अब्दुर्रहीम।खानखाना।रहीम।दोहे।व्याख्या।

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  • Опубликовано: 9 окт 2024
  • रहीम के दोहे। व्याख्या।
    / @hindikipaathshaalaa
    अब्दुर्रहीम।खानखाना।रहीम।दोहे।व्याख्या।#अब्दुर्रहीम खानखाना।
    #अब्दुर्रहीम खानखाना।
    जन्म 17 दिसंबर, 1556 मृत्यु-1628, #भक्ति काल के कवि रहीम। सगुण भक्त कवि रहीम# पिता का नाम-बैरम खां
    #माहम अनगा के बहकावे पर बैरम खां का पतन हुआ। बैरम कह हत्या पाटन में हुई। बैरम की हत्या मुबारक खां ने की।
    #नूरजहां के बहकावे पर रहीम का पतन हुआ। अकबर के समय में सबसे प्रभावशाली रहा। अकबर ने रहीम को मिर्जा खां और खानखाना की उपाधि दी।
    #रहीम बहुभाषाविद् थे- संस्कृत, फारसी, अरबी, तुर्की, हिंदी, अवधी एवं ब्रजभाषा।
    रहीम की जानकारी के स्रोत- मआसिरे रहीमी#मआसिरुल उमरा।
    रचनाओं के नाम।दोहावली।नगर शोभा।बरबै नायिका भेद# बरबै#मदनाष्टक#श्रृंंगार सोरठा। खेट कौतुकजातकम्रु फुटकर पद#बाकियाते बाबरीर#फारसी दीवान# संस्कृत श्लोक
    अकबर के साथ रहीम के संबंध-
    मौसेरा एवं फूफेरा भाई, अकबर का धर्म पुत्र
    अकबर का समधी- अकबर के बेटे दानियाल से रहीम की पुत्री जानां का विवाह। रहीम की पोती की शादी शाहजहां से हुई
    रहीम की रचनाएं- दोहावली
    अनुचित वचन न मानिए, जदपि गुराइसु गाढ़ि ।
    है रहीम रघुनाथ तें, सुजस भरत को बाढ़ि ।।7।।
    ‘ए’ रहीम दर दर फिरहिं, माँगि मधुकरी खाहिं।
    यारो यारी छोड़िये, वे रहीम अब नाहिं ।। 21।।
    चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस ।
    जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस।।57।।
    जे गरीब पर हित करें, ते रहीम बड़ लोग।
    कहाँ सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग ।।68।।
    जैसी तुम हमसों करी, करी करो जो तीर।
    बाढ़े दिन के मीत हौ, गाढ़े दिन रघुबीर।।75।।
    दोहा संख्या-07
    अनुचित वचन न मानिए जदपि गुराइसु गाढ़ि ।
    है रहीम रघुनाथ तें, सुजस भरत को बाढ़ि ।।7।।
    संदर्भ- प्रस्तुत दोहा वीरता, लौकिक ज्ञान, दयालुता और मानवीय गुणों की दृष्टि से अकबर के दरबार के अद्वितीय दानवीर कवि अब्दुर्रहीम खानखाना रचित कृतियों के संग्रह ‘रहीम ग्रंथावली के ‘दोहावली’ से लिया गया है।
    दोहावली के नीतिपरक दोहे न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे व्यक्तिगत, सामाजिक, नैतिक, अध्यात्मिक और व्यावहारिक जीवन की सरल भाषा में गूढ़ नैतिक शिक्षा देनेवाले हैं, व्यक्ति क्या करे क्या न करे, की शिक्षा देते हैं, रहीम के
    दोहे हृदय को गहराई तक स्पर्श करते हैं। रहीम के दोहों से
    हर पाठक को कुछ न कुछ सीखने को मिलता है।
    इनक दोहों में भक्ति, नीति एवं शृंगार की त्रिवेणी
    प्रवाहित होती है ।
    अनुचित वचन न मानिए, जदपि गुराइसु गाढ़ि ।
    है रहीम रघुनाथ तें, सुजस भरत को बाढ़ि ।।7।।
    प्रसंग- नीति का दोहा है, जिसक अनुसार बड़े भी अगर अनुचित बात कहें या सुझाव दें तो उनको मानने में हानि है। शब्दार्थ- वचन-उपदेश, सुझाव, सलाह, गुराइसु-गुरु या बड़े, गाढ़ि-गंभीर सुजस-यश, प्रताप, बाढ़ि-बढ़ना, बढ़ोतरी।
    सरलार्थ एवं व्याख्या- रहीम कवि कहते हैं कि कोई भी चाहे कितना भी बड़ा हो, महान् हो, परम आदरणीय हो, अगर वह अनुचित सलाह या सुझाव दे तो उसे नहीं मानना चाहिए क्योंकि उसके अनुचित वचन को मानने में हानि ही हानि है। ठीक वैसे ही जैसे राम ने अपनी प्रिय सौतेली मां कैकेयी की सलाह पर विवश अपने पिता दशरथ के अनुचित वचन को मानकर कष्ट झेला और चौदह वर्ष तक वनचास में कष्ट झेले। और, वही उनके अनुज भरत ने तो माताओं-भाइयों-सगे-संबंधियों एवं पुरजन के अनुचित वचन को नहीं माना तो उनका यश बढ़ गया। आदरणीयों के वचन को ठुकराने से उनकी छंद- दो पंक्तियों का है, दोहा है, मात्रिक छंद है। 13 और 11 पर यति देकर 24 अंत में लघु मात्रा। अपनी उक्ति -
    दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
    ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं॥ को सत्य चरितार्थ किया है। हिंदी साहित्य को दोहा सिद्धों की देन है किंतु लोकप्रिय बनाने का कार्य रहीम और उनसे प्रभावित होकर बिहारी लाल ने किया।
    अलंकार- नीति के दोहे हैं, नीति के दोहों की खस विशेषता यह होती है कि पहली पंक्ति समस्या या कारण से संबंधित होता है और दूसरी पंक्ति में उदाहरण के द्वारा उसका समाधान बताया जाता है, जब ऐसे प्रसंग हो तो उदाहरण अलंकार और काव्य लिंग अलंकार होता है।
    अंत में तुकबंदी रहती ही है, तो अंत्यानप्रास अलंकार है।
    नीति के दोहों में चूंकि बात को समझाना होता है,
    इसलिए सामान्यतः जो, ज्यों, जैसे, सो, सा, सरिस जैसे
    उपमा वाचक शब्द का प्रयोग हुआ हो तो तो उपमा
    अलंकार भी हो सकता है।
    महानता कम होने के स्थान बढ़ ही गई।
    विशेष- भाषा-बहुभाषी-संस्कृत, अरबी, फारसी, संस्कृत, ब्रजभाषा एवं अवधी के मर्मज्ञ। सधी हुई, लालित्यपूर्ण एवं गेय ब्रजभाषा, राग-रागिनियों का प्रयास नहीं किंतु इनके दोहे संगीतात्मकता से युक्त हैं।
    कबीर के बाद सबसे ज्यादा पढ़े और गाये जानेवाले कवि हैं।
    भक्ति, नीति एवं शृंगार की त्रिवेणी।

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