इस साक्षात्कार से मिश्र जी के अनूठा व्यक्तित्व से परिचय हुआ है। उनकी बेबाकी प्रभावित करती है। लेखक को अपना आलोचक होना चाहिए। किसी संघ में रहना कमजोरी की निशानी है। जो मेरे इर्द गिर्द हो रहा है उसमें ईमानदार हो कोई लेखक अगर सचमुच लेखक है तो वह खुश नहीं रह सकता। बहुत सारी बातें हैं अंजुम जी आपका यह कार्य एक पाठशाला जैसा है आप सचमुच अभिनन्दनीय है।
अंजुम, बड़ा अच्छा काम हो रहा है यह। कैसे हो पता है पता नहीं?आज साहित्य और साहित्यकार हाशिए पर चले गए हैं।आप युवा हैं, बी बी सी पर सुना है आपको।कौन आपको इतनी फ़ुरसत और सुविधा देता है... । एक मुलाक़ात आपसे दिल्ली आकाशवाणी में हुई थी। लक्ष्मीशंकर जी आपके प्रशंसक थे। ख़ैर। श्रू में आप मूर्तिदेवी पुरस्कार की बात करना भूल गए शायद। मैंने रेडियो रिपोर्ट तैयार की थी उस समारोह की।बचपन से , धर्मयुग के ज़माने से इनका लोहा मानता आया था।पहली बार आमना - सामना हुआ। अद्भुत अनुभव।लगे रहिए।साधुवाद!🙏
वाह ! वाह ! आनंद आ गया गोविन्द जी की वाकपटुता और ईमानदार बातें सुनकर। यूँ तो संगत के सभी अंक बहुत बढ़िया होते हैं किंतु इतने मनोरंजक और रुचिकर कोई कोई ही हो पाता है।अंजुम जी संगत के बहाने आप प्रत्यक्ष रूप से सहित्य की इन महान विभूतियों से मिल ही रहें हैं, ये आपका सौभाग्य है, लेकिन पाठकों को भी उनके व्यक्तित्व से परिचित करवा रहे हैं इसके लिये धन्यवाद।
गोविंद को सुनकर अपने भी विद्यार्थी जीवन की बहुत बातें याद आ गई। प्रोफेसर देब,प्रकाशचंद्र गुप्त आदि मेरे भी गुरु रहे हैं।और जीवन पर्यंत मैंने प्रॉफ़ देब के सिद्धांतों को एक अध्यापक और लेखकीय जीवन में उतारने का सतत प्रयत्न किया।लेखकों में मेरे गोविंद से वैसे ही सहज और निकट के संबंध रहे जैसे निर्मल वर्मा से थे।एक समय हम तीनों की बैठकें होती थी, गोविंद के घर जब उनके पिता दूसरे कमरे में बैठे खाँसते रहते थे और हम लोग मंद स्वर में बातें करते थे।गोविंद लगातार लिख रहे हैं,और उनकी दृष्टि इतनी पैनी और दूर तक देखने वाली बनी हुई है।इस कार्यक्रम के लिए अंजुम और संगत बधाई के पात्र हैं।
मिश्र जी की कहानी ' वरणांजलि ' वाला अंक आज भी मेरे पास सुरक्षित है। वरना, पत्रिकाओं को चालीस -पचास साल तक संजो कर रखना कहां हो पाता है? लगा तो था कि कहानी आत्मकथात्मक है, आज पुष्टि भी हो गई।इस कहानी का ज़िक्र जिस तरह से स्वयं मिश्र जी ने किया, उसे सुनकर लगा कि इस एक कहानी को पढ़कर जो छाप दिल पर लगी थी, वह बेजा नहीं थी।
गोविंद जी को सुनना समझना सुंदर व सुखद अनुभूति है... अंजुम शर्मा जी आप तो हमेशा की तरह ही बेमिसाल हैं.. गुफ्तगू में स्वयं आप एक हिस्सा हो जाते हैं यही सहज वार्तालाप को आगे ले चलता है... 💚 धन्यवाद हिन्दवी संगत का 🙏🙏
