Aapko pranaam,,, Bas yahi kehna hai ki aise hi ahimsa ka paath padte padte hindu bas apne desh tak hi simmit reh gaya... Apne dharam ki raksha karna bhi hamara param kartavya hai.. Raksha aur akraman dono sath sath chalte hai...(Defense +Attack)
अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव चः।” अर्थात:- यदि मनुष्य के लिऐ अहिंसा परम धर्म है तो ”धर्म” मतलब (सत्य ) की रक्षा के लिए हिंसा उससे भी श्रेष्ठ है जब धर्म (सत्य ) पर संकट आए तो मनुष्य को शस्त्र उठाना चाहिए और धर्म (सत्य ) की रक्षा करनी चाहिए।
अहिंसा का अर्थ क्षमा करना नहीं होता ऐसा कही भी नहीं लिखा है क्या आप अपराधी को क्षमा कर देंगे नहीं ना अपराध की दो प्रकार है एक क्षमा करने योग्य अपराध और दूसरा अक्षम्य अपराध अर्थात क्षम्य अपराधी को क्षमा करना अहिंसा है और अक्षम्य अपराधों का दंड देना सजा देना धर्म हिंसा है परन्तु इसका भ्रामक प्रचार प्रसार और अनुचित पालन करना ही भारतीयों हिन्दुओं के पतन का कारण रहा है और बौद्ध मत और जैन मत इसका उदाहरण है परन्तू करोड़ों अनुयायी को कौन समझावे क्या वे समझेंगे वे लोकलज्जा के कारण अपमान समझेंगे और महपुरुष अर्जुन के नीतिगुरु श्रीकृष्ण जी ने यही अर्जुन को समझाया और अर्जुन ने अक्षम्य अपराधी कौरवो के साथ युद्ध किया और विजयश्री प्राप्ति की ✋️ओम श्री(शिव)गुरवे नमः
Guru ji hum itna TV per Baba ji dekhte hain per hamen kisi per Bharosa nahin rahata lekin aap ki bate Suniti hun to bahut achcha lagta Aisa lagta hai Jaise kuchh sawal tha man mein uska jawab mil bhatakte prani ko kuch jawab ham Puram to pura nahin padhe hay per Bharosa puran par pura rahata
Main aur mere maata pita, Pujyapad Jagadguru Swami Swaroopananada Saraswati Ji Maharaj se Guru dikhya le chookey hain. Mere dada ji aur Dadi ji Swami Brahmananda Saraswati Ji Maharaj ke bhakt thein. Aapse sawaal poochne ki iksha rakhta hoon. Kripa karke aapse sawaal poochne ki prakriya bataayein.
यज्ञ के नाम पर पशुहिंसा का खंडन महाभारत, अनुशासन पर्व, 114, 115, 116 वे अध्याय में भीष्मजीने किया है | यज्ञ में अज का अर्थ तीन साल पुराने बीज ऐसा बताकर उपरिचरि बसू और सत्य नामक ब्राह्मण का आख्यान बताया है और अहिंसा धर्म का महत्व समझाया है | उपरिचरि बसू ने हिंसा का समर्थन किया इसलिए वो रसातल में चला गया था | सत्य नामक ब्राह्मण की धर्म ने मृगरूप धारण करके परिक्षा ली थी और यह सिद्ध किया की यज्ञमें पशू का बली देने पर पशू स्वर्ग में जाता है यह गलतफॅमी है | वेदोंकी वाणी परोक्ष होने के कारण लोगोंने अंदर छिपे अर्थ को ना समझकर उपर उपर का पुष्पित (दिखावटी) अर्थ ही सही मानकर पशूओंकी बली देना प्रारंभ किया | इस पुष्पित वाणी का उल्लेख भगवान ने भगवद्गीता अध्याय 2 श्लोक 42 में किया है | इदं