यज्ञ क्या है, और क्यो है, इसका महत्व????? भगवद्गीता के अनुसार परमात्मा के निमित्त किया कोई भी कार्य यज्ञ कहा जाता है। हमारी प्राचीन संस्कृति को अगर एक ही शब्द में समेटना हो तो वह है यज्ञ। 'यज्ञ' शब्द संस्कृत की यज् धातु से बना हुआ है जिसका अर्थ होता है दान, देवपूजन एवं संगतिकरण। भारतीय संस्कृति में यज्ञ का व्यापक अर्थ है, यज्ञ मात्र अग्निहोत्र को ही नहीं कहते हैं वरन् परमार्थ परायण कार्य भी यज्ञ है। यज्ञ स्वयं के लिए नहीं किया जाता है बल्कि सम्पूर्ण विश्व के कल्याण के लिए किया जाता है। यज्ञ का प्रचलन वैदिक युग से है, वेदों में यज्ञ की विस्तार से चर्चा की गयी है, बिना यज्ञ के वेदों का उपयोग कहां होगा और वेदों के बिना यज्ञ कार्य भी कैसे पूर्ण हो सकता है। अस्तु यज्ञ और वेदों का अन्योन्याश्रय संबंध है।जिस प्रकार मिट्टी में मिला अन्न कण सौ गुना हो जाता है, उसी प्रकार अग्नि से मिला पदार्थ लाख गुना हो जाता है। अग्नि के सम्पर्क में कोई भी द्रव्य आने पर वह सूक्ष्मीभूत होकर पूरे वातावरण में फैल जाता है और अपने गुण से लोगों को प्रभावित करता है। इसको इस तरह समझ सकते हैं कि जैसे लाल मिर्च को अग्नि में डालने पर वह अपने गुण से लोगों को प्रताडित करती है इसी तर सामग्री में उपस्थित स्वास्थ्यवर्धक औषधियां जब यज्ञाग्नि के सम्पर्क में आती है तब वह अपना औषधीय प्रभाव व्यक्ति के स्थूल व सूक्ष्म शरीर पर दिखाती है और व्यक्ति स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता चला जाता है। मनुष्य के शरीर में स्नायु संस्थान, श्वसन संस्थान, पाचन संस्थान, प्रजनन संस्थान, मूत्र संस्थान, कंकाल संस्थान, रक्तवह संस्थान आदि सहित अन्य अंग होते हैं उपरिलिखित हवन सामग्री में इन सभी संस्थानों व शरीर के सभी अंगों को स्वास्थ्य प्रदान करने वाली औषधियां मिश्रित हैं। यह औषधियां जब यज्ञाग्नि के सम्पर्क में आती हैं तब सूक्ष्मीभूत होकर वातावरण में व्याप्त हो जाती हैं जब मनुष्य इस वातावरण में सांस लेता है तो यह सभी औषधियां अपने-अपने गुणों के अनुसार हमारे शरीर को स्वास्थ्य लाभ प्रदान करती हैं। इसके अलावा हमारे मनरूपी सूक्ष्म शरीर को भी स्वस्थ रखती हैं।यज्ञ की महिमा अनन्त है। यज्ञ से आयु, आरोग्यता, तेजस्विता, विद्या, यश, पराक्रम, वंशवृद्धि, धन-धन्यादि, सभी प्रकार का राज-भोग, ऐश्वर्य, लौकिक एवं पारलौकिक वस्तुओं की प्राप्ति होती है। प्राचीन काल से लेकर अब तक रुद्रयज्ञ, सूर्ययज्ञ, गणेशयज्ञ, लक्ष्मीयज्ञ, श्रीयज्ञ, लक्षचंडी भागवत यज्ञ, विष्णुयज्ञ, ग्रह-शांति यज्ञ, पुत्रेष्टि, शत्रुंजय, राजसूय, ज्योतिष्टोम, अश्वमेध, वर्षायज्ञ, सोमयज्ञ, गायत्री यज्ञ इत्यादि अनेक प्रकार के यज्ञ होते चले आ रहे हैं। हमारा शास्त्र, इतिहास, यज्ञ के अनेक चमत्कारों से भरा पड़ा है। जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी सोलह-संस्कार यज्ञ से ही प्रारंभ होते हैं एवं यज्ञ में ही समाप्त हो जाते हैं। क्योंकि यज्ञ करने से व्यष्टि नहीं अपितु समष्टि का कल्याण होता है। अब इस बात को वैज्ञानिक मानने लगे हैं कि यज्ञ करने से वायुमंडल एवं पर्यावरण में शुद्धता आती है। संक्रामक रोग नष्ट होते हैं तथा समय पर वर्षा होती है। यज्ञ करने से सहबन्धुत्व की सद्भावना के साथ विकास में शांति स्थापित होती है।