मात्र इन्द्रियों को जितने से भी भगवान नहीं बनते कर्मो के नाश से और सर्वज्ञता की प्राप्ति और मोक्ष की प्राप्ति जिसने की है ऐसे अरिहंत और सिद्ध परमात्मा कर्म कलंक से रहित हमारे परमात्मा है
जीवन के अस्तित्व का अर्थ जानने के लिए, यदि हम इतिहास पर दृष्टि डालें तो हमें दो सबसे प्राचीन धाराएँ मिलती हैं, जो "अहिंसा परमो धर्म" के सिद्धांत को मानती हैं, जिसे हम जैन धर्म (श्रमण परम्परा) और हिंदू धर्म (वैदिक परम्परा) के नाम से जानते हैं। इन दोनों धर्मों की शुरुआत ज्ञात इतिहास से परे है या हम कहें कि ब्रह्माण्ड एवं खगोल संरचना संबंधी आधुनिक विज्ञान मान्यतायें इन धर्मों को पूरी तरह से समझा पाने में सक्षम नहीं हैं या समझने में बाधा उत्पन्न करती है, उदाहरण के लिए ये दोनों धर्म इस बात से सहमत हैं कि श्री राम एक वास्तविक ऐतिहासिक महापुरुष थे, जो लगभग 10 लाख वर्ष पहले हुए थे लेकिन आधुनिक इतिहास का सिद्धांत इस तथ्य को स्वीकार नहीं करता है। "अहिंसा परमो धर्म" ही सनातन या शाश्वत धर्म है एवं जैन धर्म और हिन्दू धर्म एक ही सनातन सच्चाई को देखने के दो नजरिये हैं । जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषवदेव जी का हिन्दू धर्म के वेदों और पुराणों में भी वर्णन हैं और जिन्हें दोनों मान्यताओं ने श्री राम (जो कि जैन धर्मं के अनुसार बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रत के बाद हुए व उन्ही के शाशन काल में मोक्ष गए) के भी कई वर्षो पहले होना स्वीकार किया हैं |जैन धर्म में प्रथम तीर्थंकर ऋषवदेव जी को आदि या प्रथम क्षत्रिय माना गया हैं इन्ही से ईक्ष्वाकु कुल की स्थापना हुई थी, व इनके ज्येष्ठ पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा जिसका उल्लेख दोनों धर्मो के ग्रंथो में मिलता हैं । एक ही सनातन सच्चाई "अहिंसा परमो धर्मं" की व्याख्या करने में दोनों धर्मों में भिन्नताएं आने का मुख्य कारण यह हो सकता है कि एक तीर्थंकरों की परम्परा से प्राप्त हुआ है जो कि केवलज्ञानी या सर्वज्ञ थे अतः उन्होंने यथार्थ वर्णन किया होगा, दूसरा ऐसी परम्परा है जिनके गुरु केवलज्ञानी या सर्वज्ञ नहीं थे हालांकि उनके गुरुओं को देवों ने सहायता की लेकिन केवलज्ञान न होने की वजह से अलग अलग समय में हुए महापुरुषों को उन्होंने एक ही महापुरुष का अवतार मान लिया होगा इसीलिए हिन्दू धर्मं में ईश्वर को अवतार लेने वाला व सृष्टि का कर्ता मान लिया जबकि जैन धर्मं में ईश्वर को सर्वज्ञ व सर्व शक्तिमान तो माना है लेकिन सृष्टि का कर्ता नहीं माना एवं कर्म सिद्धांत को मानते हुए ये माना है कि सृष्टि के सभी अन्नत जीव अपने पुरुषार्थ से जन्म मृत्यु के अनादि चक्र से छूटकर परम पद या मोक्ष प्राप्त कर ईश्वर बन सकते हैं। "अहिंसा परमो धर्म" कथन में हम परमो या परम शब्द पर ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं, जिसका अर्थ है निरपेक्ष, इस प्रकार यह बताना कि अहिंसा एक परम सनातन नियम है जो तीनों लोकों को संचालित करता है। जैन धर्म में इसे संपूर्ण विज्ञान कहा गया है जो संपूर्ण अस्तित्व के कार्य और नियमों की व्याख्या करता