पिता को समर्पित एक कविता - हरे घास री रोटी | CLC

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  • Опубликовано: 13 сен 2024
  • अरे घास री रोटी ही , जद बन बिलावडो ले भाग्यो
    नान्हो सो अमरियो चीख पड्यो,राणा रो सोयो दुख जाग्यो
    अरे घास री रोटी ही
    हुँ लड्यो घणो , हुँ सहयो घणो, मेवाडी मान बचावण न
    हुँ पाछ नहि राखी रण में, बैरयां रो खून बहावण में
    जद याद करुं हल्दीघाटी , नैणां म रक्त उतर आवै
    सुख: दुख रो साथी चेतकडो , सुती सी हूंक जगा जावै
    अरे घास री रोटी ही
    पण आज बिलखतो देखुं हूं , जद राज कंवर न रोटी न
    हुँ क्षात्र धरम न भूलूँ हूँ , भूलूँ हिन्दवाणी चोटी न
    महलां म छप्पन भोग झका , मनवार बीना करता कोनी
    सोना री थालियां, नीलम रा बजोट बीना धरता कोनी
    अरे घास री रोटी ही
    ऐ हा झका धरता पगल्या , फूलां री कव्ली सेजां पर
    बै आज फिरे भुख़ा तिरसा , हिन्दवाण सुरज रा टाबर
    आ सोच हुई दो टूट तडक , राणा री भीम बजर छाती
    आँख़्यां में आंसु भर बोल्या , में लीख़स्युं अकबर न पाती
    पण लिख़ूं कियां जद देखूँ हूं , आ राडावल ऊंचो हियो लियां
    चितौड ख़ड्यो ह मगरा में ,विकराल भूत सी लियां छियां
    अरे घास री रोटी ही
    म झुकूं कियां है आण मन , कुल रा केसरिया बाना री
    म बूज्जू कियां हूँ शेष लपट , आजादी र परवना री
    पण फेर अमर री सुण बुसकयां , राणा रो हिवडो भर आयो
    म मानुं हूँ तिलीसी तन , सम्राट संदेशो कैवायो
    राणा रो कागद बाँच हुयो , अकबर रो सपनो सौ सांचो
    पण नैण करो बिश्वास नही ,जद बांच-बांच न फिर बांच्यो
    अरे घास री रोटी ही
    कै आज हिमालो पिघल भयो , कै आज हुयो सुरज शीतल
    कै आज शेष रो सिर डोल्यो ,आ सौच सम्राट हुयो विकल्ल
    बस दूत ईशारो जा भाज्या , पिथल न तुरन्त बुलावण न
    किरणा रो पिथठ आ पहुंच्यो ,ओ सांचो भरम मिटावण न
    अरे घास री रोटी ही
    बीं वीर बांकूड पिथल न , रजपुती गौरव भारी हो
    बो क्षात्र धरम को नेमी हो , राणा रो प्रेम पुजारी हो
    बैरयां र मन रो कांटो हो , बिकाणो पुत्र करारो हो
    राठोङ रणा म रह्तो हो , बस सागी तेज दुधारो हो
    अरे घास री रोटी ही
    आ बात बादशाह जाण हो , घावां पर लूण लगावण न
    पिथल न तुरन्त बुलायो हो , राणा री हार बंचावण न
    म्है बान्ध लियो है ,पिथल सुण, पिंजर म जंगली शेर पकड
    ओ देख हाथ रो कागद है, तु देख्यां फिरसी कियां अकड
    अरे घास री रोटी ही
    मर डूब चुंठ भर पाणी म , बस झुठा गाल बजावो हो
    प्रण टूट गयो बीं राणा रो , तूं भाट बण्यो बिड्दाव हो
    म आज बादशाह धरती रो , मेवाडी पाग पगां म है
    अब बता मन,किण रजवट र, रजपूती खून रगा म है
    अरे घास री रोटी ही
    जद पिथठ कागद ले देखी , राणा री सागी सेनाणी
    नीचै से सुं धरती खसक गयी, आँख़्या म भर आयो पाणी
    पण फेर कही तत्काल संभल, आ बात सपा ही झुठी है
    राणा री पाग सदा उंची , राणा री आण अटूटी है
    अरे घास री रोटी ही
    ल्यो हुकम हुव तो लिख पुछं , राणा र कागद र खातर
    ले पूछ भल्या ही पिथल तू ,आ बात सही, बोल्यो अकबर
    म्है आज सुणी ह , नाहरियो श्यालां र सागे सोवे लो
    म्है आज सुणी ह , सुरज डो बादल री ओट्यां ख़ोवे लो
    म्है आज सुणी ह , चातकडो धरती रो पाणी पीवे लो
    म्है आज सुणी ह , हाथीडो कुकर री जुण्यां जीवे लो || म्है आज सुणी ह , थक्या खसम, अब रांड हुवे ली रजपूती
    म्है आज सुणी ह , म्यानां म तलवार रहवैली अब सुती
    तो म्हारो हिवडो कांपे है , मुछ्यां री मौड मरोड गयी
    पिथल न राणा लिख़ भेजो , आ बात कठ तक गिणां सही.
    अरे घास री रोटी ही
    पिथठ र आख़र पढ्तां ही , राणा री आँख़्यां लाल हुई
    धिक्कार मन मै कायर हुं , नाहर री एक दकाल हुई
    हुँ भूख़ मरुँ ,हुँ प्यास मरुँ, मेवाड धरा आजाद रहे
    हुँ भोर उजाला म भट्कुं ,पण मन म माँ री याद रहे
    हुँ रजपुतण रो जायो हुं , रजपुती करज चुकावुंला
    ओ शीष पडै , पण पाग़ नही ,पीढी रो मान हुंकावूं ला
    अरे घास री रोटी ही
    पिथल क ख़िमता बादल री,जो रोकै सुर्य उगाली न
    सिंहा री हातल सह लेवै, बा कूंख मिली कद स्याली न
    धरती रो पाणी पीवे ईसी चातक री चूंच बणी कोनी
    कुकर री जूण जीवेलो हाथी री बात सुणी कोनी ||
    आ हाथां म तलवार थकां कुण रांड कवै है रजपूती
    म्यानां र बदलै बैरयां री छातां म रेवली सुती ||
    मेवाड धधकतो अंगारो, आँध्याँ म चम - चम चमकलो
    कडक र उठ्ती ताना पर, पग पग पर ख़ांडो ख़ड्कै लो
    राख़ो थे मुछ्यां ऐंठेडी, लोही री नदीयां बहा दयुंलो
    हुँ अथक लडुं लो अकबर सूं, उज्ड्यो मेवाड बसा दूलो
    जद राणा रो शंदेष गयो पिथल री छाती दूणी ही
    हिन्दवाणो सुरज चमको हो, अकबर री दुनिया सुनी ही
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