यज्ञ को वेदों में 'कामधेनु' कहा गया है अर्थात् मनुष्य के समस्त अभावों एवं बाधाओं को दूर करने वाला। 'यजुर्वेद' में कहा गया है कि जो यज्ञ को त्यागता है उसे परमात्मा त्याग देता है। यज्ञ के द्वारा ही साधारण मनुष्य देव-योनि प्राप्त करते हैं और स्वर्ग के अधिकारी बनते हैं। यज्ञ को सर्व कामना पूर्ण करने वाली कामधेनु और स्वर्ग की सीढ़ी कहा गया है। इतना ही नहीं यज्ञ के जरिए आत्म-साक्षात्कार और ईश्वर प्राप्ति भी संभव है।यज्ञ भारतीय संस्कृति का आदि प्रतीक है। शास्त्रों में गायत्री को माता और यज्ञ को पिता माना गया है। कहते हैं इन्हीं दोनों के संयोग से मनुष्य का दूसरा यानी आध्यात्मिक जन्म होता है जिसे द्विजत्व कहा गया है। एक जन्म तो वह है जिसे इंसान शरीर के रूप में माता-पिता के जरिए लेता है। यह तो सभी को मिलता है लेकिन आत्मिक रूपांतरण द्वारा आध्यात्मिक जन्म यानी दूसरा जन्म किसी किसी को ही मिलता है। शारीरिक जन्म तो संसार में आने का बहाना मात्र है लेकिन वास्तविक जन्म तो वही है जब इंसान अपनी अंत: प्रज्ञा से जागता है, जिसका एक माध्यम है 'यज्ञ'।यज्ञ की पहचान है 'अग्नि' या यूं कहें 'अग्नि', यज्ञ का अहम हिस्सा है जो कि प्रतीक है शक्ति की, ऊर्जा की, सदा ऊपर उठने की।🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
Jai shri Radhe Radhe Radhe
Radhe radhe Jay shree krishna
Radharani ki jay
Jai shree Radhe Radhe ji jai shree Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe Radhe 🌷🙏🏻🌹🌹💐🌹🌹💐💐🌹💐💐💐
Radhe Krishna Bhajan pollobirani susmita ok.
Radheradheji
Sir radha.
Radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe radhe krishna
Radhe Krishna Jay Shri Radhe Radhe Krishna ke Bihari Radhe Krishna 🙏🌹🌹❤️😊🌹🌺
🙏🙏JAY SHRI RADHE KRISHNA 🙏 🙏🙏🙏JAY SHRI RADHE KRISHNA 🙏 🙏🙏🙏JAY SHRI RADHE KRISHNA 🙏 🙏🙏very nice RADHE KRISHNA bhajan 🙏 🙏🙏🙏🙏🙏dt.07/10/2022🙏🙏🙏🙏🙏🕉🙏🕉🙏🕉🙏🕉🙏🕉🙏🕉🙏🕉🙏🕉🙏🕉🙏🕉🙏🕉🙏🕉🙏🕉🙏🕉🙏🕉🙏🕉🙏🕉🙏🕉🙏🕉🙏🕉🙏🕉🙏🕉🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Veena madan bahut sundar or meetha bhjan hai ,,,,🌹🌹🌹🌹🌹🌹
🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏
Jai shri radhe krishna🙏 🪔💕🪔🙏🌸🌸🌸🌸
Nice song Jai shree radhe krishna ji
P
बहुत ही सुन्दर भजन है।🙏 राधे राधे जय श्री कृष्णा 🙏
Radhey Radhey
Jai shri radhe krishna 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Jay shree radheykrishnay namah🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏💐💐
J y a d a v
Nice song ☺️
Nice song that give us a nice morning
Bahut sundar bhajan
Radhe Radhe 🙏❤️🙏.koti.koti naman radha rani ke bhajno ko.🙏🙏🙏🙏🙏🙏
यज्ञ क्या है, और क्यो है, इसका महत्व?????