है। जैन धर्मं के अनुसार संपूर्ण सृष्टि या लोक ६ द्रव्यों से मिलकर के बना हैं १) आकाश (Space), २) काल (Time) ३) पुद्गल (Matter and Energy) , ४) जीव (Living beings or souls) ५) धर्मास्तिकाय (Medium of Motion) ६) अधर्मास्तिकाय (Medium of Rest) आधुनिक विज्ञान उपरोक्त ६ द्रव्यों में से प्रारंभ के ३ को ही जनता हैं इसीलिए अपूर्ण हैं| इसीलिए आधुनिक विज्ञान के सिद्धांत जो कि लोक की सनातनता (eternity) पर प्रश्न चिन्ह लगाये, को सत्य मान लेना बहुत बड़ी भूल हैं |
मैं आपका शुक्र अदा नहीं कर सकता। इतना अमूल्य ज्ञान देने के लिए मैंने आपको पिछले कुछ दिनों से ही सुनना शुरूकिया है और मैं तब तक नहीं रुकूंगा जब तक मैं आपके चैनल की हर एक वीडियो नहीं देखा लेता
महोदय अपका धन्यवाद करता हूँ. दर्शन शास्त्र की औकात को ठीक ठीक बताने के लिए. कोई भी ज्ञान जिसको तार्किक नीति की खिचड़ी की आवश्यकता होती है वह न तो पूर्ण रूप से वस्तुनिष्ठ है और न ही पूर्ण रूप से आत्मनिष्ठ है. ऐसा ज्ञान इन दोनों के बीच में कहीं अपरिपक्वता की स्थिति में होता है.
तुष्णाम सिन्धी भज क्षमा जहिमदम पापे रति मां कथा। 🙏 संत भर्तूहरी - माननीय डॉक्टर सिन्हा जी ,आपकी बुद्धिमत्ता , ज्ञान को मेरा प्रणाम , आप से निवेदन हे की आप दुनिया की सारी फिलोसोफी मेसे उत्कृष्ट कोनसी है जो इश्तत्व को प्राप्त करवाए , आप के नजरिए से। - मेरे तार्किक और भावनिक अभ्यास से कह सकता हु की वैदिक ज्ञान ही हम परमोच्च अवस्था तक पहुंचाती हे। 🙏🙏🌅
जैसी दृष्टी,वैसी सृष्टी। मनुष्य दोमुहे साँप कि भाँति व्यवहार करता है। शुभ कामों के लिये वह स्वयं को व अशुभ कामों के लिये ईश्वर को जिम्मेदार ठहराता है। इंसान पहले इंसान बन जावे फिर किसी परालौकिक सत्ता को समझने का प्रयास करे तो बेहतर है।
भगवान को जैनों ने निकाला नहीं है जो भगवन वन चुके हैं उनकी तो हम सभी पूजा करते हो उन्हें मानते है पर परमात्मा को करता नहीं मानते ये परमात्मा मात्रा जानन हारा hai dekgan हारा है सर्वज्ञ है परमात्मा कोई हमारा नौकर नहीं जो हमारा भला बुरा करे जैन दर्शन अनादि से है और हमेशा रहेगा
Jai gurudev ji.Hinduism,Buddhism,Sikkhism and Jainism ,they all believe in karma Siddhantha i .e. cause & effect(karya karan siddhanta ) theory.Their methods depend on the principle propounded by their founders.However,they all including Hinduism stated the same truth i .e. eko satya vipra vahudha vadanti.In Hinduism,Patanjal's yam stipulates satya ahimsa asteya brahmacharya and aparigraha which were similarly stated by the tirthankars of Jainism.
Sir pls sinha sir se western philosophers ke aise hi videos banwaye aap...Upsc philosophy optional wale students ke lie kaafi helpful rahega please sir
जैन होके भी जैन धर्म नहीं समझते तो क्या लाभ . आपका स्टेटमेंट में परफ़ेक्ट सत्य है जबकि अनेकांतवाद कहता कि कोई भी सत्य पूर्ण नहीं है . जैन सिद्धांतों को पढ़े बिना समझे बिना आप एक सनातन हैं । परमान सागर महाराज को सुने और जैन धर्म को पढ़े .