कृतयुगं नाम काल: श्रेष्ठ: प्रवर्तित: | अहिंस्या यज्ञपशवो युगेस्मिन् न तदन्यथा || चतुष्पात् सकलो धर्मोभविष्यत्यत्र वै सुरा: | ततस्त्रेतायुगं नाम त्रयी यत्र भविष्यति || प्रोक्षिता यत्र पशवो वधं प्राप्स्यन्ति वै मखे | यत्र पादश्चतुर्थो वै धर्मस्य न भविष्यति || 📖 महाभारत, शांतीपर्व, अध्याय 340, श्लोक 82, 83, 84 इन श्लोकों में साफ साफ बताया गया है की सत्ययुग में यज्ञ के नाम पर पशुवध नही किया जाता था | देवीदेवताओं के नामपर पशुवध करने का पाखंड त्रेतायुग से आरंभ हो गया था | द्वापरयुग में तो बहोत फैल रहा था इसिलिए तो श्रीहरि अपने अंशसे व्यासरूपमें अवतीर्ण हुए और महाभारत ग्रंथ के माध्यम से पाखंड का खंडण किया | सुरा मत्स्या मधु मांसमासवं कृसरौदनम्। धूर्तै: प्रवर्तितं ह्येतन्नैतद् वेदेषु कल्पितम्॥ मानान्मोहाच्च लोभाच्च लौलरूमेतत्प्रकल्पितम्। सुरा, आसव, मधु, मांस और मछली तथा तिल और चावलकी खिचडी - इन सब वस्तुओंको धूर्तोंने यज्ञमें प्रचलित कर दिया है | वेदोंमें इनके उपयोगका विधान नही है | उन धूर्तोंने अभिमान, मोह और लोभके वशीभूत होकर उन वस्तूओंके प्रति अपनी यह लोलुपता ही प्रकट की है 📖 संदर्भ : महाभारत, शांतीपर्व, अध्याय 265, श्लोक 9, 10
||जय श्रीराम ||हे भगवान् हमारा प्रणाम स्विकार करे !हमारा प्रशन है कि हमारे को कुश कारणवश घर मे कोई न होने पर भगवान कि पुजा को दोपहर 2;००बजते है क्याये ऊचित है ? कूपया मार्ग दिखाये ! कूष्णा अशोकदादा क कोकाटे महाराष्ट्र जिल्हा जालना ||जय जय रघुवीर समर्थ ||🙏🙏
लेकिन वाल्मीकि रामायण मैं राजा दशरथ के अश्वमेध यज्ञ (पुत्र उत्पन्न करने के लिए ) में पशु बलि दी थी। तो मुझे लगा ख़ास यज्ञों के लिए ही बलि लिखी गयी है। हर यज्ञ /होम के लिए उसकी आवयशकता नही। हर यजन में नहीं करना चाहिए। स्वामीजी: कृपया आप अहिंसा - हिंसा का सात-असत परिणाम के हिसाब से भी समझा देते। भगवान् कृष्ण ने कौशिकी muni की कथा सुनाई थी इस सन्दर्भ में अर्जुन को।
इस संसार में, सब लोगों की सम्मति के अनुसार यह अहिंसा धर्म, सब धर्मों में, श्रेष्ट माना गया है। परन्तु अब कल्पना कीजिये कि हमारी जान लेने के लिये या , कोई दुष्ट मनुष्य हाथ में शस्त्र लेकर तैयार हो जाय और उस समय हमारी रक्षा करने वाला हमारे पास कोई न हो; तो उस समय हमको क्या करना चाहिये? क्या "अहिंसा परमोधर्मः" कहकर ऐसे आततायी मनुष्य की उपेक्षा की जाय या यदि वह सीधी तरह से न माने तो यथाशक्ति उसका शासन किया जाय⁉ ‼मनुजी कहते हैं‼- गुरुं वा बालवृद्धौ वा ब्रह्मणं वा बहुश्रुतम्। आततायिनमायांतं हन्यादेवाविचारयन्।। अर्थात्" ऐसे आततायी या दुष्ट मनुष्य को अवश्य मार डालें; किंतु यह विचार न करें कि वह गुरु है, बूढा है, बालक है या विद्वान ब्राह्मण है"। शास्त्रकार कहते है कि ऐसे समय हत्या करने का पाप हत्या करने वाले को नहीं लगता, किंतु आततायी मनुष्य अपने अधर्म ही से मारा जाता है। आत्मरक्षा