गोविन्द जी ने खुल कर बात की. जब मैं गोरखपुर विश्व विद्यालय में हिंदी में एम ए कर रहा था. मुझे कहानी में प्रथम पुरस्कार मिला था. उसमें गोविन्द जी किताब नए पुराने माँ बाप दी गयी थी. यह बात उनके इंटरव्यू सुनने के बाद याद आयी. स्वप्निल श्रीवास्तव. फैज़ाबाद
एक और सन्दर्भ याद आया। उन दिनों में गाज़ियाबाद में पदस्थ था। गोबिन्द जी की कहानी वर्णांजलि के पीची की कथा मुझे यात्री जी बता चुके थे। उन्हीं दिनों भीष्म साहनी जी इस्कस कार्यालय में महीने के पहले या दूसरे शनिवार को गोष्ठी रखते थे और मैं नियमित रूप से जाता था। उन्होंने किसी लीखक की कह कर इस कहानी का उल्लेख किया तो मैंने मिश्र जी का परिचय दिया और बताया कि यह सच्ची घटना पर आधारित है। वे बहुत भावुक हो गये थे। तब तक उनका मिश्रजी के व्यक्तित्व और कृतित्व से परिचय नहीं था। यह रचना की ताकत होती है। वीरेन्द्र जैन भोपाल
आदरणीय गोविंद मिश्र जी का हर उत्तर बेजोड़ है । मैंने उनका कुछ नहीं पढ़ा अब पढ़ूंगी बहुत अच्छा बोलते हैं..इतना लंबा इंटरव्यू मगर पूरा सुना । धन्यवाद अंजुम जी जो आपके माध्यम से उनके विषय में जाना।
गोविंद मिश्र से पहली मुलाकात अर्ली एटीज में शिमला में हुई ।फिर वो चंडीगढ़ शायद मेरे घर पर आए। हम तीन लोग इकट्ठे होते थे उन दिनों।वो तीन जो "जैसे परंपरा सजाते हुए " में भी थे।लेकिन , गोविंद हम में से एक पर केंद्रित हो गए। मुझे उन्होंने अपनी किताबें दी थीं शायद पढ़ने के लिए और इनपर लिखने के लिए भी । बाद में भिक्षा चीज मुझ tk समीक्षा की लिए पहुंची। मुझे उनका लेखन हमेशा किसी न किसी वजह से आकर्षित करता रहा । मैंने उनपर लिखा भी लेकिन छपने के लिए किसी बहुत ही असाहित्यिक वजह से नहीं भेज पाया ।उनसे खतोकिताबत भी नहीं हो पाई। आज उन्हें सुनते हुए वो सब अचानक याद आ गया जिसे लगभग भूल चुका था। उनका लिखा हुआ और उन्हें सुनना , दोनों ही खूब है। फ़िराक को लेकर तो बहुत कुछ है उनके पास जिसे विस्तृत रूप में सामने आना चाहिए।
आदरणीय के खिलाफ़त नोवेल पर उन के कहने पर एक विशेष टिप्पणी लिखी थी । गोविंद जी बहुत प्रसन्न हुए और कहा आप बहुत खुले जेहन वाले मुसलमान हैं। मैं तो बहुत असमंजस में था कि जाने आप कैसे रिएक्ट करें । डॉक्टर आज़म
हंस कि अपनी अलग कहानी है l राजेंद्र यादव जी ने मेरी दो अच्छी कहानियाँ हँस में छाप दीं और उसके बाद दो अच्छी कहानियाँ लौटा दीं l फिर मैंने लिखना ही छोड़ दिया l
इस साक्षात्कार से मिश्र जी के अनूठा व्यक्तित्व से परिचय हुआ है। उनकी बेबाकी प्रभावित करती है। लेखक को अपना आलोचक होना चाहिए।