@@kamleshdave3867 are Bhai kon bola bhagwan nahi hai 🤦🏻🤦🏻🤦🏻🤦🏻 Jain mante hai ki bhagwan hai magar wo apki moksh prapti me help nahi kar sakte App bhagwan ka sirf ashirwad lo Magar wo apki help nahi karenge
@@kamleshdave3867 to isliye app bhagwan ko kuch karne ki koshish na kare Bhagwan apki koi help nahi karenge Bhagwan ke liye bali na de , bhagwan ke liye home hawan na kare Bhagwan ke liye koi karm kand na kare Aisi jain philosophy hai Jain bhagwan ko nahi nakarte 🤦🏻
@@kamleshdave3867 jihadi hai tu, dusre dharma ke baare me kuch pata nahi hota lekin aajate hai bakchodi karne. Jainism me bhagwan hai lekin woh creater preserver and destroyer nahi hote. Jain dharm me bhramand shuru se tha aur anant kaal tak rahega, koi bhi vishnu, etc, universe ko nahi bana sakta. Tapobal se mamuli admi bhi bhagwan ban sakta hai, ye cheez jain dharm sikhata hai. JAI JINENDRA.
5:00 अनेकान्तवाद के अनुसार प्रत्येक वस्तु में अनन्त विरोधी युगल एक साथ रहते हैं। एक समय में एक ही धर्म अभिव्यक्ति का विषय बनता है। प्रधान धर्म व्यक्त होता है और शेष गौण होने से अव्यक्त रह जाते हैं। वस्तु के किसी एक धर्म के सापेक्ष ग्रहण व प्रतिपादन की प्रक्रिया है 'नय'।, 6:00 नय वाद 8:35 *स्याद्वाद*, जैन तत्वमीमांसा में, सिद्धांत है कि सभी निर्णय सशर्त हैं, केवल कुछ स्थितियों, परिस्थितियों, या इंद्रियों में अच्छा रखते हैं, जिसे स्यात (संस्कृत: "हो सकता है") शब्द द्वारा व्यक्त किया गया है । किसी वस्तु को देखने के तरीके (नय कहलाते हैं) संख्या में अनंत हैं। स्यादवाद में कितने निर्णय शामिल है? सप्तभंगी नय सापेक्षिक ज्ञान की तार्किकता के आधार पर जैन दर्शन में निर्णय या मत के सात प्रकार माने गये हैं। अनेकांतवाद के कितने भेद हैं? अनेकांतवाद - कथन के दो प्रमुख ढंग अनेकांत शैली को प्रस्तुत करने के लिए जैन आचार्यों ने दो प्रमुख ढंग का उपयोग किया - स्यादवाद (conditioned viewpoint)और नयवाद (partial viewpoint)। स्यादवाद यानि वस्तु के गुण को समझने, समझाने और अभिव्यक्त करने का सापेक्ष ढंग। स्यादवाद के जनक कौन है? महावीर स्वामी ने स्वयं 'भगवतीयसूत्र' में आत्मा की सत्ता के विषय में 'स्याद अस्ति', 'स्याद नास्ति' और 'स्याद अवक्तव्यम' इन तीन भंगों का उल्लेख किया है।
मात्र इन्द्रियों को जितने से भी भगवान नहीं बनते कर्मो के नाश से और सर्वज्ञता की प्राप्ति और मोक्ष की प्राप्ति जिसने की है ऐसे अरिहंत और सिद्ध परमात्मा कर्म कलंक से रहित हमारे परमात्मा है
जीवन के अस्तित्व का अर्थ जानने के लिए, यदि हम इतिहास पर दृष्टि डालें तो हमें दो सबसे प्राचीन धाराएँ मिलती हैं, जो "अहिंसा परमो धर्म" के सिद्धांत को मानती हैं, जिसे हम जैन धर्म (श्रमण परम्परा) और हिंदू धर्म (वैदिक परम्परा) के नाम से जानते हैं। इन दोनों धर्मों की शुरुआत ज्ञात इतिहास से परे है या हम कहें कि ब्रह्माण्ड एवं खगोल संरचना संबंधी आधुनिक विज्ञान मान्यतायें इन धर्मों को पूरी तरह से समझा पाने में सक्षम नहीं हैं या समझने में बाधा उत्पन्न करती है, उदाहरण के लिए ये दोनों धर्म इस बात से सहमत हैं कि श्री राम एक वास्तविक ऐतिहासिक महापुरुष थे, जो लगभग 10 लाख वर्ष पहले हुए थे लेकिन आधुनिक इतिहास का सिद्धांत इस तथ्य को स्वीकार नहीं करता है। "अहिंसा परमो धर्म" ही सनातन या शाश्वत धर्म है एवं जैन धर्म और हिन्दू धर्म एक ही सनातन सच्चाई को