का यह अधिकार, कुछ मर्यादा के भीतर, आधुनिक फौजदारी कानून में भी स्वीकृत किया गया है। ऐसे मौकों पर अहिंसा से आत्म रक्षा की योग्यता अधिक मानी जाती है। भ्रूण हत्या सब से अधिक निन्दनीय मानी गई है; परन्तु जब बच्चा पेट में टेढ़ा होकर अटक जाता है तब क्या उसको काटकर निकाल नहीं डालना चाहिये। अग्निष्टोम आदि वैदिक श्रौतयज्ञों में पशुबलि करना वेद ने ही प्रशस्त माना है; परन्तु विकल्प के रूप में पिष्ट पशु आदिके द्वारा वह भी टल सकता है। तथापि हवा, पानी, फल इत्यादि सब स्थानों में जो सैकडों जीव-जन्तु हैं उनकी हत्या कैसे टाली जा सकती है। सृष्टि में सर्वत्र जो मत्स्य-न्याय दृष्टिगोचर हो रहा है उसको कैसे रोका जा सकता है। ❗महाभारत मेंअर्जुन कहते हैः- सूक्ष्मयोनीनि भूतानि तर्कगम्यानि कानिचित्‼ पक्ष्मणोअपि निपातेन येषां स्यात् स्कंधपर्ययः‼‼ "इस जगत में ऐसे ऐसे सूक्ष्मजन्तु हैं कि जिनका अस्तित्व यद्यपि नेत्रों से दिखाई नहीं पड़ता तथापि तर्क से सिद्ध है; ऐसे जन्तु इतने हैं कि यदि हम अपनी आखों के पलक हिलावें तो उतने ही से उन जन्तुओं का नाश हो जाता हैं"। ऐसी अवस्था में यदि हम मुख से कहते रहें कि "हिंसा मत करो, हिंसा मत करो" तो उससे क्या लाभ होगा इसी विचार के अनुसार अनुशासन पर्व में शिकार करने का समर्थन किया गया है। वन पर्व एक कथा है कि कोई ब्राह्मण क्रोध से किसी पतिव्रता स्त्री को भस्म कर डालना चाहता था; परन्तु जब उसका यत्न सफल नहीं हुआ तब वह उस स्त्री की शरण में गया। धर्म का सच्चा रहस्य समझ लेने के लिये उस ब्राह्मण को उस स्त्री ने किसी व्याध के यहाँ भेज दिया। यहाँ व्याध मांस बेचा करता था; परन्तु था अपने- माता- पिता का बड़ा पका भक्त। इस व्याध का यह व्यवसाय देखकर ब्राह्मण को अत्यंत विस्मय और खेद हुआ। तब व्याध ने उसे अहिंसा का सच्चा तत्त्व समझकर बतला दिया। इस जगत में कौन किसको नहीं खाता" जीवो जीवस्य जीवनम्"(भागवत) - यही नियम सर्वत्र देख पड़ता है। आपतकाल में तो "प्राणस्यान्नमिदं सर्वम्" यह नियम सिर्फ स्मृतिकारों ने ही नहीं कहा है, किंतु उपनिषदो में भी स्पष्ट कहा गया है । यदि सब लोग हिंसा छोड़ दे तो क्षात्रधर्म कहा और कैसे रहेगा। ‼हर हर महादेव‼ 🚩
आदरणीय शंकराचार्य जी को प्रणाम। कृपया मेरे प्रश्न पर प्रकाश डालने की कृपा करें: यदि हम सब भगवान् के ही अंश हैं तो भागवान ने अपने ही अंशों को जन्म जन्मांतर के लिए कर्मो के चक्कर में, परीक्षा में क्यों दाला है। भवदीय, सुनील पांथरि, देहरादून, उत्तराखंड 🙏
Guru ji...Aap purano se praman de rahe hai lekin .... Yajurved mein... Yagyon me ... Devtaon ke liye Bali dene ki pura ki puri prakriyaon ka varnan hai... Uske baare mein kya kahenge....
जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज को प्रणाम
तुम हो प्रभु चाँद, में हूँ चकोरा.......!!
गुरु शंकराचार्य जी के चरणों में कोटि कोटि नमन!!!
