परशुराम भाई आपने बहुत ही खूबसूरत बिरहा पेश किया है इसके लिए धन्यवाद करता हूं जय भीम जय मूलनिवासी मनुवादी व्यवस्था से लड़ने का यह सब बहुत ही खूबसूरत जरिया है लोगों को जगाने के लिए आपको धन्यवाद जय भीम जय मूलनिवासी
राजपूत शब्द संस्कृत के राजपुत्र शब्द से निकला है राजपूत शब्द के प्रमाण 11वी शताब्दी में मिलते हैं राजपूत शब्द की उत्पत्ति 8वी या 9वी शताब्दी के आसपास मिलती है ब्रह्माण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, आदिवासी, अतिशूद्र(अर्वाण) और अनार्य आदि सभी के अंदर छोटे और बड़े भारत में राजा होते थे राजा के लड़के को राजपुत्र कहा जाता था यही राजपुत्र शब्द अपभ्रंश होकर राजपूत हुआ। राजपूत शब्द 16वी शताब्दी के आसपास अस्तित्व में आया। कुछ जातियां खुद को राजपूत होने का दावा करती है जिनमे कछवाहा जो कुशवाहा की उपजाति है इनका पुश्तैनी धंधा सब्जी उगाना और सब्जी बेचना व शहद बेचना था इन्हें कोइरी या काछी भी कहा जाता था काछी से ही कछवाहा जाति की उत्पत्ति हुई है ये लांछित शूद्र थे ये राजपूत गोत्र होने का दावा करते आए हैं। जडेजा जो एक सम्मा आदिवासी जनजाति है इन्होंने क्षत्रिय पद प्राप्त किया वह खुद को राजपूत से जोड़ने लगे। संत गरवा जी ने विधवा विवाह प्रस्ताव राजपूतों के सामने रखा उस प्रस्ताव को राजपूतों ने ठुकरा दिया लेकिन 12 राजपूत परिवार ने उसे अपनाया व अपनी जाति को राजपूतों से अलग किया जिसका नाम मारू कुंबावत/कुमावत पड़ा इन्होंने पुश्तैनी पेशे के रूप में शिल्पी कार्य, भवन निर्माण, स्थापत्य कला को चुना। ये जाति शूद्र हो गई थी 19वी शताब्दी में राजपूत बताना शुरू किया। दो क्षत्रिय भाई परशुराम के डर से एक ब्राह्मण के पास पहुंचे और परशुराम के पूछने पर सारस्वत ब्राह्मण ने दोनों क्षत्रिय को मैढ़ बता दिया दोनों की जान बच गई एक खत्री बना जिसने नौकरीपैशे/व्यापार को अपनाया और दूसरे ने सुनार का कार्य अपनाया अर्थात शूद्र कर्म में लग गए थे जबतक परशुराम पृथ्वी पर रहे तबतक सुनार लोग मैढ़ सुनार बनकर रहे परशुराम जी के देहांत के बाद इन्होंने खुद को क्षत्रिय सुनार बताना शुरू किया हालांकि हिंदू धर्म में एक बार कोई ब्रह्माण्, क्षत्रिय, वैश्य आदि के पद से गिर जाए तो वो वापस अपने पद और उससे ऊपर के पद में नहीं जा सकता है उसे अपने नीचे के पद चुनने पड़ते हैं इसी कारण एक भाई सुनार बना जो शूद्र हो गया था क्षत्रिय सुनार के बाद इन्होंने ने खुद को मैढ़ राजपूत होने का दावा किया राजपूत शब्द ही 8वी शताब्दी में बना 16वी शताब्दी में अस्तित्व में आया। इनको त्रेतायुग में क्षत्रिय वर्ण से हाथ धोना पड़ा था। इन्होंने आज से 3 या 4 हजार साल पहले वैश्य कर्म को चुन लिया जिसके अंतर्गत इन्होंने 7 प्रकार के शुद्ध व्यापार को अपनाया जिसके कारण ये सुनार वैश्य कहलाए। लोधी एक संपन्न किसान जाति थी जो अपनी जमीनों पर खेती करते थे और पशुपालक थे ये आगे चलकर जमींदार जाति के रूप में उभरे और क्षत्रिय कर्म में भी अपनी भूमिका निभाई ये लोधी थे बाद में लोधी क्षत्रिय हुए उसके बाद लोधी क्षत्रिय (राजपूत) होने का दावा किया इसके अलावा लोधी क्षत्रिय राजपूत संघठन बनाया पर इनमे राजपूत गोत्र नहीं मिलते है। एक समय मुगल और राजपूतों के रोटी बेटी के रिश्ते थे मुग़ल और राजपूत लड़कियों से जो सन्तान पैदा हुई आगे चलकर ये मुगल राजपूत कहलाए कुछ समय बाद मुस्लिम राजपूत में तब्दील हुए।
