राजा जनक के समर्पण की कहानी | Detachment from Attachment | By Sirshree |Inspirational story in Hindi
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- Опубликовано: 16 окт 2024
- राजा जनक के समर्पण कि कहानी
गुरु व्यासमुनी ने अपने बेटे से एक बार कहा कि तुम जाकर राजा जनक से
सीखकर आओ, शुकदेव नाम के उनके बेटे थे। तो शुकदेव ने कहा कि राजा जनक
के पास क्यों भेज रहे हैं? देखो एक तो व्यासमुनी अपने बेटे को भेज रहे हैं क्योंकि
कई बार रिश्तेदार नहीं समझ सकते। व्यासमुनी तो उन्हें सारा ज्ञान दे सकते हैं मगर
घर का ही इंसान है तो कुछ बातें लेने के लिए उसे किसी और के पास भेजना ज़रूरी
है। और फिर उस पर भी उसका सवाल ही है कि अगर भेजना ही है तो किसी ऋषि
के पास भेजो, है ना! आज भेज रहे हैं राजा जनक के पास। जिन्हें बेटियाँ है, बीवी
है, वे संसारी है, भोग में रहते हैं। सुख-सुविधाओं का उपभोग करते हैं। तो उसमें
भी शुकदेव को शंका ही आती है। मगर व्यासमुनी कहते कि तुम जाकर तो आओ
और जा ही रहे हो तो अच्छे से सरेंडर होकर सीखकर आओ। उस समय के लोग
तो यह जानते ही थे कि हमें कुछ सीखना है तो सरेंडर होकर ही सीखना है। उसमें
अपनी बुद्धि नहीं चलानी है। शुकदेव राजा जनक के पास पहुँच गए। राजा जनक को
बताया कि उन्हें व्यासमुनी ने भेजा है। राजा जनक ने भी शुकदेव को तुरंत पहचाना
और उनका आवभगत किया। उसने कहा कि मुझे आपसे सीखना है, ऐसा पिताजी
ने कहा है। राजा जनक ने कहा, आज रह लो यहाँ पर और जो जो आपके सवाल
हैं वो पूछ लो। शुकदेव ने पहला सवाल यही पूछा कि मुझे पिताजी ने आपके पास
क्यों भेजा है? मेरा यही पहला सवाल है। आप तो महलों में रहते हो, हर चीज का
उपभोग करते हो, फिर आपके पास ही क्यों भेजा? यही मेरा पहला सवाल है। लोग
कपटमुक्त बता पाते हैं। राजा जनक ने कहा कि ठीक है अभी तुम मेरे पास सीखने
के लिए आए हो तो मैं तुम्हारे सवाल का जवाब दूँगा। पहले तुम महल देखकर तो
आओ और महल देखने जा रहे हो तो ये तेल का कप है भरा हुआ, उसमें दीया जल
रहा है। एक भी बूँद तेल की उसमें से गिरे नहीं। ऐसे तुम महल के हर कमरे से जाकर
आओ, तेल की एक बूँद भी न गिरे। अब शुकदेव का शरीर ट्रेन्ड तो है ही इसलिए
वो पूरी सजगता से हर कमरे से जाकर आ गया। और राजा जनक के सामने उपस्थित
हो गया। राजा जनक ने पूछा, सब देख लिया? हाँ देख लिया। ये कमरे में क्या था?
