Soch Man! Shyam Milan Ki Baat -Part 5/6 || सोच मन! श्याम मिलन की बात -भाग 5/6

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  • Опубликовано: 5 окт 2024
  • 💠 मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य क्या है एवं वह कैसे प्राप्त होगा? आध्यात्मिक जगत में इस विषय में अनेक मत प्रचलित हैं। संसार में अधिकांशतः भोले लोग संसार के भौतिक सुखों को ही अपना लक्ष्य बनाये हुये हैं। इने-गिने लोग ही आप्त ग्रंथों में विश्वास रखते हैं किन्तु वे भी विभिन्न दर्शन शास्त्रों के आधार पर दुःख निवृत्ति अथवा मोक्ष को जीवन का अंतिम ध्येय समझते हैं। जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज अपनी 'जगद्गुरूत्तम' एवं 'निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य' की उपाधियों को चरितार्थ करते हुये समस्त प्रचलित आध्यात्मिक मतों का अति सुन्दर समन्वय करते हैं तथा वेदों द्वारा प्रमाणित अपने 'प्रेम रस सिद्धांत' के आधार पर भुक्ति एवं मुक्ति दोनों ही को निकृष्ट बताकर श्रीराधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम की प्राप्ति को ही जीव मात्र का अंतिम लक्ष्य उद्घोषित करते हैं। उन्होंने साधना के लिये परम उपयोगी तत्त्व ज्ञान के निर्देशन हेतु मानव देह का महत्त्व, जीव का सर्वोच्च लक्ष्य, वास्तविक आनन्द का स्वरूप, धर्म-कर्म का वास्तविक स्वरूप, जीव मात्र का अंतिम धर्म, भक्ति मार्ग की महिमा, भक्ति के बाधक तत्त्व, उपासना का व्यावहारिक स्वरूप इत्यादि अनेक महत्वपूर्ण विषयों को स्पष्ट करने हेतु अपने एक स्वरचित पद 'सोच मन! श्याम मिलन की बात' की व्याख्या करते हुये कुछ अति महत्वपूर्ण प्रवचन दिये हैं। इस प्रवचन श्रृंखला में अनेक तात्विक विषयों को अत्यंत सरल एवं स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है, जो अन्यत्र दुर्लभ है। भक्ति मार्ग की अनेक भ्रान्तियों को मिटाने वाली एवं आध्यात्मिक जगत के अनूठे रहस्यों को उद्घाटित करने वाली यह विशेष प्रवचन श्रृंखला अवश्यमेव श्रवणीय है। ये व्याख्यान सन् 1980 से पूर्व काल के हैं तथा इनकी वीडियो रिकॉर्डिंग उपलब्ध नहीं है, केवल ऑडियो रिकॉर्डिंग ही प्राप्त है। श्रोताओं के विशेष लाभ के दृष्टिगत हम उसी दुर्लभ ऑडियो को यहाँ वीडियो के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। सभी से अनुरोध है कि आप इस परम लाभदायक विषय का एकाग्रचित्त होकर श्रवण करें एवं अधिकाधिक लाभ प्राप्त करें।💠
    इस वीडियो के कुछ अंश हैं-
    इस पद की व्याख्या में कुछ अंश अवशिष्ट है उसे पूरा करेंगे। श्याम मिलन की बात सोचते-सोचते अनंत जन्म बीत गए किन्तु श्याम मिलन नहीं हुआ। इसका मेन कारण यह है कि हमारी बुद्धि ने अभी ये निश्चय नहीं किया पूरे तौर से कि श्याम मिलन ही आनंद मिलन है। हमें ये तो विश्वास है आनंद के बिना हम कभी भी एक क्षण को भी चैन से नहीं रह सकते। हम चैन के लिए बेचैन है। हमारी चहल-पहल, दौड़-धूप, चौरासी लाख योनियों में अनंत ब्रद्मांड में अनादिकाल से अब तक केवल चैन के लिए, आनंद के लिए। किन्तु श्याम मिलन ही आनंद मिलन है यह बात हमारी बुद्धि में बैठी नहीं, खड़ी हुई, बैठी नहीं! आई, चली गई, आई, चली गई। जब कोई महापुरुष मिला या किसी महापुरुष के अंतरंग दिव्य भावों को देखा तो आई और जब फिर हम उससे पृथक हुए तो चली गई। यानि फेथ, विश्वास नहीं हुआ। यदि विश्वास हो जाता तो फिर सही क्या, गलत क्या इससे कोई मतलब नहीं। श्याम विरोधी तत्व में मन का अटैचमेंट न होता। देखो, जिस क्षेत्र में आनंद का लवलेश भी नहीं है वहाॅं हम अनादिकाल से डटे हुए है केवल विश्वास के ऊपर। बस अब आनंद मिलने ही वाला है। जरा ये काम और हो जाये फिर उसके बाद फिर ठीक है आनंद ही आनंद है। इस प्रकार प्लानिंग करते-करते अनंत जन्म बीत गए किन्तु हम निराश नहीं हुए। संसार की ओर बढ़ते जा रहे है। किसी भी अवस्था में हम संसार से निराश नहीं होते और अगर निराश होते है तो संसार के अभाव से निराश होते है। ध्यान दीजिए इस पाॅइंट पर। हम कभी-कभी इतने निराश हो जाते है कि आत्महत्या कर लेते है। निराशा की अंतिम लिमिट। लेकिन क्यों? संसार से निराश होकर आत्महत्या नहीं करते।
    -जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज
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