जब निज आतम अनुभव आवै | jab nij aatam anubhav aavai | पं. श्री भागचंद जी जैन | Jain Bhajan | Jainism

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  • Опубликовано: 10 сен 2024
  • जब निज आतम अनुभव आवै, और कछु ना सुहावे।।टेक।।
    रस नीरस हो जात ततच्छिन, अक्ष विषय नहीं भावै ।।
    जब निज आतम अनुभव आवे…।।१।।
    गोष्ठी कथा कुतूहल विघटै, पुद्गलप्रीति नसावे ।
    राग-दोष जुग चपल पक्ष जुत, मन पक्षी मर जावै ।।
    जब निज आतम अनुभव आ वे… ।।२।।
    ज्ञानानन्द सुधारस उमगै, घर अंतर न समावै ।
    `भागचन्द’ ऐसे अनुभव को, हाथ जोरि सिर नावै ।।
    जब निज आतम अनुभव आवे…।।३।।
    रचयिता - पं. श्री भागचंद जी जैन
    Source: मंगल भक्ति सुमन
    जीवन पथ दर्शन || ब्र. श्री रवीन्द्रजी ‘आत्मन्’
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