पुराकथा का विध्वंस और श्रीराम का मूर्तिभंजन

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  • Опубликовано: 23 дек 2024

Комментарии • 5

  • @kamleshdhyani
    @kamleshdhyani 2 года назад +1

    गुरूजी सादर प्रणाम

  • @suhawna
    @suhawna 2 года назад

    गुरुदेव🙏
    विगत कुछ सप्ताह से मैं आपके व्याख्यान विभिन्न विषयों पर सुनकर अनुग्रहित हो रहा हो।
    I have read a book "Aavarana" of S L Bhyrappa translated by Sandeep Balkrishna. I found him very authentic as he provided profound references and represented history as beautiful art.
    आपके विवरण के बाद मुझे संदेह उत्पन्न हो गया है। क्या इस तरह के विपरीत विचार या रचना एक लेखक से संभव है? क्या लेखनी सिर्फ पहचान बनाने और अलग दिखने के लिए किया जाना चाहिए? जवाब की अपेक्षा इस माध्यम में नहीं रखता । मैं स्वतः इस वार्तालाप की शैली को विवशता में ही उपयोग करता हूँ।
    साधुवाद🙏

  • @mishrask5454
    @mishrask5454 2 года назад +1

    एक घोर, मदोन्मत्त, विकृत मानसिकताग्रस्त लेखन को किसी भी साहित्य का अंग कैसे माना जा सकता है।

  • @रविसैलानी
    @रविसैलानी 2 года назад +1

    भगवान सिंह के उपन्यास 'अपने अपने राम' पर भी एक ऐसा कार्यक्रम अपेक्षित है। उसमें भी रामकथा के मिथक का जबरदस्त विखण्डन है।