वस्तुको अपना न माननेसे सत्य मिलता है 19 (ब) - Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj
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- Опубликовано: 16 окт 2024
- Swami Sri Sharnanand Ji Maharaj's Discourse in Hindi
स्वामी श्रीशरणानन्दजी महाराज जी का प्रवचन
जाने हुए असत् के त्याग से साधन का निर्माण होता है।
साधन निर्माण में मानव-मात्र स्वाधीन है।
संकल्प-पूर्ति जीवन नहीं है।
संकल्प-रहित होने में जीवन है।
संघ की नीति के अनुसार अपना गुरू, शासक और नेता व्यक्ति स्वयं है।
सत्संग मानव-जीवन का आरम्भ है और साधन-परायणता मानव-जीवन का अन्त है।
सत्संग की विधि--
आपकी सुषुप्ति जागृति में बदले, तो थोड़ी देर जागृत अवस्था में सुषुप्तिवत् विश्राम लीजिये। ध्यान, धारण, समाधि हो जायेगी।
इसमें व्यर्थ-चिन्तन की समस्या आती है। जो आपके बिना किये हो रहा है, उसे होने दीजिये, आप विश्राम में रहिये।
ऐसा नियम आरम्भ करने के बाद भी संकल्प पूर्ति के सुख एंव अपूर्ति के क्षोभ से आक्रान्त होते रहने के कारण व्यर्थ-चिन्तन बना रहता है। अतः इसका अतः करना होगा।
तब शान्ति से स्वाधीनता और स्वाधिनता से प्रेम की ओर प्रगति होगी। प्रेम से अनन्त रस की उपलब्धि होती है।