चलिए हजारो साल पुराना इतिहास पढ़ते हैं। सम्राट शांतनु ने विवाह किया एक मछुवारे की पुत्री सत्यवती से।उनका बेटा ही राजा बने इसलिए भीष्म ने विवाह न करके,आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की। सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए भीष्म आजीवन अविवाहित रहे, क्या उनका शोषण होता होगा? महाभारत लिखने वाले वेद व्यास भी मछवारे थे , पर महर्षि बन गए, गुरुकुल चलाते थे वो। विदुर, जिन्हें महा पंडित कहा जाता है वो एक दासी के पुत्र थे , हस्तिनापुर के महामंत्री बने, उनकी लिखी हुई विदुर नीति, राजनीति का एक महाग्रन्थ है। भीम ने वनवासी हिडिम्बा से विवाह किया। श्रीकृष्ण दूध का व्यवसाय करने वालों के परिवार से थे, उनके भाई बलराम खेती करते थे , हमेशा हल साथ रखते थे। यादव क्षत्रिय रहे हैं, कई प्रान्तों पर शासन किया और श्रीकृषण सबके पूजनीय हैं, गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया। राम के साथ वनवासी निषादराज गुरुकुल में पढ़ते थे । उनके पुत्र लव कुश महर्षि वाल्मीकि के गुरुकुल में पढ़े जो वनवासी थे और पहले डाकू थे। तो ये हो गयी वैदिक काल की बात, स्पष्ट है कोई किसी का शोषण नहीं करता था,सबको शिक्षा का अधिकार था, कोई भी पद तक पहुंच सकता था अपनी योग्यता के अनुसार। वर्ण सिर्फ काम के आधार पर थे वो बदले जा सकते थे जिसको आज इकोनॉमिक्स में डिवीज़न ऑफ़ लेबर कहते हैं वो ही। प्राचीन भारत की बात करें, तो भारत के सबसे बड़े जनपद मगध पर जिस नन्द वंश का राज रहा वो जाति से नाई थे । नन्द वंश की शुरुवात महापद्मनंद ने की थी जो की राजा नाई थे। बाद में वो राजा बन गए फिर उनके बेटे भी, बाद में सभी क्षत्रिय ही कहलाये । उसके बाद मौर्य वंश का पूरे देश पर राज हुआ, जिसकी शुरुआत चन्द्रगुप्त से हुई,जो कि एक मोर पालने वाले परिवार से थे और एक ब्राह्मण चाणक्य ने उन्हें पूरे देश का सम्राट बनाया । 506 साल देश पर मौर्यों का राज रहा। फिर गुप्त वंश का राज हुआ, जो कि घोड़े का अस्तबल चलाते थे और घोड़ों का व्यापार करते थे। 140 साल देश पर गुप्ताओं का राज रहा। केवल पुष्यमित्र शुंग के 36 साल के राज को छोड़ कर *92% समय प्राचीन काल में देश में शासन उन्ही का रहा, जिन्हें आज दलित पिछड़ा कहते हैं तो शोषण कहां से हो गया? यहां भी कोई शोषण वाली बात नहीं है। फिर शुरू होता है मध्यकालीन भारत का समय जो सन 1100- 1750 तक है, इस दौरान अधिकतर समय, अधिकतर जगह मुस्लिम शासन रहा। अंत में मराठों का उदय हुआ, बाजी राव पेशवा जो कि ब्राह्मण थे, ने गाय चराने वाले गायकवाड़ को गुजरात का राजा बनाया, चरवाहा जाति के होलकर को मालवा का राजा बनाया। अहिल्या बाई होलकर खुद बहुत बड़ी शिवभक्त थी। ढेरों मंदिर गुरुकुल उन्होंने बनवाये। मीरा बाई जो कि राजपूत थी, उनके गुरु एक चर्मकार रविदास थे और रविदास के गुरु ब्राह्मण रामानंद थे|। यहां भी शोषण वाली बात कहीं नहीं है। मुग़ल काल से देश में गंदगी शुरू हो गई और यहां से पर्दा प्रथा, गुलाम प्रथा, बाल विवाह जैसी चीजें शुरू होती हैं। 