Struggling days of Amitabh Bachchan। अमिताभ बच्चन के संघर्ष के दिन। Old is Gold। Bollywood Facts।

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  • Опубликовано: 26 окт 2024
  • अमिताभ की जिंदगी का हर पहलू दिलचस्प है। उनकी उपलब्धियों को सुनना सभी को भाता है, लेकिन शायद ही किसी ने उनकी जिंदगी के संघर्ष की गाथा पढ़ी हो। आज मुंबई में रह कर करियर बनाना आसान नहीं है। इसका ये मतलब नहीं कि 70 के दशक में अमिताभ ने बड़ी ही आसानी से अपना करियर शुरू कर लिया था।
    करियर शुरू करने से राजनैतिक विफलता तक, एबीसीएल के दीवालिया होने से 'कुली' के हादसे तक, अमिताभ की जिदंगी के संघर्ष का हर किस्सा अपने-आप में प्रेरणा है। किसी की भी जिंदगी में इससे बेहतर क्या हो सकता है कि वो लड़खड़ाए, गिरे लेकिन फिर से उठ कर खड़ा हो जाए।जानते हैं उनकी जिंदगी के संघर्ष के 5 किस्से।
    अमिताभ बच्चन ने अपने फिल्मी करियर की शुरूआत फिल्म 'सात हिन्दुस्तानी'(1969) से की थी, लेकिन यह फिल्म उनके करियर की सुपर फ्लॉप फिल्मों में से एक है। इसके बाद उन्होंने 'रेशमा और शेरा'(1972) की जिसमें उनका रोल गूंगे की था और यह फिल्म भी फ्लॉप ही रही थी। हां, 'आनंद'(1971) फ़िल्म ने जरूर पहचान दी थी, लेकिन उसके बाद दर्जनभर फ्लॉप फ़िल्मों की ऐसी लाइन लगी कि मुंबई के निर्माता निर्देशक उन्हें फ़िल्म में लेने से कतराने लगे।
    उन्हें फिल्में मिलनी बंद हो गईं। अमिताभ निराश होने लगे थे। मेहनत और टैलेंट के बाद भी न ओर दिख रहा था और न छोर। अमिताभ उन दिनों फ़िल्म लाइन में बुरे दौर से गुजर रहे थे। लंबे और पतली टांगों वाले अमिताभ को देखकर निर्माता मुंह बिचका लेता था। वे मुंबई से लगभग पैकअप करके वापस जाने का मन बना चुके थे।
    उन दिनों प्रकाश मेहरा 'जंजीर'(1973) की कास्टिंग कर रहे थे और उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि उनकी वो फ़िल्म, जिससे उन्हें काफी उम्मीदें हैं, में किस एक्टर को लीड रोल में लिया जाए। वे अपने ऑफिस में इसी फ़िल्म के बारे में प्राण से चर्चा कर रहे थे। तब प्राण ने उन्हें अमिताभ का नाम सुझाया। प्रकाश मेहरा ने इनकार भाव से सिर झटक दिया।
    तब प्राण ने केवल इतना कहा कि ज्यादा बेहतर है कि एक बार अमिताभ की कुछ फ़िल्में देख लें और फिर मन जो आए, वो फैसला करें। साथ ही यह भी कहा-बेशक उसकी ज्यादातर फ़िल्में फ्लॉप हुई हैं, लेकिन उसके अंदर कुछ खास जरूर है। टैलेंट की उसमें कमी नहीं। बस उसे जरूरत है तो एक सही फ़िल्म की। 'जंजीर' के डायलॉग सलीम-जावेद की हिट जोड़ी ने लिखे थे। शूटिंग में न केवल अमिताभ, बल्कि सारी यूनिट ने ही खूब मेहनत की।
    फ़िल्म बनकर तैयार हो गई, लेकिन दिक्कतें थीं कि पीछा ही नहीं छोड़ रही थीं। ट्रायल शो का वितरकों ने खास रिस्पॉन्स नहीं दिखाया। अमिताभ उनके लिए पिटे हुए हीरो थे, जिसकी मार्केट वैल्यू न के बराबर थी। खैर किसी तरह 'जंजीर' रिलीज हुई। जिसने यह फ़िल्म देखी, वह अमिताभ का दीवाना हो गया। लाजवाब एक्टिंग, जबर्दस्त डायलॉग्स।
    अमिताभ रुपहले परदे पर ऐसे हीरो के रूप में सामने आए थे, जो पब्लिक के गुस्से का इजहार करता हुआ दिख रहा था। पहले दिन जो लोग इसे देखने गए, वो सीट से हट भी नहीं सके। देखते ही देखते एक नए सुपरस्टार का आगाज हो चुका था, वो थे अमिताभ बच्चन। और इसके बाद अमिताभ के लिए सबकुछ बदल गया। उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, आगे ही बढ़ते रहे। ऐसा कोई नहीं था जो उन्हें रोक पाए। अब चार दशक बाद भी उनका सफर उतनी ही मजबूती से जारी है।

Комментарии • 2

  • @nareshchand3522
    @nareshchand3522 2 дня назад

    Amitabh Bachan, the Bollywood Shahenshah had reached his pinnacle by dint of hard work and dedication. Although, initially AMIT Ji faced many failures in film line but he continued the struggle and reached peak of success.God was merciful too. Really Amit ji is a role model for others.
    Naresh Chand Srivastav