किसी संघ में रहना कमजोरी की निशानी है।
जो मेरे इर्द गिर्द हो रहा है उसमें ईमानदार हो
कोई लेखक अगर सचमुच लेखक है तो वह खुश नहीं रह सकता।
बहुत सारी बातें हैं
अंजुम जी आपका यह कार्य एक पाठशाला जैसा है आप सचमुच अभिनन्दनीय है।
अंजुम, बड़ा अच्छा काम हो रहा है यह। कैसे हो पता है पता नहीं?आज साहित्य और साहित्यकार हाशिए पर चले गए हैं।आप युवा हैं, बी बी सी पर सुना है आपको।कौन आपको इतनी फ़ुरसत और सुविधा देता है... । एक मुलाक़ात आपसे दिल्ली आकाशवाणी में हुई थी। लक्ष्मीशंकर जी आपके प्रशंसक थे। ख़ैर। श्रू में आप मूर्तिदेवी पुरस्कार की बात करना भूल गए शायद। मैंने रेडियो रिपोर्ट तैयार की थी उस समारोह की।बचपन से , धर्मयुग के ज़माने से इनका लोहा मानता आया था।पहली बार आमना - सामना हुआ। अद्भुत अनुभव।लगे रहिए।साधुवाद!🙏
मैं मेरे एक मित्र के माध्यम से यहां तक पहुंचा और आपको सुनके बहुत कुछ मिला है ,,
वाह ! वाह ! आनंद आ गया गोविन्द जी की वाकपटुता और ईमानदार बातें सुनकर। यूँ तो संगत के सभी अंक बहुत बढ़िया होते हैं किंतु इतने मनोरंजक और रुचिकर कोई कोई ही हो पाता है।अंजुम जी संगत के बहाने आप प्रत्यक्ष रूप से सहित्य की इन महान विभूतियों से मिल ही रहें हैं, ये आपका सौभाग्य है, लेकिन पाठकों को भी उनके व्यक्तित्व से परिचित करवा रहे हैं इसके लिये धन्यवाद।
आदरणीय गोविंद मिश्र जी ने साहित्य की बहुत सुंदर परिभाषा दी ।
Sadhuvad Anjum sir
Aap mahan hastiyon se parichit karva rahe hain
कितना ज्ञान भरा है गोविंद सर में🙏
इस उमर में गोविंद जी की सक्रियता अद्भुत है। शतायु हों यही कामना है।
गोविंद को सुनकर अपने भी विद्यार्थी जीवन की बहुत बातें याद आ गई। प्रोफेसर देब,प्रकाशचंद्र गुप्त आदि मेरे भी गुरु रहे हैं।और जीवन पर्यंत मैंने प्रॉफ़ देब के सिद्धांतों को एक अध्यापक और लेखकीय जीवन में उतारने का सतत प्रयत्न किया।लेखकों में मेरे गोविंद से वैसे ही सहज और निकट के संबंध रहे जैसे निर्मल वर्मा से थे।एक समय हम तीनों की बैठकें होती थी, गोविंद के घर जब उनके पिता दूसरे कमरे में बैठे खाँसते रहते थे और हम लोग मंद स्वर में बातें करते थे।गोविंद लगातार लिख रहे हैं,और उनकी दृष्टि इतनी पैनी और दूर तक देखने वाली बनी हुई है।इस कार्यक्रम के लिए अंजुम और संगत बधाई के पात्र हैं।
बहुत अच्छा साक्षातकार! गोविंद मिश्र जी को सुनने का सुअवसर मिला! उनके लेखकीय अनुभवों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है. सुविख्यात कथाकार को मेरा प्रणाम!🙏
मार्मिक व्यक्तित्व
आपको बहुत बहुत धन्यवाद महान विभूतियों से मिलने के लिए🙏🙏🌹🌹
बहुत शानदार बातचीत ☺️
बहुत सुंदर...बहुत बहुत आभार अंजुम जी.