1800-1947 तक अंग्रेजो के शासन रहा और यहीं से जातिवाद शुरू हुआ । जो उन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत किया। अंग्रेज अधिकारी निकोलस डार्क की किताब "कास्ट ऑफ़ माइंड" में मिल जाएगा कि कैसे अंग्रेजों ने जातिवाद, छुआछूत को बढ़ाया और कैसे स्वार्थी भारतीय नेताओं ने अपने स्वार्थ में इसका राजनीतिकरण किया। इन हजारों सालों के इतिहास में देश में कई विदेशी आये जिन्होंने भारत की सामाजिक स्थिति पर किताबें लिखी हैं, जैसे कि मेगास्थनीज ने इंडिका लिखी, फाहियान , ह्यू सांग और अलबरूनी जैसे कई। किसी ने भी नहीं लिखा की यहां किसी का शोषण होता था। योगी आदित्यनाथ जो ब्राह्मण नहीं हैं, गोरखपुर मंदिर के महंत हैं, पिछड़ी जाति की उमा भारती महा मंडलेश्वर रही हैं। जन्म आधारित जातीय व्यवस्था हिन्दुओ को कमजोर करने के लिए लाई गई थी। इसलिए भारतीय होने पर गर्व करें और घृणा, द्वेष और भेदभाव के षड्यंत्र से खुद भी बचें और औरों को भी बचाएं
जयभीम नमो बुधाय जयकांशीराम जयसबिंधान सर
बहुत बढ़िया आपने गाया धन्यवाद
Aap log bahujan samaj ko jagruk karte rahiy hum aapke sath hai jai mulnivasi
परशुराम भाई आपने बहुत ही खूबसूरत बिरहा पेश किया है इसके लिए धन्यवाद करता हूं जय भीम जय मूलनिवासी मनुवादी व्यवस्था से लड़ने का यह सब बहुत ही खूबसूरत जरिया है लोगों को जगाने के लिए आपको धन्यवाद जय भीम जय मूलनिवासी
जय भीम जय संविधान जय मूलनिवासी
परशुराम यादव जी आपने ऊँची जातियों द्वारा किया गया शोषण का पूरा ब्यौरा ही संगीत के माध्यम से दे दिया। आप धन्य है।
बडे भाई। पशुराम यादव जी बहुत सुन्दर मनुवादी व्यवस्था गाये है और आप को माँ स्वशती जी आर्शीबाद सदा बनीरहे
आप बिरहा के माध्यम से 85 प्रतिशत को जगाने का प्रयास किया देश को अभी एक आजादी मिलनी बाकी है
ब्राह्मण वाद से । अजीत यादव आजमगढ
बहुत सुंदर गीत जो प्रमाणित है,
आपको सादर जय भीम।
जय भीम जय संविधान जय समाजवाद जय अखिलेश
I'm\(°o°)/
Shubh Charan shaparsh aapko
Bahut sundar geet
वाह सर बहुत अच्छा गीत
Nice birha
Jay bheem
Jai bhim nmo buddhay
Very nice song
बिरहा के माध्यम से आप ने जो जानकारी दी है वह सराहनीय है बहुत बहुत साधुवाद नमो बुध्दाय जय भीम
Jay samajabad jay bhim and manuvadi
यादव सोच बदलो,,,,बागी बलिया का शेर माननीय परसुराम जी आपको धन्यवाद
SONU नही बदले कभी अपनी सोच को
बहुत सुन्दर है
जय मूलनिवासी क्रांतिकारीओ
Good sang
Very nice
अलगू सिंह यादव
Very very Good Song Thanks
Jai bhim
Jay Bheem Jay mulniwasi Jay sanvidhan
Satsat naman hai asi gayki ko
It is very good birga jo samaj Ko AJ sandesh hi Mai spake pakari ke dharti se koti .koti pranam karta hu.jai Bhim.
