एकदम मीठे स्वर के साथ जो आपने व्याख्या की दिल को छू गया,आज पहली बार मैं इसके एक एक शब्द के अर्थ को समझ पाया हूं ,धन्यवाद गुरुजी आपका जो आपने यूट्यूब के माध्यम से हम लोगो तक इसे पहुंचाने की कृपा की आपने, प्रणाम गुरूजी 👏 ,जय हो सनातन धर्म की
Thank you guruji for all your tutorial videos... They have helped me alot in reciting various stotrams as part of my daily life.... May Ma bless you with abundance of wealth, health and moksha 🙏🏼🙏🏼🌺🔱
आपकी वीडियो देखकर मुझे लगता है कि मैं भी माता का महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र सीख जाऊंगी। आप मेरे लिए गुरु समान है आपके चरणों में बारंबार प्रणाम 🙏 कृप्या करके ऐसे ही शिव तांडव स्तोत्र का भी विडियो बनाईए।
गुरु देव, माँ भगवती का सामीप्य बढ़ाने के लिए में आपका हृदय से आभारी हूँ ।गुरु जी यदि कभी हिमाचल आना हुआ तो कृपा करके मुझे सेवा का अवसर ज़रूर प्रदान करें 🙏🌸जय माँ 🚩
मैं आपको सादर प्रणाम करता हूं सबसे पहले तो मैं यह कहना चाहूंगा कि आपका स्वर बहुत मीठा है क्योंकि भगवती आपके शब्दों में और वाणी में शब्द ब्रह्म रूप से विराजमान है दूसरा मैं आपको दोबारा धन्यवाद देता हूं कि अपने प्रत्येक श्लोक के प्रत्येक शब्द का अलग अलग अर्थ समझाया युटुब पर या गूगल पर हमें इस स्तोत्र का हिंदी अनुवाद तो मिल जाता है परंतु हम उसे अनुवाद के द्वारा यह पता नहीं लगा पाए कि इसमें किस शब्द का क्या अर्थ है और किसी भी स्तोत्र को पढ़ने का दुगना आनंद तब बढ़ जाता है जब आप स्तोत्र पढ़ रहे हो और उसका आपको अर्थ भी पता हो इसलिए आपसे विनती है की इसी प्रकार से महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक के प्रत्येक शब्द का अर्थ बताने की कृपा करते रहें मैं आपको दोबारा सादर प्रणाम करता हूं भगवती आपके ऊपर अपनी इसी प्रकार से विशेष अनुकंपा सदैव बनाए रखें
गुरुजी,आपको चरण स्पर्श,आपका ह्रदय से आभार🌹🙏🌹
Bahut sundar ❤❤❤❤
जय हो 🌺🙏🏻
अति सुंदर।बहुत अच्छे भाव के साथ समझाया।
Pranam guruji😊
Guruji parnam
जय माता दी बहुत सुन्दर प्रस्तुति
बहुत सुंदर विश्लेषण सर जी
Pranam Gurudev
Bahut bahut dhanyawad 🙏🙏
Jai ho jgtjanini
Jai Ho
बहुत ही सुन्दर एवम् सराहनीय कार्य जय हो 🎉
Keya bat hai❤❤❤
Bhut accha prayaas
आप को कोटि कोटि नमन
🙏🙏 Jai Jai Jai ho aap ki 🙏🙏
सर के पड़ने से मुझे बहुत मदत मिल रही हे 🙏🙏
हे मां आदिशक्ति आपको कोटि कोटि प्रणाम है🙏🙏🌹🌹❤❤
सदंचित-मुदंचित निकुंचित पदं झलझलं-चलित मंजु कटकम् ।
पतंजलि दृगंजन-मनंजन-मचंचलपदं जनन भंजन करम् ।
कदंबरुचिमंबरवसं परममंबुद कदंब कविडंबक गलम्
चिदंबुधि मणिं बुध हृदंबुज रविं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 1 ॥
सादर प्रणाम।
बहुत बहुत आभार
🙏🙏 nice video
Waiting for next part ❤❤
Adbhut hai ji
एकदम मीठे स्वर के साथ जो आपने व्याख्या की दिल को छू गया,आज पहली बार मैं इसके एक एक शब्द के अर्थ को समझ पाया हूं ,धन्यवाद गुरुजी आपका जो आपने यूट्यूब के माध्यम से हम लोगो तक इसे पहुंचाने की कृपा की आपने, प्रणाम गुरूजी 👏 ,जय हो सनातन धर्म की
श्रीमान जी पणाम सुन्दर तरीके से समझाया हैं 🎉🤨
धन्यवाद जी 🙏
मन प्रसन्न हो जाता है जी बिल्कुल आपके मुख से कोई भी स्रोत या वंदना सुनकर
Jai Mata di..
