गाँधी और नेहरू की सच्चाई! || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2023)

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  • Опубликовано: 10 сен 2024
  • पूरा वीडियो: "अहिंसा परमो धर्मः गलत है, हिंसा ही धर्म है" || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव (2023)
    लिंक: • "अहिंसा परमो धर्मः गलत...
    वीडियो जानकारी: 25.02.2023, वेदांत महोत्सव, ऋषिकेश
    प्रसंग:
    ~ "अहिंसा परमो धर्मः गलत है, हिंसा ही धर्म है"?
    ~ अहिंसा परमो धर्मः का असली अर्थ क्या?
    ~ भगवद गीता में श्रीकृष्ण क्या बताते हैं अर्जुन को?
    ~ श्रीकृष्ण द्वारा दी गई धर्म की परिभाषा क्या है?
    ~ ऐसा क्यों कहा जाता है कि कलयुग के बाद सतयुग आएगा?
    ~ जब पाप बढ़ जाता है तो श्रीकृष्ण आते हैं, इसका क्या अर्थ है?
    ~ अधर्म बढ़ने पर अधर्म को ख़त्म करने के लिए धर्म की स्थापना खुद ही होती है इसका क्या अर्थ है?
    संगीत: मिलिंद दाते
    ~~~~~
    11.12 व 11.13, पौलोमपर्व, आदिपर्व
    स डौण्डुभं परित्यज्य रूपं विप्रर्षभस्तदा ⁠।
    स्वरूपं भास्वरं भूयः प्रतिपेदे महायशाः ⁠।⁠।⁠ १२ ⁠।⁠।
    इदं चोवाच वचनं रुरुमप्रतिमौजसम् ⁠।
    अहिंसा परमो धर्मः सर्वप्राणभृतां वर ⁠।⁠।⁠ १३ ⁠।⁠।
    इतना कहकर महायशस्वी विप्रवर सहस्रपादने डुण्डुभका रूप त्यागकर पुनः अपने प्रकाशमान स्वरूपको प्राप्त कर लिया। फिर अनुपम ओजवाले रुरुसे यह बात कही-‘समस्त प्राणियोंमें श्रेष्ठ ब्राह्मण! अहिंसा सबसे उत्तम धर्म है ⁠।⁠।⁠ १२-१३ ⁠।⁠।
    207.74, मार्कण्डेयसमास्यापर्व, वनपर्व
    अहिंसा सत्यवचनं सर्वभूतहितं परम् ⁠।
    अहिंसा परमो धर्मः स च सत्ये प्रतिष्ठितः ⁠।
    सत्ये कृत्वा प्रतिष्ठां तु प्रवर्तन्ते प्रवृत्तयः ⁠।⁠।⁠ ७४ ⁠।⁠।
    अहिंसा और सत्यभाषण-ये समस्त प्राणियोंके लिये अत्यन्त हितकर हैं। अहिंसा सबसे महान् धर्म है, परंतु वह सत्यमें ही प्रतिष्ठित है। सत्यके ही आधारपर श्रेष्ठ पुरुषोंके सभी कार्य आरम्भ होते हैं ⁠।⁠।⁠ ७४ ⁠।⁠।
    115.23, दानधर्मपर्व, अनुशासनपर्व
    अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परं तपः।
    अहिंसा परमं सत्यं यतो धर्मः प्रवर्तते ⁠।⁠।⁠ २३ ⁠।⁠।
    अहिंसा परम धर्म है, अहिंसा परम तप है और अहिंसा परम सत्य है; क्योंकि उसीसे धर्मकी प्रवृत्ति होती है ⁠।⁠।⁠ २३ ⁠।⁠।
    116.28, दानधर्मपर्व, अनुशासनपर्व
    अहिंसा परमो धर्मस्तथाहिंसा परो दमः ⁠।
    अहिंसा परमं दानमहिंसा परमं तपः ⁠।⁠।⁠ २८ ⁠।⁠।
    अहिंसा परम धर्म है, अहिंसा परम संयम है, अहिंसा परम दान है और अहिंसा परम तपस्या है ⁠।⁠।
    245.4, दानधर्मपर्व, अनुशासनपर्व
    श्रीमहेश्वर उवाच
    अहिंसा परमो धर्मो ह्यहिंसा परमं सुखम्।
    अहिंसा धर्मशास्त्रेषु सर्वेषु परमं पदम् ⁠।⁠।
    श्रीमहेश्वरने कहा-अहिंसा परम धर्म है। अहिंसा परम सुख है। सम्पूर्ण धर्मशास्त्रोंमें अहिंसाको परमपद बताया गया है ⁠।⁠।
    43.20 व 43.21 अनुगीतापर्व, आश्वमेधिकपर्व
    अत ऊर्ध्वं प्रवक्ष्यामि नियतं धर्मलक्षणम् ⁠।⁠।⁠ २० ⁠।⁠।
    अहिंसा परमो धर्मो हिंसा चाधर्मलक्षणा ⁠।
    प्रकाशलक्षणा देवा मनुष्याः कर्मलक्षणाः ⁠।⁠।⁠ २१ ⁠।⁠।
    अब मैं सबके नियत धर्मके लक्षणोंका वर्णन करता हूँ। अहिंसा सबसे श्रेष्ठ धर्म है और हिंसा अधर्मका लक्षण (स्वरूप) है। प्रकाश देवताओंका और यज्ञ आदि कर्म मनुष्योंका लक्षण है ⁠।⁠।⁠ २०-२१ ⁠।⁠।

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