सही कहा आपने आज हमें अपनी चीजों को देखकर पीड़ा होती है इतनी बड़ी जटिल समस्याओं मां बापू ने अपने बच्चों को बड़ा किया इतनी मेहनत की लेकिन लास्ट में छोड़ कर चला गये मेरी पहाड़ों की पीड़ा
@@KiranYadav-cu5py m khud pahaad m hi rhta hu apni jnmbhumi se bahut payar h mujhe but Rojgaar na hone ke kaaran uttrakhand se baahar dusre sahro m jana padta h aakhir pahaad ki pida ko ek pahaadi hi smjh skta h wese aap kaha se ho
हमारे बुजुर्गों का दर्द बता रहा है कि उन्होंने इस पहाड़ के लिए क्या नहीं किया कितना संघर्ष किया कितना दर्द सहा फिर भी हार नहीं मानी लेकिन जब समय आया खुशियों का तो पलायन ने जिंदगी भर की मेहनत और संघर्षों पर पानी फेर दिया
@Deepak Nautiyal apka kehna sach hai magar puri tarah nahi.Sarkar ke bina karwai aage nahi badhega,lekin jansamuh ka puri hissedari bhi jaroori hai.Muje patta pahar ke log mehnoti aur kathor parishram karte hai.Kami hai to aise leaders ki jo vissionery , determined aur iske sath gyan aur samaj ka bhandar.Education, science and technology ka mahatta ajj ki duniya me bahut hi mahatta hai.is ke bikas ke bina ek khushal Uttrakhand sapna hi rah jayega.Ye bhool na nahi hoga har samasya hal bhi sath leke atta hai.Rasta hai magar knowledge, science and technology ke bina andha jaisa hai.Jai Hind Jai Bharat Jai Uttrakhand.
सरकार कि कन भैजी हमन कन जु कन हमत घौंरमा रैणां ई निछा हिमांचल जै देखा वखा का लोग अपणु घौंर नि छुडणां छन मि बुनु छौं हमन भी घौंर छोडी़ याली भैजी हम कैथी दोष नी दे सकदा न ही सरकार थै नाराज न हुययां भैजी किकन तब
रूला दिया चाचा आपने,, 😢😢 लोग बदल गए हैं,, मै दस साल से कह रहा हूँ,, सरकार और सुविधा का बहाना बनाते हैं खुद दिल्ली में रहते हैं और हम गाँव वालो से हीसाब मांगते है
ये पलायन नाम की बीमारी सिर्फ उत्तराखण्ड मैं ही है। लोग लेह लद्दाक जैसी अपनी मात्र भूमि भी नही छोड़ते जहां घास भी नही उगती है। बारह मास बर्फ रहती है ।ये निक्कमो का काम है। जो इस स्वर्ग मैं भी नही रह पा रहे है ओरतों के कहने पर।वह तो पूर्वज ही थे मेहनती लोग जो शेर की तरह इज्जत की जिंदगी जी गए इस पावन भूमि मैं।
प्रणाम। पुरूष वर्ग प्राचीन काल से धन उपार्जन करने गांवों से बाहर जाते थे,परन्तु बीबी बच्चे गांवों में रहते थे इसलिए गांव बसे थे।नयी पीढ़ी पढ़ कर बीबी बच्चे अपने साथ रखना चाहते हैं। पुरानी पीढ़ी तो इस दुनिया से जा चुकी है,जो गांव कभी गयए ही नहीं, उन्हें आकर्षण नहीं। गांव आज सूने हैं।
because after retirement they have to depend on son city has facilites like hospital other facilities if all these are in village no one will sit in city
यह स्थिति अमूमन हर तीसरे चौथे उत्तराखंडी की है पलायन की पीड़ा बहुत ही दुखदाई होता है।और खास तौर से जो लोग पहले उत्तराखंड में अपने जीवन का लंबा दौर बिता चुके हैं ऐसे लोग पूरे उम्र भर इस पीड़ा को सहते हैं। इस पलायन को रोकने के लिए सरकार को कोई ना कोई ठोस नीति अवश्य बनानी होगी वरना हर उत्तराखंडी कहेगा पहाड़ी पहाड़ी मत बोलो जी देहरादून वाला हूं...