बहुत सुंदर विश्लेषण गुरूजी
सादर प्रणाम 🙏🙏
Thank you guruji for all your tutorial videos... They have helped me alot in reciting various stotrams as part of my daily life.... May Ma bless you with abundance of wealth, health and moksha 🙏🏼🙏🏼🌺🔱
Thanks very good recitation sir ji
Maa ki vandana har sawar ko shobhit kar deti h aapke bhav bhi achchhe h sawar bhi
Aapka gayan bahut sundar hai
Aap ko tahe dil se pranam
बहुत बहुत आभार गुरुदेव ऐसा अर्थ सहित सप्तशती का वीडियो भी हम सब के लिए उपलब्ध हो तो बड़ी कृपा होगी 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Thank you so much ❤❤
Thank you so much for mahishasurmadini strotram
very nice
जय मां भगवती भवानी
Jai mata di
जय माता दी।
बहुत सुंदर प्रयास ❤❤❤
Pnannm gru ji...
जो जैसा बतला रहे है सब का सम्मान करना चाहिए जैसे हरि अनंत हरि कथाअनंता
Guru ji Pranam
बहूत ही मधुर स्वर में इस दिव्य स्तोत्र को आपने गायन किया और अर्थ भी बताया।।। इस तरह आप विडियो देते रहिए,, आपको मेरा नमन है इस सराहनी कार्य हेतु।
thank you thank you so much sir
🙏🌻🌻⛳️🌺🌺Jai Mata Di 🌺🌺⛳️🌻🌻🙏
Such a nice voice sir🎉🎉🎉🎉🎉🙏
आपकी वीडियो देखकर मुझे लगता है कि मैं भी माता का महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र सीख जाऊंगी। आप मेरे लिए गुरु समान है आपके चरणों में बारंबार प्रणाम 🙏 कृप्या करके ऐसे ही शिव तांडव स्तोत्र का भी विडियो बनाईए।
Guru ji rudrastkam
Thank you so much sir ❤
Sir aap ka bhi sur super hai hai ❤❤❤ thanks 🙏🙏
🙏🙏🙏
🎉🎉🎉Thanx 🎉🎉🎉
जय भवानी 🚩🚩🚩
गुरु देव, माँ भगवती का सामीप्य बढ़ाने के लिए में आपका हृदय से आभारी हूँ ।गुरु जी यदि कभी हिमाचल आना हुआ तो कृपा करके मुझे सेवा का अवसर ज़रूर प्रदान करें 🙏🌸जय माँ 🚩
मैं आपको सादर प्रणाम करता हूं सबसे पहले तो मैं यह कहना चाहूंगा कि आपका स्वर बहुत मीठा है क्योंकि भगवती आपके शब्दों में और वाणी में शब्द ब्रह्म रूप से विराजमान है दूसरा मैं आपको दोबारा धन्यवाद देता हूं कि अपने प्रत्येक श्लोक के प्रत्येक शब्द का अलग अलग अर्थ समझाया युटुब पर या गूगल पर हमें इस स्तोत्र का हिंदी अनुवाद तो मिल जाता है परंतु हम उसे अनुवाद के द्वारा यह पता नहीं लगा पाए कि इसमें किस शब्द का क्या अर्थ है और किसी भी स्तोत्र को पढ़ने का दुगना आनंद तब बढ़ जाता है जब आप स्तोत्र पढ़ रहे हो और उसका आपको अर्थ भी पता हो इसलिए आपसे विनती है की इसी प्रकार से महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक के प्रत्येक शब्द का अर्थ बताने की कृपा करते रहें मैं आपको दोबारा सादर प्रणाम करता हूं भगवती आपके ऊपर अपनी इसी प्रकार से विशेष अनुकंपा सदैव बनाए रखें
गुरु जी सादर प्रणाम आप से अनुरोध है पीडीएफ फाइल बनाएं
Pranaam Gurudev🌹
Gurudev sundarkand plz..
Sir durga saptasati with sloka meaning bhi laye aapki kripa hogi🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉
अपका स्वर बहुत मीठा है
गुरुजी जगमंगल काली कवच पर वीडियो बनाए
Lalitha sahasranamam please
Guruji Rudri paath aaage ke path bhi daldigiye 🙏
श्रीमान🙏, शब्द स्पष्ट नहीं दिखाई देते हैं।
Kripya Sankalp padhna bataen
ये स्तोत्र कौन से पुस्तक में मिलेगा..?
