माया और ब्रह्म दोनों ही एक है परन्तु जब ब्रह्म होता है तब माया नहीं होती सिर्फ एक ब्रह्म ही होता है फिर उस ब्रह्म को भावो का रस और उसमे सबसे उत्तम प्रेम रस की चाह होती है तभी माया और काल ( समय ) उत्पन्न हो जाती है और वो ब्रह्म एक से अनेक होकर उस समय संसार मे लिप्त होकर भावो के रसों का आनंद लेता है और इस तरह ये काल चकर चलता रहता है अनवरत बार बार अर्थात ब्रह्म जागता है और फिर सो जाता है बार बार
भाई सर एक बड़े लेखक भी हैं इन सर की एक किताब आज के एक साल पहले ही मुझे फिलिपकार्ट से मिली थी 300 पन्ने की बहुत ही सुंदर पुस्तक है। मैं तो सर से मिला नहीं हूँ लेकिन सर के विचारों से बहुत प्रभावित हूँ। इनकी उस किताब को मैंने तीन बार पढ़ा है और अपने तीन रिश्तेदारों को भी इमेजान से मंगवा कर दिया है। धर्म को समझने के लिए यह किताब बहुत ही अच्छी है आप भी मंगवा लीजिए रिक्वेस्ट है किताब का नाम कोजागरी है जो की राज मंगल प्रकाशन से छपी है। “कोजागरी हिंदी बुक लेखक सत्यजीत अतवारा “ इसे आप जरूर पढ़े । तमाम मूर्खताओं का ख़ात्मा हो जाएगा इस किताब को पढ़ने के बाद । धन्यवाद
बहुत सुंदर वीडियो है, अद्व्येतवाद को आपने बहुत अच्छी तरह से समझाया है। आप बहुत ही अच्छा कर रहे हैं लोगों के लिए। आप धन्य हैं महान है और आपक ज्ञान भी अपार है। आपसे हम सभी लोगों को बड़ी प्रेणा मिलती है ।
सर, आत्मा परमात्मा और ब्रह्म। इनके अर्थ अलग अलग है। आत्मा अहम को ब्रह्म से मिलाने में सेतु का कार्य करती है। जो आत्मा अहम को ब्रह्म से मिला दे वही परमात्मा है। यह तर्क ही तो कल्कि की तलवार है। जिसका सामना अहम नहीं कर सकता। ईश्वर सत्य है। अहम मिथ्या है।
गुरूजी, एक प्रश्न है : यह ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य व शूद्र जातियां हैं ये कोनसा सत्य है? क्या इनमें वसने वाली आत्मा उक्त चारों वर्णों में एक ही हैं या अलग अलग। आपने जो बताया वजह ब्रह्म सत्य है या मिथ्या?
Bahut hi saral bhasha men aap samjha dete hai lekin darshn ki bhasha hone ke karan kuchh logon ko samjhne men dikkat hogi. Ve log khas karke jinki chetana ka star kam hai, jankari dene ke liye bahut bahut dhanyvad punh sader pranam
देखिए यह माया, माया, माया। कौन है माया, ज्ञानी पूछ रहे प्रश्न। माया दिवानी तेरी जवानी, पूछे है ज्ञानी कलयुग में आना तेरा कैसे हुआ। राजा,रंक और भिखारी, नेता और बड़े व्यापारी, तेरे पीछे पड़े हैं अंजानी पूछे है ज्ञानी कलयुग में आना तेरा कैसे हुआ।