लाजवाब वर्णन , हमारे शास्त्रों में मनुष्यों के सारे गुण दोष और आचरण का विश्लेषण है, जरुरत है तो आपकी तरह व्याख्या करने वाले की। जय श्रीराम
महाराज श्री का समाधान एक दम शास्त्रीय है तार्किक और वैज्ञानिक भी है🙏🙏🙏🙏🙏
सुन्दर जानकारी।हमारे पूरे देश में बलि प्रथा रद्द होना चाहिए ।जय जय श्री स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज की जय हो।
Never
Bali pratha nahi band hone duunga main 😊
I am proud to be a vegetarian hindu sanatani
Vegan bno दूध भी हिंसा है
Ye kon bola hai ki dudh hinsha hai
@@SahilSharma-xk3enpraman do
तुम tumara ma ki himsak ho ...!!
Kyu ki tum unke sudh sewan karate Bade huya ho . @@SahilSharma-xk3en
Agar apni gai hai to thik hai. Nahi to dairy wale dudh dene ke bad gai bhains ko kasaikhane bech dete hain
@@pathasala-mitraa
गुरु जी आपके विचार मुझे बहुत अचछे लगे हैं यही विचार संसार को मिलने चाहिए जय गुरुदेव
जय माता की , जय गुरुदेव । हर-हर महादेव। धन्यवाद।
पूज्य स्वामी श्री ने अद्भुत विलक्षण विवेचन किया है।
सादर प्रणाम गुरुदेव🚩🌹🙏🏻
अति सुंदर माहिती दिली आहे धन्यवाद जय हो आदी शंकराचार्य जी माझे सर्वस्व आहे
अद्भुत विवेचन ।कोटिश प्रणाम ।
जगद्गुरू शंकराचार्य भगवान के चरण कमल पर साष्टांग दण्ड वत प्रणाम हर हर महादेव
बहुत सुन्दर समाधान है🙏🙏🙏🙏🙏
अच्छा विवेचन,🙏सविस्तर विश्लेषण,आपको मेरा सादर प्रणाम 🙏
Aap jaise guru ki vaani sun ke jeevan udhar ho gaya
आपकी जय हो पूज्यवर शंकराचार्य जी ।
जय श्रीराम । जय रामभक्त हनुमान ।
जय सनातन धर्म।
Jai shree ram,jai shree ram,jai shree ram, jai shree ram.
Guru g k paavan charnon me koti koti pranaam🙏🏻🙏🏻 Kripa banaye rakhiye prabhu isi prakar hm prr🙏🏻🙏🏻
पूज्य गुरुदेव जी महाराज को कोटी कोटी प्रणाम 🙏
प्रणाम गुरुजी वेदका प्रमाण भि हाेता ताे बहुत अाच्छा हाेता।
Apko koti koti naman
Guruji many many many many many many many many many thanks and respect to you...❤❤❤
गुरु जी को प्रणाम, शास्त्र सम्मत जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद और हार्दिक आभार।
अद्भूद , कोटि कोटि नमन । 🙏
बलि पर सम्यक ज्ञान देने के लिए आभार। नमन ।
Dandwat pranam 👏👏 Sarkar 👏👏
Divine explanation, very well logically concluded, my humble salutations
Excellent analysis and reply.
Bahut achchha gyan aapne diya hai!
Hinsa paap! Paapatav Nark!
Shri chakradhar Swami!
Guruji koti koti pranam 🙏🏻🙏🏻🌺🌸💐🌷🌺🌸💐🌺💐🌸🌷
मेरा प्रणाम 🙏 गुरुजी स्वीकार करें
जय श्रीकृष्ण ❤
चरणस्पर्श गुरु जी आपने हमारा मार्गदर्शन किया
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌷🏵️🌺🔱🕉️🌻🚩🥀🌼💐🙏👍🏼 શિવ સ્વરૂપ જ્ઞાન સ્વરૂપ ભક્તિ સ્વરૂપ આદિ જગતગુરુ શંકરાચાર્ય સ્વરૂપ શ્રી ૧૦૦૮ પદ્મવિભૂષિત પરમહંસ સ્વામી અવિમુખ્તેશ્વર આનંદ સરસ્વતીજી મહારાજના ચરણ કમલ માં કોટી કોટી દંડવત નમસ્કાર શિવ શિવ શંભુ હર હર મહાદેવ જય શ્રી બામનાથ મહાદેવ કી જય શ્રી ચામુંડા માત કી જય શ્રી હાટકેશ્વર મહાદેવ કી જય
Koti koti pranam guruji ke charno me 🙏🙏🙏
Excellent Sant Harihardas Vrindavan
Aapko pranaam,,,
Bas yahi kehna hai ki aise hi ahimsa ka paath padte padte hindu bas apne desh tak hi simmit reh gaya...