Good song
Bahut sunder achhi
आपकी बातों से मैं पूर्णतः सहमत हूं ।
इसको समाज क्यों नहीं समझता ।
अभी और दुर्दिन देखना हैं।
Bahut sunder
Nice जै मूलनीवासि जागो 85
Jai mulnivasi
👍👍👍👌👌
परशुराम यादव जी समाज बहुत पीछे है,और आगे ऐसे ही समाज को आईना दिखाते रहीये
Manoj Kumar prsuramyadv
बहुत बढ़िया विरहा
पाखण्ड और अंध विश्वास पर करारा प्रहार
परशुराम जी आपके लाखों लाख सलूट है, आप समाज को बस यूं ही जगाने झकझोरने का काम करते रहिए।समाज एक दिन जागेगा और अपना हक मनुवादियों से ज़रूर छीन लेगा।
Jai moolnivasi
Mahajan Gupta jay mulniwasi
Good sir .
जय भीम नमो बुद्धाय
best resverstion song shambunath
बहुत सराहनीय कदम।परसुराम जी के।
bhut bhut dhnybad
Dhanyawad parsuram ji
आप वीर लोरिक की पावन धरती से आते हैं शायद इसलिए क्रांति का अलख जगाने का काम गाने के माध्यम से कर रहे हैं।
जय जवान
Jay....bhim
Nice
बुआ भतीजा के गठबंधन से दिल्ली अब दूर नहीं
jay mulniwasi
RIGHT Aap sabko Jay Jay bhim
धन्यवाद जय भीम
supar
Aap ko koti koti prdham Jay bhim Jay bhart
Aap i love
Biraha ke madhym se jo jankari aap ne diya hai vah sarahniy hai
Koi
Best songs
ATI SUÑDAR LEKH
🙏🙏 चरणस्पर्श।। यदुवंश के गौरव
Good
श्री मा परशुराम यादव जी से निवेदन हैं कि इसी प्रकार सामाजिक सुधार की गीत गा कर समाज को समझाने का काम करे
aapko hardik aabhinadan bandan ho
Treta Mein dhobin ka Aarakshan prapt karna Birha Kashinath Yadav ka chahie
my
Bullu Yadav ka gaya Hua Birha Ambedkar ji ka chahie
Aap ki awaj me jadu hai
Nice sir g
super
Ramkesh Ram 6
Very good Sir
🇸🇾
Ramcharitmanas ki Rajniti Birha Kashinath Yadav ka chahie
,Mxx
.
ये काशीनाथ यादव जी का बिरहा है।
Sabjiyon Ki Khoj Kashinath Yadav ka birha chahie
Pichhadi jaatiyon ki Hatya Birha Kashinath Yadav ka chahie
Yadav ji logo ko samajhne wali bahut bdi baat .Aise logo ka vichar ab sunne ko nhi milta .
राजपूत शब्द संस्कृत के राजपुत्र शब्द से निकला है राजपूत शब्द के प्रमाण 11वी शताब्दी में मिलते हैं राजपूत शब्द की उत्पत्ति 8वी या 9वी शताब्दी के आसपास मिलती है ब्रह्माण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, आदिवासी, अतिशूद्र(अर्वाण) और अनार्य आदि सभी के अंदर छोटे और बड़े भारत में राजा होते थे राजा के लड़के को राजपुत्र कहा जाता था यही राजपुत्र शब्द अपभ्रंश होकर राजपूत हुआ। राजपूत शब्द 16वी शताब्दी के आसपास अस्तित्व में आया। कुछ जातियां खुद को राजपूत होने का दावा करती है जिनमे
कछवाहा जो कुशवाहा की उपजाति है इनका पुश्तैनी धंधा सब्जी उगाना और सब्जी बेचना व शहद बेचना था इन्हें कोइरी या काछी भी कहा जाता था काछी से ही कछवाहा जाति की उत्पत्ति हुई है ये लांछित शूद्र थे ये राजपूत गोत्र होने का दावा करते आए हैं।