देखने के दो नजरिये हैं । जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषवदेव जी का हिन्दू धर्म के वेदों और पुराणों में भी वर्णन हैं और जिन्हें दोनों मान्यताओं ने श्री राम (जो कि जैन धर्मं के अनुसार बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रत के बाद हुए व उन्ही के शाशन काल में मोक्ष गए) के भी कई वर्षो पहले होना स्वीकार किया हैं |जैन धर्म में प्रथम तीर्थंकर ऋषवदेव जी को आदि या प्रथम क्षत्रिय माना गया हैं इन्ही से ईक्ष्वाकु कुल की स्थापना हुई थी, व इनके ज्येष्ठ पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा जिसका उल्लेख दोनों धर्मो के ग्रंथो में मिलता हैं । एक ही सनातन सच्चाई "अहिंसा परमो धर्मं" की व्याख्या करने में दोनों धर्मों में भिन्नताएं आने का मुख्य कारण यह हो सकता है कि एक तीर्थंकरों की परम्परा से प्राप्त हुआ है जो कि केवलज्ञानी या सर्वज्ञ थे अतः उन्होंने यथार्थ वर्णन किया होगा, दूसरा ऐसी परम्परा है जिनके गुरु केवलज्ञानी या सर्वज्ञ नहीं थे हालांकि उनके गुरुओं को देवों ने सहायता की लेकिन केवलज्ञान न होने की वजह से अलग अलग समय में हुए महापुरुषों को उन्होंने एक ही महापुरुष का अवतार मान लिया होगा इसीलिए हिन्दू धर्मं में ईश्वर को अवतार लेने वाला व सृष्टि का कर्ता मान लिया जबकि जैन धर्मं में ईश्वर को सर्वज्ञ व सर्व शक्तिमान तो माना है लेकिन सृष्टि का कर्ता नहीं माना एवं कर्म सिद्धांत को मानते हुए ये माना है कि सृष्टि के सभी अन्नत जीव अपने पुरुषार्थ से जन्म मृत्यु के अनादि चक्र से छूटकर परम पद या मोक्ष प्राप्त कर ईश्वर बन सकते हैं। "अहिंसा परमो धर्म" कथन में हम परमो या परम शब्द पर ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं, जिसका अर्थ है निरपेक्ष, इस प्रकार यह बताना कि अहिंसा एक परम सनातन नियम है जो तीनों लोकों को संचालित करता है। जैन धर्म में इसे संपूर्ण विज्ञान कहा गया है जो संपूर्ण अस्तित्व के कार्य और नियमों की व्याख्या करता है।
जैन धर्मं के अनुसार संपूर्ण सृष्टि या लोक ६ द्रव्यों से मिलकर के बना हैं
१) आकाश (Space), २) काल (Time) ३) पुद्गल (Matter and Energy) ,
४) जीव (Living beings or souls) ५) धर्मास्तिकाय (Medium of Motion)
६) अधर्मास्तिकाय (Medium of Rest)
आधुनिक विज्ञान उपरोक्त ६ द्रव्यों में से प्रारंभ के ३ को ही जनता हैं इसीलिए अपूर्ण हैं| इसीलिए आधुनिक विज्ञान के सिद्धांत जो कि लोक की सनातनता (eternity) पर प्रश्न चिन्ह लगाये, को सत्य मान लेना बहुत बड़ी भूल हैं |
🙏🙏 आपकी दृष्टि में बौद्ध दर्शन बताएं जी
सुदीप कुमार जैन जी
आप के पास जो है, वो बहुत ही कीमती होगा
जिसमें से आपने यहां पर थोड़ी सी झलक दिखाई है 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
जैन धर्म 2500 साल से ज्यादा पुराना नही है
सुदीप जी आप का ज्ञान विसरित है । जल्द ही आप से सम्पर्क करूंगा
@@VLal-vs5mt जी धन्यवाद, मेरा एक जैन धर्म से related channel भी है, जिसको आप Samavasharan Knowledge के नाम से RUclips में search कर सकते हैं।
मैं आपका शुक्र अदा नहीं कर सकता। इतना अमूल्य ज्ञान देने के लिए मैंने आपको पिछले कुछ दिनों से ही सुनना शुरूकिया है और मैं तब तक नहीं रुकूंगा जब तक मैं आपके चैनल की हर एक वीडियो नहीं देखा लेता
Jainism
1) Individual Perspective & Potential
2) Ten men's tale (syadvaad)
3) Ahimsa
4) Aparigraha (Gandhian Philosophy)
5) Namo Arihantaram (Ari.., winning internal enemies..)