गांव से पलायन किसी मुसीबत का हल नहीं हैं हम भी हिमाचल प्रदेश में ऐसी ही पहाड़ी गांव में रहते है लेकिन हमने हार नहीं मानी और अपनी मेहनत से और वर्षा का जल टैंकों में इकठा कर के अपनी जमीनों को सींचा और उपजाऊ बनाया जीना गांव का ही है शहर में तो केवल समय काटा जाता है
भारत सरकार और उत्तराखंड सरकार दोनो मिलकर पलायन रोके।यहां के लोगो की समस्या का त्वरित कार्रवाई करते हुए स्थाई निदान करे। पहाड़ी दुख सुनकर बहुत ही कष्ट हुआ ।बहुत ऐसे उत्तराखंड के भाई बन्धु परेशान है उनकी सुनी जाए केवल वोट बैंक न समझा जाए । UP से
सही बात है जब छोडकर चले जाओ तो हम अपनी पित्रों की इस धरोहर को भूल जाते है, लेकिन जब यहाँपर आओ तो सारी पीडा,माया- मोह और यादें रहरह कर रूलाती है,भला जहाँ पर हम पले बडे हुए है उसकी यद न आए यह तो हो ही नहीं सकता, सहयोग का आपने सटीक उदाहरण दिया जबतक कोई भाई अफनी मेहनत मजदूरी और अपने रिस्कपर यहाँ खाता कमाता है तब तक भयात का भी आना जाना रोना धोना बना रहता है, सहयोग की जगह उसे उपहास का पात्र बनाते है लेकिन जब करने वाला भी छोड जाता है फिर सभी चैन से बैठ जाते है,यह हमारा दर्भाग्य है कि जो भाई इतने सक्षम है कि वे अपने दम पर यहाँ एक दो लोगों को नौकरी पर रख कर अपनी जीवन दायनी जमीन और घर द्धार को सही सलामत रख सकते है,लेकिन उनका ब्योहार दूसरों को छोडो अपनौ के प्रति भी सहयोगपूर्ण नहीं है,धन्यबाद आपका जो कि आपके दिल में आपने प्रदेश के प्रति प्रेम बनारखा है और आपने उत्तराखण्ड का दर द बयाँ किया है ।
गाँवो में सब का अपना घर है। पर शादी के बाद दिल्ली चलो। और कोटला, मीठापुर, करावल नगर, विनोद नगर, तंग गलियों में रहने के लिए तैयार है। पर गांव का खुला वातावरण सुध पानी, हवा में नही रहना चाहते। अब तो लोगो के दो बच्चे या 1 पर ही टीके है। पहले 8 से 12 बच्चे होते थे। उन लोगो ने भी खेती से ही बच्चो को पाला। औऱ जो पुराने लोग गाँव से जुड़े थे। वे भी रिटायर मेन्ट के बाद भी अपने गाँव नही जाते। ये लोग मोह माया में ही रह गए और जियेंगे।😢😢😢
कोई अपना वसा वसाया घर नहीं छोड़ना चाहते। जब समय था तो लोग अपने तक ही सीमित थे केवल पेट भरना और पालन करना ही एक ही मकसद था लेकिन अब समय बदल चुका है। जरूरतें बहुत हैं लेकिन सुविधाओं के अभाव में और समाज के साथ चलना जरूरी हो गया है। इसलिए यदि सरकार हर सुविधाएं दे तो अभी भी लोग अपने जन्म भूमि में आने के लिए तैयार हो सकते हैं। पहाड़ों में बिना मेहनत का कुछ भी नहीं हो सकता है। हर जरूरत की चीजें चाहिए। दुःख तो होता है लेकिन नयी पीढ़ी भले न समझे लेकिन जिस पीढ़ी ले दुःख झेले हैं उनके आंसू कोई नहीं रोक सकता। क्या पुराने लोग जिन्होंने टेहरी डाम के कारण अपने गांव को छोड़ना पड़ा रोना नहीं आता होगा। भले नयी पीढ़ी इससे बेखबर है। समय के साथ यदि पहाड़ में प्रगति की होती या कहा जाए कि हिमाचल की तरह यदि उत्तराखंड में प्रगति होती तो इतना बड़ा पलायन नहीं होता। आज भी लोग अपना इलाज कराने के लिए दिल्ली जैसे नजदीक शहरों में जाते हैं। यही कारण है कि रिटायरमेंट के बाद बुढ़ापे की जिंदगी कोई पहाड़ में नहीं जीना चाहता।
mein kerala se hu hamare kerala mein log naukri ki talash mein gulf jathe hai aur apne gao mein ghar banathe hai samaj ki paisewale dukhan shops kholthe hai kuch log chanda ikkata karke hospital koltha hai agar aap log mein aisa kare tho acchi baath hai
पलायन तो करते हैं पर पलायन का दर्द सीने में सबके सताता है सहर में कितना भी अमीर बन जाओ। इस दर्द से अछूता कोई नहीं है कोई दिखाता कोई छुपाता है जो गांव की मिट्टी में जन्म लिया खेला कूदा उन्हें याद जरूर आती है