मिश्र जी की कहानी ' वरणांजलि ' वाला अंक आज भी मेरे पास सुरक्षित है। वरना, पत्रिकाओं को चालीस -पचास साल तक संजो कर रखना कहां हो पाता है? लगा तो था कि कहानी आत्मकथात्मक है, आज पुष्टि भी हो गई।इस कहानी का ज़िक्र जिस तरह से स्वयं मिश्र जी ने किया, उसे सुनकर लगा कि इस एक कहानी को पढ़कर जो छाप दिल पर लगी थी, वह बेजा नहीं थी।
गोविंद जी को सुनना समझना सुंदर व सुखद अनुभूति है... अंजुम शर्मा जी आप तो हमेशा की तरह ही बेमिसाल हैं.. गुफ्तगू में स्वयं आप एक हिस्सा हो जाते हैं यही सहज वार्तालाप को आगे ले चलता है... 💚
धन्यवाद हिन्दवी संगत का 🙏🙏
गोविन्द जी ने खुल कर बात की. जब मैं गोरखपुर विश्व विद्यालय में हिंदी में एम ए कर रहा था. मुझे कहानी में प्रथम पुरस्कार मिला था. उसमें गोविन्द जी किताब नए पुराने माँ बाप दी गयी थी. यह बात उनके इंटरव्यू सुनने के बाद याद आयी.
स्वप्निल श्रीवास्तव. फैज़ाबाद
शानदार interview
सटीक प्रश्न गोविंद जी को सादर प्रणाम
क्या शानदार बातचीत हुई !
हम पर लांछन भी फिर भी गजब व्यक्तित्व, गजब संवाद !
This episode is pure heart. ❤
बहुत शानदार साक्षात्कार अंजुम जी 💐
वाह! अद्भुत साक्षात्कार
अद्भुत 💐
आज की पीढ़ी के लोगों में गोविंद मिश्र जी जैसी ईमानदारी और सच्चाई मिलनी मुश्किल है।
गोविंद मिश्र जी का बहुत अच्छा इंटरव्यू
Great interview.
एक और सन्दर्भ याद आया। उन दिनों में गाज़ियाबाद में पदस्थ था। गोबिन्द जी की कहानी वर्णांजलि के पीची की कथा मुझे यात्री जी बता चुके थे। उन्हीं दिनों भीष्म साहनी जी इस्कस कार्यालय में महीने के पहले या दूसरे शनिवार को गोष्ठी रखते थे और मैं नियमित रूप से जाता था। उन्होंने किसी लीखक की कह कर इस कहानी का उल्लेख किया तो मैंने मिश्र जी का परिचय दिया और बताया कि यह सच्ची घटना पर आधारित है। वे बहुत भावुक हो गये थे। तब तक उनका मिश्रजी के व्यक्तित्व और कृतित्व से परिचय नहीं था।
यह रचना की ताकत होती है।
वीरेन्द्र जैन भोपाल
बहुत अच्छी बातचीत।
आदरणीय गोविंद मिश्र जी का हर उत्तर बेजोड़ है । मैंने उनका कुछ नहीं पढ़ा अब पढ़ूंगी बहुत अच्छा बोलते हैं..इतना लंबा इंटरव्यू मगर पूरा सुना ।
धन्यवाद अंजुम जी जो आपके माध्यम से उनके विषय में जाना।
बहुत अच्छा वार्तालाप
सादर नमन।
सुन्दर आनंद दायक वार्तालाप!
"ढोलक " कहानी आपकी है क्या ?