श्रीमान महोदय यह सब जो आप बता रहे हैं यह तो विभिन्न पुस्तकों में क्रमबद्ध रूप से यदि पढ़ा जाए या स्वाध्याय किया जाए तो जानकारी हो जाती है।थोड़े बहुत ध्यान में और मेडिटेशन से यह सब कुछ स्पष्ट हो जाता है। मुख्य विषय यह है जो मेरे और मेरे जैसे डॉ बी आर अंबेडकर के अनुयाई जानकारी समझते हैं वह यह प्रश्न है कि जब इस प्रकार की व्यवस्था है तो वह कौन अज्ञानी उन्हें अज्ञानी कहना ही उचित होगा इस व्याख्यान के बाद शोषणकारी अत्याचारी दमनकारी भेदभावपूर्ण और स्वार्थ को अपनी ही स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए दूसरों की हत्या करना राजनीतिक रूप से धार्मिक रूप से आर्थिक रूप से और जितने भी प्रकार हैं सब प्रकार से अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने के लिए फिर षड्यंत्रकारी धार्मिकता में कैसे परिवर्तित हुआ! श्रीमान द्वैत और अद्वैतवाद के और अनेकों आध्यात्मिक सिद्धांतों के आधार पर जो चर्चा की जाती है जो दर्शनशास्त्र बताया जाता है वह तो वास्तव में रासायनिक विज्ञान भौतिक विज्ञान और गणित के द्वारा स्पष्ट हो जाता है आधुनिक विज्ञान के द्वारा भी स्पष्ट हो जाता है। लेकिन यह किसी भी धर्म के द्वारा साबित नहीं होता चाहे वह हिंदू है मुस्लिम है सिख है इसी है या कोई और कि यह मानव यह सब कुछ जानते हुए भी मानव से मानव में इतना भेद करता है और उसी के आधार पर व्यवहार करता है की मानव को मानव ही नहीं मानता उसका मानव होने का अधिकार ही नहीं देता तो फिर मानव अधिकार कहां से देगा। माननीय शंकराचार्य जी यदि यह सब कुछ जानते हैं और उन्होंने यह सब कुछ एस्टेब्लिश किया है तो वह यह क्यों नहीं मानने को तैयार होते की मानव में मानव जन्म के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। रंग के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। और अत्याचार शोषण भ्रष्टाचार यह नहीं करना चाहिए। यह उनका स्पष्ट रूप से रोकने के आदेश क्यों नहीं देते। सच यह है कि यह ब्रह्म और भ्रम से ब्रह्मजाल/ भ्रमजाल बनाया जाता है जिसमें आम आदमी को फंसा कर उसे गुलामी का जीवन जीने पर मजबूर किया जाता है। बस यही धर्म का एक चक्र है। जिससे बचाने के लिए 'धम्म चक्कर' का भगवान बुद्ध ने धम्म कहा था। वही सच है।
Har Insaan ke purv janm ke karmanusar is janm mai khun pine wale aur chahne wale unke nazdeek ke rishtedar hi hote hai, dusaro ki to baat baad mai aati hai, ek Insaan purva janm mai pad power aur paice mai Andha hokar sirf paap karm karke marta hai to bhala is janm mai usko sivay Dukho ke kuchh mil sakta hai kya?!😊😊😊😊
O bhai aap tou murkh h hi kyu auron ko bhi murkh bna rhay.Advaitvaad kb ka pit chukaa h .Ramanujacharya aur oonkay baad ke Jagatgurus ne ye theory kb ki reject kr di thi aur tum aaj bhi esko leke baithhay hue ho.Htaao yaar ye sb mayawaad tjm kb ke pit chukay ho.kya rkha h ab en bekaar ki baaton may.