गांव विरान हैं इसके जिम्मेदार बड़े बुजुर्ग लोग नहीं बल्कि वहां के युवा है ...5 हजार की नौकरी दिल्ली में कर लेंगे लेकिन अपने गांव में रहकर मेहनत नहीं करेंगे.. शर्म आती है इनको गांव में रहने में...फट्टू हैं ये लोग... अपने हक के लिए लड़ो ..गांव में सड़क बनवाओ, धरना दे दो, पानी की सप्लाई ठीक करवाओ..नहीं तो बाज के जंगल लगाओ अपने आप पानी आ जायेगा...फल सब्जी उगाओ , सारे गांव वाले एक साथ बेचो बाजार मैं... कैसे विकास नहीं होगा.. उसके लिए हिम्मत चाहिए.. लेकिन जो ये पहाड़ की बहुएं आने नहीं देंगी.. सबसे बडी़ दुश्मन पहाड़ों की यहां की लडकियां और बहुएं हैं इनको शहरों में रहना है
बहुत ही दर्दनाक कहानी सुनाई आपने। आखिर क्या कमाया हमने। जमीन बंजर हो जाय परन्तु कोई भी वहां हमारी खेती संभालते हुए आराम से जीवन यापन करें ये मंजूर नही। क्या इनके सभी भाई ये नही कह सकते थे कि भाई आप सँभालो यहां, हम आपको मदद करते रहेंगें। हरे भरे गाओं में जब जाते तो आपको दरवाजे खुले मिलते। कोई खाना पानी देने वाला सामने खड़ा होता। ईर्षा भाव मे हम अपनापन भी खोते जा रहे हैं। बड़े दुःख होता है, हम क्या से क्या हो गए।
Playan ko badhwa dene mai hamre bugurgo ka bhi bada yogdaan hai kyuki retyarment ke baad wo dehradun mai jakar baste hai or apne pahdo ko bhool jaate hai
भाई पहाड़ की कहानी छोड़ो... यहां हमारे आजमगढ़ पूर्वी उत्तरप्रदेश में भी यही कहानी है....... मेरे पिताजी डिप्टी कमिश्नर हो कर रिटायर हुए और लखनऊ में मकान बना कर सेटल हो गये....... वो 4 भाई थे..... एक गांव में बाकी राजधानी लखनऊ में .....अब कोई ना कोई बीच बीच में गांव आता जाता है......बस उसके आगे कुछ नहीं...... ये पूरे भारत देश की घर घर की समस्या है...... चाहे हिन्दू , मुस्लिम या सिक्ख.......घर की कहानी औरतों से ही बिगड़ती है........
Still in utrakhand land is very costly without investment in the industry ifrarasture road and hospitals school not possible for any area to florissh without the support of outer investment which is difficult in the present time
Ek to uttrakhand ki sabse bari dikkat ye ha ki vaha koi local party nahi rahi, or jo cm mile vo bhi bekar material nikle or tisra ki sadke or pani bhi gao gai tak samay se nahi mil paya gaon ke logo ko
हमारे पूर्वजभी वहाँ से पलायन हो गए यहीं से । नेपाल घुस गए । चारधाम दर्शनसे लौटते अपनी गाँव देखे ।कुछ देर रुककर स्थानीय लोगों से वात चित किए अच्छा लगा । घर वापस लौटना सा हुवा । लेकिन कुमाऊँनी भाषा नहीं सिखी थी, हिन्दीमै हि काम चला लिए ।
Master ji aap sach bolte hey. Mann fir us jagah jane ko karta hey. mein USA mein hu par dil har time India Punjab and apne gawn mein ghoomta hey. Ji mein aata hey kissi pahari pe Himachal ja garhwal mein ghar ho. Kudrat and Bhgwan wahi hey.
natural spring water used to be the source probably, now without water conservation and climate change water level has decreased n natural dhara n springs gone extinct. the only solution is rain water harvesting
बहुत दर्द भरी कहानी है |ये कहानी पुरे उत्तराखण्ड की है |हम भी जब गाँव जाते है खंडहर पड़े घरों को देखकर बहुत रोना आता हे 😢
हर घर हर गाँव की यही हाल है
जब तक हम सब साथ मिलके ना रहेंगे बिखर जाएँगे
बंदे माँ तरम
कम से कम हिमाचल में ये स्थिति नहीं है..... वहां की सरकार ने बहुत सामाजिक कार्य भी कराये है लेकिन बहुत कुछ असर घरेलू भी है और इसका कोई इलाज नहीं
बहुत बहुत धन्यवाद पर्वतीय न्यूज़ का जो ऐसे ही हकीकत न्यूज़ दिखाता रहता है
सही कहा आपने आज हमें अपनी चीजों को देखकर पीड़ा होती है इतनी बड़ी जटिल समस्याओं मां बापू ने अपने बच्चों को बड़ा किया इतनी मेहनत की लेकिन लास्ट में छोड़ कर चला गये मेरी पहाड़ों की पीड़ा
यदि मुझे दूसरा जन्म मिला तो उतरा खंड में ही मिले भगवान से यही प्रार्थना है जै देव भूमि
Sahi🙏🇮🇳👍🇮🇳
बहुत विटक कहानी है अपने वीरान होते पहाड़ों कि यहाँ के बंजर होते खेत खलिहानो कि आखिर कौन समझेगा मेरे वीरान होते पहाड़ कि पीड़ा को 🙏🙏
Very nice
Deepak Singh Ji Kya aap khud samzte hai apne pahad ki pidaa ko.Kya aap khud rehte hai Uttarakhand me?