उसने बताया कि ये कमरे में ये था, ये कमरे में ये था। ऐसा सब शुकदेव ने बताया।
राजा जनक ने कहा, ये तुम कैसे कर पाएँ, तुम्हें तो दीये पर ध्यान देना था? हाँ मुझे
तो तेल की एक भी बूँद गिरानी नहीं थी, मेरा ध्यान उस पर था ही। शुकदेव ने कहा
कि मेरा ध्यान उस पर था ही कि तेल की एक भी बूँद ना गिरे। राजा जनक ने कहा
वही तो मैं करता हूँ। इसी महल में रहता हूँ मगर मेरा ध्यान इस बात पर रहता है कि
सच्चाई से मेरा ध्यान न हटे। सत्य जो है एक पल के लिए भी मेरा ध्यान उधर से न
हटे। जैसे तुम ये कर पाए, वैसे ही मैं करता हूँ। यानी ये संभव है । संसार में रहकर भी राजा जनक ने जो करके दिखाया।
समाधान हो गया
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जिस राज्य का राजा जनक हो , तो कितना सुंदर सोर्स होगा / तेज मंगल परिणाम ✨🌍✨🌷👏 यथा राजा तथा प्रजा , ✨🎄🌄🕊️🎄💞🌨️🕉️🌨️ धन्यवाद सरश्रिजि धन्यवाद 🌷👏
संसार में रहते हुए सत्य के साथ जीवन जीना आनंददायक है।🙂❤
"सत्य ही मेरा जीवन है।सत्य ही मेरी प्रार्थना है।सत्य ही मेरी प्रतिज्ञा है।मैं सदा सत्य देखती हूँ।निरंतर सत्य की अभिव्यक्ति करना और सत्य में स्थापित होना मेरा कुल मुल उद्देश्य है।"👍TOS.....
तेजसंसारी तेजजीवन प्रदान करने के लिए धन्यवाद सरश्री जी।🙏😊🙇♀️
बिल्कुल सत्य.... 🙏🙏❤️❤️🌹1️⃣1️⃣1️⃣1️⃣
धन्यवाद सरश्री 🙏🙏🙏🙏
यह possible है
Dhanyawad o mere Guruwar
Dhanyawad Sirshree.aap ne Raja Janak ki kahani se bahut prabhavit kiya hai.badi shifting mili hai.es sansaar mai rahte huye,sabhi karya karte huye apni najar Sathya par ander tejsthan par rakhni hai.koti koti Dhanyawad Guruvar ko
Happy thoughts....
फोकस ,TOS 🌷👏🌷👏 धन्यवाद सरश्रिजि हॅपी थाॉटस 🌷👏👌
सजगता का गुण,धन्यवाद सरश्री जी 🌹🙏
राजा जनक तेज संसारी तपस्वि✨💞✨🌷 8 🌷👏🌷👏 धन्यवाद सरश्रिजि धन्यवाद 💞🌷👏 8 🌷👏 👌 धन्यवाद 🌷👏
Dhanyawad Sirshree ji 🙏🙏🙏
thank you Sir Shree for Enlightening ❤️
बहोत बहोत बढीया, सरश्रिजि प्रणाम हॅपी थाॅटस 🌷👏 धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद 🌷👏
Dhanyabad sirshree ji
धन्यवाद सरश्री जी
समर्पण आवश्यक आहे धन्यवाद सरश्री🙏
क्रुपा करो क्रुपा करो हमारी जाग्रुती बढे ग्रहनशीलता बढे धन्यवाद सरश्री नीमीत्त बनानेकेलीये लीकरोंसे मुक्ती दिलानेकेलीये अनंत कोटी धन्यवाद
सरश्रिजि प्रणाम 🌷👏, बचपनकी कहानी सुनी वह याद आयी ईसिलिये धन्यवाद सरश्रिजि 🌷👏 जब गुरुने शिष्य 💞 को सिरपर जलभरी थालि रखकर लंबासा गोल घुमकर आओ, गुरु आज्ञा, सो शिष्यने वरदान के रुप में चल पडा, तब ढोल ताशे बजानेको भि लोगोंका वहा जो उपस्थित ते ,येभि गुरुवाणी, और ईस दौरान गुरु शिष्य को निरंतर पुछते , वह शिष्य को जिसकी परिक्षा ले जारही अध्ययन समाप्ती की, के अरुणि तु कोठे आहेस ? तब वह शिष्य 💞 कहेता गुरुजी मै यहा हुं, यहा हुं यहा हुं ऐसा करके शिष्य 💞 ने अपनि परिक्षा दि, थालिका एक बुंदभि 💧 जमिपें गिरने नहीं दिया ,ताकी यह तो गुरु आज्ञा जो ठहरी, ््् ✨ यह कहानी कि तेज याद आयी ईसिलिये सरश्रिजि अनंत कोटी कोटी प्रणाम धन्यवाद 🌷👏, सेवा का मौका दिया धन्यवाद सरश्रिजि 🌷👏 समर्पित,🌷👏 क्षमा मोक्षमा सुक्षमा करना सरश्रिजि 🌺🤲🌷👏 धन्यवाद
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