जडेजा जो एक सम्मा आदिवासी जनजाति है इन्होंने क्षत्रिय पद प्राप्त किया वह खुद को राजपूत से जोड़ने लगे।
संत गरवा जी ने विधवा विवाह प्रस्ताव राजपूतों के सामने रखा उस प्रस्ताव को राजपूतों ने ठुकरा दिया लेकिन 12 राजपूत परिवार ने उसे अपनाया व अपनी जाति को राजपूतों से अलग किया जिसका नाम मारू कुंबावत/कुमावत पड़ा
इन्होंने पुश्तैनी पेशे के रूप में शिल्पी कार्य, भवन निर्माण, स्थापत्य कला को चुना। ये जाति शूद्र हो गई थी 19वी शताब्दी में राजपूत बताना शुरू किया।
दो क्षत्रिय भाई परशुराम के डर से एक ब्राह्मण के पास पहुंचे और परशुराम के पूछने पर सारस्वत ब्राह्मण ने दोनों क्षत्रिय को मैढ़ बता दिया दोनों की जान बच गई एक खत्री बना जिसने नौकरीपैशे/व्यापार को अपनाया और दूसरे ने सुनार का कार्य अपनाया अर्थात शूद्र कर्म में लग गए थे जबतक परशुराम पृथ्वी पर रहे तबतक सुनार लोग मैढ़ सुनार बनकर रहे परशुराम जी के देहांत के बाद इन्होंने खुद को क्षत्रिय सुनार बताना शुरू किया हालांकि हिंदू धर्म में एक बार कोई ब्रह्माण्, क्षत्रिय, वैश्य आदि के पद से गिर जाए तो वो वापस अपने पद और उससे ऊपर के पद में नहीं जा सकता है उसे अपने नीचे के पद चुनने पड़ते हैं इसी कारण एक भाई सुनार बना जो शूद्र हो गया था क्षत्रिय सुनार के बाद इन्होंने ने खुद को मैढ़ राजपूत होने का दावा किया राजपूत शब्द ही 8वी शताब्दी में बना 16वी शताब्दी में अस्तित्व में आया। इनको त्रेतायुग में क्षत्रिय वर्ण से हाथ धोना पड़ा था। इन्होंने आज से 3 या 4 हजार साल पहले वैश्य कर्म को चुन लिया जिसके अंतर्गत इन्होंने 7 प्रकार के शुद्ध व्यापार को अपनाया जिसके कारण ये सुनार वैश्य कहलाए।
लोधी एक संपन्न किसान जाति थी जो अपनी जमीनों पर खेती करते थे और पशुपालक थे ये आगे चलकर जमींदार जाति के रूप में उभरे और क्षत्रिय कर्म में भी अपनी भूमिका निभाई ये लोधी थे बाद में लोधी क्षत्रिय हुए उसके बाद लोधी क्षत्रिय (राजपूत) होने का दावा किया इसके अलावा लोधी क्षत्रिय राजपूत संघठन बनाया पर इनमे राजपूत गोत्र नहीं मिलते है।
एक समय मुगल और राजपूतों के रोटी बेटी के रिश्ते थे मुग़ल और राजपूत लड़कियों से जो सन्तान पैदा हुई आगे चलकर ये मुगल राजपूत कहलाए कुछ समय बाद मुस्लिम राजपूत में तब्दील हुए।
चलिए हजारो साल पुराना इतिहास पढ़ते हैं।
सम्राट शांतनु ने विवाह किया एक मछुवारे की पुत्री सत्यवती से।उनका बेटा ही राजा बने इसलिए भीष्म ने विवाह न करके,आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की।
सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए भीष्म आजीवन अविवाहित रहे, क्या उनका शोषण होता होगा?