भगवद्गीता के अनुसार परमात्मा के निमित्त किया कोई भी कार्य यज्ञ कहा जाता है।
हमारी प्राचीन संस्कृति को अगर एक ही शब्द में समेटना हो तो वह है यज्ञ। 'यज्ञ' शब्द संस्कृत की यज् धातु से बना हुआ है जिसका अर्थ होता है दान, देवपूजन एवं संगतिकरण।
भारतीय संस्कृति में यज्ञ का व्यापक अर्थ है, यज्ञ मात्र अग्निहोत्र को ही नहीं कहते हैं वरन् परमार्थ परायण कार्य भी यज्ञ है। यज्ञ स्वयं के लिए नहीं किया जाता है बल्कि सम्पूर्ण विश्व के कल्याण के लिए किया जाता है।
यज्ञ का प्रचलन वैदिक युग से है, वेदों में यज्ञ की विस्तार से चर्चा की गयी है, बिना यज्ञ के वेदों का उपयोग कहां होगा और वेदों के बिना यज्ञ कार्य भी कैसे पूर्ण हो सकता है।
अस्तु यज्ञ और वेदों का अन्योन्याश्रय संबंध है।जिस प्रकार मिट्टी में मिला अन्न कण सौ गुना हो जाता है, उसी प्रकार अग्नि से मिला पदार्थ लाख गुना हो जाता है। अग्नि के सम्पर्क में कोई भी द्रव्य आने पर वह सूक्ष्मीभूत होकर पूरे वातावरण में फैल जाता है और अपने गुण से लोगों को प्रभावित करता है।
इसको इस तरह समझ सकते हैं कि जैसे लाल मिर्च को अग्नि में डालने पर वह अपने गुण से लोगों को प्रताडित करती है इसी तर सामग्री में उपस्थित स्वास्थ्यवर्धक औषधियां जब यज्ञाग्नि के सम्पर्क में आती है तब वह अपना औषधीय प्रभाव व्यक्ति के स्थूल व सूक्ष्म शरीर पर दिखाती है और व्यक्ति स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता चला जाता है।
मनुष्य के शरीर में स्नायु संस्थान, श्वसन संस्थान, पाचन संस्थान, प्रजनन संस्थान, मूत्र संस्थान, कंकाल संस्थान, रक्तवह संस्थान आदि सहित अन्य अंग होते हैं उपरिलिखित हवन सामग्री में इन सभी संस्थानों व शरीर के सभी अंगों को स्वास्थ्य प्रदान करने वाली औषधियां मिश्रित हैं।
यह औषधियां जब यज्ञाग्नि के सम्पर्क में आती हैं तब सूक्ष्मीभूत होकर वातावरण में व्याप्त हो जाती हैं जब मनुष्य इस वातावरण में सांस लेता है तो यह सभी औषधियां अपने-अपने गुणों के अनुसार हमारे शरीर को स्वास्थ्य लाभ प्रदान करती हैं।
इसके अलावा हमारे मनरूपी सूक्ष्म शरीर को भी स्वस्थ रखती हैं।यज्ञ की महिमा अनन्त है। यज्ञ से आयु, आरोग्यता, तेजस्विता, विद्या, यश, पराक्रम, वंशवृद्धि, धन-धन्यादि, सभी प्रकार का राज-भोग, ऐश्वर्य, लौकिक एवं पारलौकिक वस्तुओं की प्राप्ति होती है।
