भक्तामर - प्रणत - मौलि - मणि -प्रभाणा - मुद्योतकं दलित - पाप - तमो - वितानम्। सम्यक् - प्रणम्य जिन - पाद - युगं युगादा- वालम्बनं भव - जले पततां जनानाम्।। 1॥ शब्दार्थ भक्तामर = भक्त + अमर (अमृत का पान करने वाले - देव) भक्तामर दूसरा अभिप्राय - भक्तों को अमर बना देने वाला स्तोत्र (सच्चा भक्त वह है जो अपने आप को अमर/ध्रुव/ज्ञायक/आत्मा महसूस करता है) प्रणत = प्र (प्रकृष्ट, श्रेष्ठ, उत्तम रूप से) + नत (झुका हुआ) मौलि = मुकुट मणि = रत्न प्रभाणां = प्रभा (प्रकाश, चमक, तेज) के उद्योतकं = प्रकाशक, प्रकाश करने वाले दलित = दल दिया / नष्ट कर देना तमो = अंधकार वितानम् = विस्तार सम्यक्-प्रणम्य = भली प्रकार से प्रणाम करना | मिथ्यात्व/विपरीत मान्यता को छोड़कर प्रणाम करना | सच्चे स्वरूप को समझकर के प्रणाम करना | प्रभु के गुणों को यथार्थ रीति से जानकर के उनके प्रति नतमस्तक होना | पाद = पद / चरण युगं = जोड़ा (2) युगादा = युग की आदि में आलंबनं = आधार, सहारा भव-जले = संसार समुद्र में पततां = गिरते हुए / डूबते हुए जनानाम् = जन / मनुष्य भावार्थ देव, जो अमर भक्त हैं (अमृत का पान करते हैं), ऐसे देव जब तीर्थंकर भगवान के समवशरण में जाकर उन्हें प्रकृष्ट रूप से नतमस्तक होकर प्रणाम करते हैं, तब भगवान के चरणों की प्रभा देवों के मुकुटों की मणियों पर पड़ने से, उन मणियों का तेज और अधिक बढ़ जाता है। हे जिनेंद्र देव, आपके चरण कमल से देवों की मणियां भी सुशोभित होती हैं। पाप रूपी अंधकार के विस्तार को जिन्होंने नष्ट कर दिया है, और युग की आदि से संसार समुद्र में डूबने वालों के लिए जो आलंबन (सहारा) हैं, ऐसे जिनेंद्र (तीर्थंकर) देव के चरणों में मैं सम्यक् प्रणाम करता हूँ। ---------- य: संस्तुत: सकल - वाङ् मय - तत्त्व-बोधा- दुद्भूत-बुद्धि - पटुभि: सुर - लोक - नाथै:। स्तोत्रैर्जगत्- त्रितय - चित्त - हरैरुदारै:, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम्॥ 2॥ शब्दार्थ य: = जो संस्तुत: = स्तुति किए गए सकल = सम्पूर्ण वाङ्मय = शास्त्र / द्वादशांग तत्त्व-बोधाद् = तत्त्व का बोध कर लेने से उद्भूत = उत्पन्न हुई है पटुभि: = निपुण, कुशल, प्रखर, चतुर सुर-लोक-नाथै: = इन्द्र (देव लोक के नाथ) त्रितय जगत = तीनों जगत/लोक के हरैरुदारै: = हरै + उदारै (महानता से) स्तोष्ये = स्तुति करूंगा किलाहमपि = किल (वास्तव में, निश्चित रूप से) + अहम् (मैं) + अपि (भी) तं प्रथमं जिनेन्द्रम् = प्रथम पूज्य जिनेंद्र देव भावार्थ ऐसे देव लोक के नाथ, जिनकी बुद्धि सम्पूर्ण द्वादशांग के तत्त्व का बोध करने से अत्यन्त कुशल एवं निर्मल हो गई है, वे इन्द्र, जिनेन्द्र (अर्हन्त) भगवान की स्तुति से तीनों लोकों के चित्त का हरण कर लेते हैं। हे (प्रथम पूज्य) जिनेन्द्र देव, जैसी स्तुति वे करते हैं, मैं भी वैसी ही स्तुति निश्चित रूप से करूंगा।
