रात को नींद ना आये तो सुने ये भजन ।श्रीहनुमान चालीसा । hanuman chalisa fast | hanuman chalisa
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- Опубликовано: 24 дек 2024
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रात को नींद ना आये तो सुने ये भजन ।श्रीहनुमान चालीसा । hanuman chalisa fast | hanuman chalisa
श्री हनुमान चालीसा
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार।
वर्णों रघुवर विमल यश, जो दायक फल चार॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोही, हरहु कलेश विकार॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीश तिहु लोक उजागर॥ १ ॥
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥ २ ॥
महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥ ३ ॥
कंचन वर्ण विराज सुवेशा।
कानन कुंडल कुंचित केशा॥ ४ ॥
हाथ वज्र अरु ध्वजा विराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै॥ ५ ॥
शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग वंदन॥ ६ ॥
विद्यावान गुणी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥ ७ ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥ ८ ॥
सूक्ष्म रूप धरी सियहिं दिखावा।
विकट रूप धरि लंक जरावा॥ ९ ॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र जी के काज सँवारे॥ १० ॥
लाय सँजीवन लखन जियाए।
श्रीरघुवीर हरषि उर लाए॥ ११ ॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
कहा भरत सम तुम प्रिय भाई॥ १२ ॥
सहस्त्र बदन तुम्हरो यश गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥ १३ ॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥ १४ ॥
यम कुबेर दिक्पाल जहाँ ते।
कवी कोविद कहि सकैं कहाँ ते॥ १५ ॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥ १४ ॥
यम कुबेर दिक्पाल जहाँ ते।
कवी कोविद कहि सकैं कहाँ ते॥ १५ ॥
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥ १६ ॥
तुम्हरो मन्त्र विभीषण माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥ १७ ॥
युग सहस्र योजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥ १८ ॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही।
जलधि लाँघि गये अचरज नाही॥ १९ ॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥ २० ॥
राम द्वारे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पधारे॥ २१ ॥
सब सुख लहै तुम्हारी शरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥ २२ ॥
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनौं लोक हाँक ते काँपे॥ २३ ॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महावीर जब नाम सुनावै॥ २४ ॥
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥ २५ ॥
संकट से हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥ २६ ॥
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥ २७ ॥
और मनोरथ जो कोई लावै।
तासु अमित जीवन फल पावै॥ २८ ॥
चारों युग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥ २९ ॥
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥ ३० ॥
अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता।
अस बर दीन्ह जानकी माता॥ ३१ ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सादर हे रघुपति के दासा॥ ३२ ॥
तुम्हरे भजन राम को भावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥ ३३ ॥
अंत काल रघुपति पुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥ ३४ ॥
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई॥ ३५ ॥
संकट हटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥ ३६ ॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करो गुरुदेव की नाईं॥ ३७ ॥
यह शत बार पाठ कर जोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई॥ ३८ ॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥ ३९ ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥ ४० ॥
पवनतनय संकट हरण मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप॥