पुरानाभजन घरघर में राळा होरया एक आयो राम सिपाहीby स्व.इंद्रचंदजी पुजारी

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  • Опубликовано: 11 окт 2024
  • lyrics
    घर घर म रोळा होरया, एक आयो राम सिपाही॥
    संगीत- जानकी को जानकार आयो एक फुलवाड़ी म,
    पेड़ पता तोड़ दिया छोड़ी कोनी झाड़ी न,
    अक्षय कुंवर न मार दिन्या तोड़ दी जबाड़ी न,
    बीस तीस भेळा करके साग ही पछाड़ देव
    बानर को विश्वास कोनी घर म बड़ज्या मार गेर,
    टाबर टींगर धके आज्या झरूंटियां उपाड़ लेवे-3,।
    टेर- भाग्या टोळा का ही टोळा र,लंका म डरी र लुगाई॥1॥
    संगीत- लाम्बे सारे पूँछड़ न च्यारुं मेर घुमाव है,
    रावण को सिपाही कोई सांकड़ो न आव है,
    भूल्यो भटक्यो धक आज्या थप्पड़ म मरज्याव है,
    रावणियो रामारयो ल्यायो रामजी की नार न,
    कही सूनी मान कोनी कुन बरज बलदार न,
    डरतो घर क माय बड़ग्यो निकल कोनी बार म-3।
    टेर- ईपर पड़्यो गर्व का गोळा र,हर ल्यायो जगत की माई॥2॥
    संगीत- कई सुरमां रावण भेज्या आपसरी म बतलाव,
    धर धर धर धर धूज कालजो पग पिंडी थरराव,
    दूर खड्या वानर न देखकर बोल सांकडो कुण आवे,
    बाग बीच म खड़्यो एकलो कोई क सार कोनी,
    ओड़ बड़ी लंका नगरी में कोई न धार कोनी,
    हाथ जोड़ चरणां म पड़ज्या राम भक्त मार कोनी।
    टेर- बिन देख हो गया धोळा र,फिर करने लग्या बड़ाई॥3॥
    संगीत- रामचंद्र जी स झगड़ो करके जीत कोनी लंकापति,
    रावण जकी न हरकर ल्यायो बा सीता है नार सती,
    समंदर लांघ लंक म आयो बो दिख है बालजति,
    धन्य ये धरती देश राम की ऐसा वीर हूया पैदा,
    एक जणो यूँ उठ कर बोल्यो इ धरती पर अणमेदा,
    जनम जको ही अठ वीर कहाव के पुछ तू नर मेदा।
    टेर- समंदर क बठिन बोळा र, लंका पर करी ह चढ़ाई॥4॥
    उठाव- आयो मेघनाध कर रोष बदन म जोश वीर बलकारी-3
    संग ल्यायो ब्रह्म की फाँस गल म डारी।
    नही करूँ धर्म न भंग वीर बजरंग बँधालीनी काया-3
    फिर रावण के दरबार चालकर आया॥
    ढाल- लंका पती करी चतुराई, झठ रुई तेल मंगाई।
    बजरंग की पूँछ बंधाई, ऊपर से आग लगाई॥
    संगीत- रर करतो रावण रह गया रया देखता खड्या खड्या,
    गढ़ लंका म आग लगा दी कई रहगया पड़्या पड़्या,
    कई तो घर खुला बळ गया कई बळ गया जडया जड्या,
    सिया को संदेशों लेकर रामा दल म आयो है,
    रामचन्द्र जी न देख्या हनुमत चरणा में शीश नवायो हैं,
    रामा दल म आनंद हो गया मोहन हर्ष गुण गायो है।
    टेर- बजरंग न भूल मत भोला र तू सूणल केसा भाई॥5॥
    ॥समाप्त॥

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