बहुत सुंदर अर्थ
Jaijinendra Dr Godha sahib
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जय जिनेन्द्र जबलपुर 🙏🙏
बहुत सुन्दर अर्थ,👌👌🙏🙏
बहुत सुन्दर 🙏🏻🙏🏻
🙏🙏sadar jaijinendra
Jai jinendra 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Jai Jenendra🚩🚩🚩🚩
Jai jinendra 🙏🏻 🙏🏻 🙏🏻
Bhut sunder Nilesh jain singoli mp
Jai jinendra pandit ji 👋
🙏🙏🙏 Jai jinendra 🙏🙏🙏
बहुत सुंदर अर्थ व चर्चा👌👌👌जय जिनेंद्र🙏🙏🙏
Jai jinendra ji
अति भावपूर्ण विवेचन। सादर जयजिनेन्द्र पण्डितजी साहब
भक्तामर - प्रणत - मौलि - मणि -प्रभाणा -
मुद्योतकं दलित - पाप - तमो - वितानम्।
सम्यक् - प्रणम्य जिन - पाद - युगं युगादा-
वालम्बनं भव - जले पततां जनानाम्।। 1॥
शब्दार्थ
भक्तामर = भक्त + अमर (अमृत का पान करने वाले - देव)
भक्तामर दूसरा अभिप्राय - भक्तों को अमर बना देने वाला स्तोत्र (सच्चा भक्त वह है जो अपने आप को अमर/ध्रुव/ज्ञायक/आत्मा महसूस करता है)
प्रणत = प्र (प्रकृष्ट, श्रेष्ठ, उत्तम रूप से) + नत (झुका हुआ)
मौलि = मुकुट
मणि = रत्न
प्रभाणां = प्रभा (प्रकाश, चमक, तेज) के
उद्योतकं = प्रकाशक, प्रकाश करने वाले
दलित = दल दिया / नष्ट कर देना
तमो = अंधकार
वितानम् = विस्तार
सम्यक्-प्रणम्य = भली प्रकार से प्रणाम करना | मिथ्यात्व/विपरीत मान्यता को छोड़कर प्रणाम करना | सच्चे स्वरूप को समझकर के प्रणाम करना | प्रभु के गुणों को यथार्थ रीति से जानकर के उनके प्रति नतमस्तक होना |
पाद = पद / चरण
युगं = जोड़ा (2)
युगादा = युग की आदि में
आलंबनं = आधार, सहारा
भव-जले = संसार समुद्र में
पततां = गिरते हुए / डूबते हुए
जनानाम् = जन / मनुष्य
भावार्थ
देव, जो अमर भक्त हैं (अमृत का पान करते हैं), ऐसे देव जब तीर्थंकर भगवान के समवशरण में जाकर उन्हें प्रकृष्ट रूप से नतमस्तक होकर प्रणाम करते हैं, तब भगवान के चरणों की प्रभा देवों के मुकुटों की मणियों पर पड़ने से, उन मणियों का तेज और अधिक बढ़ जाता है। हे जिनेंद्र देव, आपके चरण कमल से देवों की मणियां भी सुशोभित होती हैं।
पाप रूपी अंधकार के विस्तार को जिन्होंने नष्ट कर दिया है, और
युग की आदि से संसार समुद्र में डूबने वालों के लिए जो आलंबन (सहारा) हैं, ऐसे जिनेंद्र (तीर्थंकर) देव के चरणों में मैं सम्यक् प्रणाम करता हूँ।
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य: संस्तुत: सकल - वाङ् मय - तत्त्व-बोधा-
दुद्भूत-बुद्धि - पटुभि: सुर - लोक - नाथै:।
स्तोत्रैर्जगत्- त्रितय - चित्त - हरैरुदारै:,
स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम्॥ 2॥