@@KiranYadav-cu5py m khud pahaad m hi rhta hu apni jnmbhumi se bahut payar h mujhe but Rojgaar na hone ke kaaran uttrakhand se baahar dusre sahro m jana padta h aakhir pahaad ki pida ko ek pahaadi hi smjh skta h wese aap kaha se ho
@@Deepak94-S Mai bhi Uttarakhand se hi hu, lekin keval Nam ke liye .Apna. number send kijiye,phir baat latte hai,yedi aapko uchit page to.
डर है रोहिंग्या लोग न बस जाए, इसलिए त्योहार अपने गांव में मनाते रहे
हमारे बुजुर्गों का दर्द बता रहा है कि उन्होंने इस पहाड़ के लिए क्या नहीं किया कितना संघर्ष किया कितना दर्द सहा फिर भी हार नहीं मानी लेकिन जब समय आया खुशियों का तो पलायन ने जिंदगी भर की मेहनत और संघर्षों पर पानी फेर दिया
सही बोला आपने 😊
ये सरकार अगर कुछ करती तो उत्तराखंड भी हिमांचल की तरह बिकसित होता पर इनको बजट ठिकाने लगाने से मतलब है
@Deepak Nautiyal apka kehna sach hai magar puri tarah nahi.Sarkar ke bina karwai aage nahi badhega,lekin jansamuh ka puri hissedari bhi jaroori hai.Muje patta pahar ke log mehnoti aur kathor parishram karte hai.Kami hai to aise leaders ki jo vissionery , determined aur iske sath gyan aur samaj ka bhandar.Education, science and technology ka mahatta ajj ki duniya me bahut hi mahatta hai.is ke bikas ke bina ek khushal Uttrakhand sapna hi rah jayega.Ye bhool na nahi hoga har samasya hal bhi sath leke atta hai.Rasta hai magar knowledge, science and technology ke bina andha jaisa hai.Jai Hind Jai Bharat Jai Uttrakhand.
ruclips.net/video/4sbl9aKejJE/видео.html
सरकार कि कन भैजी हमन कन जु कन हमत घौंरमा रैणां ई निछा हिमांचल जै देखा वखा का लोग अपणु घौंर नि छुडणां छन मि बुनु छौं हमन भी घौंर छोडी़ याली भैजी हम कैथी दोष नी दे सकदा न ही सरकार थै नाराज न हुययां भैजी किकन तब
भाई का दर्द दिल को छू गया...भैजी जुगराज रोउ वो...आपाकी आत्मा पहाड़ों मा घोंर बसद...तुमकु मेरी जय राम जी की वो...खूब भला रयान वो राजी खुशी 🙏
पत्रकार महोदय आप गांव के हाल दिखाकर लोगों की आंखें खोल रहे हो आपका बहुत बहुत धन्यवाद
I am really agree with uncle they are very simply and truth heart's...
May you live long..
❤️❤️
रूला दिया चाचा आपने,, 😢😢
लोग बदल गए हैं,, मै दस साल से कह रहा हूँ,, सरकार और सुविधा का बहाना बनाते हैं खुद दिल्ली में रहते हैं और हम गाँव वालो से हीसाब मांगते है
ये पलायन नाम की बीमारी सिर्फ उत्तराखण्ड मैं ही है। लोग लेह लद्दाक जैसी अपनी मात्र भूमि भी नही छोड़ते जहां घास भी नही उगती है। बारह मास बर्फ रहती है ।ये निक्कमो का काम है। जो इस स्वर्ग मैं भी नही रह पा रहे है ओरतों के कहने पर।वह तो पूर्वज ही थे मेहनती लोग जो शेर की तरह इज्जत की जिंदगी जी गए इस पावन भूमि मैं।
True said 👍
Sahi baat kahi aapne..👏
भाई पहला इंसान सच बोला। हिमाचली लाधाखी तो न जा रहे।
What a reply sir, aapke jaie need percent log bhi aise soche,uttrakhandi top ke state mein hoga, aapke soch ko salam karta hoon
दोस्तो कई मौके हैं यहां कमाने के लकिन लोगों को अपनी मातृभूमि की फ़िक्र नहीं.
