भजन-धन थारीअंजनीमाई ओ पवनसुत थे हरि का सांचाहो सिपाईby Rajaram jiPujari
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- Опубликовано: 13 сен 2024
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धन थारी अंजनी माई ओ पवन सूत, थे हरी का साँचा हो सिपाही।।
जद राजा रामचंद्र लंका को पधारे, पत्थरा की पाज बँधाई।
र और मूं दोय अक्षर लिखिया सागर सिला तो तिराई॥1॥
शक्ति बाण लग्यो लक्ष्मण के, पड्यो ह धरण अकुलाई।
अठारह पदम दल रीछ वानरा, सभी तो गया है मुरझाई॥2॥
जद राजा रामचंद्र बिड़लो फेरयो, कोई य न लियो ह उठाई।
अंजनी को जायो जोधो बाँकुड़ो रे, लीन्यो ह शीश चढ़ाई॥3॥
कह हनूमंतो सुणोजी रामचंद्र जी, मो को खबर न कांई।
पो फाट्या पहली फिर आऊँ,तो हरी दास कहाई॥4॥
जाय द्रोणागिरी जोधो ल्यायो, संजीवन ल्याय देई पल माही।
घोट संजीवन बांके मुख माही डारी, सूत्योड़ो वीर जगाई॥5॥
पाट पीताम्बर ध्वजा तो सोवती,हर घर कमी है न कांई।
जद माता अंजनी क गोद र लोट्यो, मुख माही सूरज छिपाई॥6॥
हरजी को हीड़ो सदा ही सिर ऊपर, चाकरी म चुक न कांई।
लंका सरिसा जोधो कारज सारयो, लाल लँगोटी पाई॥7॥
लंका जीत अयोध्या मे आये, घर घर बँटत बधाई।
मात कौसल्या हरी को कर आरतो, तुलसीदास जस गाई॥8॥
॥समाप्त॥
Jai.Shree.Bala.Ji.Ki..Rajaram.Bhai.Ji.Ko.Parnam.
Jai shree Balaji ki
Jai shree balaji ki