भाई सर एक बड़े लेखक भी हैं इन सर की एक किताब आज के एक साल पहले ही मुझे फिलिपकार्ट से मिली थी 300 पन्ने की बहुत ही सुंदर पुस्तक है। मैं तो सर से मिला नहीं हूँ लेकिन सर के विचारों से बहुत प्रभावित हूँ। इनकी उस किताब को मैंने तीन बार पढ़ा है और अपने तीन रिश्तेदारों को भी इमेजान से मंगवा कर दिया है। धर्म को समझने के लिए यह किताब बहुत ही अच्छी है आप भी मंगवा लीजिए रिक्वेस्ट है किताब का नाम कोजागरी है जो की राज मंगल प्रकाशन से छपी है। “कोजागरी हिंदी बुक लेखक सत्यजीत अतवारा “ इसे आप जरूर पढ़े । तमाम मूर्खताओं का ख़ात्मा हो जाएगा इस किताब को पढ़ने के बाद । धन्यवाद
Manyavar pranam, Agar atma hi parmatma hai, to fir kon guru kon chela, Atma pratibimb hai uss parmatma ki. बूंदी समुंदर नहीं है, लेकिन जब समुंदर में मिलती है तब समुंदर कहते हैं ना की बूंद। अकेली आत्मा परमात्मा नहीं होती
Anand hi Anand guru
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माया और ब्रह्म दोनों ही एक है परन्तु जब ब्रह्म होता है तब माया नहीं होती सिर्फ एक ब्रह्म ही होता है फिर उस ब्रह्म को भावो का रस और उसमे सबसे उत्तम प्रेम रस की चाह होती है तभी माया और काल ( समय ) उत्पन्न हो जाती है और वो ब्रह्म एक से अनेक होकर उस समय संसार मे लिप्त होकर भावो के रसों का आनंद लेता है और इस तरह ये काल चकर चलता
रहता है अनवरत बार बार अर्थात ब्रह्म जागता है और फिर सो जाता है बार बार
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आप सत्य ही कह रहे हो मैं एक मनोविज्ञान का विद्यार्थी हूं बस यही कहूंगा आप सत्य कह रहे हो आपकोआत्मज्ञान है धन्यवाद आपका ही रामकुमार शर्मा
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Simply
ADVAIT
WHEN BRAHM NAAD PASS THROUGH ALL OVER ONES BODY IS ADVIT
THUS ONE STAY DVAIT TILL NO BRAHM NAAD PASSES THROUGH ONES BODY
Brahman
The one derived from Brahm
Truth
Brahm
Derived from Brahm
Maya
HE knows
he ( derived) does not know
भाई सर एक बड़े लेखक भी हैं इन सर की एक किताब आज के एक साल पहले ही मुझे फिलिपकार्ट से मिली थी 300 पन्ने की बहुत ही सुंदर पुस्तक है। मैं तो सर से मिला नहीं हूँ लेकिन सर के विचारों से बहुत प्रभावित हूँ। इनकी उस किताब को मैंने तीन बार पढ़ा है और अपने तीन रिश्तेदारों को भी इमेजान से मंगवा कर दिया है। धर्म को समझने के लिए यह किताब बहुत ही अच्छी है आप भी मंगवा लीजिए रिक्वेस्ट है किताब का नाम कोजागरी है जो की राज मंगल प्रकाशन से छपी है। “कोजागरी हिंदी बुक लेखक सत्यजीत अतवारा “ इसे आप जरूर पढ़े । तमाम मूर्खताओं का ख़ात्मा हो जाएगा इस किताब को पढ़ने के बाद । धन्यवाद
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Very nice information thank you so much
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बहुत सुंदर वीडियो है, अद्व्येतवाद को आपने बहुत अच्छी तरह से समझाया है। आप बहुत ही अच्छा कर रहे हैं लोगों के लिए। आप धन्य हैं महान है और आपक ज्ञान भी अपार है। आपसे हम सभी लोगों को बड़ी प्रेणा मिलती है ।
Thanks
Very beautiful
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Bhaut badhiya vishlesan mai aapki video hamesha dekhta hu
Thanks for watching and sharing your thoughts ! |’|| do my best to make the next one even better.
गुरु यहि ताे हे सत्य
Thanks
शानदार व्याख्या!
Thanks
🚨जगत सत्य तो है, लेकिन अनित्य है 💥
सुनने और समझने में अच्छा लगता है
Thanks
बहुत सुन्दर
Thanks
पहचान हर जगह है
Thanks
सुनी सुनाई बात है।
Thanks
सामान्य मनुष्य को ये बात समझ में कठिन लगती हे,उनको सिर्फ अपना रोजबरोज का दुख निवारण की चिंता होती हे,इसलिए सरल रास्ता वाला धर्म/दर्शन बताओ,आपका आभार
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सर, आत्मा परमात्मा और ब्रह्म। इनके अर्थ अलग अलग है। आत्मा अहम को ब्रह्म से मिलाने में सेतु का कार्य करती है। जो आत्मा अहम को ब्रह्म से मिला दे वही परमात्मा है। यह तर्क ही तो कल्कि की तलवार है। जिसका सामना अहम नहीं कर सकता। ईश्वर सत्य है। अहम मिथ्या है।
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Bhagvat Gita padho sab samjh me aa jayega
@spiritualwithscientificpro7805 tumne sab samajh liya.to batao tum koun ho.