Heart touching sir Jai uttrakhand Jai dev bhumi
प्रणाम। पुरूष वर्ग प्राचीन काल से धन उपार्जन करने गांवों से बाहर जाते थे,परन्तु बीबी बच्चे गांवों में रहते थे इसलिए गांव बसे थे।नयी पीढ़ी पढ़ कर बीबी बच्चे अपने साथ रखना चाहते हैं। पुरानी पीढ़ी तो इस दुनिया से जा चुकी है,जो गांव कभी गयए ही नहीं, उन्हें आकर्षण नहीं। गांव आज सूने हैं।
क्यों हमारे बुजुर्ग रिटायर होने के बाद शहरों में बस जाते हैं
because after retirement they have to depend on son city has facilites like hospital
other facilities if all these are in village no one will sit in city
सही कह रहे हैं हमने भी तो अपनी जमीन पूरी की है अब मजबूर हैं अब यदि जो वहाँ रह नहीं रहा है तो उसे बेदखल कर दिया जाय उनका कोई हक न हो उस पर।
Right....my dad also tell me like that...he love village and he will never leave till his last breath...hats off rawat sir
Same here
Same Mere Papa ko Bhi bhut zada Yaad Aata Hain😞
बहुत सही किया 🙏🙏😊
दर्द भरी कहानी च रावत जी !
भौत मार्मिक कहानी,
यह स्थिति अमूमन हर तीसरे चौथे उत्तराखंडी की है पलायन की पीड़ा बहुत ही दुखदाई होता है।और खास तौर से जो लोग पहले उत्तराखंड में अपने जीवन का लंबा दौर बिता चुके हैं ऐसे लोग पूरे उम्र भर इस पीड़ा को सहते हैं। इस पलायन को रोकने के लिए सरकार को कोई ना कोई ठोस नीति अवश्य बनानी होगी वरना हर उत्तराखंडी कहेगा पहाड़ी पहाड़ी मत बोलो जी देहरादून वाला हूं...
बिलकुल सही कहा गुरुजी ने. बेबाक कारण बताया पलायन का.
सरकार ने उत्तराखंड पर
ध्यान। दिया होता पलायन नहीं होता।
उत्तराखंड 1990में भी अलग हो गया होता साइड
ये नौबत नहीं आती।
दुःख तो होता है
आपकी बातें सत्य है यह बात हर कोई नहीं सोचता है।
You are a great person ,I really respect your feelings
हर गांव के यही हल है सर कभी कभी मन नहीं लगता गांव से दूर जाने का प़र क्या करे सर घर वालों के लिए करना पड़ता है 😭😭
ये कहानी उत्तर प्रदेश के गाँव की भी है, यहाँ भी हालात कुछ अलग नहीं है
गांव से पलायन किसी मुसीबत का हल नहीं हैं हम भी हिमाचल प्रदेश में ऐसी ही पहाड़ी गांव में रहते है लेकिन हमने हार नहीं मानी और अपनी मेहनत से और वर्षा का जल टैंकों में इकठा कर के अपनी जमीनों को सींचा और उपजाऊ बनाया जीना गांव का ही है शहर में तो केवल समय काटा जाता है
Aap ki bhawna dekhar khusi hoti hai ki aaj bhi aapka man apne jamin say laga hai
भारत सरकार और उत्तराखंड सरकार दोनो मिलकर पलायन रोके।यहां के लोगो की समस्या का त्वरित कार्रवाई करते हुए स्थाई निदान करे। पहाड़ी दुख सुनकर बहुत ही कष्ट हुआ ।बहुत ऐसे उत्तराखंड के भाई बन्धु परेशान है उनकी सुनी जाए केवल वोट बैंक न समझा जाए । UP से
जननी जन्म भूमि स्वर्गादिपि ग्रीयशी। मैं विदेश में बैठा हुआ हूं लेकिन अपने देश भारत और घर हरियाणा की बहुत याद आती है।
जिसने मेहनत की इस दर्द को वहीं जानता है जी।
बहुत सुंदर प्रस्तुति हर गाँउ की यही कहानी है 🙏😊
हमारे गांव भी बंजर हो चुका है दीदी जी, अब तो केवल बाघ सियार रहते हैं
यह कहानी उत्तराखंड की ही नही अपितु पूरे संसार की है ।सब छूट जाता है ।जीवन ऐसा ही है ।😊😊
Really story tau ji apko sun kar hmari ankho me bhi aa jate hai thanks you
बहुत दुख होता अपने वीरान होते गावो को देखकर 🙏🙏😭
हर गांव का यही हाल है बहुत घरों में इसी तरह कि कहानी है
Apne v gaaw ha yahi haal hai .. bht dukh hota h .. puraani yaade soch ke . Kya din hua krte the but ab 😭😭😭
बहुत दुख की बात है लोग अपनी धरती को छोड़कर जा रहे हैं
गुरूजी प्रणाम मैं आपका शिष्य
Looking like life on earth is going towards end# Low water level, no rain, corona, cyclone, black fungus,
Bilkul sach janmbhumi ko koi nahi bhula skta
दर्द भरी कहानी च। जै आदिमा अपणा भटूड़ अपणा मकान अपणीखेतीबाड़ी पर खपयां ह्वाला उ कनके भूली सकदा रोण आग्या हमरा बि सेम यी हाल छन भैजी पर क्य कन टक उखी लगी रैंद ।
द्वी चीज सतांदन पैली स्वास्थ्यालय दुसरी बागे डौर ।ये डौरला घौर नि जयेद पर आंखी डबडबाणी रैंदन ।
बहुत वास्तविक.