Apne dharam ki raksha karna bhi hamara param kartavya hai..
Raksha aur akraman dono sath sath chalte hai...(Defense +Attack)
अहिंसा परमो धर्मः धर्म हिंसा तथैव चः।” अर्थात:- यदि मनुष्य के लिऐ अहिंसा परम धर्म है तो ”धर्म” मतलब (सत्य ) की रक्षा के लिए हिंसा उससे भी श्रेष्ठ है जब धर्म (सत्य ) पर संकट आए तो मनुष्य को शस्त्र उठाना चाहिए और धर्म (सत्य ) की रक्षा करनी चाहिए।
Yaha hinsa sirf bali aur jeebh ke swad ke liye hai.
Raksha ke liye sastra uthane ka adhikaar hai.
मैं आपकी बात से सहमत हूं। पर ये श्लोक गलत है। इसका दूसरा हिस्सा कुछ और है।
Sri Sri jumleswar ji Maharaj ke Andhbhagton KO dharam SE Kuch Lena dena Nahi hai ye log bekasuron Ka bila karan mobleaching kar rahe hai.
अहिंसा का अर्थ क्षमा करना नहीं होता ऐसा कही भी नहीं लिखा है क्या आप अपराधी को क्षमा कर देंगे नहीं ना अपराध की दो प्रकार है एक क्षमा करने योग्य अपराध और दूसरा अक्षम्य अपराध अर्थात क्षम्य अपराधी को क्षमा करना अहिंसा है और अक्षम्य अपराधों का दंड देना सजा देना धर्म हिंसा है परन्तु इसका भ्रामक प्रचार प्रसार और अनुचित पालन करना ही भारतीयों हिन्दुओं के पतन का कारण रहा है और बौद्ध मत और जैन मत इसका उदाहरण है परन्तू करोड़ों अनुयायी को कौन समझावे क्या वे समझेंगे वे लोकलज्जा के कारण अपमान समझेंगे और महपुरुष अर्जुन के नीतिगुरु श्रीकृष्ण जी ने यही अर्जुन को समझाया और अर्जुन ने अक्षम्य अपराधी कौरवो के साथ युद्ध किया और विजयश्री प्राप्ति की
✋️ओम श्री(शिव)गुरवे नमः
Harekrishna 🙏 prabhu
अंत्यत मार्मिक भाष्य नमस्कार..आचार्य कि जय जय हो.
जय श्री मन राधा राधा राधा राधा राधा रानी 🚩🌹🙏🙏🙏😊❤❤❤❤
Guru ji hum itna TV per Baba ji dekhte hain per hamen kisi per Bharosa nahin rahata lekin aap ki bate Suniti hun to bahut achcha lagta Aisa lagta hai Jaise kuchh sawal tha man mein uska jawab mil bhatakte prani ko kuch jawab ham Puram to pura nahin padhe hay per Bharosa puran par pura rahata
अहिंसा परमो धर्मोः
adbhut, itni mehnat ,sakshya ke liye
Bali kwl Swarth ki drishti se. y hui na baat. Gurudev. 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻😘😘🤗🤗🤗🤗🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
Jai shree 👏👏 mahadev 👏👏
Jai shree Sita Ram Hanuman 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🎉🎉🇮🇳🎉🎉🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
महादेव🎉, शाक्त और कापालिक पूजा में आज भी बलि प्रथा है गुरुवार । शैव अघोर उपासक भी बलि आज भी है ।
Sundar vyakhya sad margdarshn🙏
very nice and authentic information
Om namo narayan guru ji
Shankaracharya ji ko sat sat naman
🙏🏻जय गुरुदेव ।
नमन गुरुदेव
Main aur mere maata pita, Pujyapad Jagadguru Swami Swaroopananada Saraswati Ji Maharaj se Guru dikhya le chookey hain. Mere dada ji aur Dadi ji Swami Brahmananda Saraswati Ji Maharaj ke bhakt thein. Aapse sawaal poochne ki iksha rakhta hoon. Kripa karke aapse sawaal poochne ki prakriya bataayein.
