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ग़ज़ल-64 || तू कोह-ए-तूर हो जा आँखों में चमकेगा ||

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  • Опубликовано: 19 июн 2024
  • ग़ज़ल-64
    तू कोह-ए-तूर हो जा आँखों में चमकेगा
    तेरा किरदार तिरी आँखों से हँस देगा
    मुझको खोने वाले ये जान ज़रा तू भी
    मुझको खोकर के बेहद तू ही तड़पेगा
    ठोकर से भी जो रीत न समझे दुनिया की
    औरों की ठोकर को फिर वो क्या समझेगा
    मख़मल के बिस्तर पे जो सोता आया है
    सड़कों पे जगने को वो क्या ही समझेगा
    बस फूलों पर ही पाँव रखे हों जिसने भी
    पैरों के छालों को वो कैसे समझेगा
    माँ बाप अगर ये ख़ूँ के आँसू रोते हैं
    जिस रोज़ न होंगे कौन तुम्हें फिर थपकेगा
    अब क़द्र नहीं है जिस घर की तुमको प्यारों
    बेघर होकर के ये दिल घर को तड़पेगा
    माना ये इश्क़ मज़ा देता है जाँ लेकिन
    क्या होगा फिर जब ख़ून जिगर से टपकेगा
    मेरी ग़ज़लें पढ़कर के 'सलमा' इक दिन तो
    वो भी मुझको ग़ज़लें लिखने को तरसेगा
    ‪@thesalmamalik‬
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