,
बंधु! श्रीराम की सत्य कथा के लिए वाल्मीकि रामायण ही मूल और प्रामाणिक ग्रंथ है, क्योंकि वह श्रीराम के ही काल में लिखा गया। श्रीराम के विषय में रामायण कालीन जन ही तथ्यों के आधार पर उनकी सत्य कथा बता सकते थे, अन्य नहीं। अन्य जितनी रामायण लिखी गई, वह वाल्मीकि रामायण को ही आधार लेकर लिखी गई, परंतु इन लेखकों ने केवल मूल में ही परिवर्तन नहीं किया, उसमें अपनी ओर से अतिरिक्त मिलावट भी कर दी, जैसे - रामचरितमानस में अहल्या का गौतम ऋषि के शाप से पत्थर की शिला बन जाना ( *गौतम नारि श्राप बस उपल देह धरि धीर* - बालकाण्ड २१०) और श्रीराम के पैर के स्पर्श से उसका जीवित हो जाना लिखा है, जबकि वाल्मीकि रामायण में अहल्या का पत्थर की शिला बन जाना नहीं लिखा है, परंतु यह लिखा है कि श्रीराम और लक्ष्मण ने अहल्या से मिलने पर उसके चरणस्पर्श किये ( *राघवौ तु तदा तस्याः पादौ जगृहतुर्मुदा* - बालकाण्ड ४९/१७), न कि श्रीराम ने अहल्या को अपने चरणों से स्पर्श किया। रामचरितमानस के अनुसार राक्षसराज रावण द्वारा सीता का नहीं, परंतु उसकी छाया का हरण किया गया था और वास्तविक सीता ने अग्नि में निवास किया था ( *प्रभु पद धरि हियँ, अनल समानी, निज प्रतिबिंब राखि तहँ सीता* - अरण्यकाण्ड २३/२), जबकि वाल्मीकि रामायण में ऐसा कुछ नहीं लिखा। रामचरितमानस में रावण के महल में अंगद का पृथ्वी पर पैर जमाना और राक्षसों द्वारा प्रयत्न करके भी उसे उठा न पाना ( *झपटहिं टरै न कपि चरन, पुनि बैठहिं सिर नाइ* - लंकाकाण्ड ३४) - यह प्रसंग भी वाल्मीकि रामायण में नहीं हैं।
तुलसीदास ने रामचरितमानस में अनेक स्थानों पर सभी नारियों के लिए अपमानजनक शब्द लिख डाले, जबकि वाल्मीकि रामायण में ऐसा एक शब्द भी नहीं है। यदि इन प्रसंगों और बातों को स्वीकार किया जाता है, तो मूल वाल्मीकि रामायण से विरोध होगा, इसलिए मूल को ही स्वीकार करना उचित है। सत्य घटना एक ही प्रकार हो सकती है, दो भिन्न प्रकार की नहीं। अतः जो इन रामायणों में वाल्मीकि रामायण के अनुकूल है, वह अवश्य स्वीकार किया जा सकता है, उसके विरुद्ध नहीं। जब मूल वाल्मीकि रामायण में ही श्रीराम द्वारा शिवलिंग पूजा नहीं है, तो अन्य रामायणों में उसके विरुद्ध प्रसंग को स्वीकार करना मूल कथा की हानि करना ही होगा।
अद्भुत रामायण संस्कृत भाषा में रचित २७ सर्गों का काव्य-विशेष है। कहा जाता है कि इस ग्रंथ के प्रणेता भी वाल्मीकि थे। किंतु शोधकर्ताओं के अनुसार इसकी भाषा और रचना से लगता है, कि किसी बहुत परवर्ती कवि ने इसका प्रणयन किया है अर्थात् यह वाल्मीकि कृत नहीं है।
"अत्र पूर्वं महादेवः प्रसादमकरोद् विभुः" को आप मानते हैं। यहां भगवान श्रीराम महादेव किसे कहते हैं। निश्चय ही यह उपाधि उन्होने अपने से शक्तिशाली सत्ता के लिए कही होगी। यह इंद्र नहीं हो सकते क्योन्कि श्रीराम उन्ही के भय को दूर करने के लिए अवतरित हुए थे। अतः यहां इंद्र श्रीराम से बड़े देव नहीं हो सकते। भगवान शिव के लिए ही यह उपाधि है। कारण कि यहां भगवान श्रीराम से श्रेष्ठ सत्ता उनके अतिरिक्त किसी की नहीं सिद्ध होती। अतः महादेव शब्द शिव के लिए है।