🌹🙏जय महादेव जी🙏🌹
आपके अंदर बेठे महादेव जी माता जी के अशं को प्रणाम नमस्कार धोख जय जय सच्चिदानंद👏🌹
🌹ॐ साम्ब सदा शिवाय नम:।🌹
Jaishreeram
आपको नमन आचार्यश्री 💐🙏
Jai ho...
🕉️प्रणाम गुरु जी🙏
EVERYBODY MUST WATCH THIS VIDEO🙏🙏🙏🙏
Mera marg ko prkashit karna ka lia DHANYAvad 😔🌹🕉️
Om namo Narayan ji har har mahadev ji jay Girnari
❤🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌹🌹🌹🌹🌹🌹🚩 Jay shree sadguru ji sadr nmn hai 🌹🌹🌹🌹🌹🚩🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
❤ jagat guru shankaracharya ko mera pranam
जय श्री गुरुदेव।🌹🌹🌹🙏🙏🙏
यज्ञ के नाम पर पशुहिंसा का खंडन महाभारत, अनुशासन पर्व, 114, 115, 116 वे अध्याय में भीष्मजीने किया है | यज्ञ में अज का अर्थ तीन साल पुराने बीज ऐसा बताकर उपरिचरि बसू और सत्य नामक ब्राह्मण का आख्यान बताया है और अहिंसा धर्म का महत्व समझाया है | उपरिचरि बसू ने हिंसा का समर्थन किया इसलिए वो रसातल में चला गया था | सत्य नामक ब्राह्मण की धर्म ने मृगरूप धारण करके परिक्षा ली थी और यह सिद्ध किया की यज्ञमें पशू का बली देने पर पशू स्वर्ग में जाता है यह गलतफॅमी है | वेदोंकी वाणी परोक्ष होने के कारण लोगोंने अंदर छिपे अर्थ को ना समझकर उपर उपर का पुष्पित (दिखावटी) अर्थ ही सही मानकर पशूओंकी बली देना प्रारंभ किया | इस पुष्पित वाणी का उल्लेख भगवान ने भगवद्गीता अध्याय 2 श्लोक 42 में किया है |
इदं कृतयुगं नाम काल: श्रेष्ठ: प्रवर्तित: |
अहिंस्या यज्ञपशवो युगेस्मिन् न तदन्यथा ||
चतुष्पात् सकलो धर्मोभविष्यत्यत्र वै सुरा: |
ततस्त्रेतायुगं नाम त्रयी यत्र भविष्यति ||
प्रोक्षिता यत्र पशवो वधं प्राप्स्यन्ति वै मखे |
यत्र पादश्चतुर्थो वै धर्मस्य न भविष्यति ||
📖 महाभारत, शांतीपर्व, अध्याय 340, श्लोक 82, 83, 84
इन श्लोकों में साफ साफ बताया गया है की सत्ययुग में यज्ञ के नाम पर पशुवध नही किया जाता था | देवीदेवताओं के नामपर पशुवध करने का पाखंड त्रेतायुग से आरंभ हो गया था | द्वापरयुग में तो बहोत फैल रहा था इसिलिए तो श्रीहरि अपने अंशसे व्यासरूपमें अवतीर्ण हुए और महाभारत ग्रंथ के माध्यम से पाखंड का खंडण किया |
सुरा मत्स्या मधु मांसमासवं कृसरौदनम्।
धूर्तै: प्रवर्तितं ह्येतन्नैतद् वेदेषु कल्पितम्॥
मानान्मोहाच्च लोभाच्च लौलरूमेतत्प्रकल्पितम्।
सुरा, आसव, मधु, मांस और मछली तथा तिल और चावलकी खिचडी - इन सब वस्तुओंको धूर्तोंने यज्ञमें प्रचलित कर दिया है | वेदोंमें इनके उपयोगका विधान नही है | उन धूर्तोंने अभिमान, मोह और लोभके वशीभूत होकर उन वस्तूओंके प्रति अपनी यह लोलुपता ही प्रकट की है
📖 संदर्भ : महाभारत, शांतीपर्व, अध्याय 265, श्लोक 9, 10
Koti koti pranam or koti koti dhanayvad
Vishyaskt mann aur buddhi wahi pashu h. aur inhi vishayo ki yani pashuo ki bali di jani chahiye. 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Jaiho