Sir apne tino rehsyo par video bnaye kripya karke
Please sir durga kavacha
Channel me dekhiye mil jayega with meaning and tutorial both .
Lalitha shastranamam please
Visnu sahastra nam ko complete karba dijea pora
Please also load saundarya lahiri with Hindi translation Sir Ji
Sir, can you share the chhanda, this is recited. Thank you.
Bs guru ji achhe se smjha de Maine yaad krne ki koshish ki bt yaad nhi hua 😑
Guru var ek patanjali krat natraj strotm bhi sikha ve
Aap pdf de dijiye bana denge
@@Gyananjali_GyanGanga sir plz send e-mail address send pdf patanjali natraj strotm
नटराज स्तोत्रं (पतंजलि कृतम्)
अथ चरणशृंगरहित श्री नटराज स्तोत्रं
सदंचित-मुदंचित निकुंचित पदं झलझलं-चलित मंजु कटकम् ।
पतंजलि दृगंजन-मनंजन-मचंचलपदं जनन भंजन करम् ।
कदंबरुचिमंबरवसं परममंबुद कदंब कविडंबक गलम्
चिदंबुधि मणिं बुध हृदंबुज रविं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 1 ॥
हरं त्रिपुर भंजन-मनंतकृतकंकण-मखंडदय-मंतरहितं
विरिंचिसुरसंहतिपुरंधर विचिंतितपदं तरुणचंद्रमकुटम् ।
परं पद विखंडितयमं भसित मंडिततनुं मदनवंचन परं
चिरंतनममुं प्रणवसंचितनिधिं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 2 ॥
अवंतमखिलं जगदभंग गुणतुंगममतं धृतविधुं सुरसरित्-
तरंग निकुरुंब धृति लंपट जटं शमनदंभसुहरं भवहरम् ।
शिवं दशदिगंतर विजृंभितकरं करलसन्मृगशिशुं पशुपतिं
हरं शशिधनंजयपतंगनयनं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 3 ॥
अनंतनवरत्नविलसत्कटककिंकिणिझलं झलझलं झलरवं
मुकुंदविधि हस्तगतमद्दल लयध्वनिधिमिद्धिमित नर्तन पदम् ।
शकुंतरथ बर्हिरथ नंदिमुख भृंगिरिटिसंघनिकटं भयहरम्
सनंद सनक प्रमुख वंदित पदं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 4 ॥
अनंतमहसं त्रिदशवंद्य चरणं मुनि हृदंतर वसंतममलम्
कबंध वियदिंद्ववनि गंधवह वह्निमख बंधुरविमंजु वपुषम् ।
अनंतविभवं त्रिजगदंतर मणिं त्रिनयनं त्रिपुर खंडन परम्
सनंद मुनि वंदित पदं सकरुणं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 5 ॥
अचिंत्यमलिवृंद रुचि बंधुरगलं कुरित कुंद निकुरुंब धवलम्
मुकुंद सुर वृंद बल हंतृ कृत वंदन लसंतमहिकुंडल धरम् ।
अकंपमनुकंपित रतिं सुजन मंगलनिधिं गजहरं पशुपतिम्
धनंजय नुतं प्रणत रंजनपरं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 6 ॥
परं सुरवरं पुरहरं पशुपतिं जनित दंतिमुख षण्मुखममुं
मृडं कनक पिंगल जटं सनक पंकज रविं सुमनसं हिमरुचिम् ।
असंघमनसं जलधि जन्मगरलं कवलयंत मतुलं गुणनिधिम्
सनंद वरदं शमितमिंदु वदनं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 7 ॥
अजं क्षितिरथं भुजगपुंगवगुणं कनक शृंगि धनुषं करलसत्
कुरंग पृथु टंक परशुं रुचिर कुंकुम रुचिं डमरुकं च दधतम् ।
मुकुंद विशिखं नमदवंध्य फलदं निगम वृंद तुरगं निरुपमं
स चंडिकममुं झटिति संहृतपुरं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 8 ॥
अनंगपरिपंथिनमजं क्षिति धुरंधरमलं करुणयंतमखिलं
ज्वलंतमनलं दधतमंतकरिपुं सततमिंद्र सुरवंदितपदम् ।
उदंचदरविंदकुल बंधुशत बिंबरुचि संहति सुगंधि वपुषं