आपने कहा वाल्मीकी श्रीराम को भगवान का अवतार नहीं मानते। यह गलत है। आप बालकांड का 16 सर्ग पढें। महर्षि वाल्मीकी स्पष्ट रूप से भगवान श्रीराम को भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं।
श्रीरामचरितमानस के बारे में प्रतीत होता है आपने कभी पढी ही नहीं। इसमें लंकाकांड के दोहा संख्या 1 के बाद 6वां चौपाई स्पष्ट लिखा है- "लिंग थापि बिधिवत करी पूजा। सिव समान प्रिय मोही न दूजा।।" इस चौपाई का भी अनर्थ कीजिएगा?? यह पूल बनाने के स्थान पर ही शिवलिंग स्थापना की स्पष्ट चर्चा लिखी हुई है।
यदि आप श्रीरामचरितमानस को मानते हैं तो श्रीराम कथा के लिखित संग्रह के रूप मात्र में श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण प्रथम स्थान रखता है। ऐसा नहीं है कि इसके अतिरिक्त अन्य रामायण झूठे हो गए।
क्यों महर्षि दयानंद जी का नाम हंसवाते हैं? पूरी तैयारी करके आइए।
Rawan ka Bhai bivison kaise Aaya tha
Sita swayamvar ka khabar kaun sa balshali lekar gaya tha Ravan ke pass
राम कृष्ण माताजी और शिव लिंग को सभी महापुरुषों ने हजारों सालो से इश्वर का स्वरुप माना है
सनातन धर्म इतना गहरा और विशाल है कि उसको साधारण बुद्धि द्वारा समजना असंभव है
जींदगी में सबको एक बार स्वामी विवेकानंद के पुरे सब ग्रंथो को संपूर्ण अवश्य पढना चाहिए उसके बिना सनातन धर्म को संपूर्ण समजना असंभव है
अरे भाई साकार ईश्वर में बुराइयां नजर आती है और निराकार में नही इसलिए आर्य नमाजी साकार को नही मानते है वो केवल निराकार की रट लगाए बैठ गए है
Vivekanad to Masahari
Tha
निराकार,का, मतलब, बहुत, से,आकार, होता है
@@lalbahaduryadav9843😂,😂😂
Vivekaland to mansahari tha 😂
महर्षि दयानन्द का ज्ञान अधूरा है परम् परमेश्वर परम् ब्रम्ह महेश्वर ईश्वरों के परम् ईश्वर एक कृष्ण ही हैं वेदों को पढ़ कर जान लो. जय असंख्य ब्रम्हाण्डेश्वर श्री कृष्ण.. 🌹🙏.
Parman de dijiye bhai aap kha par h shri krishan ji ka jikr vedo me
Rampal baba dhogi na bhakaya h appko jo pp agayani ho gay
ये वास्तु शास्त्र सही होता है। क्या घरों का क्या कहता है वेद हमारा क्योकि इसके नाम पर बहुत लूट मची है। आचार्य जी
Aacharyaji, Ravan Shiva bhakta tha ya nahi. Shiva Bhakta thaa to, Shiva ka kis roop ka aaradhana karta tha. Iske baareme bhi koi granthokaa Aadhaar se visleshan deejiyega. Regards.
Sanskrit should be made compulsory from 9th standard onwards to enable our students to study Vedas during subsequent classes,this will educate to a great extent parents as well , ultimately leading to filtering out wrong from Purana as well, enlightened persons are saying, public is talking.
As for Hindi,it is close to Sanskrit and its knowledge can be built at personal level /any other formal platform to be decided by state education policy committee,these people are arguing, public is talking.