सप्तम सर्ग || Ep 02 || Roar of Karna , गांडीवधारी अर्जुन के कांपते हाथ और पांडवों की व्याकुलता

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  • Опубликовано: 16 сен 2024
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    • रश्मिरथी ~ रामधारी सिं...
    धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र की पावन धरा पर, जब धर्म और अधर्म का संघर्ष समूचे ब्रह्मांड को अपनी गिरफ्त में ले चुका था, वहाँ एक अभूतपूर्व वीरता की गाथा लिखा जा रहा था। यह एक ऐसा युद्ध था, जहाँ हर पत्ते की सरसराहट में न्याय और अन्याय की गूंज सुनाई दे रही थी, और हर बाण की गति में धर्म और अधर्म की टकराहट महसूस की जा रही थी।
    वह धरती, जो कौरवों और पांडवों के रक्तरंजित संघर्ष की साक्षी थी, पर यहाँ अधर्म के नृशंस खेल खेला गया। द्रोणाचार्य का वध झूठ के हाथों हुआ, निहत्थे अभिमन्यु की हत्या कायरता से की गई, और जयद्रथ का संहार भी छल से हुआ। भीष्म पितामह, जो सत्य के प्रतीक थे, को कपट से शर-शैय्या पर लेटा दिया गया। सत्य का व्रत लेने वाले धर्मराज भी असत्य की ओर झुक गए।
    परंतु, इस अंधकार और विनाश के बीच, एक ऐसा योद्धा था जिसने धर्म की मशाल को क्षणभर के लिए भी बुझने नहीं दिया। सूर्यपुत्र कर्ण, जिसकी वीरता और बलिदान ने कुरुक्षेत्र की धरा को झकझोर कर रख दिया। कर्ण, जिसे जीवन ने हर मोड़ पर चुनौती दी, परंतु उसने धर्म और सत्य की रक्षा का संकल्प ले रखा था।
    अब सारे विशेषण युद्ध के अंतिम चरण पर आकर मौन हो चुके थे। दुर्योधन, अपने 99 भाइयों के शवों पर विलाप कर चुका था। द्रोणाचार्य के ढाल जीवित नहीं थे, भीष्म का कपल समाप्त हो चुका था। अंतिम युद्ध की काली रात सब कुछ निगल चुकी थी। लेकिन मित्रता का वह अखंड दीप अभी भी जल रहा था, जिसे कर्ण कहते हैं। कर्ण जानता था कि दुर्योधन की अंतिम सांस उसी पर टिकी है। समय आ गया था कि वह अर्जुन को मारकर कुरुक्षेत्र के मस्तक पर कौरव विजय का राजतिलक करे।
    परंतु, कर्ण यह भी जानता था कि नियति ने उसे पग-पग पर घात किए हैं। कहते हैं, युद्ध की पिछली रात कर्ण ने स्वप्न में अपने गुरु परशुराम से मुलाकात की और उनसे याचना की: "हे गुरुदेव, बस कल भर के लिए मुझे शाप मुक्त कर दें। मुझे वह ब्रह्मास्त्र-विद्या लौटा दें, जो मैंने अपने शरीर को गलाकर प्राप्त की थी। कल अर्जुन का वध करके मैं वह अस्त्र सम्मान के साथ हमेशा के लिए आपको समर्पित करूंगा।"
    परशुराम ने उत्तर दिया: "तुम लेने के लिए नहीं, देने के लिए प्रसिद्ध हो। राधे, अपने भाग्य से संधि कर लो। अर्जुन को जीवनदान दो और पांडवों को जीत दान दो।"
    स्वप्न से कर्ण की आंखें खुलीं, और उसे आभास हो गया कि परशुराम ने उसे संकेत दे दिया कि नियति ने उसके लिए कुछ और ही तय किया है। कर्ण ने समझ लिया कि उसका सिर कुरुक्षेत्र की धरा को चूमेगा। युद्ध की अंतिम घड़ी में, वह अपने भाग्य से संधि करके वीरता की अंतिम कसौटी पर खड़ा रहेगा।
    वह जान गया कि नियति उसे जरा भी तरस नहीं आएगी। मृत्यु निश्चित थी, लेकिन कर्ण सब जानकर भी पीछे नहीं हटेगा। वह आगे बढ़कर मृत्यु को गले लगाएगा, इतनी जोर से उसे अपने आलिंगन में भरेगा कि मृत्यु की हड्डी चटक जाए।
    तो आइए, इस अद्भुत काव्य को आरंभ करते हैं, जहाँ कर्ण की अमर गाथा का ऐतिहासिक गीत गाया जाता है।
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Комментарии • 3

  • @bikashpaul3926
    @bikashpaul3926 6 дней назад

    Arjun k samne Karn sirf ek baccha tha..jise Arjun ne kai baar hataya tha.. Mahabharata par lo .

    • @anurag4255
      @anurag4255  6 дней назад

      No doubt , Arjun ek mahan yodha thee, kintu ye mat bhuliye Arjun ke sath jadgeesh Hari thee aur rath per Mahabali hanuman, aur hath me gandiv.
      Fir bhi karn ke sath itna chall aur kapat hone ke baad bhi Arjun ne chall se karn ko mara.
      Sukriya aapki baat prastsut krne ke liye

    • @tarunsharma8040
      @tarunsharma8040 11 часов назад

      Ramdhari dinkar ko hi sara chhal kapata dikhayi diya
      Villen ko hero bnana koi inse sikhe