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Ajaygrah ka kila | Ajaygrah fort mystery| अजयगढ़ का किला| म.प्र. की सबसे छोटी तहसील |Jila Panna M.P.

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  • Опубликовано: 6 май 2023
  • Ajaygrah ka kila | Ajaygrah fort mystery| अजयगढ़ का किला| म.प्र. की सबसे छोटी तहसील |Jila Panna M.P.
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    मध्य प्रदेश की क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे छोटी तहसील अजयगढ़ है पन्ना मध्य प्रदेश
    आज हम अजयगढ़ के किले को जानने की कोशिश करेंगे। जानने से ज़्यादा उसे महसूस करने की कोशिश करेंगे ताकि खुद को इतिहास से जुड़ा हुआ पाए। अजयगढ़ का किला मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के पास बसा हुआ है।1765 में राजा गुमान सिंह ने इसे खोजा था। वह जैतपुर के राजा पहर सिंह के भतीजे थे। अजयगढ़ से कालिंजर का किला 35 किलो मीटर दूर है। अजयगढ़ और कालिंजर के किले को जुड़वाँ किले के नाम से भी जाना जाता है। 1809 में अंग्रेज़ों द्वारा किले पर कब्ज़ा कर लिया गया था। इसके बाद यह किला मध्य भारत की एजेंसी में शामिल हो गया। फिर यह किला बुंदेलखंड की रियासत का हिस्सा बन गया। किला 2000 वर्ग किलो मीटर में फैला हुआ है। यह किला यूपी और मध्यप्रदेश के बीच विंध्या रेंज की चोटी पर बना हुआ है। यह किला चंदेल वंश की कहानी बयां करता है।1901 में क्षेत्र में रहने वाले लोगो की आबादी 78,236 थी।
    पन्ना. मध्‍य प्रदेश के पन्ना (Panna) में अजयगढ़ किले (Ajaygarh Fort) में मौजूद अजयपाल बाबा का मंदिर एक बार फिर खुला है. मंदिर में हर साल की तरह इस बार भी भगवान अजयपाल की मूर्ति लाई गई है, जहां दर्शन और मन्नत मांगने के लिए लाखों की संख्या में लोग पहुंच रहे हैं. किले का यह मंदिर साल में सिर्फ एक बार 48 घंटे के लिए ही खुलता है. दूर-दूर से निसंतान दंपति और किसान इसके दर्शन के लिए आते हैं. इस किले के बारे में यह भी कहा जाता है कि यहां चंदेल राजाओं का खजाना आज भी मौजूद है और बीजक में इसके खोलने का राज छिपा है.
    साल में सिर्फ 48 घंटे के लिए खुलता है अजयगढ़ किले का यह मंदिर, दूर-दूर से मन्नत मांगने आते हैं लोग
    पन्ना (Panna) में अजयगढ़ किले (Ajaygarh Fort) में मौजूद अजयपाल बाबा का मंदिर साल में सिर्फ एक बार 48 घंटे के लिए खुलता है. यहां दूर-दूर से निसंतान दंपति और किसान दर्शन के लिए आते हैं.

    अजयगढ़ किले की तस्वीरो का राज़, जिनमे छुपे है खज़ाने के कई रहस्य
    अजयगढ़ किले की तस्वीरो का राज़, जिनमे छुपे है खज़ाने के कई रहस्य
    द्वारा लिखित Sandhya August 28, 2020 3225 बार देखा गया

    कहानियां,रहस्य और इतिहास कुछ ऐसी चीज़े है जिसे हर कोई जानना चाहता है। करीब से देखना चाहता है, बीते हुए समय को फिर से उस जगह जाकर उनकी कहानियां सुनकर उन्हें फिर से महसूस करना चाहता है। राज़ और उसकी गहराई जितनी हो , उतना ही उसे जानने में मज़ा आता है। भारत तो हमेशा से ही ऐसी कहानियों और अपने पुराने इतिहास की वजह से मशहूर रहा है। कई लोगो ने इतिहास को जानने की बहुत कोशिश की फिर भी उसे पूरी तरह से नहीं जान पाए। मज़ा तो इसमें ही है की बार-बार किसी चीज़ को जानने की कोशिश की जाए। जितनी बार हम चीज़ो को अलग-अलग तरह से समझने की कोशिश करेंगे , उतनी ही बार वह हमें अपनी कहानियां और अपने इतिहास को अलग-अलग तरह से दिखाती रहेंगी।
    अजयगढ़ किले का इतिहास

    आज हम अजयगढ़ के किले को जानने की कोशिश करेंगे। जानने से ज़्यादा उसे महसूस करने की कोशिश करेंगे ताकि खुद को इतिहास से जुड़ा हुआ पाए। अजयगढ़ का किला मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के पास बसा हुआ है।1765 में राजा गुमान सिंह ने इसे खोजा था। वह जैतपुर के राजा पहर सिंह के भतीजे थे। अजयगढ़ से कालिंजर का किला 35 किलो मीटर दूर है। अजयगढ़ और कालिंजर के किले को जुड़वाँ किले के नाम से भी जाना जाता है। 1809 में अंग्रेज़ों द्वारा किले पर कब्ज़ा कर लिया गया था। इसके बाद यह किला मध्य भारत की एजेंसी में शामिल हो गया। फिर यह किला बुंदेलखंड की रियासत का हिस्सा बन गया। किला 2000 वर्ग किलो मीटर में फैला हुआ है। यह किला यूपी और मध्यप्रदेश के बीच विंध्या रेंज की चोटी पर बना हुआ है। यह किला चंदेल वंश की कहानी बयां करता है।1901 में क्षेत्र में रहने वाले लोगो की आबादी 78,236 थी।
    ताले-चाभी की क्या है पहेली ?
    राजा-महाराजा बड़े-बड़े किले बनवाते थे ताकि उनमे वह कुछ राज़ो और कुछ कीमती चीज़ो को छुपा सकें। हर किला एक रहस्यमयी तरीके से बनाया जाता था ताकि लोग उन्हें समझ न सके। दीवार पर बनायी गयी हर कला और हर मूर्तियां अपने अंदर एक राज़ छुपाएं बैठी होती है। बिल्कुल एक पहेली की तरह , जिसमे हमे हर एक चीज़ को एक-दूसरे के साथ जोड़ कर देखना पड़ता है। किले के अंदर एक पत्थर है जिस पर चाबी-ताले का चित्र बना हुआ है। कहा जाता है कि यह चाबी-ताला किसी खज़ाने की तरफ कोई इशारा है। इस पहेली को सुलझाने पर ख़ज़ाने तक पहुंचा जा सकता है। ताले-चाभी वाले पत्थर के साथ में ही एक पत्थर है जिस पर लिपि भाषा में कुछ लिखा हुआ है। कई लोगो ने उसे पढ़ने की बहुत कोशिश की , पर पढ़ नहीं पाए। वक़्त के साथ-साथ पत्थर पर बनी नकाशी धुंधली होती हो गयी और राज़ गहरा होता गया ।

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