महाभारत लिखने वाले वेद व्यास भी मछवारे थे , पर महर्षि बन गए, गुरुकुल चलाते थे वो।
विदुर, जिन्हें महा पंडित कहा जाता है वो एक दासी के पुत्र थे , हस्तिनापुर के महामंत्री बने, उनकी लिखी हुई विदुर नीति, राजनीति का एक महाग्रन्थ है।
भीम ने वनवासी हिडिम्बा से विवाह किया।
श्रीकृष्ण दूध का व्यवसाय करने वालों के परिवार से थे,
उनके भाई बलराम खेती करते थे , हमेशा हल साथ रखते थे।
यादव क्षत्रिय रहे हैं, कई प्रान्तों पर शासन किया और श्रीकृषण सबके पूजनीय हैं, गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया।
राम के साथ वनवासी निषादराज गुरुकुल में पढ़ते थे ।
उनके पुत्र लव कुश महर्षि वाल्मीकि के गुरुकुल में पढ़े जो वनवासी थे और पहले डाकू थे।
तो ये हो गयी वैदिक काल की बात, स्पष्ट है कोई किसी का शोषण नहीं करता था,सबको शिक्षा का अधिकार था, कोई भी पद तक पहुंच सकता था अपनी योग्यता के अनुसार।
वर्ण सिर्फ काम के आधार पर थे वो बदले जा सकते थे जिसको आज इकोनॉमिक्स में डिवीज़न ऑफ़ लेबर कहते हैं वो ही।
प्राचीन भारत की बात करें, तो भारत के सबसे बड़े जनपद मगध पर जिस नन्द वंश का राज रहा वो जाति से नाई थे ।
नन्द वंश की शुरुवात महापद्मनंद ने की थी जो की राजा नाई थे। बाद में वो राजा बन गए फिर उनके बेटे भी, बाद में सभी क्षत्रिय ही कहलाये ।
उसके बाद मौर्य वंश का पूरे देश पर राज हुआ, जिसकी शुरुआत चन्द्रगुप्त से हुई,जो कि एक मोर पालने वाले परिवार से थे
और एक ब्राह्मण चाणक्य ने उन्हें पूरे देश का सम्राट बनाया । 506 साल देश पर मौर्यों का राज रहा।
फिर गुप्त वंश का राज हुआ, जो कि घोड़े का अस्तबल चलाते थे और घोड़ों का व्यापार करते थे।
140 साल देश पर गुप्ताओं का राज रहा।
केवल पुष्यमित्र शुंग के 36 साल के राज को छोड़ कर *92% समय प्राचीन काल में देश में शासन उन्ही का रहा, जिन्हें आज दलित पिछड़ा कहते हैं तो शोषण कहां से हो गया?
यहां भी कोई शोषण वाली बात नहीं है।
फिर शुरू होता है मध्यकालीन भारत का समय जो सन 1100- 1750 तक है, इस दौरान अधिकतर समय, अधिकतर जगह मुस्लिम शासन रहा।
अंत में मराठों का उदय हुआ, बाजी राव पेशवा जो कि ब्राह्मण थे, ने गाय चराने वाले गायकवाड़ को गुजरात का राजा बनाया,
चरवाहा जाति के होलकर को मालवा का राजा बनाया।
अहिल्या बाई होलकर खुद बहुत बड़ी शिवभक्त थी।
ढेरों मंदिर गुरुकुल उन्होंने बनवाये।
मीरा बाई जो कि राजपूत थी, उनके गुरु एक चर्मकार रविदास थे
और रविदास के गुरु ब्राह्मण रामानंद थे|।
यहां भी शोषण वाली बात कहीं नहीं है।
मुग़ल काल से देश में गंदगी शुरू हो गई और यहां से
पर्दा प्रथा, गुलाम प्रथा, बाल विवाह जैसी चीजें शुरू होती हैं।
1800-1947 तक अंग्रेजो के शासन रहा और यहीं से जातिवाद शुरू हुआ ।
जो उन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत किया।
अंग्रेज अधिकारी निकोलस डार्क की किताब
"कास्ट ऑफ़ माइंड" में मिल जाएगा कि कैसे अंग्रेजों ने जातिवाद, छुआछूत को बढ़ाया और कैसे स्वार्थी भारतीय नेताओं ने अपने स्वार्थ में इसका राजनीतिकरण किया।
इन हजारों सालों के इतिहास में
देश में कई विदेशी आये जिन्होंने भारत की सामाजिक स्थिति पर किताबें लिखी हैं, जैसे कि मेगास्थनीज ने इंडिका लिखी, फाहियान , ह्यू सांग और अलबरूनी जैसे कई। किसी ने भी नहीं लिखा की यहां किसी का शोषण होता था।
योगी आदित्यनाथ
जो ब्राह्मण नहीं हैं, गोरखपुर मंदिर के महंत हैं, पिछड़ी जाति की उमा भारती महा मंडलेश्वर रही हैं।
जन्म आधारित जातीय व्यवस्था हिन्दुओ को कमजोर करने के लिए लाई गई थी।
इसलिए भारतीय होने पर गर्व करें और घृणा, द्वेष और भेदभाव के षड्यंत्र से खुद भी बचें और औरों को भी बचाएं
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Harikesh Kumar
Very nice
Aap Chatry Ko q marham lagate hai
Khul kar Boliye
Pandit Aur Singh Yah dono matalab ke Hai
Good
very nice
Good
super
very good
Good
Very good
Very nice
Very good