Shandar explanation
प्रणाम गुरूदेव।
Parnaam guru dev ko
Pranam gurudev
Har Har mahadev
||जय श्रीराम ||हे भगवान् हमारा प्रणाम स्विकार करे !हमारा प्रशन है कि हमारे को कुश कारणवश घर मे कोई न होने पर भगवान कि पुजा को दोपहर 2;००बजते है क्याये ऊचित है ? कूपया मार्ग दिखाये ! कूष्णा अशोकदादा क कोकाटे महाराष्ट्र जिल्हा जालना ||जय जय रघुवीर समर्थ ||🙏🙏
लेकिन वाल्मीकि रामायण मैं राजा दशरथ के अश्वमेध यज्ञ (पुत्र उत्पन्न करने के लिए ) में पशु बलि दी थी। तो मुझे लगा ख़ास यज्ञों के लिए ही बलि लिखी गयी है। हर यज्ञ /होम के लिए उसकी आवयशकता नही। हर यजन में नहीं करना चाहिए।
स्वामीजी: कृपया आप अहिंसा - हिंसा का सात-असत परिणाम के हिसाब से भी समझा देते। भगवान् कृष्ण ने कौशिकी muni की कथा सुनाई थी इस सन्दर्भ में अर्जुन को।
स्वामी जी इसी सोच के कारण मुगलों और अंग्रेजों ने अनंत अत्याचार करे और हम सहते रहे । और आज खत्म होने के कगार पर हैं ।
ऐसा कुछ नहीं है भाई क्या अर्जुन को श्री कृष्ण भगवान ने मांस खाकर युद्ध करने को बोला था क्या उनको ज्ञान कराया धर्म और अधर्म का फिर उन्होंने युद्ध किया
अहिंसा परमो धर्म, धर्म हिंसा तथैव च। धर्म की रक्षा हेतु हिंसा किया जा सकता है।
इस संसार में, सब लोगों की सम्मति के अनुसार यह अहिंसा धर्म, सब धर्मों में, श्रेष्ट माना गया है। परन्तु अब कल्पना कीजिये कि हमारी जान लेने के लिये या , कोई दुष्ट मनुष्य हाथ में शस्त्र लेकर तैयार हो जाय और उस समय हमारी रक्षा करने वाला हमारे पास कोई न हो; तो उस समय हमको क्या करना चाहिये? क्या "अहिंसा परमोधर्मः" कहकर ऐसे आततायी मनुष्य की उपेक्षा की जाय या यदि वह सीधी तरह से न माने तो यथाशक्ति उसका शासन किया जाय⁉
‼मनुजी कहते हैं‼-
गुरुं वा बालवृद्धौ वा ब्रह्मणं वा बहुश्रुतम्।
आततायिनमायांतं हन्यादेवाविचारयन्।।
अर्थात्" ऐसे आततायी या दुष्ट मनुष्य को अवश्य मार डालें; किंतु यह विचार न करें कि वह गुरु है, बूढा है, बालक है या विद्वान ब्राह्मण है"। शास्त्रकार कहते है कि ऐसे समय हत्या करने का पाप हत्या करने वाले को नहीं लगता, किंतु आततायी मनुष्य अपने अधर्म ही से मारा जाता है। आत्मरक्षा का यह अधिकार, कुछ मर्यादा के भीतर, आधुनिक फौजदारी कानून में भी स्वीकृत किया गया है। ऐसे मौकों पर अहिंसा से आत्म रक्षा की योग्यता अधिक मानी जाती है। भ्रूण हत्या सब से अधिक निन्दनीय मानी गई है; परन्तु जब बच्चा पेट में टेढ़ा होकर अटक जाता है तब क्या उसको काटकर निकाल नहीं डालना चाहिये। अग्निष्टोम आदि वैदिक श्रौतयज्ञों में पशुबलि करना वेद ने ही प्रशस्त माना है; परन्तु विकल्प के रूप में पिष्ट पशु आदिके द्वारा वह भी टल सकता है। तथापि हवा, पानी, फल इत्यादि सब स्थानों में जो सैकडों जीव-जन्तु हैं उनकी हत्या कैसे टाली जा सकती है। सृष्टि में सर्वत्र जो मत्स्य-न्याय दृष्टिगोचर हो रहा है उसको कैसे रोका जा सकता है।
❗महाभारत मेंअर्जुन कहते हैः-
