Hey Nanda || हे नंदा || माँ नन्दा देवी कैलाश विदाई || Uttarakhandi sanskriti

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  • Опубликовано: 9 окт 2024
  • कैलास रवाना हुई देवी नंदा की राजजात
    मान्यता के अनुसार देवी की यह ऐतिहासिक यात्रा चमोली के कुरूड़ से शुरू होती है कुरूड़ के मन्दिर सेदशोली और बधॉण की डोलियाँ जात का आगाज करती हैं। इस यात्रा में लगभग २५० किलोमीटर की दूरी, कुरुड़ से होमकुण्ड तक पैदल करनी पड़ती है। इस दौरान घने जंगलों पथरीले मार्गों, दुर्गम चोटियों और बर्फीले पहाड़ों को पार करना पड़ता है।
    उत्तराखंड की लोक देवी मां नंदा व मां राज राजेश्वरी की वार्षिक लोकजात मंगलवार से शुरू हो गई। सिद्धपीठ कुरुड़ में पूजा-अर्चना के बाद दोनों डोलियां अलग-अलग पड़ावों के लिए रवाना हुईं। विदाई का यह दृश्य हर किसी को भावुक कर देने वाला था। इस दौरान महिलाओं के आंसू छलक पड़े। इससे पूर्व सैकड़ों की संख्या में कुरुड़ मंदिर पहुंचे भगौती (भगवती) नंदा के भक्तों ने मां नंदा व मां राज राजेश्वरी की पूजा-अर्चना की।
    श्रद्धालुओं ने समौण की भेंट
    चमोली जिले में प्रत्येक वर्ष नंदा देवी की लोकजात आयोजित होती है, जो नंदाष्टमी को कैलास (बेदनी व बालापाटा बुग्याल) पहुंचकर विराम लेती है। जबकि, 12 वर्ष के अंतराल में होमकुंड तक राजजात निकाली जाती है। बीते वर्ष की तरह इस बार भी लोकजात कोरोना के साये में हो रही है। कुरुड़ में मंगलवार सुबह सुबह से ही मां नंदा व मां राज राजेश्वरी की पूजा-अर्चना के लिए श्रद्धालु कतारबद्ध खड़े थे। मांगल गीत व मां नंदा के जागरों से वातावरण आलोकित हो रहा था। जब दोनों डोलियों को विदाई के लिए सिद्धपीठ कुरुड़ मंदिर परिसर लाया गया तो श्रद्धालुओं ने मां को समौण (सौगात) भेंट की।
    अलग-अलग पड़ावों के लिए रवाना हुई मां नंदा व मां राज राजेश्वरी की डोलियां
    दिनभर पूजा-अर्चना के बाद शाम को परगना दशोली की मां नंदा की डोली कुरुड़ से होते हुए रात्रि विश्राम के लिए फरखेत पहुंची। जबकि, परगना बधाण की मां राज राजेश्वरी की डोली रात्रि विश्राम के लिए चरबंग पहुंची।
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