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LIVE: श्री गणेश मंत्र | ॐ गं गणपतये नमो नमः | गणेश वंदना | Shri Ganesh Mantra Jaap

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  • Опубликовано: 2 авг 2024
  • LIVE: श्री गणेश मंत्र | ॐ गं गणपतये नमो नमः | गणेश वंदना | Shri Ganesh Mantra Jaap ‪@mayurbhakti‬
    Lyrics
    ॐ गन गणपतए नमो नमः
    Om Gan Ganapataye Namo Namah
    श्री सिद्धि विनायक नमो नमः
    Shree Siddhi Vinayak Namo Namah
    अष्टविनायक नमो नमः
    Ashtavinayak Namo Namah
    गणपति बाप्पा मोरया
    Ganapati Bappa Moraya
    प्राचीन समय में सुमेरू पर्वत पर सौभरि ऋषि का अत्यंत मनोरम आश्रम था। उनकी अत्यंत रूपवती और पतिव्रता पत्नी का नाम मनोमयी था। एक दिन ऋषि लकड़ी लेने के लिए वन में गए और मनोमयी गृह-कार्य में लग गई। उसी समय एक दुष्ट कौंच नामक गंधर्व वहाँ आया और उसने अनुपम लावण्यवती मनोमयी को देखा तो व्याकुल हो गया।
    कौंच ने ऋषि-पत्नी का हाथ पकड़ लिया। रोती और काँपती हुई ऋषि पत्नी उससे दया की भीख माँगने लगी। उसी समय सौभरि ऋषि आ गए। उन्होंने गंधर्व को श्राप देते हुए कहा 'तूने चोर की तरह मेरी सहधर्मिणी का हाथ पकड़ा है, इस कारण तू मूषक होकर धरती के नीचे और चोरी करके अपना पेट भरेगा
    काँपते हुए गंधर्व ने मुनि से प्रार्थना की-'दयालु मुनि, अविवेक के कारण मैंने आपकी पत्नी के हाथ का स्पर्श किया था। मुझे क्षमा कर दें। ऋषि ने कहा मेरा श्राप व्यर्थ नहीं होगा, तथापि द्वापर में महर्षि पराशर के यहाँ गणपति देव गजमुख पुत्र रूप में प्रकट होंगे (हर युग में गणेशजी ने अलग-अलग अवतार लिए) तब तू उनका डिंक नामक वाहन बन जाएगा, जिससे देवगण भी तुम्हारा सम्मान करने लगेंगे। सारे विश्व तब तुझें श्रीडिंकजी कहकर वंदन करेंगे।
    गणेश को जन्म न देते हुए माता पार्वती ने उनके शरीर की रचना की। उस समय उनका मुख सामान्य था। माता पार्वती के स्नानागार में गणेश की रचना के बाद माता ने उनको घर की पहरेदारी करने का आदेश दिया। माता ने कहा कि जब तक वह स्नान कर रही हैं तब तक के लिये गणेश किसी को भी घर में प्रवेश न करने दे। तभी द्वार पर भगवान शंकर आए और बोले "पुत्र यह मेरा घर है मुझे प्रवेश करने दो।" गणेश के रोकने पर प्रभु ने गणेश का सर धड़ से अलग कर दिया। गणेश को भूमि में निर्जीव पड़ा देख माता पार्वती व्याकुल हो उठीं। तब शिव को उनकी त्रुटि का बोध हुआ और उन्होंने गणेश के धड़ पर गज का सर लगा दिया। उनको प्रथम पूज्य का वरदान मिला इसीलिए सर्वप्रथम गणेश की पूजा होती है।
    गणेशजी के अनेक नाम हैं लेकिन ये 12 नाम प्रमुख हैं- सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन। उपरोक्त द्वादश नाम नारद पुराण में पहली बार गणेश के द्वादश नामवलि में आया है।[4] विद्यारम्भ तथा विवाह के पूजन के प्रथम में इन नामो से गणपति की अराधना का विधान है।
    पिता- भगवान शंकर
    माता- भगवती पार्वती
    भाई- श्री कार्तिकेय, अय्यप्पा (बड़े भाई)
    बहन- अशोकसुन्दरी , मनसा देवी , देवी ज्योति ( बड़ी बहन )
    पत्नी- दो (१) ऋद्धि (२) सिद्धि (दक्षिण भारतीय संस्कृति में गणेशजी ब्रह्मचारी रूप में दर्शाये गये हैं)
    पुत्र- दो 1. शुभ 2. लाभ
    पुत्री - संतोषी माता
    प्रिय भोग (मिष्ठान्न)- मोदक, लड्डू
    प्रिय पुष्प- लाल रंग के
    प्रिय वस्तु- दुर्वा (दूब), शमी-पत्र
    अधिपति- जल तत्व के
    मुख्य अस्त्र - परशु , रस्सी
    वाहन - मूषक

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