Ari: internal enemies - kaam, krodh, lobh, maya, matsar.
5 principals (mahavrats) of Jainism:
a. Ahimsa
b. Aparigraha
c. Brahmacharya
d. Satya
e. Asteya
Dr. Himmat Singh is one of most open minded brilliant philosophers in India.
🔆🔆लोक 🔆olo 🔆o 🔆loop 🔆l 🔆🔆lol 🔆ololl
💯 bilkul bhai
Gyani purush sadaa pujyaniya hai
जैन तत्व अदभुत है। आपने बढीया विश्लेषण किया है ।
Are you Jain???
महोदय अपका धन्यवाद करता हूँ. दर्शन शास्त्र की औकात को ठीक ठीक बताने के लिए. कोई भी ज्ञान जिसको तार्किक नीति की खिचड़ी की आवश्यकता होती है वह न तो पूर्ण रूप से वस्तुनिष्ठ है और न ही पूर्ण रूप से आत्मनिष्ठ है. ऐसा ज्ञान इन दोनों के बीच में कहीं अपरिपक्वता की स्थिति में होता है.
Sir,
आप ने जो हमे बताया है। हमे लगता इस तरह से हम किसी से नहीं समझ पाते।
आपका धन्यवाद और प्रणाम करता हूं।
एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति 🙏
स्याद्वाद और अनेकांतवाद जैन दर्शन का प्राण है। किसी भी बात की कई विभक्षाये होती है। बस देखने दृष्टी अलग अलग होती हैं।
Guru ji your Philosophy is Great useful for all Human Being
तुष्णाम सिन्धी भज क्षमा
जहिमदम पापे रति मां कथा। 🙏 संत भर्तूहरी
- माननीय डॉक्टर सिन्हा जी ,आपकी बुद्धिमत्ता , ज्ञान को मेरा प्रणाम , आप से निवेदन हे की आप दुनिया की सारी फिलोसोफी मेसे उत्कृष्ट कोनसी है जो इश्तत्व को प्राप्त करवाए , आप के नजरिए से।
- मेरे तार्किक और भावनिक अभ्यास से कह सकता हु की वैदिक ज्ञान ही हम परमोच्च अवस्था तक पहुंचाती हे। 🙏🙏🌅
नमो अरिहंतानम का प्रचलित अर्थ यह है की जिसने कर्मरूपी शत्रु का नाश कर दिया ऐसे अरिहंत भगवंत को नमस्कार हो।
Jain religion is great philashoy jai jinedra
That's beauty of Indian culture and freedom to explore and express.
Doctor. HIMMAT SINGH JI. KOTI KOTI NAMAN
AAP KE CHARANO. MEI
JAI SHRI RAM
Very good sir. You are Great purush very good thinking.God bless you Namo Budhae.
सादर प्रणाम श्री गुरु जी, बेहद की परमशान्ति.
🙏🙏🙏झगड़े की जड़ एक मत। बहुमत झगड़े की नस। छः अंधे और हाथी की कहानी ।🙏🙏🙏🙏🙏🙏 बाबा को भाष्य हेतु साधुवाद
Very nicely explained sinha ji..
Aap ke jitne gyani aur samjhane wale bahut kam hai duniya main 🙏
जैसी दृष्टी,वैसी सृष्टी।
मनुष्य दोमुहे साँप कि भाँति व्यवहार करता है।
शुभ कामों के लिये वह स्वयं को व अशुभ कामों के लिये ईश्वर को जिम्मेदार ठहराता है।
इंसान पहले इंसान बन जावे फिर किसी परालौकिक सत्ता को समझने का प्रयास करे तो बेहतर है।
ruclips.net/video/ftDn4AHVzb0/видео.html
यदि अन्तिम लक्ष्य ना पता हो तो भी सारे प्रयास बेकार है।
This is logical on so many levels. Seems so scientific.
भगवान को जैनों ने निकाला नहीं है जो भगवन वन चुके हैं उनकी तो हम सभी पूजा करते हो उन्हें मानते है पर परमात्मा को करता नहीं मानते ये परमात्मा मात्रा जानन हारा hai dekgan हारा है सर्वज्ञ है परमात्मा कोई हमारा नौकर नहीं जो हमारा भला बुरा करे जैन दर्शन अनादि से है और हमेशा रहेगा
Bilkul sahi kaha apne
Kis jain aagam me likha hai ki moorti ko poojna chahiye?????