Aapko bahut yad kerte hain sab guruji 🙏🙏🙏
Yeh aap ke guru hai.
Ye aapke guru hain kya?
Govt ko har gaon mai local self help group banane chaye.. otherwise kuch nahi ho sakta
Bilkul apne haath se sinchai bagicha.... Ese haal main ho to rona to aa hi jaata hai so sweet sir...
सही बात है जब छोडकर चले जाओ तो हम अपनी पित्रों की इस धरोहर को भूल जाते है, लेकिन जब यहाँपर आओ तो सारी पीडा,माया- मोह और यादें रहरह कर रूलाती है,भला जहाँ पर हम पले बडे हुए है उसकी यद न आए यह तो हो ही नहीं सकता,
सहयोग का आपने सटीक उदाहरण दिया जबतक कोई भाई अफनी मेहनत मजदूरी और अपने रिस्कपर यहाँ खाता कमाता है तब तक भयात का भी आना जाना रोना धोना बना रहता है, सहयोग की जगह उसे उपहास का पात्र बनाते है लेकिन जब करने वाला भी छोड जाता है फिर सभी चैन से बैठ जाते है,यह हमारा दर्भाग्य है कि जो भाई इतने सक्षम है कि वे अपने दम पर यहाँ एक दो लोगों को नौकरी पर रख कर अपनी जीवन दायनी जमीन और घर द्धार को सही सलामत रख सकते है,लेकिन उनका ब्योहार दूसरों को छोडो अपनौ के प्रति भी सहयोगपूर्ण नहीं है,धन्यबाद आपका जो कि आपके दिल में आपने प्रदेश के प्रति प्रेम बनारखा है और आपने उत्तराखण्ड का दर
द बयाँ किया है ।
Meri prardhana hai bhagwan se mujhe vishwas hai jaldi hi aap ka zh ghar sab logo se bhara hoga aap bhi khush honge.
100% सही बोला आपने
सरकारों पर भरोसा छोड़े खुद पर भरोसा करें 👍
Bahut dukh hota hai ye sab dekh ker
गाँवो में सब का अपना घर है। पर शादी के बाद दिल्ली चलो। और कोटला, मीठापुर, करावल नगर, विनोद नगर, तंग गलियों में रहने के लिए तैयार है। पर गांव का खुला वातावरण सुध पानी, हवा में नही रहना चाहते। अब तो लोगो के दो बच्चे या 1 पर ही टीके है। पहले 8 से 12 बच्चे होते थे। उन लोगो ने भी खेती से ही बच्चो को पाला। औऱ जो पुराने लोग गाँव से जुड़े थे। वे भी रिटायर मेन्ट के बाद भी अपने गाँव नही जाते। ये लोग मोह माया में ही रह गए और जियेंगे।😢😢😢
Sahi kaha jamin tabe hoga jab penshan rahuga wah
जय हो ...
Shi kha sir hamara v yhi haal he 😭😭
और एक हम दिल्ली वाले पहाड़ों पे जमीन खरीदने को मरे जा रहे हैं
सरकार रोजगार की व्यवस्था क्यो नही कर रही है केवल बेदखल करने का अधिकार है पलायन रोकना किसका काम है
himmat na haro bhai, ap log bde bagyawaan ho jo aisi swarg jaisi dhrtibpnapne jnm lya h. apne yadeein apne aukhbdukh in darohar m snjo krr rkho.
