दिल्ली में बनने जा रहा केदारनाथ मंदिर कितना सही कितना गलत?|| Uttarakhand Ki Nauni||

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  • Опубликовано: 1 окт 2024
  • एक विवादित मुद्दा जिसने धार्मिक सामाजिक और राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है।
    आखिर क्यों रुद्रप्रयाग के मंदिर के पुजारी बैठे धरने पर
    दिल्ली में बनने जा रहे केदारनाथ मंदिर ने क्यों दिया एक नए विवाद को जन्म
    केदारनाथ उत्तराखंड राज्य के हिमालय क्षेत्र में स्थित एक प्रमुख हिंदू तीर्थ स्थल है, जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 3,583 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और इसे द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है।
    माना जाता है कि केदारनाथ का निर्माण पांडवों ने किया था, लेकिन वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने किया था। मंदिर की वास्तुकला नागर शैली की है और इसका निर्माण बड़े पत्थरों से किया गया है। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है और इसके सामने नंदी की मूर्ति है।
    केदारनाथ चार धाम यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें बद्रीनाथ, गंगोत्री, और यमुनोत्री भी शामिल हैं। यह स्थल न केवल धार्मिक बल्कि पर्यटन के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
    केदारनाथ की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, और ऐतिहासिक महत्व इसे एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल बनाता है, जहाँ हर साल लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं।
    हाल ही में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने दिल्ली के हिरंकी इलाके में एक नए केदारनाथ मंदिर की नींव रखी। इस कदम का उद्देश्य उन भक्तों के लिए केदारनाथ की पवित्रता को करीब लाना था, जो उत्तराखंड के केदारनाथ धाम तक नहीं जा सकते। हालांकि, इस निर्णय ने व्यापक विवाद को जन्म दिया है।
    स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य, ने इस निर्णय का कड़ा विरोध किया है। उनका कहना है कि केदारनाथ का पवित्रता उसकी विशेष स्थान, हिमालय, में निहित है। दिल्ली में केदारनाथ का निर्माण न केवल अनुचित है, बल्कि यह धार्मिक परंपराओं का अपमान भी है। "केदारनाथ की शक्ति हिमालय में उसके विशिष्ट स्थान से आती है," उन्होंने कहा। "यह एक पवित्र स्थल है जिसका महत्व उसके भौगोलिक स्थान से जुड़ा है।"
    केदारनाथ के पुरोहित और स्थानीय समुदाय ने भी इस परियोजना का विरोध किया है। उनका मानना है कि इससे मूल तीर्थस्थल की पवित्रता और महत्व कम हो जाएगी। प्रदीप शुक्ला, केदार सभा के सदस्य, ने इसे भक्तों के शोषण की साजिश बताया और कहा कि यह हमारे आध्यात्मिक धरोहर का अपमान है। "दिल्ली में उसी नाम और संरचना के साथ केदारनाथ मंदिर बनाना एक पवित्र स्थल की नकल है और यह हमारे धार्मिक परंपराओं का अपमान है," उन्होंने कहा।
    इस विवाद ने राजनीतिक रूप भी ले लिया है। उत्तराखंड कांग्रेस के नेताओं ने इस कदम की निंदा करते हुए इसे सनातन धर्म और वैदिक रीति-रिवाजों का अपमान बताया। कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा मेहरा दासौनी ने कहा कि भाजपा धार्मिक परंपराओं के साथ छेड़छाड़ कर रही है और इसे राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग कर रही है। "यह भाजपा द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए हमारे धार्मिक परंपराओं के साथ छेड़छाड़ का एक और उदाहरण है," उन्होंने कहा। "अगर वे एक मंदिर बनाना चाहते थे, तो वे अक्षरधाम जैसा कुछ बना सकते थे। केदारनाथ का नाम और रूप क्यों उपयोग किया?"
    दिल्ली में श्री केदारनाथ धाम ट्रस्ट के अध्यक्ष सुरिंदर रौतेला ने स्पष्ट किया कि यह मंदिर एक धाम नहीं है, बल्कि उन भक्तों के लिए एक पूजा स्थल है जो उत्तराखंड नहीं जा सकते। उन्होंने यह भी कहा कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की भागीदारी उनके व्यक्तिगत अनुरोध पर थी, न कि सरकारी प्रतिनिधि के रूप में। "हमारा उद्देश्य वृद्ध और अशक्त लोगों के लिए पूजा स्थल प्रदान करना है," रौतेला ने कहा। "उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की भागीदारी हमारे अनुरोध पर थी, सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नहीं।"
    हालांकि, विरोध के बावजूद, कुछ लोग इस परियोजना का समर्थन भी कर रहे हैं। उनका मानना है कि यह मंदिर उन भक्तों के लिए एक अवसर है जो शारीरिक रूप से केदारनाथ यात्रा करने में असमर्थ हैं। "हम दिल्ली में वही रूप ला रहे हैं जो उत्तराखंड में है," सुरिंदर रौतेला ने कहा। "वहां मंदिर हर साल 5-6 महीने के लिए बर्फबारी के कारण बंद रहता है, लेकिन यहां मंदिर हमेशा खुला रहेगा। हम उत्तराखंड के केदारनाथ से एक शिला ला रहे हैं और इसे यहां स्थापित कर रहे हैं।"
    इस विवाद ने आस्था, परंपरा, और राजनीति के बीच के संबंधों पर महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं। क्या एक पवित्र स्थल की नकल की जा सकती है बिना उसकी मूलता खोए? या यह आध्यात्मिक धरोहर को अधिक सुलभ बनाने की दिशा में एक कदम है? केवल समय ही बताएगा। वर्तमान समय में, यह विवाद हमें हमारे धार्मिक स्थलों की पवित्रता और उनके सामाजिक एवं राजनीतिक महत्व के बारे में सोचने पर मजबूर करता है।
    Video credits: ‪@AmarUjalaUttarakhand‬ ‪@abp_live‬
    Music:
    "Makai Symphony - Dragon Castle" is under a Creative Commons (BY-NC 3.0) license:
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Комментарии • 1

  • @AmitDevlal-fm1fm
    @AmitDevlal-fm1fm 2 месяца назад

    देवभूमि को उसके नाम से वंचित करना सही नहीं है