पतंजलि नुतं प्रणव पंजर शुकं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 9 ॥
इति स्तवममुं भुजगपुंगव कृतं प्रतिदिनं पठति यः कृतमुखः
सदः प्रभुपद द्वितयदर्शनपदं सुललितं चरण शृंग रहितम् ।
सरः प्रभव संभव हरित्पति हरिप्रमुख दिव्यनुत शंकरपदं
स गच्छति परं न तु जनुर्जलनिधिं परमदुःखजनकं दुरितदम् ॥ 10 ॥
इति श्री पतंजलिमुनि प्रणीतं चरणशृंगरहित नटराज स्तोत्रं
@@Gyananjali_GyanGanga
नटराज स्तोत्रं (पतंजलि कृतम्)
अथ चरणशृंगरहित श्री नटराज स्तोत्रं
सदंचित-मुदंचित निकुंचित पदं झलझलं-चलित मंजु कटकम् ।
पतंजलि दृगंजन-मनंजन-मचंचलपदं जनन भंजन करम् ।
कदंबरुचिमंबरवसं परममंबुद कदंब कविडंबक गलम्
चिदंबुधि मणिं बुध हृदंबुज रविं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 1 ॥
हरं त्रिपुर भंजन-मनंतकृतकंकण-मखंडदय-मंतरहितं
विरिंचिसुरसंहतिपुरंधर विचिंतितपदं तरुणचंद्रमकुटम् ।
परं पद विखंडितयमं भसित मंडिततनुं मदनवंचन परं
चिरंतनममुं प्रणवसंचितनिधिं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 2 ॥
अवंतमखिलं जगदभंग गुणतुंगममतं धृतविधुं सुरसरित्-
तरंग निकुरुंब धृति लंपट जटं शमनदंभसुहरं भवहरम् ।
शिवं दशदिगंतर विजृंभितकरं करलसन्मृगशिशुं पशुपतिं
हरं शशिधनंजयपतंगनयनं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 3 ॥
अनंतनवरत्नविलसत्कटककिंकिणिझलं झलझलं झलरवं
मुकुंदविधि हस्तगतमद्दल लयध्वनिधिमिद्धिमित नर्तन पदम् ।
शकुंतरथ बर्हिरथ नंदिमुख भृंगिरिटिसंघनिकटं भयहरम्
सनंद सनक प्रमुख वंदित पदं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 4 ॥
अनंतमहसं त्रिदशवंद्य चरणं मुनि हृदंतर वसंतममलम्
कबंध वियदिंद्ववनि गंधवह वह्निमख बंधुरविमंजु वपुषम् ।
अनंतविभवं त्रिजगदंतर मणिं त्रिनयनं त्रिपुर खंडन परम्
सनंद मुनि वंदित पदं सकरुणं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 5 ॥
अचिंत्यमलिवृंद रुचि बंधुरगलं कुरित कुंद निकुरुंब धवलम्
मुकुंद सुर वृंद बल हंतृ कृत वंदन लसंतमहिकुंडल धरम् ।
अकंपमनुकंपित रतिं सुजन मंगलनिधिं गजहरं पशुपतिम्
धनंजय नुतं प्रणत रंजनपरं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 6 ॥
परं सुरवरं पुरहरं पशुपतिं जनित दंतिमुख षण्मुखममुं
मृडं कनक पिंगल जटं सनक पंकज रविं सुमनसं हिमरुचिम् ।
असंघमनसं जलधि जन्मगरलं कवलयंत मतुलं गुणनिधिम्
सनंद वरदं शमितमिंदु वदनं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 7 ॥
अजं क्षितिरथं भुजगपुंगवगुणं कनक शृंगि धनुषं करलसत्
कुरंग पृथु टंक परशुं रुचिर कुंकुम रुचिं डमरुकं च दधतम् ।
मुकुंद विशिखं नमदवंध्य फलदं निगम वृंद तुरगं निरुपमं
स चंडिकममुं झटिति संहृतपुरं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 8 ॥
अनंगपरिपंथिनमजं क्षिति धुरंधरमलं करुणयंतमखिलं
ज्वलंतमनलं दधतमंतकरिपुं सततमिंद्र सुरवंदितपदम् ।
उदंचदरविंदकुल बंधुशत बिंबरुचि संहति सुगंधि वपुषं
पतंजलि नुतं प्रणव पंजर शुकं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 9 ॥
इति स्तवममुं भुजगपुंगव कृतं प्रतिदिनं पठति यः कृतमुखः
सदः प्रभुपद द्वितयदर्शनपदं सुललितं चरण शृंग रहितम् ।
सरः प्रभव संभव हरित्पति हरिप्रमुख दिव्यनुत शंकरपदं
स गच्छति परं न तु जनुर्जलनिधिं परमदुःखजनकं दुरितदम् ॥ 10 ॥