आपके आसू जेनवन है सर कोई भी हो जिस की मेहनत लगी हो उसको पता है हमारे पूर्वजों की बसाई ये धरती केसे छोड़ दें
Rawat ji aajkal ke logon mein Insaniyat ki Kami ho gai hai aur insaaniyat khatm ho gai hai
We r coming back..
Baba ji I respect u n salute u.
One day every one will have to come back....
कोई अपना वसा वसाया घर नहीं छोड़ना चाहते। जब समय था तो लोग अपने तक ही सीमित थे केवल पेट भरना और पालन करना ही एक ही मकसद था लेकिन अब समय बदल चुका है। जरूरतें बहुत हैं लेकिन सुविधाओं के अभाव में और समाज के साथ चलना जरूरी हो गया है। इसलिए यदि सरकार हर सुविधाएं दे तो अभी भी लोग अपने जन्म भूमि में आने के लिए तैयार हो सकते हैं। पहाड़ों में बिना मेहनत का कुछ भी नहीं हो सकता है। हर जरूरत की चीजें चाहिए। दुःख तो होता है लेकिन नयी पीढ़ी भले न समझे लेकिन जिस पीढ़ी ले दुःख झेले हैं उनके आंसू कोई नहीं रोक सकता। क्या पुराने लोग जिन्होंने टेहरी डाम के कारण अपने गांव को छोड़ना पड़ा रोना नहीं आता होगा। भले नयी पीढ़ी इससे बेखबर है। समय के साथ यदि पहाड़ में प्रगति की होती या कहा जाए कि हिमाचल की तरह यदि उत्तराखंड में प्रगति होती तो इतना बड़ा पलायन नहीं होता। आज भी लोग अपना इलाज कराने के लिए दिल्ली जैसे नजदीक शहरों में जाते हैं। यही कारण है कि रिटायरमेंट के बाद बुढ़ापे की जिंदगी कोई पहाड़ में नहीं जीना चाहता।
very correctly you have told mr rawat one of my friend mrs Negiji tell us
mein kerala se hu hamare kerala mein log naukri ki talash mein gulf jathe hai aur apne gao mein ghar banathe hai samaj ki paisewale dukhan
shops kholthe hai kuch log chanda ikkata karke hospital koltha hai
agar aap log mein aisa kare tho acchi baath hai
है हिम्मत तो महेश को दान कर दो जमीन। खेल की जरूरत हहैनहीग तो गढ़वाल में कोई ओर बस जाएगा तभ रोना।
पर सवाल अभी भी वही है , कि इसे कैसे रोका जा सकता है ?
कृपया विचार साझा करें
sachi khabar h ye sabhi ke asu nikalte h is khabar ko dekh kar jo bhi apni matri bhumi se pyar karta hoga
पलायन तो करते हैं पर पलायन का दर्द सीने में सबके सताता है सहर में कितना भी अमीर बन जाओ। इस दर्द से अछूता कोई नहीं है कोई दिखाता कोई छुपाता है जो गांव की मिट्टी में जन्म लिया खेला कूदा उन्हें याद जरूर आती है
Apna ghar apna hota h,, jaha ki har diware bohot kuch bolti h,, 😢😢😢
Muje apna gaau ka ghr yaad aa gaya ... Thamana pauri k nikat.... Jo ki playan k chalte aaaj khandar ho chukaaa hai....
Ab hum sirf kbhi jaate hai ek din k liye... Naaa paaani hai naa log
Jay dhevbhoomi🙏🙏
*पित्रों की भूमि छोड़ोगे तो आने वाले समय में खून के आंसू रोओगे..पलायन करने वाले..*
ruclips.net/video/4sbl9aKejJE/видео.html
So emotional 😢...I like this Sanskriti...I have same thing as Uncle ji...)))
Sachi bat cha
Mera Dil ro raha hai. Enka dard me samajh sakta hun.
