इस पेड़ के नीचे बाला सती जी ने 12 वर्षो तक तपस्या करी एवं अन,जल त्यागा।बाला सती माता की झांकी !!

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  • Опубликовано: 29 сен 2024
  • बाला सती माता मंदिर
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    बाला सती माता जी (Bala Sati Roop Kanwar) - एक ऐसा नाम जो आध्यात्मिक जगत में अपनी अलग ही पहचान रखता है। उनका जन्म 1903 में राजस्थान के जोधपुर जिले के रावणियाँ (वर्तमान रूपनगर) गांव में हुआ था। बचपन से ही वे अलौकिक प्रतिभा की धनी थीं। महज़ दो साल की उम्र में ही उन्होंने बोलना शुरू कर दिया था और छह साल की उम्र तक वे गहरी समाधि में लीन हो जाती थीं।
    संत गुलाबदास महाराज के मार्गदर्शन में उन्होंने आध्यात्मिक साधना का मार्ग अपनाया और भगवान राम (Lord Ram) व भगवान शिव (Lord Shiva) की उपासना में लीन हो गईं। उनका जीवन त्याग, तपस्या और सेवा भाव से परिपूर्ण था। विवाह के बंधन में न बंधकर उन्होंने ब्रह्मचर्य का पालन किया और समाज सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया।
    उनकी अध्यात्म साधना और करिश्माई शक्तियों की चर्चा चारों ओर फैल गई। लोग दूर-दूर से उनके दर्शन और आशीर्वाद पाने आते थे।
    बाला सती माता रूप कंवर (Bala Sati Roop Kanwar) का जन्म 16 अगस्त 1903 को राजस्थान के जोधपुर जिले के रूप नगर गाँव में हुआ था। उनका जन्म भगवान कृष्ण (Lord Krishna) के जन्म के शुभ समय पर वृषभ राशि, रोहिणी नक्षत्र और चंद्र दशा में हुआ था, जिसमें शनि, सूर्य और बृहस्पति उनके प्रभावशाली ग्रह थे। रूप कंवर जी बचपन से ही आध्यात्मिक रुचि रखती थीं और 5 साल की उम्र से ही ध्यान करने लगीं। उनकी शिक्षाएं आज भी लोगों को सत्य, भक्ति और निःस्वार्थ सेवा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।
    परम पूज्य बाला सती माता रूप कंवर (Bala Sati Roop Kanwar) जी एक महान आध्यात्मिक शक्ति थीं। उनका जन्म 19 अगस्त 1903 को जोधपुर जिले के रावणियाँ गाँव (वर्तमान रूपनगर) में हुआ था। उनके पिता श्री लालसिंह और माता श्रीमती धाकड़ कुँवर थे। बचपन से ही उनकी रुचि धर्म और आध्यात्म में थी। उनके ताऊ श्री चंद्रसिंह के प्रभाव से उन्हें शिव भक्ति का संस्कार मिला।
    10 मई 1919 को रूप कंवर जी का विवाह बालागाँव निवासी जुझारसिंह से हुआ। परंतु 15 दिन बाद ही वे विधवा हो गईं। इस दुःख को उन्होंने धैर्य से सहन किया और अपना जीवन आध्यात्म में समर्पित कर दिया। वे भूमि पर सोती और एक समय भोजन करती थीं। शेष समय भजन-कीर्तन में बिताती थीं।
    15 फरवरी 1942 को उन्हें आध्यात्मिक अनुभूति हुई और उनकी वाणी से चमत्कार होने लगे। उन्होंने कई मृतकों को जीवित किया जिससे लोग उन्हें ‘बापजी’ कहने लगे। उन्होंने संत गुलाबदास जी से दीक्षा ली और श्वेत वस्त्र धारण किए। उन्होंने 43 वर्ष तक अन्न-जल का त्याग किया और हवा के सहारे जीवित रहीं।
    उन्हें भगवान शिव (Lord Shiva) के दर्शन हुए थे। उस स्थान पर उन्होंने शिव मंदिर का निर्माण करवाया। वे कभी पैसों को नहीं छूती थीं। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद उनके भक्त थे और उनके आग्रह पर वे 7 दिन राष्ट्रपति भवन में रहीं।
    महासती रूप कंवर जी ने पहले से घोषित दिनांक 16 नवंबर 1986 को महासमाधि ले ली। उनकी स्मृति में उनका जन्म स्थान रावणियाँ गाँव अब रूपनगर के नाम से जाना जाता है। वे एक जीवित साक्षात देवी थीं जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानवता की सेवा और कल्याण के लिए समर्पित

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