इति श्री पतंजलिमुनि प्रणीतं चरणशृंगरहित नटराज स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
नटराज स्तोत्रं (पतंजलि कृतम्)
अथ चरणशृंगरहित श्री नटराज स्तोत्रं
सदंचित-मुदंचित निकुंचित पदं झलझलं-चलित मंजु कटकम् ।
पतंजलि दृगंजन-मनंजन-मचंचलपदं जनन भंजन करम् ।
कदंबरुचिमंबरवसं परममंबुद कदंब कविडंबक गलम्
चिदंबुधि मणिं बुध हृदंबुज रविं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 1 ॥
हरं त्रिपुर भंजन-मनंतकृतकंकण-मखंडदय-मंतरहितं
विरिंचिसुरसंहतिपुरंधर विचिंतितपदं तरुणचंद्रमकुटम् ।
परं पद विखंडितयमं भसित मंडिततनुं मदनवंचन परं
चिरंतनममुं प्रणवसंचितनिधिं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 2 ॥
अवंतमखिलं जगदभंग गुणतुंगममतं धृतविधुं सुरसरित्-
तरंग निकुरुंब धृति लंपट जटं शमनदंभसुहरं भवहरम् ।
शिवं दशदिगंतर विजृंभितकरं करलसन्मृगशिशुं पशुपतिं
हरं शशिधनंजयपतंगनयनं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 3 ॥
अनंतनवरत्नविलसत्कटककिंकिणिझलं झलझलं झलरवं
मुकुंदविधि हस्तगतमद्दल लयध्वनिधिमिद्धिमित नर्तन पदम् ।
शकुंतरथ बर्हिरथ नंदिमुख भृंगिरिटिसंघनिकटं भयहरम्
सनंद सनक प्रमुख वंदित पदं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 4 ॥
अनंतमहसं त्रिदशवंद्य चरणं मुनि हृदंतर वसंतममलम्
कबंध वियदिंद्ववनि गंधवह वह्निमख बंधुरविमंजु वपुषम् ।
अनंतविभवं त्रिजगदंतर मणिं त्रिनयनं त्रिपुर खंडन परम्
सनंद मुनि वंदित पदं सकरुणं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 5 ॥
अचिंत्यमलिवृंद रुचि बंधुरगलं कुरित कुंद निकुरुंब धवलम्
मुकुंद सुर वृंद बल हंतृ कृत वंदन लसंतमहिकुंडल धरम् ।
अकंपमनुकंपित रतिं सुजन मंगलनिधिं गजहरं पशुपतिम्
धनंजय नुतं प्रणत रंजनपरं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 6 ॥
परं सुरवरं पुरहरं पशुपतिं जनित दंतिमुख षण्मुखममुं
मृडं कनक पिंगल जटं सनक पंकज रविं सुमनसं हिमरुचिम् ।
असंघमनसं जलधि जन्मगरलं कवलयंत मतुलं गुणनिधिम्
सनंद वरदं शमितमिंदु वदनं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 7 ॥
अजं क्षितिरथं भुजगपुंगवगुणं कनक शृंगि धनुषं करलसत्
कुरंग पृथु टंक परशुं रुचिर कुंकुम रुचिं डमरुकं च दधतम् ।
मुकुंद विशिखं नमदवंध्य फलदं निगम वृंद तुरगं निरुपमं
स चंडिकममुं झटिति संहृतपुरं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 8 ॥
अनंगपरिपंथिनमजं क्षिति धुरंधरमलं करुणयंतमखिलं
ज्वलंतमनलं दधतमंतकरिपुं सततमिंद्र सुरवंदितपदम् ।
उदंचदरविंदकुल बंधुशत बिंबरुचि संहति सुगंधि वपुषं
पतंजलि नुतं प्रणव पंजर शुकं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 9 ॥
इति स्तवममुं भुजगपुंगव कृतं प्रतिदिनं पठति यः कृतमुखः
सदः प्रभुपद द्वितयदर्शनपदं सुललितं चरण शृंग रहितम् ।
सरः प्रभव संभव हरित्पति हरिप्रमुख दिव्यनुत शंकरपदं
स गच्छति परं न तु जनुर्जलनिधिं परमदुःखजनकं दुरितदम् ॥ 10 ॥
इति श्री पतंजलिमुनि प्रणीतं चरणशृंगरहित नटराज स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
galt hai ye tarj hi nahi hai
very nice
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