कायाश्रित सब बाह्य व्यवस्था, जिनने उदय भरोसे छोड़ी।
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- Опубликовано: 9 фев 2025
- सोचो समझो चेतो भाई, यही अलौकिक जीवन है।
ये ही साँचा जीवन है।। टेक ।।
निज को निज पर को पर जाना, शाश्वत शुद्धातम अपनाया।
आतम हित का लक्ष्य बनाकर, सहज दिगम्बर पद प्रगटाया ।।
यही अलौकिक जीवन है ।। 1 ।।
कायाश्रित सब बाह्य व्यवस्था, जिनने उदय भरोसे छोड़ी।
तत्त्वज्ञान के बल से जिनने, परिणति निज में ही जोड़ी ।।
यही अलौकिक जीवन है।। 2 ।।
सहज अकर्त्ता ज्ञाता रहते, आराधन में सावधान रह,
पर का भार नहीं ढोते। भव्यों को निमित्त होते ।।
यही अलौकिक जीवन है ।। 3 ।।
अपना सुख अपने में वेदें, ध्रुव ज्ञायक प्रभु ध्याते हैं।
अध्रुव की चिन्ता नहीं करते, अक्षय प्रभुता पाते हैं ।।
यही अलौकिक जीवन है ।। 4 ।।
अहो ! अकिंचन होकर भी, शाश्वत वैभव के स्वामी हैं।
धन्य परम स्वाधीन वृत्ति के धारी अंतर्यामी हैं।।
यही अलौकिक जीवन है ।। 5 ।।
चाहे जैसे जगत परिणमे, वे अलिप्त ही रहते हैं।
घोर परीषह उपसर्गों को, समता से ही सहते हैं।।
यही अलौकिक जीवन है ।। 6 ।।
नए कर्मबंधन नहीं बाँधे, पूर्व कर्म विनशाते हैं।
स्वाभाविक निजगुण प्रगटावें, ध्रुव पंचमगति पाते हैं।।
यही अलौकिक जीवन है।। 7 ।।
नित निर्मुक्त रहें योगीश्वर, परम ब्रह्म में लीन रहें।
भक्तिभाव से करें नमन हम, ऐसी निर्मल दशा लहें ।।
यही अलौकिक जीवन है ।। 8 ।।
Jaijinendra ghatkopar
Jai jinendra kamlesh jain sagar
जय जिनेन्द्र जी 🙏🙏🙏