सूक्ष्मयोनीनि भूतानि तर्कगम्यानि कानिचित्‼
पक्ष्मणोअपि निपातेन येषां स्यात् स्कंधपर्ययः‼‼
"इस जगत में ऐसे ऐसे सूक्ष्मजन्तु हैं कि जिनका अस्तित्व यद्यपि नेत्रों से दिखाई नहीं पड़ता तथापि तर्क से सिद्ध है; ऐसे जन्तु इतने हैं कि यदि हम अपनी आखों के पलक हिलावें तो उतने ही से उन जन्तुओं का नाश हो जाता हैं"। ऐसी अवस्था में यदि हम मुख से कहते रहें कि "हिंसा मत करो, हिंसा मत करो" तो उससे क्या लाभ होगा इसी विचार के अनुसार अनुशासन पर्व में शिकार करने का समर्थन किया गया है। वन पर्व एक कथा है कि कोई ब्राह्मण क्रोध से किसी पतिव्रता स्त्री को भस्म कर डालना चाहता था; परन्तु जब उसका यत्न सफल नहीं हुआ तब वह उस स्त्री की शरण में गया। धर्म का सच्चा रहस्य समझ लेने के लिये उस ब्राह्मण को उस स्त्री ने किसी व्याध के यहाँ भेज दिया। यहाँ व्याध मांस बेचा करता था; परन्तु था अपने- माता- पिता का बड़ा पका भक्त। इस व्याध का यह व्यवसाय देखकर ब्राह्मण को अत्यंत विस्मय और खेद हुआ। तब व्याध ने उसे अहिंसा का सच्चा तत्त्व समझकर बतला दिया। इस जगत में कौन किसको नहीं खाता" जीवो जीवस्य जीवनम्"(भागवत) - यही नियम सर्वत्र देख पड़ता है। आपतकाल में तो "प्राणस्यान्नमिदं सर्वम्" यह नियम सिर्फ स्मृतिकारों ने ही नहीं कहा है, किंतु उपनिषदो में भी स्पष्ट कहा गया है । यदि सब लोग हिंसा छोड़ दे तो क्षात्रधर्म कहा और कैसे रहेगा।
‼हर हर महादेव‼ 🚩
युद्ध करना और पशु हिंसा मे अंतर नहीं दीखता तुम्हे
@@educatorexplorationsधर्म हिंसा तथैव च ,किसी भी ग्रंथ में नही उल्लिखित है ।
Dhanyavad acharya ji Jai Shri Ram
Vedo me pashu bali hai unko kohi shupa nahi sakta je bath Puri Tarah sach hai
😂😂kaha hai
Vedo mai nhi kfc mai hai. 😂
Please share references before saying such bold statements...
Waiting for your reply 🙏
Jai Ho
OM GURUBE NAMOH.
आदरणीय शंकराचार्य जी को प्रणाम। कृपया मेरे प्रश्न पर प्रकाश डालने की कृपा करें: यदि हम सब भगवान् के ही अंश हैं तो भागवान ने अपने ही अंशों को जन्म जन्मांतर के लिए कर्मो के चक्कर में, परीक्षा में क्यों दाला है। भवदीय, सुनील पांथरि, देहरादून, उत्तराखंड 🙏
ॐ श्रींमन्नारायणाय नमः
महात्मा बुद्ध और अंगुलिमान का प्रसंग अदाहरण है अहिंसा का
Om
जय गुरुदेव
कोटि कोटि प्रणाम
Guru ji...Aap purano se praman de rahe hai lekin .... Yajurved mein... Yagyon me ... Devtaon ke liye Bali dene ki pura ki puri prakriyaon ka varnan hai... Uske baare mein kya kahenge....
देवी जिसमे प्रसन्न होती है वही सही है।
प्रणाम प्रभुजो।
Aapko koti koti pranam guruji
Astral travel आत्मा से यात्रा करने की साधना बताए
🙏
🙏🙏
Posu boli is a cruel entertainment of some heartless peoples.
बलि रूपी विक्रति गुलामी की देन है
सोमनाथ से मधुकान्त पाठके दंडवत् प्रणाम्
Jaimogal jaihanumanji
बहुत ही achha lga sun kr🙏🙏🙏🙏🙏(jammu)