@@Veda99 jo sab hai
@spiritualwithscientificpro7805 sab to moorkh hai.
Maya jagt ka ar smjhao..guru g ar .sty ko kaise jaane is pr Vedio banaao
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अगले किसी वीडियो में। धन्यवाद
गुरूजी, एक प्रश्न है : यह ब्राह्मण, क्षत्री, वैश्य व शूद्र जातियां हैं ये कोनसा सत्य है? क्या इनमें वसने वाली आत्मा उक्त चारों वर्णों में एक ही हैं या अलग अलग।
आपने जो बताया वजह ब्रह्म सत्य है या मिथ्या?
आत्मा सभी इंसानों में एक जैसी है लेकिन अनंत आत्माये है कर्मनुसर ही सभी को शरीर मिला है
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एक ही आत्मा का सर्वत्र प्रसार है ।धन्यवाद
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Om
🕉️
गुरुदेव को नमन
Thanks
Bahut hi saral bhasha men aap samjha dete hai lekin darshn ki bhasha hone ke karan kuchh logon ko samjhne men dikkat hogi. Ve log khas karke jinki chetana ka star kam hai, jankari dene ke liye bahut bahut dhanyvad punh sader pranam
धन्यवाद
ये जगत एक भी है भिश्न भी है
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Sader pranam
धन्यवाद
ओह ! तो यह तथ्य है सोच लो कभी वहां भी भिन्नता मिले
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देखिए यह माया, माया, माया।
कौन है माया, ज्ञानी पूछ रहे प्रश्न।
माया दिवानी तेरी जवानी,
पूछे है ज्ञानी
कलयुग में आना तेरा कैसे हुआ।
राजा,रंक और भिखारी,
नेता और बड़े व्यापारी,
तेरे पीछे पड़े हैं अंजानी
पूछे है ज्ञानी
कलयुग में आना तेरा कैसे हुआ।
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आप जो बोले है वहीं है
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❤👍👍💐🌺
🙏
Virat gyan
Dhanyvad
श्रीमान महोदय यह सब जो आप बता रहे हैं यह तो विभिन्न पुस्तकों में क्रमबद्ध रूप से यदि पढ़ा जाए या स्वाध्याय किया जाए तो जानकारी हो जाती है।थोड़े बहुत ध्यान में और मेडिटेशन से यह सब कुछ स्पष्ट हो जाता है।
मुख्य विषय यह है जो मेरे और मेरे जैसे डॉ बी आर अंबेडकर के अनुयाई जानकारी समझते हैं वह यह प्रश्न है कि जब इस प्रकार की व्यवस्था है तो वह कौन अज्ञानी उन्हें अज्ञानी कहना ही उचित होगा इस व्याख्यान के बाद शोषणकारी अत्याचारी दमनकारी भेदभावपूर्ण और स्वार्थ को अपनी ही स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए दूसरों की हत्या करना राजनीतिक रूप से धार्मिक रूप से आर्थिक रूप से और जितने भी प्रकार हैं सब प्रकार से अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने के लिए फिर षड्यंत्रकारी धार्मिकता में कैसे परिवर्तित हुआ!