Dhanyabad guru ji
Aap ka gyan unexplained hai. U are no more but your knowledge and thoughts will always exist.
Great explain Sir....dhanyawad
Am listening since y'day & am wondering why wasn't Dr Sinha famous decades back.
Dr. सिन्हा आप भारत का सही इतिहास बचाने मे प्रकाशस्तंभ का काम कर रहे है जिसे अंग्रेज़ी पढणे मे गवा दिया था l
हां यह बात है लोग अच्छे कर्मों और बुरे दोनों ही होते हैं
Thnx, very good
Thanks guruji
सनातन के साथ सुन्दर विश्लेषण
The only true philosophy jain
Simple and beautiful explaination..
Awesome Dr Sinha ji👌👌❤️❤️
प्रणाम करता हूं आप श्रीं को।
Nice told by you sir with confidence thanks sir
Jai jinendra dev ki
You have said right and rightly annalised.
extremely helpful video guruji
Sir apka bhut dhunybad
Jay jinendra Jay Mahavir. Namaste 🙏
Thank you sir..very nice and simple explanation
Guru ji aapna bahut sidha saral bhasa ma
Philosophy ko samajhya
Very enlightened lecture.
❤️🙏
"AHIMSA PARMO DHARAM"
ahinsak dharma hi sarvopari hai.
🙏
Yes
Mind blowing
Jainism and Buddhism are most peaceful and scientific religions .
Koti Koti Naman
Great thinking 🙏👌
Wow...eia Sach main akk sandar vechar Hain........
Pranam Gurudev🙏
bahut sundar vyakhya
गीता मे श्रीकृष्णा ने कहा है मैं कुछ भी नहीं करता हूँ, सिर्फ साक्षी भाव से देखता हूँ|
Jain dharam anadi kall se hai 👌... Aor anadi tak rahega 👌👌
You Are Great VERY GREAT
बहुत सुंदर,धन्यवाद
🙏🙏🙏
🙏🙏🙏🙏
I salute your knowledge by heart
ਸ਼ੁਕਰੀਆ! ਡਾਕਟਰ ਸਾਹਿਬ
Thanku ji
Correction
Aparigraha- minimalism
Achaurya- don't take things which you don't own.
Thanks for correction please
Namaste.thank you for sharing .
Jay Ho Guruji
Jai gurudev ji.Hinduism,Buddhism,Sikkhism and Jainism ,they all believe in karma Siddhantha i .e. cause & effect(karya karan siddhanta ) theory.Their methods depend on the principle propounded by their founders.However,they all including Hinduism stated the same truth i .e. eko satya vipra vahudha vadanti.In Hinduism,Patanjal's yam stipulates satya ahimsa asteya brahmacharya and aparigraha which were similarly stated by the tirthankars of Jainism.
Very nice explained sir. Jay jinendra.
Conqurer of own 👍 👌
धन्यवाद महोदय
Namaskar Great Teacher.
Sir pls sinha sir se western philosophers ke aise hi videos banwaye aap...Upsc philosophy optional wale students ke lie kaafi helpful rahega please sir
प्रणाम 🙏🙏🙏
Jain boddh aary smaaji...sab...khaatme..ke..kagaar..per..hai.....lekin...Sanaatan dobaara failega.....Jai...SitaRam.....
जैन धर्म अनादि काल से है,,, और अनादि तक रहेगा।।।
आप के हंसने से कुछ बदलाव नहीं होने वाला
हर कोई अपने बाप को ही सबसे बड़ा मानता है
जैन होके भी जैन धर्म नहीं समझते तो क्या लाभ . आपका स्टेटमेंट में परफ़ेक्ट सत्य है जबकि अनेकांतवाद कहता कि कोई भी सत्य पूर्ण नहीं है . जैन सिद्धांतों को पढ़े बिना समझे बिना आप एक सनातन हैं । परमान सागर महाराज को सुने और जैन धर्म को पढ़े .
अगर आपने यह वीडियो सुन लिया होता तो आप यह बात कहते ही नहीं!
जैन धर्म के बिलकुल विप्रीत है आपकी बात !
Aur Insan?