पहाड़ियों का दुख
Jay davbumi 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
बेरोजगारी के कारण बहुत पलायन हो रहा है
गांव विरान हैं इसके जिम्मेदार बड़े बुजुर्ग लोग नहीं बल्कि वहां के युवा है ...5 हजार की नौकरी दिल्ली में कर लेंगे लेकिन अपने गांव में रहकर मेहनत नहीं करेंगे.. शर्म आती है इनको गांव में रहने में...फट्टू हैं ये लोग... अपने हक के लिए लड़ो ..गांव में सड़क बनवाओ, धरना दे दो, पानी की सप्लाई ठीक करवाओ..नहीं तो बाज के जंगल लगाओ अपने आप पानी आ जायेगा...फल सब्जी उगाओ , सारे गांव वाले एक साथ बेचो बाजार मैं... कैसे विकास नहीं होगा.. उसके लिए हिम्मत चाहिए.. लेकिन जो ये पहाड़ की बहुएं आने नहीं देंगी.. सबसे बडी़ दुश्मन पहाड़ों की यहां की लडकियां और बहुएं हैं इनको शहरों में रहना है
बहुत ही दर्दनाक कहानी सुनाई आपने। आखिर क्या कमाया हमने। जमीन बंजर हो जाय परन्तु कोई भी वहां हमारी खेती संभालते हुए आराम से जीवन यापन करें ये मंजूर नही। क्या इनके सभी भाई ये नही कह सकते थे कि भाई आप सँभालो यहां, हम आपको मदद करते रहेंगें। हरे भरे गाओं में जब जाते तो आपको दरवाजे खुले मिलते। कोई खाना पानी देने वाला सामने खड़ा होता। ईर्षा भाव मे हम अपनापन भी खोते जा रहे हैं। बड़े दुःख होता है, हम क्या से क्या हो गए।
Playan ko badhwa dene mai hamre bugurgo ka bhi bada yogdaan hai kyuki retyarment ke baad wo dehradun mai jakar baste hai or apne pahdo ko bhool jaate hai
Bahut dukhad, soti sarkaar aur prashashan
O. M. Good gurji prnamm humare gaun h
One day every uttranchali will back home
भाई पहाड़ की कहानी छोड़ो... यहां हमारे आजमगढ़ पूर्वी उत्तरप्रदेश में भी यही कहानी है....... मेरे पिताजी डिप्टी कमिश्नर हो कर रिटायर हुए और लखनऊ में मकान बना कर सेटल हो गये....... वो 4 भाई थे..... एक गांव में बाकी राजधानी लखनऊ में .....अब कोई ना कोई बीच बीच में गांव आता जाता है......बस उसके आगे कुछ नहीं...... ये पूरे भारत देश की घर घर की समस्या है...... चाहे हिन्दू , मुस्लिम या सिक्ख.......घर की कहानी औरतों से ही बिगड़ती है........
बड़ा जी सब जगा ई हाल छन।
हर गांव उजड़ने की एक कहानी है.
बहुत ही चिन्ता की बात है
दिल को छूती रिपोर्ट 😭
ruclips.net/video/4sbl9aKejJE/видео.html
ज्ञान सब देते है बस देहरादून दिल्ली में बैठ कर
Sukh Suvidha ko Hi Zindagi samajh te Hain Log Apne purvajo Ki Dharti per Rahane ka Kuchh aur Anand Hota Hai
Pure pahad ke yahi haal hain...dukhad
Still in utrakhand land is very costly without investment in the industry ifrarasture road and hospitals school not possible for any area to florissh without the support of outer investment which is difficult in the present time
kAs agar yahan paani hota to ye swarg se kam n hota. phir bhi upaya to dundna padega.
Ek to uttrakhand ki sabse bari dikkat ye ha ki vaha koi local party nahi rahi, or jo cm mile vo bhi bekar material nikle or tisra ki sadke or pani bhi gao gai tak samay se nahi mil paya gaon ke logo ko
हमारे पूर्वजभी वहाँ से पलायन हो गए यहीं से । नेपाल घुस गए । चारधाम दर्शनसे लौटते अपनी गाँव देखे ।कुछ देर रुककर स्थानीय लोगों से वात चित किए अच्छा लगा । घर वापस लौटना सा हुवा । लेकिन कुमाऊँनी भाषा नहीं सिखी थी, हिन्दीमै हि काम चला लिए ।
जननी जन्म भूमि ! कौन छोड़ना चाहता है ? कुछ तो मजबूरी होती हैं ,जो इन आंसुओ को भी अनदेखा करने को बाध्य करती हैं |
❤❤❤❤
Master ji aap sach bolte hey. Mann fir us jagah jane ko karta hey. mein USA mein hu par dil har time India Punjab and apne gawn mein ghoomta hey. Ji mein aata hey kissi pahari pe Himachal ja garhwal mein ghar ho. Kudrat and Bhgwan wahi hey.
Himachal bhe hilly area hai but baha plaayn ke problem nahi hai as Vaha govt. nae apni n school Gao Gao paunchaaya hai.
सोचने पर मजबूर कर दिया आपने.. 🙏
ruclips.net/video/4sbl9aKejJE/видео.html
There must be solution to water problem internally. Making ponds. What was the source of water earlier.
natural spring water used to be the source probably, now without water conservation and climate change water level has decreased n natural dhara n springs gone extinct. the only solution is rain water harvesting
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