श्रीमान द्वैत और अद्वैतवाद के और अनेकों आध्यात्मिक सिद्धांतों के आधार पर जो चर्चा की जाती है जो दर्शनशास्त्र बताया जाता है वह तो वास्तव में रासायनिक विज्ञान भौतिक विज्ञान और गणित के द्वारा स्पष्ट हो जाता है आधुनिक विज्ञान के द्वारा भी स्पष्ट हो जाता है।
लेकिन यह किसी भी धर्म के द्वारा साबित नहीं होता चाहे वह हिंदू है मुस्लिम है सिख है इसी है या कोई और कि यह मानव यह सब कुछ जानते हुए भी मानव से मानव में इतना भेद करता है और उसी के आधार पर व्यवहार करता है की मानव को मानव ही नहीं मानता उसका मानव होने का अधिकार ही नहीं देता तो फिर मानव अधिकार कहां से देगा।
माननीय शंकराचार्य जी यदि यह सब कुछ जानते हैं और उन्होंने यह सब कुछ एस्टेब्लिश किया है तो वह यह क्यों नहीं मानने को तैयार होते की मानव में मानव जन्म के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। रंग के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। और अत्याचार शोषण भ्रष्टाचार यह नहीं करना चाहिए। यह उनका स्पष्ट रूप से रोकने के आदेश क्यों नहीं देते।
सच यह है कि यह ब्रह्म और भ्रम से ब्रह्मजाल/ भ्रमजाल बनाया जाता है जिसमें आम आदमी को फंसा कर उसे गुलामी का जीवन जीने पर मजबूर किया जाता है। बस यही धर्म का एक चक्र है। जिससे बचाने के लिए 'धम्म चक्कर' का भगवान बुद्ध ने धम्म कहा था। वही सच है।
Thanks for watching and sharing your thoughts ! |’|| do my best to make the next one even better.
Har Insaan ke purv janm ke karmanusar is janm mai khun pine wale aur chahne wale unke nazdeek ke rishtedar hi hote hai, dusaro ki to baat baad mai aati hai, ek Insaan purva janm mai pad power aur paice mai Andha hokar sirf paap karm karke marta hai to bhala is janm mai usko sivay Dukho ke kuchh mil sakta hai kya?!😊😊😊😊
Sir Maya ki onder may bhi bhagwan hey.🎉🎉🎉😢😢😢😂😂😂🎉🎉kyuki hor jaga bhagwan hey😅😅😅😅😅
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वहां भी भिन्नता है
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भ्रमिष्ट है!!!
Thanks
O bhai aap tou murkh h hi kyu auron ko bhi murkh bna rhay.Advaitvaad kb ka pit chukaa h .Ramanujacharya aur oonkay baad ke Jagatgurus ne ye theory kb ki reject kr di thi aur tum aaj bhi esko leke baithhay hue ho.Htaao yaar ye sb mayawaad tjm kb ke pit chukay ho.kya rkha h ab en bekaar ki baaton may.
भाई सर एक बड़े लेखक भी हैं इन सर की एक किताब आज के एक साल पहले ही मुझे फिलिपकार्ट से मिली थी 300 पन्ने की बहुत ही सुंदर पुस्तक है। मैं तो सर से मिला नहीं हूँ लेकिन सर के विचारों से बहुत प्रभावित हूँ। इनकी उस किताब को मैंने तीन बार पढ़ा है और अपने तीन रिश्तेदारों को भी इमेजान से मंगवा कर दिया है। धर्म को समझने के लिए यह किताब बहुत ही अच्छी है आप भी मंगवा लीजिए रिक्वेस्ट है किताब का नाम कोजागरी है जो की राज मंगल प्रकाशन से छपी है। “कोजागरी हिंदी बुक लेखक सत्यजीत अतवारा “ इसे आप जरूर पढ़े । तमाम मूर्खताओं का ख़ात्मा हो जाएगा इस किताब को पढ़ने के बाद । धन्यवाद
धन्यवाद
Thanks
आभार
Manyavar pranam,
Agar atma hi parmatma hai, to fir kon guru kon chela,
Atma pratibimb hai uss parmatma ki.
बूंदी समुंदर नहीं है, लेकिन जब समुंदर में मिलती है तब समुंदर कहते हैं ना की बूंद। अकेली आत्मा परमात्मा नहीं होती
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