प्राचीन काल से लेकर अब तक रुद्रयज्ञ, सूर्ययज्ञ, गणेशयज्ञ, लक्ष्मीयज्ञ, श्रीयज्ञ, लक्षचंडी भागवत यज्ञ, विष्णुयज्ञ, ग्रह-शांति यज्ञ, पुत्रेष्टि, शत्रुंजय, राजसूय, ज्योतिष्टोम, अश्वमेध, वर्षायज्ञ, सोमयज्ञ, गायत्री यज्ञ इत्यादि अनेक प्रकार के यज्ञ होते चले आ रहे हैं।
हमारा शास्त्र, इतिहास, यज्ञ के अनेक चमत्कारों से भरा पड़ा है। जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी सोलह-संस्कार यज्ञ से ही प्रारंभ होते हैं एवं यज्ञ में ही समाप्त हो जाते हैं।
क्योंकि यज्ञ करने से व्यष्टि नहीं अपितु समष्टि का कल्याण होता है। अब इस बात को वैज्ञानिक मानने लगे हैं कि यज्ञ करने से वायुमंडल एवं पर्यावरण में शुद्धता आती है।
संक्रामक रोग नष्ट होते हैं तथा समय पर वर्षा होती है। यज्ञ करने से सहबन्धुत्व की सद्भावना के साथ विकास में शांति स्थापित होती है।यज्ञ को वेदों में 'कामधेनु' कहा गया है अर्थात् मनुष्य के समस्त अभावों एवं बाधाओं को दूर करने वाला। 'यजुर्वेद' में कहा गया है कि जो यज्ञ को त्यागता है उसे परमात्मा त्याग देता है।
यज्ञ के द्वारा ही साधारण मनुष्य देव-योनि प्राप्त करते हैं और स्वर्ग के अधिकारी बनते हैं। यज्ञ को सर्व कामना पूर्ण करने वाली कामधेनु और स्वर्ग की सीढ़ी कहा गया है। इतना ही नहीं यज्ञ के जरिए आत्म-साक्षात्कार और ईश्वर प्राप्ति भी संभव है।यज्ञ भारतीय संस्कृति का आदि प्रतीक है।
शास्त्रों में गायत्री को माता और यज्ञ को पिता माना गया है। कहते हैं इन्हीं दोनों के संयोग से मनुष्य का दूसरा यानी आध्यात्मिक जन्म होता है जिसे द्विजत्व कहा गया है। एक जन्म तो वह है जिसे इंसान शरीर के रूप में माता-पिता के जरिए लेता है। यह तो सभी को मिलता है लेकिन आत्मिक रूपांतरण द्वारा आध्यात्मिक जन्म यानी दूसरा जन्म किसी किसी को ही मिलता है।
शारीरिक जन्म तो संसार में आने का बहाना मात्र है लेकिन वास्तविक जन्म तो वही है जब इंसान अपनी अंत: प्रज्ञा से जागता है, जिसका एक माध्यम है 'यज्ञ'।यज्ञ की पहचान है 'अग्नि' या यूं कहें 'अग्नि', यज्ञ का अहम हिस्सा है जो कि प्रतीक है शक्ति की, ऊर्जा की, सदा ऊपर उठने की।🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
Bhut sundar bhajan 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
To
No addded
राधे राधे 🙏🌷🌷🌹🌹👌👌👌👌
Jayradheyjihmareiapjanhohmare
Radhe Krishna Jay Shri Radhe Radhe Krishna ke Bihari Radhe Krishna 🙏🌹🌹❤️😊🌹🌺
Radhekirshna
Jai shri radhe radhe
🌹💐🙏
Jay shree radhe🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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