शब्दार्थ
य: = जो
संस्तुत: = स्तुति किए गए
सकल = सम्पूर्ण
वाङ्मय = शास्त्र / द्वादशांग
तत्त्व-बोधाद् = तत्त्व का बोध कर लेने से
उद्भूत = उत्पन्न हुई है
पटुभि: = निपुण, कुशल, प्रखर, चतुर
सुर-लोक-नाथै: = इन्द्र (देव लोक के नाथ)
त्रितय जगत = तीनों जगत/लोक के
हरैरुदारै: = हरै + उदारै (महानता से)
स्तोष्ये = स्तुति करूंगा
किलाहमपि = किल (वास्तव में, निश्चित रूप से) + अहम् (मैं) + अपि (भी)
तं प्रथमं जिनेन्द्रम् = प्रथम पूज्य जिनेंद्र देव
भावार्थ
ऐसे देव लोक के नाथ, जिनकी बुद्धि सम्पूर्ण द्वादशांग के तत्त्व का बोध करने से अत्यन्त कुशल एवं निर्मल हो गई है, वे इन्द्र, जिनेन्द्र (अर्हन्त) भगवान की स्तुति से तीनों लोकों के चित्त का हरण कर लेते हैं।
हे (प्रथम पूज्य) जिनेन्द्र देव, जैसी स्तुति वे करते हैं, मैं भी वैसी ही स्तुति निश्चित रूप से करूंगा।
आदरणीय पंडित जी जय जिनेन्द्र 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Jai jinendra 🙏🏿🙏🏿 ji
Jai jinendra Pune
Jai Jinendra 🙏🙏🙏👌👌
Jai jinendra pandit ji 🙏
Jai jinendra manisha jain Mumbai🙏🙏🙏
जय जिनेंद्र बहुत अच्छा समझाया 🙏🙏🙏👌👍
जय जिनेंद्र पंडित जी नोएडा बहुत सुंदर समझाया है
Jai jinendra 🙏
Dhanyavad ji 🙏
सादर जय जिनेन्द्र जी
Jai jinendra. Superb
आदरणीय भाई साहब जी सादर जय जिनेन्द्र देव की आदरणीय बाल ब्रह्मचारी सुमीत प्रकाश जी ने मुझे आर्शीवाद में कहां भगवान बनों
Pp
,जय जिनेंद्र
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Mamta jain sagar bahut sundar arth kiya
🙏🙏🙏👌👌😌😌
👍👍🙏🙏
👍👍
Jai jinendra
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Jay jinendra
Bahut sundar
🙏🙏
🙏very beautiful narration. Never heard the explanation in this clear manner. Thanks so much.
Jai Jinendra from Nairobi Kenya 🙏🙏🙏
उच्चारण में स्वराघात एव अनुस्वार का सही प्रयोग आपको ज्यादा प्रभावित बनाएगा ।।
🙏🙏🙏👌
જય જિનેંદ્ર.🙏🙏🙏.આદરણીય પંડિતજી સાહેબ. 🙏🥀🙏.બાલાશિનોર.
Jaininendra ghatkopar
श्री आदिनाथ तीर्थंकर सबसे पहले भगवान बने अर्थात केवलज्ञान प्राप्त कर अरिहंत भगवान बने , परंतु श्री अन्तवीर्य केवली सबसे पहले मोक्ष गए
kya bahubali bhagwaan ka dusra naam anantveerya tha?
@jainanusandhan नहीं...
Jai Jinendra pandit ji
जय जीनेन्द्र इंदौर
Jai Jinendra Indore
अआइईउए
जेल
Jj
Jai jinendra🙏🙏
Jai jinendra
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Jai jinendra🙏🏼🙏
Jai jinendra pandit ji
Jai jinendra 🙏
🙏🙏🙏
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Jai jinendra
Jai jinendra 🙏🙏🙏
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