गोविंद मिश्र से पहली मुलाकात अर्ली एटीज में शिमला में हुई ।फिर वो चंडीगढ़ शायद मेरे घर पर आए। हम तीन लोग इकट्ठे होते थे उन दिनों।वो तीन जो "जैसे परंपरा सजाते हुए " में भी थे।लेकिन , गोविंद हम में से एक पर केंद्रित हो गए। मुझे उन्होंने अपनी किताबें दी थीं शायद पढ़ने के लिए और इनपर लिखने के लिए भी । बाद में भिक्षा चीज मुझ tk समीक्षा की लिए पहुंची। मुझे उनका लेखन हमेशा किसी न किसी वजह से आकर्षित करता रहा । मैंने उनपर लिखा भी लेकिन छपने के लिए किसी बहुत ही असाहित्यिक वजह से नहीं भेज पाया ।उनसे खतोकिताबत भी नहीं हो पाई। आज उन्हें सुनते हुए वो सब अचानक याद आ गया जिसे लगभग भूल चुका था। उनका लिखा हुआ और उन्हें सुनना , दोनों ही खूब है। फ़िराक को लेकर तो बहुत कुछ है उनके पास जिसे विस्तृत रूप में सामने आना चाहिए।
आदरणीय के खिलाफ़त नोवेल पर उन के कहने पर एक विशेष टिप्पणी लिखी थी । गोविंद जी बहुत प्रसन्न हुए और कहा आप बहुत खुले जेहन वाले मुसलमान हैं। मैं तो बहुत असमंजस में था कि जाने आप कैसे रिएक्ट करें ।
डॉक्टर आज़म
❤❤🙏
❤👌
हंस कि अपनी अलग कहानी है l राजेंद्र यादव जी ने मेरी दो अच्छी कहानियाँ हँस में छाप दीं और उसके बाद दो अच्छी कहानियाँ लौटा दीं l फिर मैंने लिखना ही छोड़ दिया l
दो बेकार कहानियाँ l पहली लाइन में अच्छी गलत लिख दिया l
एक कहानी के बेकार या अच्छी होने की आपकी परिभाषा क्या हैं?
बहुत अच्छा साक्षात्कार
बहुत अच्छा साक्षात्कार
अंजुम भाई, ज्ञानेन्द्रपति जी को बुलाओ आप कभी।
Anjum Sharma ji... Gorakhpur Ghar pe sab aur aap kaise hain ?? Umeed karta hun sab kushal Mangal hoga 👍
गोविंद जी मेरे शहर के हैं। मेरे शहर को फक्र है।
Namaskaar ji
एक और बढ़िया साक्षात्कार। गोविन्द जी के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला। बधाई।
चित्रा मुद्गल जी को भी बुलाए।
रघुपति सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी एक ही थे
बात ईमान की है।जो यहां है।
अब हंस में कहानी छपने पर पैसे नही मिलते,😂😂ये तो पोल खोल दी ,गोविंद जी ने
ईमानदार /लंबी breathing है गोविंद पर प्रतिरोध से कन्नी काटना/खुल के कैसे जिया जाता है /इसकी महारथ
Govind Ji 1978 mein Moti Bagh ke D II flats mein ham log ek dusre ke Padosi thay. Mera nam Anil Kumar Sinha Hai. Kahaniyan Likhta tha.
आर्थिक तौर पर एक लेखक को स्वतंत्र होना चाहिए, इस विषय पर अंजुम भाई आप बात टाल गए,गोविंद जी तो और बोलना चाहते थे ।
कभी समय मिले तो बुंदेलखंड के साहित्यकार का साक्षात्कार जरुर करें
Anjum ko aaj tak question karne hi nhi aaya...pata nhi kya puchna chahta hai
मिश्र जी प्रेमचंद की कहानी सद्गति dated कहानी नही है। वो आज भी प्रासंगिक है।
प्रेमचंद जी की सद्गति कालबद्ध नहीं कालजयी रचना हैं मिश्र जी.
विनोद कुमार शुक्ल और अपूर्वानंद झा के भी साक्षात्कार लीजिए
अपूर्वा और विनोद को 85 वर्ष के होने दो, कहीं विचारधारा की जल्दी तो नहीं है?
वैसे आजतक के रेडियोकर अंजुम शर्मा भी तो आपके ही लोग हैं!😊😊
18:38 Prof Deb, Former Head, Eng Deptt, Allahabad University
Anjum Sharma ji Gorakhpur Ghar pe sab aur aap kaise hain? Umeed karta hu sab kushal Mangal hoga 👍