महमूद गवान का मदरसा | Madrasa of Mahmud Gawan | बिदर शहर | कर्नाटक

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  • Опубликовано: 12 окт 2024
  • कर्नाटक का बिदर शहर अपने इतिहास और संस्कृति के लिए जाना जाता है। यहाँ का ये आलिशान क़िला और प्रसिद्ध बिद्री-कला इसके गौरवशाली अतीत और समृद्ध विरासत के गवाह हैं। इसी क़िले के पास स्थित है एक मदरसा जो एक वज़ीर की धरोहर है और बिदर के लिए ख़ास है। ये है महमूद गवान का मदरसा जो यहाँ बहमनी सुल्तान के शासन काल के दौरान, उनके वज़ीर महमूद गवान ने 15वीं शताब्दी में बनवाया था। अपनी सुन्दर वास्तुकला वाली ये विशाल इमारत आज बिदर के महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है।
    सन 1430 में बिदर बहमनी सुल्तानों की राजधानी बना और सन 1520 में उनके पतन तक उनका सत्ता-केंद्र रहा। इस शहर में उनके शासन के दौरान उनके साम्राज्य का एक बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा थे, उनके वज़ीर, मेहमूद गवान।
    मेहमूद गवान ईरान कैस्पियन सागर के एक व्यापारी थे जो सन 1453 में दाभोल के बंदरगाह आए। वे उस समय दक्कन में आने वाले व्यापारियों में से एक थे। अपने व्यावसायिक और राजनीतिक अनुभव से उन्होंने बहमनी सुल्तान अहमद-द्वितीय बहमनी को प्रभावित किया। सन 1458 में, पूर्वी पठार में एक छोटे से विद्रोह को दबाने के बाद, उन्हें पूरे राज्य के सूबेदार के रूप में पदोन्नत किया गया था। उन्होंने जल्द ही राज्य में एक प्रमुख स्थान प्राप्त किया और उन्हें मलिक अल-तुज्जार यानी 'व्यापारियों के राजकुमार' का शीर्षक दिया गया। कुछ समय बाद ही पूरे प्रशासन की देखरेख का जिम्मा उनके पास आ गया था।
    वज़ीर होने के नाते वो बिदर को पूरे विश्व के नक्षे पर लाना चाहते थे। वे दुनिया के प्रतिभाशाली लोगों और विद्वानों को बिदर की तरफ़ आकर्षित करना चाहते थे और इसी वजह से उन्होंने इस प्रसिद्ध मदरसे का निर्माण करवाया जो सन 1472 में पूरा हुआ। ये तीन मंज़िला इमारत अपने पुस्तकालय, व्याख्यान हॉल, प्रोफ़ेसरों व छात्रों के लिए क्वार्टर, एक मस्जिद के साथ सीखने और पढ़ाई-लिखाई के लिए एक प्रसिद्ध केंद्र था। अरबी और फ़ारसी भाषाओं के साथ धर्मशास्त्र, दर्शन, गणित आदि के विद्वान भी इस मदरसे में आया करते थे। ऐसा माना जाता है कि यहाँ के पुस्तकालय में 3000 से ज़्यादा पुस्तकें थीं।
    मदरसे की भव्य इस्लामी वास्तुकला की वजह से इसे, बिदर के बहमनी सुल्तानों के दौर का सबसे महत्वपूर्ण स्मारकों में से एक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसे ईरान के ख़ुरासान या उज़्बेकिस्तान के समरक़ंद के आलिशान मदरसों की ही तर्ज़ पर बनवाया गया था। हालाँकि आज इस इमारत का कुछ ही हिस्सा बाकी बचा है, मगर इसे देख कर, इसके एक ज़माने के गौरव को समझा जा सकता है।
    सन 1650 के दशक में, जब औरंगज़ेब दक्कन में आए तब इस मदरसे को काफ़ी नुक़्सान पहुंचाया गया। इसे एक सैन्य बैरक के रूप में उपयोग किया गया। बारूद रखने के लिए दक्षिण-पूर्व मीनार के पास के कमरों का इस्तेमाल किया गया था। एक विस्फोट से मीनार और प्रवेश द्वार का एक-चौथाई हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था।
    मदरसे में कमरे और हाल देखे जा सकते हैं। इसके दो शानदार मीनारों में से केवल एक मौजूद है। मदरसा एक समय सुन्दर टाइलों से सजा हुआ करता था जिसके आज कुछ ही अवशेष देखे जा सकते हैं। पवित्र क़ुरान की कुछ आयतें दीवारों के कुछ हिस्सों पर उकेरी गईं हैं।
    ऐसा कहते हैं कि आज जो कुछ भी बचा है वो इस मदरसे की महज़ एक परछाई की तरह है। एक ऐसा मदरसा जिसने विश्व के कई विद्वानों को आकर्षित किया। बिदर का ये मदरसा आज भी हमें बहमनी सल्तनत के एक सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ, महमूद गवान की शानदार विरासत की याद दिलाता है..
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