Agar duniya Jain philosophy apna le to dharti swarg ho jayegi
To bhai jain derasar kyun banate ho agar bhagavan nahi hai to
@@kamleshdave3867 are Bhai kon bola bhagwan nahi hai 🤦🏻🤦🏻🤦🏻🤦🏻
Jain mante hai ki bhagwan hai magar wo apki moksh prapti me help nahi kar sakte
App bhagwan ka sirf ashirwad lo
Magar wo apki help nahi karenge
@@kamleshdave3867 to isliye app bhagwan ko kuch karne ki koshish na kare
Bhagwan apki koi help nahi karenge
Bhagwan ke liye bali na de , bhagwan ke liye home hawan na kare
Bhagwan ke liye koi karm kand na kare
Aisi jain philosophy hai
Jain bhagwan ko nahi nakarte 🤦🏻
@@kamleshdave3867 jihadi hai tu, dusre dharma ke baare me kuch pata nahi hota lekin aajate hai bakchodi karne. Jainism me bhagwan hai lekin woh creater preserver and destroyer nahi hote. Jain dharm me bhramand shuru se tha aur anant kaal tak rahega, koi bhi vishnu, etc, universe ko nahi bana sakta. Tapobal se mamuli admi bhi bhagwan ban sakta hai, ye cheez jain dharm sikhata hai. JAI JINENDRA.
Bilkul theek. Aur agar duniya bhakt ban jaye to dharti vaikunth ban jayegi..
True divine encyclopaedia
Very great , Sir ji
Pranam guruji.....omh arihantaram
Bahut achhi vkhya sir
Humney bahut kuch jana
Very nice work man keep it up 👍
Guruji Pranam.
5:00 अनेकान्तवाद के अनुसार प्रत्येक वस्तु में अनन्त विरोधी युगल एक साथ रहते हैं। एक समय में एक ही धर्म अभिव्यक्ति का विषय बनता है। प्रधान धर्म व्यक्त होता है और शेष गौण होने से अव्यक्त रह जाते हैं। वस्तु के किसी एक धर्म के सापेक्ष ग्रहण व प्रतिपादन की प्रक्रिया है 'नय'।, 6:00 नय वाद
8:35 *स्याद्वाद*, जैन तत्वमीमांसा में, सिद्धांत है कि सभी निर्णय सशर्त हैं, केवल कुछ स्थितियों, परिस्थितियों, या इंद्रियों में अच्छा रखते हैं, जिसे स्यात (संस्कृत: "हो सकता है") शब्द द्वारा व्यक्त किया गया है । किसी वस्तु को देखने के तरीके (नय कहलाते हैं) संख्या में अनंत हैं।
स्यादवाद में कितने निर्णय शामिल है?
सप्तभंगी नय सापेक्षिक ज्ञान की तार्किकता के आधार पर जैन दर्शन में निर्णय या मत के सात प्रकार माने गये हैं।
अनेकांतवाद के कितने भेद हैं?
अनेकांतवाद - कथन के दो प्रमुख ढंग
अनेकांत शैली को प्रस्तुत करने के लिए जैन आचार्यों ने दो प्रमुख ढंग का उपयोग किया - स्यादवाद (conditioned viewpoint)और नयवाद (partial viewpoint)। स्यादवाद यानि वस्तु के गुण को समझने, समझाने और अभिव्यक्त करने का सापेक्ष ढंग।
स्यादवाद के जनक कौन है?
महावीर स्वामी ने स्वयं 'भगवतीयसूत्र' में आत्मा की सत्ता के विषय में 'स्याद अस्ति', 'स्याद नास्ति' और 'स्याद अवक्तव्यम' इन तीन भंगों का उल्लेख किया है।
VERY NICE KNOWLEDGE GURU JI
हृदय से आभार।
Very nice teaching sir
सादरप्रणाम 🙏🙏🙏🙏🙏
Thanks Dr sinha
❤ बहुत अच्छा समझाया
Sir u have tried ur best to explain Jainism in short 'syadvad' but fully incomplete, do more effort to understand, nice thanks
🙏
Jainam Jayati Shasanam.
Pranam !!!!!!!
गुरुजी प्रणाम
Sir, aap Indian philosophy ki epistemology bhi btaaiye
👍👍🙏🙏🙏🙏
Vastu ka sababhav hi dhram ha or chatna ka sababhav sukh ha.
अच्छा विश्लेषण...
Awesome ❤
🙏🙏🙏🙏🙏
Very nice
JAIN PHILOSOPHY IS LESS SUPERSTITIOUS.
Sir, Please share your thought on Bhagwan Swaminarayan.