श्री श्री आनंद मूर्ति जी का प्रवचन - " नीरव व्यवस्था " Silent Action

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  • Опубликовано: 10 сен 2024
  • 💛बाबा द्वारा स्तम्भन क्रिया का प्रयोग💛
    ई. 1958 तक जमालपुर में अपनी जागृति नहीं थी। रामपुर कालोनी के छोटे से आवास में जागृति का कामचलाऊ स्वरूप होता था। पर जब जमालपुर और बाहर के मार्गियों की तादाद बढ़ने लगी, तो रामपुर कालोनी का आवास मार्गियों के रहने व बाबा की बैठकों के लिए संकड़ा पड़ने लगा। तब नियमित जागृति की जरूरत महसूस होने लगी। रामपुर कॉलोनी का आवास धर्ममहाचक्र के लिए भी अपर्याप्त था। बाबा प्रणय दा को नयी जागृति का भवन बनाने पर भरसक जोर देते, पर प्रणय दा अर्थाभाव के कारण कोई ठोस कदम उठाने की हिम्मत नहीं कर पाते थे। न उनके पास जमीन खरीदने के पैसे थे और न ही नयी इमारत खड़ी करने का सामर्थ्य था। एक दिन रामखिलावन जी ने प्रणय दा को एक जमीन के बारे में बताया, जो जागृति के लिए उपयुक्त थी। उस जमीन का मालिक मुंगेर का एक व्यवसायी था। जब उसके पास कुछ मार्गी
    गये, तो व्यापारी ने बताया कि वह जमीन एक स्थानीय गुंडे बच्चू मंडल ने जबरदस्ती हथियायी हुई है। उसने जमीन का अवैध कब्जा किया हुआ
    है। जमीन का मालिक बच्चू मंडल से आमना-सामना
    नहीं करना चाहता था। इसलिए उसने सहर्ष जमीन बेचने की ख्वाहिश जाहिर की। व्यवसायी औने-पौने दाम पर भी जमीन बेचने को तैयार था। प्रणय दा ने मोल-भाव करके सस्ते में जमीन खरीद ली। पर बच्चू को बेदखल करने की हिम्मत उनमें भी नहीं मार्गियों ने एकत्र होकर बच्चू को जमीन का अवैध कब्जा छोड़ने
    की दरियाफ्त की। बच्चू ने उन्हें डरा-धमका कर भगा दिया। उसने आनन्द-मार्गियों को यह धमकी भी दे दी कि अगर वे जमीन की तरफ आंख उठाकर भी देखेंगे, तो उनकी खैर नहीं। जब बाबा तक बात पहुंची, तो बाबा ने कहा कि जब जमीन पर हमारा
    सर्वाधिकार वैध पट्टा है, तो फिर डर किस बात का? दशरथ दा ने बताया कि बच्चू बहुत ही शैतान है और उस कॉलोनी का नामी गुंडा है, उससे मुठभेड़ उचित नहीं है। प्रणय दा भी मुठभेड़ की मर्मांतक संभावना से घबड़ाए हुए थे। बाबा ने तय किया कि आनन्द
    मार्ग अगर ऐसे अपराधियों से डरेगा, तो भला मिशन कैसे स्थापित होगा? उन्होंने दशरथ दा को मुठभेड़ के लिए तैयार किया। जब दशरथ दा बाबा द्वारा हिम्मत दिलाने पर बच्चू के पास जमीन बेदखल करवाने गये, तो बच्चू ने भुजाली से उन्हें मारने की धमकी
    दी। दशरथ जी भयातंक से थरथराने लगे। उन्होंने अपनी छतरी से भुजाली के प्रहार से अपनी रक्षा करनी चाही। पर वे जानते थे कि मरियल छतरी भुजाली का प्रहार कैसे सहन करेगी? अन्य
    मार्गी जो साथ आए थे, दशरथ दा को चिल्ला कर बोले "मास्टर के साहब! भागिए, वरना ये गुंडे आपको खत्म कर देंगे।” पर गुंडा अपने वार-प्रहार में सफल नहीं हो पाया। उसके हाथ पत्थर की तरह जाम हो गये । दशरथ दा तुरंत बाबा के पास गये। कुछ मार्गी बाबा को घेरे थे। बाबा उनसे वार्तालाप में व्यस्त थे। जब दशरथ दा ने घटना का ब्यौरा दिया तो बाबा बोले कि उसका वार निष्फल रहा ना! जब उसने मारने के लिए भुजाली उठायी तो मैंने 'स्तम्भन' क्रिया से उसे निष्क्रिय कर दिया। ऐसे नहीं करता तो आज दशरथ
    का माथा दो टुकड़ों में बंट जाता। बाबा ने अंगिका में बड़े प्यार से कहाः “मैं अपने चहेते बेटे का कैसे मरने देता?” दशरथ दा रोते हुए बाबा के चरणों में गिर पड़े। बोले किब्“बाबा आपकी कृपा से ही मुझे नया जीवन मिला है।” जब बच्चू ने भुजाली से मुझ पर वार किया, तो निश्चित मृत्यु की संभावना से मैंने आंख बंद करके आपका स्मरण किया था। बाबा ने उसी समय प्रणय दा को आदेश दिया कि अब तक बच्चू भाग गया होगा, तुम्हें तुरंत जागृति-भवन निर्माण का काम
    प्रारम्भ कर देना चाहिए। जब मार्गियों ने सुझाया कि हमें पहले कानूनी कार्रवाई से बच्चू को बेदखल करना चाहिए, वरना वह नया अड़ंगा खड़ा करेगा, बाबा ने कहा कि उसकी मजाल नहीं है कि वह आनन्द मार्ग से पंगा ले, तुम लोगों को भवन निर्माण का काम शीघ्र शुरू कर देना चाहिए। अगर तुम लोगों में हिम्मत नहीं है, तो मैं खुद जमीन पर जाकर कब्जा लूंगा। मार्गी तब हिम्मत करके दल बनाकर गये, तो वहां से बच्चू भाग चुका था।
    पुस्तक का नाम -- नमामि कल्याणसुन्दरम् (अष्टादश खण्ड)
    लेखक -- श्यामहमराही

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